09-Apr-2017 02:56 AM
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इतनी दूर से फ़ोन पर बात करते हुए मैं तुमसे बोल रहा हँू, तुम कितनी मेरे भीतर रहती हो।
तुमने मेरे भीतर से कोई जवाब नहीं दिया है। तुम मेरे कहे को मेरे ही कानों से सुन रही हो। तुम मेरे भीतर से मेरा ही हाथ उठाकर मेरे बालों को ठीक कर रही हो।
मैंने तुमसे ऐसे कहा जैसे अपने आप से कह रहा हँू। तुम कुछ बोलती क्यूँ नहीं हो?तुम मेरे ही होंठों से मुस्कराती हो। अब मैं अपने आपको खोजने लगा हूँ। तुम इस खोजने में मेरी मदद कर रही हो। तुमने मुझे तुम्हारे साथ ही पकड़ लिया है। अब मैं और तुम कही भी छिप नहीं सकते। हम दोनों हमेशा एक दूसरे को देख रहे हैं। तीसरा ऐसा कोई नहीं जो हमें देख पा रहा हो।
तुमने मेरे भीतर सोते हुए करवट बदली है। मेरी नींद खुल गई है। मैं तुम्हारी नींद में अपने को जगा हुआ देख रहा हूँ। जागने के बाद मुझे प्यास लगी है, तुम मेरे लिए पानी का गिलास लाई हो। मैं तुम्हारे हाथों से पानी पी रहा हूँ। मेरा पीया हुआ पानी तुम्हारी देह में जा रहा है। शायद तुम्हारी प्यास बुझ गई है। फिर से प्यासा होने के लिए।
हम दोनों सो गए हैं। खिड़की के बाहर से पूरी पृथ्वी हमें देख रही है। हम पृथ्वी से बड़े हो गए हैं।
बहुत सुबह कोई सपना हमें जगाने के लिए आया है। वो हमें सोता देख हमारे साथ ही सो गया है। सपना हमारे साथ सोते हुए हमारी रखवाली कर रहा है, वह नींद में बुदबुदा रहा है- जागते रहो।
हम दोनों बेफिक्र सो रहे हैं।
कमरे में रखी किताबें हमें साँस दे रही हैं। उन किताबों के ज़रिए हम बिसरी हुए नींद निकाल रहे हैं।
नियति किताब का पृष्ठ मोड़ उसे बन्द कर रही है। हम शब्दों के भीतर डरे-छिपे बैठे हुए हैं। अब इस पृष्ठ को कौन खोलेगा?
क्या हमें हमारे ही समय में कोई पढ़ पाएगा?
क्या हम दोनों की लिपि को कोई पढ़ भी सकता है। कितनी मात्राएँ और कितने पूर्णविराम। वह देखों, बड़े ई की मात्रा हमारे ही घर के दरवाज़े पर हमारी प्रतीक्षा कर रही है। आ की मात्रा ऊपर छत पर खड़े होकर चैकसी कर रही है। हम सोते हुए सब कुछ देख रहे हैं।
बहुत दूर से समय हमारे पास आता दिखाई पड़ रहा है। शायद उसे हमसे किसी का पता पूछना है। उनका जो कब से संसार से चले गए हैं। हमें पालने के लिए अपने शब्द छोड़ कर।
हम उन्हीं शब्दों के वृक्ष की छाया में साथ-साथ जाग गए हैं।
हमारी आँखें वह देख रही हैं जो कहीं नहीं हैं। हमारा साथ किसी चन्दोबा की तरह हमें मई की धूप से बचा रहा है।
हम इस चन्दोबा में अपने आप को बचा नहीं पा रहे हैं। हमारी देह पारदर्शी होकर एक दूसरे में झाँक रही है।
तुम मेरी देह में झाँकते हुए अपने वस्त्र पहन रही हो। मेरी देह में तुम अपने आपको बहुत खूबसूरत देख पा रही हो। मेरी देह तुम्हें दुनिया से बचाने के लिए काजल लगा रही है। तुम्हें कागज़ के कालेपन में नीला दिखाई दे रहा है। तुम उस नीले को आँख बन्द कर रही हो। मैं नीले के पीछे बैठा तुम्हारा चुम्बन ले रहा हूँ। तुम्हारे चुम्बन से मेरे होंठ गीले हो गए हैं। मैं तुम्हें अपने ही भीतर याद कर उस गीलेपन को सुखा रहा हूँ। वह गीला थोड़ा शरारती हो गया है। इसके पहले कि वह सूख जाए वह फिर से गीला होना चाह रहा है। तुम्हारी इच्छा उसकी मदद करने की हो रही है।
