आनन्द भोग माॅल आशुतोष पोद्दार मराठी से अनुवादः व्यंकटेश कोटबागे
23-Mar-2022 12:00 AM 2046

आनन्दभोग माॅल नाटक का प्रथम रंगमंच पर प्रदर्शन 25 अपै्रल, 2009 को हुआ था। रंगमंच, पूना के इस प्रयोग के शिल्पकार थे-
पुरुष ः गिरीश कुलकर्णी
स्त्री ः आनेसा दाते
प्रकाश योजना ः प्रदीप वैद्य
नेपथ्य ः रश्मी रोडे
दिग्दर्शक ः मोहित टाकलकर
निर्मिति और संयोजन ः आशीष मेहता
पात्र
पुरुष और स्त्री - दोनों की आयु तीस के आसपास

दृश्य पटल
(रंगमंच पर हल्का प्रकाश। बेडरूम। तीस के आसपास की युवती हाथ में दूध्ा का गिलास लेकर खड़ी है। उसने कसकर साड़ी पहनी है। बाल खुले छोड़े हैं और भाल पर आये बाल, गजरा लगाकर ठीक किये हैं। तीसी का युवक मोबाइल पर ‘मर्डर’ सिनेमा का ‘ये भीगे होठ तेरे’ गाने की विडियो क्लिपिंग देखते हुए करवटें बदलते हुए लुढ़क रहा है। उसकी ओर ध्यान नहीं। पलभर वह नाराज़ होती है लेकिन फिर साड़ी का पल्ला उसके सिर पर डालते हुए उसका ध्यान आकर्षित कर लेती है। वह उसकी ओर देखता है और उसका चेहरा झुक जाता है। मोबाइल बगल में रखता है।)
पुरुषः आज भी नहीं वेश क्या?
स्त्रीः अब क्या हुआ?
पुरुषः (उपहास के साथ) क्या हुआ?
स्त्रीः तेरा दिया हुआ परफ़्यूम लगाकर आयी हूँ।
पुरुषः परफ़्यूम से क्या होता है?
स्त्रीः कुछ तो लगे इसीलिये यह साड़ी, ब्लाउज़, बे्रसियर और परफ़्यूम लाया था। तू ही बोला था इससे ‘अट्रेक्शन’ होगा।
पुरुषः केवल परफ़्यूम से क्या होता है?
स्त्रीः तू मुझे हमेशा देखता रहता है इसलिये तेरे को कुछ भी लगता नहीं होगा। यह सब दूकान के बाहर लगाये हौओं पर अच्छा दिखता है।
पुरुषः इसलिये ऐसा नहीं कि तू ऐसी ही दिखे। (झपटकर फ़ोन की ओर जाता है। ‘मर्डर’ का ‘ये भीगे ओठ तेरे’ गाना शुरू करता है।) देख, यह मल्लिका, कैसी दिखती है। तेरी साड़ी और ब्लाउज़ उसके पहने जैसा है। आ, यहाँ आ जा (वह बेड पर खड़ी रहती है।) इध्ार देख। (वह उसके पल्ले की पिन निकालता है। लो जेक ब्लाउज़ दिखता है। उसकी पीठ खुली दिखती है। वह साड़ी को पेट के नीचे की ओर खींचने की कोशिश करता है। लेकिन साड़ी टाईट बँध्ाी रहने से वह नीचे खींच नहीं पाती। वह पस्त होता है।) साड़ी को कैसे लपेटा है? (सेल फ़ोन की ओर देखते हुए।) देख इसने कैसे ओढ़ी है।
स्त्रीः ऐसा क्या? रुक जा मैं आयी (वह उतरकर जाने लगती है।)
पुरुषः अब अन्दर क्या रखा है (वह सुनती नहीं। वह ‘ये भीगे होठ तेरे’ सुनता रहता है। कुछ देर में वह आती है। पल्ले में शरीर लपेटा है। बेड पर खड़ी रहती है। सिनेमा जैसी शैली में पल्ला नीचे लेती है। मल्लिका जैसे दीखने का प्रयास करती है। उत्तेजक हाव भाव करती है। वह उन्हें ठीक से नहीं कर पाती। उसके हाथ के सैल का गाना अध्ािक ज़ोर से चलने लगता है। गाने की ओर देखते हुए वह (अरे मुझे भड़कता दिखता है। उसके माथे पर चिबुक पर ध्ाीरे हाथ फेरता है।) मल्लिका जैसी ही।
स्त्रीः तू जैसी चाहता है वैसी?
(एकाध्ा हिन्दी सिनेमा के रोमांटिक दृश्य की तरह वह उसके शरीर पर हाथ फेरता है। उसने ट्रेक सूट पहना है। दोनों ही बेकार दिखते हैं।)
पुरुषः (बालों पर हाथ फेरते हुए) शादी को पाँच साल हो गये फिर भी तू वैसे ही दिखती है। बिल्कुल कोरी।
स्त्रीः सच? (वह ध्ाीरे से आँखें मूँदती है।)
पुरुषः (अस्वस्थ होते हुए) कितना गरम हो रहा है न?
स्त्रीः लाईट गुम हुई है।
पुरुषः लोड शेडिंग!
स्त्रीः कल भी गयी थी।
पुरुषः ध्ात् तेरी।
स्त्रीः (ओठों पर हाथ रखते हुए) शुद्द
पुरुषः (झुंझलाहट के साथ) कितनी गरमी हो रही है।
स्त्रीः ठहर, ... खिड़की खोलती हूँ।
(दाँयी ओर के कन्ध्ो पर से कमर पर पल्ला लेती है और खिड़की का दरवाज़ा खोलती है। बिस्तर के पास मोमबत्ती जलाकर रख ली है। मोमबत्ती के प्रकाश में दोनों के चेहरे साफ़ दिखते हैं। वह उसकी ओर देखते हुए प्रभावित होता है।)
पुरुषः आज कितनी सुन्दर दिख रही हो।
स्त्रीः (लजाते हुए) सच?
पुरुषः (हाथ में मोमबत्ती लेते हुए) देख कितनी सुन्दर! पीले सोडियम दोपहर के प्रकाश में गाडि़यों के हेड-लाइट्स जैसे चमकते हैं, वैसी आँखें चमक रही हैं। (उसके हाथ पर ध्ाीरे से उंगलियाँ घुमाता है।) परसों गये थे उस पूना के माॅल में तुझे ऐसा खड़ा कर दिया जाए तो कैसी दिखेगी... तूफ़ान।
स्त्रीः हट। लेकिन वहाँ क्या-क्या था, नहीं?
पुरुषः यह साड़ी वहीं की है न?
स्त्रीः वहाँ साड़ी ही मिली है क्या? बाक़ी सब भी वहाँ से लाये हैं।
पुरुषः (शरारत के साथ) और क्या-क्या लाये, दिखा?
स्त्रीः (उसे बाजू हटाते हुए) मल्लिका को देखते मन नहीं भरा क्या?
पुरुषः (पास खींचते हुए) माॅल की तेज़ खुशबू यहाँ भी आती है।
स्त्रीः माॅल में क्या कमी है। (वह परफ़्यूम को जोर से सूँघती है।) इस क्वालिटी का परफ़्यूम, इध्ार मिलने का नहीं। (विराम)
पुरुषः (स्त्री की ओर देखते हुए) आयब्रोज़ करने गयी थी न? (फिर से हाथ फेरते हुए) व्हॅक सिल करते समय बड़ी पीड़ा होती है क्या?
स्त्रीः दुखता है लेकिन इस बार इतनी तकलीफ़ नहीं हुई। नये पार्लर में गयी थी। पहलेवाली बहुत ज़ोर से करती थी।
पुरुषः अभी की कैसी है?
स्त्रीः ठीक है।
पुरुषः पहले जैसी वाली?
स्त्रीः यानी?
पुरुषः पहले वाली स्त्री जैसी ही?
स्त्रीः स्त्री क्या अलग होती है? क्या पूछ रहे हो?
पुरुषः (हाथ में हाथ लेते हुए) ऐसी ही तुम्हारी तरह गरम?
स्त्रीः (चुटकी काटते हुए) हट्...
पुरुषः (इतराते हुए) अरे जनरल नाॅलेज।
स्त्रीः अभी क्या एमपी.एस.सी. की परीक्षा में बैठना है?
पुरुषः (बालों में हाथ फेरते हुए)... सचमुच आज सुन्दर दिख रही हो।
स्त्रीः तुझे अभी दिखायी दिया क्या?
पुरुषः मीठी दिखती हो।
स्त्रीः कैसे शब्द उचार रहे हो (पास जाते हुए) कितने दिनों के बाद पास आ रहे हैं।
पुरुषः हमने तय किया है, ताक़त के इकट्ठा होने पर करने का।
स्त्रीः और चीनी कॅलेण्डर फ़ाॅलो करने का।
पुरुषः कामयाबी मिल गयी तो ठीक।
स्त्रीः आयेगा न बी.पाॅजि़टिव।
(वह उसे पास लेता है। रोमान्स करने लगते हैं। ध्ाीमा संगीत बज रहा है।)
पुरुषः (झट से बाजू होते हुए) हम ऐसा करें क्या?
स्त्रीः अब क्या?
पुरुषः सुनो मैं क्या कहता हूँ-
स्त्रीः (बीच में ही) हम क्या कर रहे हैं उस पर ध्यान दे ना।
पुरुषः (स्त्री के कहने की ओर ध्यान न देते हुए) मुझे उस नाटक को लिखकर पूरा करना है।
स्त्रीः अरे, इतने दिनों तक हम ताकत इकट्ठा करने रुके हैं।
पुरुषः उसी ताक़त के इस्तेमाल से लिखना है। हमारे नाटक का दिन पास आ गया है।
स्त्रीः अरे, लेकिन चीनी कॅलेण्डर के अनुसार आज का दिन बच्चा होने के किये महत्व का है। बता देना तुम्हारे मेडिकल एसोसिएशन के लोगों को।
पुरुषः अरी, हम चीनी कॅलेण्डर का इस्तेमाल नाटक लिखने के लिए भी करेंगे।
स्त्रीः फिर मेरा क्या काम?
पुरुषः तुझे बच्चा होने के लिये मेरा जो काम होगा वही।
स्त्रीः यानी अपने को जुड़वा होंगे।
पुरुषः आयडिया! मस्त आयडिया!
स्त्रीः विज्ञान का कमाल, डाॅ. आनन्द राव पाटिल को जुड़वा... बच्चा और नाटक।
पुरुषः याहु...
स्त्रीः फिर दोनों के क्या नाम रखेंगे?
पुरुषः उसमें बहुत देर है।
स्त्रीः अभी तय करेंगे (अगर से) बताओ ना...
पुरुषः आज मैंने इतना किया है। नाम का तू देख ले।
स्त्रीः दोनों के अच्छे संस्कार होंगे।
पुरुषः वह तो होंगे ही।
स्त्रीः फिर यहाँ नहीं रहना चाहिये।
पुरुषः फिर अपना सब छोड़कर कहाँ जाएँ।
स्त्रीः पूना जायेंगे। वहाँ उन पर मौके ज़्यादा कहानी हैं।
पुरुषः ये बाई, उस गाँव की छोड़कर बोले।
स्त्रीः सब अपना ही क्या चलाने का।
पुरुषः ओ.के. तू सोशाॅलाॅजी की प्रोफ़ेसर है तुझे ही मालूम होगा उसे तू देख।
स्त्रीः थैंक्स डाॅक्टर, अरे, लेकिन नाम ‘न’ से रखेंगे।
पुरुषः अब ‘न’ में और क्या है?
स्त्रीः हमें माँ देवी ने बताया है, ‘न’ लकी है इसलिये।
पुरुषः पहले बच्चे तो होने दे।
स्त्रीः वह हुए बगैर रहता थोड़े ही है।
पुरुषः किये बगैर होने वाले हैं थोड़े ही (हाथ फैलाता है। वह हाथ में हाथ देती है। उसे पास लेता है। ‘ये भीगे होठ तेरे’ गाना एडजस्ट करता है। गाना शुरू कर मोबाईल बाजू में वैसे ही चालू रखता है और आगे आता है।)
स्त्रीः फिर यही गाना क्यों लगाते हो?
पुरुषः हमारी मल्लिका है वो प्रोफेसर बाॅस!
स्त्रीः और मैं?
पुरुषः और तू भी तो है ही ना।
स्त्रीः उसमें इतना ख़ास क्या है?
पुरुषः अॅट्रेक्टिव है वह।
स्त्रीः वह या उसकी बाॅडी?
पुरुषः कह ले।
स्त्रीः फिर मेरी ओर कितना देख लेते हो?
पुरुषः यह क्या पूछने का है। तेरी ओर तो देखता हूँ।
स्त्रीः पर कितना?
पुरुषः ऐसा! तो कुछ मत पूछ।
स्त्रीः नहीं बता। कितना देखते हो?
पुरुषः अरे ये क्या बला। लेकिन कब देखता हूँ?