शाम को मैं काॅलोनी के बाहर के बियाबान में टहलने निकला हूँ। तुम्हें सूखी हुई पत्तियों पर चलना अच्छा लगता है। तुम मेरे ही पैरों से उन पत्तियों को महसूस कर रही हो। तुम मेरी देह से बाहर निकल मेरे साथ ही एक पत्थर पर बैठ गई हो। तुमने अपना सिर मेरे कंधे पर रख दिया है। मैं उससे पूछ रहा हूँ कि क्या उसने आज बालों में शैम्पू लगाया है। जवाब में उसने आँखें बन्द कर ली हैं। मैं उसके इस जवाब को समझ रहा हूँ। मैं उसकी पीठ पर हाथ फेर रहा हूँ। मेरी देह के भीतर से वह बिना वस्त्रों के ही बाहर निकली थी। उसे नींद आते देखकर मैंने उसे अपनी देह में ही सुला लिया।
मैं वापस अपने कमरे में आकर लेट गया हूँ। कहीं उसकी नींद न खुल जाए।
मुझे भी नींद लग गई है।
नींद में हम दोनों आपस में बात करने लगते हैं।
‘जब मैं दूर चली जाती हूँ, तुम मुझे कितना याद करते हो।’
‘मैं तुमको क्यों बताऊँ’
‘बताओ ना ’
‘सच बोलूँ कि झूठ ’
‘जो तुम चाहो’
‘मैं तुम्हें बिल्कुल याद नहीं करता’
‘झूठे’
‘फिर क्यूँ पूछती हो तुम’
‘मुझे अच्छा लगता है’
‘क्या तुम्हें झूठ अच्छा लगता है’
‘हाँ, जब मालूम हो कि वह झूठ है’
‘तुम झूठ को इतना चाहती हो’
‘हाँ, उसी से सच का पता चलता है’
‘फिर मैं तो सच जानता ही नहीं हूँ’
‘क्यों’
‘क्योंकि तुम झूठ ही नहीं बोलतीं’
‘तुम बहुत बदमाश हो गए हो’
‘वाकई’
‘हाँ, सौ फ़ीसदी’
‘तुम कितनी फ़ीसदी हो गयी हो’
‘मुझे यह सब नहीं मालूम’
‘मैं बताऊँ’
‘तुम फिर झूठ ही बोलोगे’
‘अच्छा नहीं, बताता’
‘तुमने नया कुछ लिखा है अभी’
‘हाँ, थो़ड़ा बहुत’
‘कविताएँ?’
‘हाँ‘
‘कोई एक सुनाओ ना’
‘तुम्हें मालूम है मुझे याद नहीं रहता’
‘तुम कविताएँ भूलने के लिए लिखते हो’
‘सारा लिखा हुआ एक दिन भुला ही दिया जाता है’
बहुत देर तक उसने कुछ नहीं कहा। मैं भी चुप ही रहा। एकाएक वह मुस्कराने लगी। मैं उसे देखने लगा।
‘तुम्हें याद है हम जब पहली बार मिले थे’ उसने कहा।
‘हूँ... मुझे तो ऐसा लगता है हम जब भी मिलते हैं पहली बार ही मिलते हैं’
‘क्या इसके पहले हम नहीं मिले थे’
‘मैंने कहा ऐसा लगता है’
‘क्या मैं हर बार नई हो जाती हूँ?’
‘शायद... हम बहुत दिनों बाद मिलते हैं इसलिए दोनों ही नए हो जाते हैं।’
वह हँसने लगी। मैं उसे देखने लगा। फिर वह सो गई। मैं जागते हुए पहली बार मिलने के बारे में सोचने लगा।
दो
वह मुझसे कभी-कभी ऐसे बात करता है, जैसे अपने आप से कह रहा हो। वह खुद से ही बात करते हुए अपने मन की बात बोल पाता है शायद। जैसे उस दिन वह मुझसे बोल रहा था कि तुम्हें मेरे लिखने से अनुभूति नहीं होती। मैं चुप रही थी, कुछ नहीं बोली थी। वह फिर बोला था- तुम्हें मालूम है कि मैं यह सब तुम्हारे लिए लिखता हूँ। उसके बाद भी तुम कुछ नहीं बोलती हो कि तुम्हारे मन में यह सब कैसा लगता है?