स्त्रीः इस तरह बेड पर आने पर?
पुरुषः यहाँ तेरी ओर देखते बैठा रहूँ क्या?
स्त्रीः पहले मेरा प्रश्न। कितनी देर देखते हो... देखते हो ठीक है। मुझ पर कितनी देर काॅन्सन्ट्रेट करते हो?
पुरुषः काफ़ी देर तक।
स्त्रीः काफ़ी देर यानी कितनी देर?
पुरुषः मैं क्या गिनती करते रहता बैठूँ?
स्त्रीः याद कर बता।
पुरुषः (सोचते हुए) बीस मिनिट।
स्त्रीः बीस?
पुरुषः पन्द्रह
स्त्रीः याद कर।
पुरुषः ठीक है मान लेंगे दस मिनिट।
स्त्रीः (सोचते हुए) दस मिनिट?
पुरुषः दिखाता हूँ चल।
स्त्रीः (इतराते) रुक जा। सुन।
पुरुषः अब क्या है? कितना और क्या काॅन्सन्ट्रेशन करता हूँ उसे करके ही दिखाता हूँ।
स्त्रीः नहीं नहीं। मुझे बता कि उस काॅन्सन्ट्रेशन के दस मिनिट में मैं ही रहती हूँ?
पुरुषः (गम्भीर होते हुए) अब ये क्या चलाया है?
स्त्रीः फिर कब बात करें?
पुरुषः फिर से किसी समय। चीनी कॅलेण्डर के मुताबिक़ आज की कोशिश महत्व की है।
स्त्रीः पहले कह रही थी तब तूने नाटक का विषय निकाला-
पुरुषः (आगे बदलकर) हाँ बोल।
स्त्रीः (वह आगे आते हुए) फिर बता दे मुझे।
पुरुषः क्या?
स्त्रीः काॅन्सन्ट्रेशन के दस मिनिट में क्या मैं ही रहती हूँ?
पुरुषः (विचार करते हुए) मल्लिका भी रहती है।
स्त्रीः मल्लिका या मल्लिका की बाॅडी?
पुरुषः बाॅडी।
स्त्रीः उसकी बाॅडी? (हाथ से कमर की फि़गर दिखाते हुए) और मैं।
पुरुषः तू भी तो रहती है।
स्त्रीः दोनों कैसे आते हैं? मैं और मल्लिका की बाॅडी?
पुरुषः (झट से सम्हलते हुए) अरे ऐसा नहीं कि हमेशा ही ऐसा होता है। हर पहल बदलता है। पहले उसका फि़गर दिखायी देता है, फिर उसकी हरकतें, फिर उसके उड़नेवाले कपड़े, फिर तू, फिर वह, फिर तू, आखि़र में तू।
स्त्रीः हं (अपने से) कहीं मैं रहती हूँ, यह मेरा नसीब। (लम्बी साँस) फिर तू कहाँ रहता है?
पुरुषः (सहजता से) वहीं।
स्त्रीः सच्ची?
पुरुषः सच्ची। मेरा शरीर मुझे वहाँ रखता है। मेरा शरीर रोमांच का अनुभव करता है। उसकी बाॅडी मेरी बाॅडी को रोमांचित करती है। (शान्ति) वरन, हर बार स्पर्श करना और उसी बाॅडी के साथ सोने में क्या रोमांच होगा।
स्त्रीः (लम्बी साँस छोड़ते हुए) क्या सभी पुरुषों को ऐसा होता होगा?
पुरुषः मुझे दूसरों का भला क्या मालूम होगा।
स्त्रीः दोस्त, दोस्तों में ऐसा सब बोलते रहे होंगे ना!
पुरुषः फिर क्या- बोलते हैं न... क्या क्या बताते रहते हैं (.......)
स्त्रीः (वह अपने विचारों में मशगूल) फि़गर में इतना क्या रहता है?
पुरुषः बहुत कुछ रहता है। क्या पुरुष का फि़गर तुझे उत्तेजित नहीं करता?
स्त्रीः (लजाते हुए) ऐसा कुछ मत पूछना।
पुरुषः (आगे आते हुए) मुझसे सब निकाल लेती हो और तू कुछ नहीं कहती।
स्त्रीः कितना बताती हूँ... (पाॅज़) तुझसे क्या छिपाना है? (पाॅज़) पर (विचार करते हुए) किसी का शरीर मुझे उत्तेजित नहीं करती।
पुरुषः ये कैसा सम्भव है। कुछ तो लगता होगा।
स्त्रीः किसी का शरीर की ओर देखकर सच कुछ लगता नहीं।
पुरुषः कैसे क्या? सच है?
स्त्रीः मल्लिका की ओर देखकर तुझे वैसे लगता है इसलिए वह मुझ पर मत चिपकाना।
पुरुषः लेकिन पुरुषों में इतनी वैरायटी रहती है।
स्त्रीः (विचार करते हुए) देखने का मन करता है।
पुरुषः (बीच में ही) क्या? देखने को मन करता है (पाॅज़)
स्त्रीः क्या देखने को मन करे! बनियान और अंडरपेन्ट? लो किया बांध्ाकर, लुंगी लपेटकर या चड्डी पहनकर सभी ओर कैसे नंगे घूमते रहते हैं। इसे देखकर कभी तो सीख जाती हूँ। स्त्रियाँ ज़्यादातर ढंकी रहती है इसलिये मल्लिका जैसी एकाध्ा नंग-ध्ाड़ंग स्त्री तुझे उत्तेजित करती होगी। बाद में तुझे भी मेरी तरह लगेगा। सच बताती हूँ। तेरे बगैर और किसी के बारे में ऐसा सोचना भी मुश्किल रहता है।
पुरुषः मर्यादा।
स्त्रीः मर्यादा वगैर कुछ नहीं। कुल मिलाकर वह अनुभूति नहीं होगी। तेरे बारे में लगता है लेकिन तू जो कहता है वह शरीर का उत्तेजित होना वग़ैरा ऐसा कुछ ज़्यादा नहीं। पल भर के लिये तेरे बारे में लगता है लेकिन वह उतना ही। आगे जो करना है वह तू ही करता है। (दीर्घ शान्ति)
स्त्रीः (लेटते हुए) अब रिलेक्स महसूस हो रहा है।
पुरुषः रिलेक्स?
स्त्रीः (प्यार से पास जाते हुए) हम कितनी खुलकर बातें कर रहे हैं।
पुरुषः चीनी केलेण्डर के अनुसार आज दिन है इसलिए?
स्त्रीः हाँ। चीनी कॅलेण्डर और माँ देवी की महिमा।
पुरुषः लेकिन कहीं भी अट्रेक्ट मत होना।
स्त्रीः कुछ भी बकबक मत कर। खुलकर बात करने पर ऐसे टोकने के लिए उसका उपयोग करने वाले हो तो मैं फिर बात ही नहीं करूँगी।
पुरुषः ओ के ओके। तो हमारे बीच में खुलापन का होना ख़ास है। अब रिलेक्स लगता हो तो आँखें बन्द कर लेंगे। (उसकी ओर देखते हुए) आँखें बन्द कर। शान्त हो जायेंगे।
स्त्रीः (आँखें बन्द कर) जो हो रहा है उसे ग़ौर से देखेंगे।
पुरुषः हम दोनों ही नये बने हैं। बिलकुल नये।
स्त्रीः शरीर अजनबी। यह दुनिया नयी। आकाश नया। पानी नया।
पुरुषः दोनों श्वास लेंगे। छोड़ देंगे। नयी निर्मिति के लिये अभी का क्षण जी लेंगे। इसके लिये साँस ले लेंगे।
स्त्रीः ओम् माँ देवी। ओम् तत सत्...
(‘ये भीगे होठ तेरे’ गाना शुरू होता है और अँध्ोरा छा जाता है।)
(अंध्ाकार)

दृश्य दूसरा
(स्त्री वृत्तान्त पढ़ रही है। उस पर कुछ निशाने लगा रही है। टिप्पणियाँ बना रही है। पुरुष बाहर से आता हुआ दीखता है। उसी की ओर देखता है। उसकी पीठ पीछे बैठता है। उसे पास लेता है। स्त्री प्यार से उससे छुटकारा पाने का प्रयत्न करती है। वह स्त्री के बालों में हाथ फेरते हुए बात करता है।)
स्त्रीः (प्यार से छुटकारा पाते हुए) मुझे काम करने दो।
पुरुषः कितना काम करोगी।
स्त्रीः हाँ (वह उसकी पढ़ाई में कुछ रोमांटिक हँसी-मज़ाक़ करके व्यंग लाने का प्रयत्न करता है। उससे वह छुटकारा कर लेते हैं) चाय बना लूँ?
पुरुषः मेडिकल एसोसिएशन में पीकर आया हूँ।
स्त्रीः आध्ाा कप?
पुरुषः (सौम्य हंसते हुए) नहीं चाहिए। (बूट निकालते हुए) तेरा क्या चल रहा है?
स्त्रीः एड्स देख रही हूँ (पेपर दिखाते हुए) यह साईट देख कैसी लगती है? देख, पीछे कितनी झाड़ी हैं।
पुरुषः फ्लैट लेने का ठान लिया लगता है।
स्त्रीः (वह पेपर का पन्ना बाजू में रखते हुए) पिछले साल कितना टैक्स दिया। जल्दी कर्जा ले लेंगे तो जल्दी लौटा पायेंगे भी।
पुरुषः यानी यहीं रहने का?
स्त्रीः (पेपर समेटते हुए) फिर जाना कहाँ?
पुरुषः तू ही तो पूना जाने की कह रही थी।
स्त्रीः लगता है रे। फिर लगता है मेरी यहाँ की पक्की नौकरी, तेरी प्रेक्टिस, पूना में यह सब थोड़े ही मिलनेवाली है। और इसके अलावा आई, बाबा का क्या करें, यह प्रश्न ही है (वह एकदम शान्त)
पुरुषः इसमें इतना सोचने का क्या है। उन्हें भी साथ ले जायेंगे। (शान्ति)
स्त्रीः गाँव छोड़कर वे कहाँ अपने साथ आनेवाले हैं।
पुरुषः ले जाने का।
स्त्रीः सब काॅम्पिलीकेटेड। अलावा दूर जाने पर प्राॅपर्टी काॅम्प्लिीकेशन्स? पूना का रहने दो। जैसे भी हो यहीं रहेंगे और यहाँ अब कितनी तरह-तरह की कम्पनियाँ आ रही हैं। जगह की कीमतें बढ़ रही हैं (पेपर का विज्ञापन पढ़ते हुए) यह देख ‘आशियाना रेसिडेन्सी’ विशाल परिवेश, स्विमिंग पूल शहर के बीचों बीच। जिम भी है। दस मिनिट की दूरी पर स्कूल, काॅलेज भी हैं।
पुरुषः कौन सी रेसिडन्सी?
स्त्रीः आशियाना।
पुरुषः मोह मेडल दीखता है।
स्त्रीः किससे?
पुरुषः नाम से।
स्त्रीः हट।
पुरुषः विज्ञापन में हरा रंग है न ?
स्त्रीः यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है।
पुरुषः वहाँ होगा नहीं पर उध्ार के चैराहे के घर का नाम आशियाना मंजि़ल नहीं क्या?
स्त्रीः इसलिए ऐसा तो नहीं कि केवल मुसलमान ही घर को ऐसा नाम देते हैं?
पुरुषः वह भी सच है। लेकिन मुस्लिम काॅन्ट्रॅक्टर कहाँ होते हैं?
स्त्रीः वह ठीक है लेकिन रिस्क लेने की ज़रूरत नहीं।
पुरुषः पूरे विचार के साथ सब शुरू करें।
स्त्रीः अपार्टमेंट का नाम क्या हो- वेंकटेश विला, गणेश अपार्टमेंट नहीं तो महालक्ष्मी टावर्स।
पुरुषः (वह आगे आकर देखता है) यह देख (दिखाते हुए) ड्रीम पार्क- पूरे परिवार के लिए परिपूर्ण, घर नहीं स्वर्ग, 3@2 बी.एच.के. प्रशस्त पार्किंग।
स्त्रीः वाव! फिर, वास्तुशास्त्र के नियम?
पुरुषः इतना उसमें क्या देखना होता है?
स्त्रीः वह शास्त्र है।
पुरुषः उसमें क्या शास्त्र है?
स्त्रीः माँ देवी कहती है वह सभी शास्त्र हैं जो विश्वास के साथ किया जाता है।
पुरुषः (उपहास के साथ) जय माँ देवी (विषय बदलते हुए) मुझे एक बात बता, हम टू बी.एच.के. फ़्लैट में ही रहेंगे?
स्त्रीः इतना तो नहीं चाहिए? अपने लिये और अपने एक बच्चे के लिये।
पुरुषः एक ही बच्चा?
स्त्रीः याने?