मैं फिर भी चुप ही रही थी। वह जैसे अपने से ही बड़बड़ाने लगा था। ‘कैसी विडम्बना है यह।’
क्या उसे मालूम है कि मैं उस समय क्या सोचती रही हूँ? थोड़ी ही देर में वह सामान्य बातें करने लगा था। उसकी कही सारी सामान्य बातें मात्र औपचारिकता ही होती। मेरी उपस्थिति का सम्मान रखने के लिए की जाने वाली बातें।
मुझे हैरानी इस बात की होती है कि वह हमेशा मेरे बारे में ही क्यों सोचता रहता है। उसका मेरे बारे में सोचना शायद उस समय बन्द हो जाता होगा, जब मैं उसके साथ होती हूँ, लेकिन यह कितना सम्भव हो पाता है। बहुत बार तो कई-कई दिनों के लिए।
आज उसने मिलने का समय दिया है। वह मेरे पहुँचने से पहले ही हमेशा मेरा इन्तजार कर रहा होता। जबकि मुझे अक्सर देर हो जाती, पर वह कुछ बोलता नहीं। जैसे यह सब भी उसे पहले से पता रहता। उसे यह भी लगता हो कि आखिर वह मेरा ही तो इन्तजार कर रहा है। केवल अपने साथ समय व्यतीत नहीं कर रहा। वह मुझे दूर से ही दिखाई दे रहा है, लेकिन उसे शायद मैं बहुत पास दिखाई दे रही हूँ। ऐसे में वह बहुत धीरे से मुस्कराता है। उसे लगता है कि शायद मुझे और कोई उसे मुस्कराता हुआ नहीं देख पाए।
उसे काॅफी अच्छी लगती है या काॅफी हाऊस में देर तक मेरे साथ बैठता। यह मैं कभी समझ नहीं पाई। वह अपने नए गद्य की पंक्तियाँ मुझे सुना रहा है-‘हम एक ज्वार में खो जाएँ. तो सुबह नींद के तट पर निढाल पड़े मिले। मन नहीं भरा, क्या कभी भरेगा?’
मैं उसके कहे गए शब्दों को समझना चाह रही हूँ। लेकिन वह मुझे कभी नहीं समझाता है। मुझे हमेशा यह महसूस होता है कि उसके कहे गए शब्दों की दुनिया से बाहर आ वापस अपनी भागदौड़ में शामिल हो जाना कितना अजीब लगता है। जैसे बरसात और हरी नयी दूब का सपना टूटा और हम एकाएक ही धूप और कोलतार की सड़क पर आ गए हों।
मैं रात को अपने कमरे में अकेले सोते हुए कभी-कभी सोचती हूँ कि यह प्रेम क्या होता है? क्या मैं उससे प्रेम करती हूँ या मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता।
‘तुम क्या सोच रही हो’ एकाएक वह बोला।
‘कुछ नहीं, बस यूँ ही... आज क्या-क्या काम करने हैं।’
‘मैं जब कभी तुम्हारे साथ होता हूँ, तभी तुम्हें यह सारे काम याद आते हैं?’
‘अरे, ऐसा नहीं है’
वह मुस्कुराने लगा। अब उसे बहुत पहले से पता लग गया है कि मैं ऐसी स्थिति मैं हमेशा यही बोलती हूँ।
‘चलें, थोड़ी देर पार्क में चलते हैं’ मैंने कहा, वह जैसे यही चाह रहा था।
‘मैं बोलता, तो मुझे डर था कि तुम मना कर देती’
‘इतना डरते हो मुझसे।’
‘हाँ, बहुत अधिक... तुम्हें मालूम है कि प्रेम भी एक डर ही है।’
‘तो क्या हम सोचेें कि हम डरे हुए व्यक्ति हैं’, मैंने कहा।
‘मुझे अभी तक नहीं मालूम कि तुम मुझसे प्रेम करती हो या नहीं। लेकिन मैं करता हूँ इसलिए डरता हूँ।’ यह कहकर वह खिलखिलाने लगा।
वह बहुत कम हँसता है।
पार्क में हम दोनों एक पत्थर की बेंच पर बैठ गए हैं। वह मुझसे थोेड़ी दूर बैठा है, लेकिन मुझे ऐसा लग रहा है जैसे वह मेरी ही देह में, मेरे ही भीतर बैठा हुआ है।
‘तुमने गाँव जाकर अपना जन्मदिन कैसे मनाया?’ उसने कहा।
‘हाँ, अच्छा ही रहा, काफी चहल-पहल रही और खूब सारा तरह-तरह का खाना भी।’ मैंने कहा।
‘मैं तुम्हें जन्मदिन पर कुछ दे नहीं पाया।’ वह बोला।
‘अरे, कोई बात नहीं।’ यह बोलने के बाद मुझे पता चला कि यह वाक्य भी मैं हमेशा बोलती हूँ।
‘तुम कैसे रहे इतने दिन मेरे बिना’ यह मैं उससे पूछना चाह रही थी, लेकिन पूछ नहीं रही थी।
‘मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगा इतने दिनों तक।’ यह वह कहना चाह रहा था, लेकिन बोल नहीं रहा था।
हम दोनों में अक्सर इसी तरह की चुपचाप बातें होती रहती हैं। वह बहुत करना चाहता है। मैं बहुत कम। इसीलिए मैं हमेशा की तरह बोल देती हूँ - ‘चलें, अब मच्छर काट रहे हैं।’
वह बिना कुछ बोले चलने के लिए उठ जाता है। गली के मोड़ पर पहुँच मैं उसे बोलती हूँ-‘ठीक है फिर।’
वह कहता है- ‘मैं तुम्हें थोड़ी दूर छोड़ देता हूँ।’
रात में अपने कमरे में नींद नहीं आने पर मैं सोच रही हूँ कि क्या वह मेरे जीवन में मुझे थोड़ी दूर छोड़ने के लिए ही आया है। क्या मैं उसे रोक नहीं सकती?