पुरुषः थ्री बी.एच.के. देखेंगे। दो बच्चे तो चाहिये।
स्त्रीः अरे बाबा।
पुरुषः एक लड़का और एक लड़की से घर में बेलेन्स रहता है।
स्त्रीः बड़ा महत्वकांक्षी है।
पुरुषः मेरी माँ को दो लड़कियाँ, उसके बाद हम दोनों।
स्त्रीः तुम्हारी माँ को सल्यूट।
पुरुषः (इतराते हुए।) दो बच्चे चाहिये ही।
स्त्रीः बच्चों का बाद में देखेंगे। पहले फ़्लैट।
पुरुषः (अपने से) अपने बच्चों के संस्कार होने चाहिए। (उसकी ओर देखते हुए प्यार से कहता है) हमारे अम्मा की जहाँ तबादला होता वहाँ वे ब्राह्मण पड़ोस को देखते थे। (मुस्कुराते हुए) कहते थे संस्कार अच्छे होते हैं।
स्त्रीः इसलिये मेरा पड़ोस क्या ? (वह हँसता है)
लेकिन मुझसे प्रेम क्यों करने लगे इसे एक बार तो बता दो।
पुरुषः अब पूरी हो गयी न रामायण।
स्त्रीः (प्यार से) नहीं एक बार बता न।
पुरुषः (लाड़ से) तू भाती थी।
स्त्रीः क्यों?
पुरुषः अब क्यों पूछ रही है?
स्त्रीः यूँ ही।
पुरुषः (विचार करते हुए) अच्छी दिखती थी इसलिये भाती थी।
स्त्रीः और?
पुरुषः मीठी बात करती थी।
स्त्रीः यानी कैसी?
पुरुषः अब कैसे बताऊँ? बहुत दिन हो गये।
स्त्रीः (प्रेम से) इसलिये वह भूलने वाले हो क्या?
पुरुषः कैसे बताऊँ? (सोचते हुए) उस समय तू ऐसे ही सहलाते सहलाते बात करती थी। हम कितने ज़ोर-ज़ोर से बात करते थे। लेकिन अन्त में पता भी नहीं चलता कि तू मीठी बात करके अपनी बात कब चला लेती और कब अपना साध्ा लेती।
(मोबाइल पर एस.एम.एस. आने का रिंग टोन। कण्ठस्थ हुआ क्या?) अरे ध्ात्-तेरी (गड़बड़ी से उठता है। बैग की ओर जाता है। स्क्रिप्ट निकालता है और पढ़ने लगता है।) निकली रेलगाड़ी निकली। छुक-छुक-छुक निकली रेलगाड़ी। यहाँ के पसीने का कोयला, संस्कृति की पटरी, चलाती है ग्लोबल की लड़की। निकली आरोग्य की गाड़ी, छुक-छुक-छुक निकली आरोग्य की गाड़ी।
स्त्रीः वही बार-बार कितना पढ़ोगे?
पुरुषः याद ही नहीं होता।
स्त्रीः तू ही लिखता है और तुझे ही कण्ठस्थ करना पड़ता है?
पुरुषः हम प्रध्यापक नहीं जो घण्टों भर बिना पढ़े भाषण करें... और मैं जो लिखता हूँ उसे नाटक से बनाना यानी मदन होने का समय आता है।
स्त्रीः एक जगह बैठ जाओ और पढ़ो। याद कर। रिहर्सल कर।
पुरुषः कहाँ इतना समय मिलेगा?
स्त्रीः आज क्लिनिक मत जा।
पुरुषः (हँसते हुए) क्या पेशेंट ऐसे घर में बैठने देंगे? थोड़ी देर हो गयी तो चार फोन आयेंगे। आज अब ज़रूर करने की सोच रहा था पर महानगर पालिका के आॅफ़ीसर्स के साथ दोपहर में मीटिंग है। कर्मचारी की बस्ती पर हमारे एसोसिएशन द्वारा किया गया रिपोर्ट उनके साथ बैठकर फ़ायनलाइज़ करना है।
स्त्रीः गाँव की व्यवस्था करनी हो तो ये सब होगा ही।
पुरुषः सब हमारे सम्बन्ध्ाी है... चार घण्टे नौकरी करना काफ़ी नहीं होता।
स्त्रीः समाज कार्य... कुछ भी हो, आजकल तुम्हारी एसोसिएशन चाजर््ड हुई होगी न? अमेरिका के लोग काम देखने आनेवाले हैं...।
पुरुषः बस, सभी उत्साह से भरे हैं।
स्त्रीः पच्चीस-तीस लाख तो मिलेंगे न! और इसके अलावा अमेरिकी ट्रीप।
पुरुषः यस। अमेरिका! चैहान कल से बता रहा था कि अमेरिका जाते समय क्या-क्या कपड़े ले जाने है। इसकी लिस्ट बना रहा हूँ।
स्त्रीः अमेरिका काॅलिंग। अमेरिका जाने के लिए कितनी झंझटें?
पुरुषः केवल अमेरिका ही नहीं। पच्चीस लाख क्या सहज मिलनेवाले हैं?
स्त्रीः इसे मत बताना। तुम्हारी एसोसिएशन अमीर डाॅक्टर लोगों की है। पच्चीस लाख क्या सहज ही मिलेंगे।
पुरुषः लेकिन समाज में सम्मान मिलेगा प्रोफेसर बाई। अमेरिका की किसी फ़ंडिंग एजन्सी द्वारा मदद मिलने पर लोगों को अभिमान लगेगा। अलावा इसके छोटे गाँवों के प्रश्न विश्व के स्तर पर दर्ज होंगे। तुम्हारे काॅलेज में समाज कार्य के एन.एस.एस. के कार्यक्रम में पथनास्य प्रस्तुत करते हो उतना ही काम यहाँ नहीं होता।
स्त्रीः तुम ग्रेट हो बाबा। हमें सर्टिफि़केट के लिए आये हुए लड़कों को लेकर यह सब करना पड़ता है।
पुरुषः और प्राध्यापकों को भी कहाँ सामाजिक क्रान्ति करनी होती है।
स्त्रीः तुम्हारा काम बड़ा है। भारत के प्रश्न के लिए अमरिका का पैसा। कुछ भी हो रिटर्नस तो तड़ातड़ मिलते हैं।
पुरुषः यस। कष्ट करो और पैसे पाओ।
स्त्रीः मस्त! (उसके पास जाते हुए) हेल्थ के नाम पर फाॅरेन एजन्सी से ग्राउण्ड रियल्टी पर काम करने को पैसा (उसका हाथ पकड़कर चक्कर काटती है।) हमारी मिट्टी हमारे लोग। मिस्टर डाॅक्टर आनन्दराव पाटिल, खानदानी मराठा किसान का लड़का (वह मुलाक़ात लेने वाले की नक़ल उतारते हुए) हेलो, डाॅक्टर पाटिल कांग्रेच्युलेशन्स फ़ाॅर दिस ग्रांट। भारत के हेल्थ सम्बन्ध्ाी इश्युज पर काम करने के लिये अमेरिका पैसा देता है। आप नेक्स्ट वीक अमेरिका जा रहे हैं। आपको आज कैसे लगता है? मेडम थैंक्स यू.सी. मेरी जड़ें यहाँ की मिट्टी में है। मेरा गाँव, मेरे लोग मुझे इशारा करते रहते हैं। मैंने यह काम हमें उनके लिये कुछ करना चाहिये इस फ़ीलिंग से हाथ में लिया है।
पुरुषः (अपने से) गाँव के लोग खुश हो जायेंगे। हमारी सोसायटी को बुलायेंगे, सत्कार करेंगे। उन्होंने मेरे लिये कितना किया है। (यादों में खोया है।) गुरुओं ने मन लगाकर, जी जान से पढ़ाया इसलिये यहाँ तक आ गया। यह सुनकर तुझे मज़ा आया न। रिश्तेदार लोग गोरा-चिट्टा दीखने से मुझे ब्राह्मण करके बुलाते थे। (हँसता है) जाने से पहले आबा ने हाथ में हाथ लेकर अण्णा से कहा, ‘आनन्द को बहुत पढ़ा, पाटिल के घराने का नाम करना चाहिए।’ (रुकता है) मेरी पढ़ाई के लिये अण्णा ने कितने कष्ट उठाये। छोटी-छोटी नौकरियाँ की। हमारी पढ़ाई के लिये निरन्तर तबादला। नहीं तो हमारे घराने में ऐसी नौकरियाँ कौन करता? और किसी का सपोर्ट न रहते हुए...
स्त्रीः फिर तुम शहर के होकर रह गये।
पुरुषः कोई रास्ता नहीं था।
स्त्रीः ऐसा कुछ नहीं। गाँव में न रहते तो खाली पेट न रही।
पुरुषः आॅफ़कोर्स नहीं। खानदानी खेती और वह भी तरी की भूमि।
स्त्रीः जी जी करनेवाले लोग और सिर पर आँचल ओढ़नेवाली स्त्रियाँ।
पुरुषः वह हमारी परम्परा है।
स्त्रीः (उपहास के साथ) यह परम्परा?
पुरुषः हमें देखकर तुझे क्या लगता है?
स्त्रीः अरे तुझे क्या होता है यानी क्या? परम्परा?
पुरुषः अपनी सोशालाॅजी मुझपर मत थोपना और सिर्फ़ हमारी परम्परा की बात मत करना। मुझे मालूम है तुम्हारे अँध्ोरे घर के बीच के हिस्से में स्त्रियों की आवाज़ कैसे शान्त की जाती है।
स्त्रीः मुझे भी मालूम है।
पुरुषः लेकिन उसके सम्बन्ध्ा में कभी कुछ नहीं कहा?
स्त्रीः तुझे समझ लेना चाहिये।
पुरुषः हमारी परम्परा भी तुझे समझ लेनी चाहिये।
स्त्रीः मत कर हमारी-तुम्हारी।
पुरुषः हमारी बात निकालकर शुरुआत करने की तुझे क्या ज़रूरत थी? कितना स्वातन्त्र्य देना होता है?
स्त्रीः ओह, द ग्रेट मराठा डाॅक्टर आनन्दराव पाटिल मुझे स्वतन्त्रता देगा।
पुरुषः हमेशा हमारी घूँघट के अन्दर की स्त्रियाँ दीखती हैं।
स्त्रीः दिखायी देते है ना तेरे अण्णा। वन्दन करने गयी तो बोले ‘क्या आनन्दा, स्त्री पुरुष जैसे बाल रखती है।’
पुरुषः उन्होंने बालकटी स्त्रियाँ कभी देखी नहीं थी।
स्त्रीः अण्ट-सण्ट मत बक। नौकरी के बहाने वे घूम चुके हैं। खूब लोग देखे हैं और उनकी लड़कियों ने भी बाब कट रखा है।
पुरुषः वह बाद में। तेरे समय में उन्हें मालूम नहीं था और आई ने तब संहाल लिया था न।
स्त्रीः (अकड़ से) किया ना। रसोई घर में जाने पर घूँघट लेने कहा...
पुरुषः तुम्हारे लोग भी कुछ कम नहीं है। शादी के बाद पहले ही दिन तेरा मामा, सिरियसली बता रहा था, ‘हमारे लोगों में भी कुछ हेंडसम लोग थे।’ मैं बता रहा था सिरियसली कह रहा था, ‘मैं माँस नहीं खाता’ पर सुन ही नहीं रहा था। फिर फिर अपनी वही डुगडुगी, ‘हम माँस नहीं खाते, हम ज़्यादा तीख़ा नहीं खाते’ हमें मालूम नहीं माँस किसने महँगा किया है।
स्त्रीः मुझे मालूम था यह होकर ही रहेगा -
पुरुषः (उछलते हुए) अरे हम क्या रास्ते पर पड़े हैं, आते-जाते हमारे ऊपर किसी भी तरह के तानेे मारें।
(शान्ति)
स्त्रीः (आवाज़ उठाती हुई) यह तो होगा तभी मैं कह रही थी कि हम बिना शोरगुल के शादी करेंगे। लेकिन तुझे ज़्यादा ही मस्ती थी।
पुरुषः पर शादी ठीक-ठाक हुई न।
स्त्रीः क्या ठीक-ठाक? हमारे रिश्तेदारों को अच्छा न लगने पर भी माँस दिया गया।
पुरुषः खाना हम देनेवाले थे और हमारी रस्म के मुताबिक ऐसा ही होता है।
स्त्रीः क्या ध्ाानबे कुल दिखाना था?
पुरुषः खुद को प्रोफ़ेसर समझती हो और माँस खाने पर जात-पाँत पर उतर आती हो।
स्त्रीः जात की बात तूने ही उठायी थी।
पुरुषः मैंने? और माँस खाने की बात करके जात को कौन लाया।
स्त्रीः अगर हमें पसन्द नहीं था तो वैसा खाना बनाया ही क्यों?
पुरुषः तुममें से कोई माँस नहीं खाता? सच बता?
स्त्रीः (वह रुककर बोलती है) दरअसल शादी में वह नहीं होना था।
पुरुषः विद्रोह करते समय थोड़ा एडजस्टमेन्ट करना पड़ता है।
स्त्रीः हमें नामंजूर सत्यनारायण की पूजा करके? वर्ना आन्दोलन के किसी दोस्त के पुरोहित को बुलाकर विवाह किया सुनकर झगड़ा करते हो।
पुरुषः तू भी माँ देवी के आश्रम जाती है...
स्त्रीः तुझे उसका कारण मालूम है।
पुरुषः मेरे भी कारण तुझे मालूम हैं।
(पाॅज़)
स्त्रीः अरे, लेकिन निमन्त्रण पत्रिका पर हमारे लोगों के नाम नहीं थे।
क्यों? कुलकर्णी, देशपाण्डे नामों के आने से तुम्हारा वंश गड़बड़ा जाता?
पुरुषः हमारे लोगों ने सीध्ाी भूमिका लेकर नाम नहीं डाले। पर तुम लोगों ने तो डर के मारे पत्रिका ही नहीं बनायी। क्यों? मेरे साथ विवाह कर रही है इसलिये? फिर भी वे सब मिस्री डालकर मीठी बात करेंगे। मीठी-मीठी बातें कर तेरे मौसी ने अम्बाबाई को आने कहा। आई को ले गया तो... तेरी मौसी उसके घर की कामवाली बाई को लेकर बैठी थी लेकिन मेरी आई को अन्दर नहीं आने दिया (शान्ति) आई को अन्दर जाकर अम्बाबाई का दर्शन लेना था (रुकता है) बाहर आकर गुस्से में भीतर गयी। ध्ात् तेरी की।
स्त्रीः ध्ात् तेरी क्या कहते हो...
पुरुषः साॅरी (रुकता है) पर तुम लोग...
स्त्रीः तुम लोग? तुम लोग, तुम लोग क्या कह रहे हो?
पुरुषः तुम लोग याने तुम लोग।
स्त्रीः तुम लोग याने कौन?
पुरुषः बताता हूँ। तुझे छोड़ता हूँ क्या? तुम लोग याने बामन।
स्त्रीः (ज़ोर देकर) आनन्द, जात सम्बन्ध्ाी कुछ नहीं कहना। इसके पहले भी कई बार कह चुकी हूँ।
पुरुषः मालूम है। तू ही पुराने गड़े मुर्दों को उखाड़ती है और मुझे बोलने को मजबूर करती है...
स्त्रीः (ऊँची आवाज़ में) अब रुकोगे भी?
पुरुषः अपने पे गुज़री तो मैं रुक जाऊँ? और तू? मैं कहीं नहीं हूँ, शुद्ध निर्मल? अब मैं बोलता हूँ। सुन, खानदानी मराठे का लड़का ब्राह्मण की लड़की के साथ ब्याह करता है याने वह पुण्य कर्म किये जाता है।
स्त्रीः ओ, द ग्रेट मराठा (ऊँची आवाज़ में) कुलीन ब्राह्मण की बेटी मराठे के लड़के के साथ विवाह करती है याने उस पर उपकार किये जाती है।
पुरुषः तुम्हारी कितनी पीढि़यों ने सताया है।...
स्त्रीः तुम लोग भी निष्पाप नहीं थे।
पुरुषः तुम्हारे कत्र्तव्य की लिस्ट पढ़ते समय मेरा खून खौलता है?
स्त्रीः अण्णा कल परसो तक नौकरों को पिछले दरवाजे़ से चाय देते थे।
पुरुषः तुम तो दूसरों के साये को अपने पास फटकने नहीं देती थीं।
स्त्रीः तुमने ज़्यादा सताया है।
पुरुषः तुमने कुछ कम नहीं।
दृश्य तीसरा
(पुराने मराठी सिनेमा की टिपिकल ऐतिहासिक याद दिलाने वाला संगीत बजता है। पुरुष सामने से आता है। स्त्री उसकी ओर देखती है।)
स्त्रीः होशियार बा इज़्ज़त बा मुलाहज़ा। मसले स्पिरिट आॅफ द वर्ड दरबारे आलम राजा महाराजा .......... तलवार बहादुर पाटिल पध्ाार रहे हैं।
होशयाऽऽऽर
(स्त्री आगे आकर चलने लगती है।)
पुरुषः होशयाऽऽऽर बा इज्जत बा मुलाहिजा नाॅलेज स्पिरिट आॅफ द वर्ड दरबारे पुस्तक बहादुर मल्लिका-ए-पण्डित पध्ाार रही हैं। होशयाऽऽऽर (दोनों पलंग पर खड़े होते हैं। वह मूँछ को मरोड़ने का अभिनय करता है। वह शरमाकर खड़ी है। वह तलवार लेने की मुद्रा में। उसने कन्ध्ो पर आँचल ओढ़ा है। ध्ाीरे से संगीत शुरू होता है। ‘ये भीगे होठ तेरे’ गाना शुरू होता है। वह एक्साईट होता है। वह स्त्री के बालों पर, कानों पर हाथ फेरता है। दाहिने कन्ध्ो का उसका आँचल नीचे करता है। बाहों पर हल्के से हाथ फेरता है।)
मल्लिका। (स्त्री लजाती है।) मल्लिका...
स्त्रीः (ध्ाीरे से ऊपर देखते हुए) ए?
पुरुषः निखर गयी हो। (वह स्त्री लजाती है।)
तू कितनी गोरी है।
स्त्रीः सच?
पुरुषः बिलकुल सच। तुम्हारे घराने की पुस्तक की सौगन्ध्ा।
स्त्रीः हँ, पगला कहीं का।
पुरुषः सच। हमारे घराने की तलवार की सौगन्ध्ा।
स्त्रीः (लजाते हुए) हटो, क्या कभी कोई तलवार की सौगन्ध्ा लेता है क्या?
पुरुषः तुममें से सभी ऐसे ही रहते हैं?
स्त्रीः याने?
पुरुषः (हाथ पर ध्ाीरे से हाथ फेरते हुए) ऐसे गोरे गोरे... गोरे लोगों की तरह।
स्त्रीः (नाराज़गी से) यह क्या गोरे लोग कहते हो?
पुरुषः (विषय टालते हुए) ठीक है। केवल लोग।
स्त्रीः (उत्साह से) लेकिन मेरी माँ भी मेरे जैसी ही गोरी-गोरी।
पुरुषः तेरे जैसी मीठी-मीठी बात करनेवाली?
स्त्रीः मुझसे भी बढ़कर (रुकते हुए) लेकिन बेचारी मास्टरनी ही रह गयी...(पाॅज़)
पुरुषः (उसके माथे पर हाथ फेरते हुए) बुरा ही है न...
स्त्रीः (थोड़े गुस्से में) नहीं तो क्या? बाबा ने उसे बाहर जाने ही नहीं दिया।
पुरुषः यह अच्छा नहीं किया। आई तुझसे बढ़कर सुपर नायिका बनी होती।
स्त्रीः सच है।
पुरुषः अच्छा हुआ रे, तू उसमें से बाहर निकली।
स्त्रीः निकली याने क्या भाग आयी।
पुरुषः तू हिम्मती है।
स्त्रीः आई ने सहारा दिया था। नहीं बाबा का क्या...
पुरुषः तुममें से सभी ऐसे ही हिम्मती?
स्त्रीः नहीं रे। हमारे कोई भी पुरखे सेना में नहीं थे। वे दरबार में काम करते थे। कुछ लोग गाना गाते तो कुछ कोई और काम करते थे। यह सच है कि वे उद्योगी थे।
पुरुषः लड़ाई...
स्त्रीः अरे कैसी लड़ाई! माँ कहती, तू ही हिम्मती है।
पुरुषः तेरा किसी ने विरोध्ा नहीं किया?
स्त्रीः विरोध्ा कौन करता?
पुरुषः तात्या-मामा कोई रिश्तेदार?
स्त्रीः असम्भव। एक यू.के. में, दूसरा यू.एस. में सेटल। कौन आयेगा विरोध्ा करने?
पुरुषः बाबा...
स्त्रीः वे पहले ही झुँझला उठे थे। बट आय मैनेज्ड इट।
(संगीत@ दोनों एक्साइट हुए हैं। स्त्री उसके बालों पर हाथ फेरती रहती है।)
पुरुषः तुम लोगों के यहाँ सारी लड़कियाँ ऐसी ही हैं?
स्त्रीः ये तुम बार-बार क्यों कहते हो?
पुरुषः (सिर पर, गर्दन पर हाथ फेरते हुए) तुम लोगों में याने... तुम्हारी जात में...
(वह नाराज़ होती है। भाव बदलता है। वह पीछे हटती है।)
स्त्रीः अब क्या बताऊँ? फिर वही जात। हमें रोमान्टिक सीन करना है।
पुरुषः वही तो कर रहे हैं।
स्त्रीः क्या कर रहे हो? कब नाटक बनेगा, कब अमेरिका जायेगा और सेक्स तो दूर की बात है।
पुरुषः (परेशानी से) अब मैं उसके लिये क्या करूँ?
स्त्रीः काॅन्सन्ट्रेट कर।
पुरुषः वही तो होता नहीं।
स्त्रीः कैसे, यह सब, कब करोगे?
पुरुषः मेरी भी समझ में नहीं आता।
स्त्रीः माँ देवी का उपाय किया?
पुरुषः आँखें बन्द करने का?
स्त्रीः हाँ वही। आँखें बन्द करना और अपने को भाने वाली चीज़ नज़र के सामने लाना।
पुरुषः वही तो करता हूँ।
स्त्रीः चल कर ले। (वह आँखें बन्द करता है। पलभर में खोलता है।)
अब और क्या हुआ?
पुरुषः कितनी कोशिश करता हूँ। आँखें बन्द करता हूँ। सामने गाँव के आम का पेड़ आता है। मस्त, गुम्बद जैसा, हिलनेवाला, खेलने वाला। हवा के आलाप के साथ आनेवाली पत्तों की मरमर कानों में गूँजती रहती है। सब कैसा सुन्दर होता है। इतने में काॅलेज की कुलकर्णी की मल्लिका सामने खड़ी होती है। (चुभती याद बताते समय उसके चेहरे पर दुःख, क्रोध्ा, खीज, जैसा मिला-जुला भाव आता है।) मुझे तेरे गाँव की ओर आने को कहती रही थी। घर देखा। उसे हमारे आम के पेड़ के नीचे बैठकर खाने की बड़ी हवस थी इसलिए उसने वह भी किया। भाई के साथ ‘काकु काकु’ करते गयी... एकदम हिम्मती। मुझे तो एक शब्द कहने के लिये टोकरीभर टेन्शन आता है। फायनल इयर में मैं पहला आया। जोश के साथ हमारी पार्टी हुई। घर की ओर आने को मल्लिका का निमन्त्रण था। उस दिन हम तो हवा में उड़े (पाॅज़)। डिसेक्शन रूप में कोई नहीं था। हम दोनों ही। उसने हाथ में हाथ लिया। आँखों में देखने लगी और झटके से कहने लगी, तेरे हाथ कितने खरदुरे हैं? तुम कितने झुलस गये हो, काले दिख रहे हो। बाद में वह हमारे काले झुलसे रंग से ग़ायब हो गयी...
(दीर्घ पाॅज़)
स्त्रीः माँ देवी कहती है हर एक का भूतकाल रहता है।
पुरुषः (वह अपने में खोया) फिर तू ही सीध्ो आ गयी उनके राज्य से (आह भरते हुए) मनुष्य की चमड़ी के रंग, उपनाम जाते नहीं। (आँखें बन्द करता है, खोलता है।) आँखें बन्द करते ही डिसेक्शन रूम की याद आता है... कहाँ-कहाँ के लोग सामने आते हैं- जाते हैं। उनके उपनाम सामने नाचने लगते हैं। कुछ लोगों के अगर उपनाम मालूम न हो तो विचार आने लगता है कि वे क्या होंगे? मुझे भयानक लगने लगता है। चमड़ी के रंग से हमें कोई इन्कार कर दें? या हम ठीक ढंग से बात कर नहीं पाते? या हमारी कोई विरासत नहीं? ...मेडिकल का मेरा ज्ञान पूर्ण नहीं? मुझे इन्कार क्यों कर दिया गया?
स्त्रीः आँखें बन्द कर। माँ देवी कहती है बीती घटनाओं को बारीकी से देखें।
पुरुषः वह तो देखता हूँ। बहुत गौर से देखता हूँ।
स्त्रीः ओ.के. देन। देख, ठीक देख।
पुरुषः (अपने को सँवारते हुए) यस, देख लिया।
स्त्रीः ओ.के. गुड। टेक पोजि़शन। (वह सँवरकर बैठता है।)
पुरुषः ध्ात् तेरी पोजि़शन की। लेता ही हूँ (पालथी लगाता है)
स्त्रीः आँखें बन्द कर। फिर गौर से देख। यस अब आगे जाना। आगे के रोमान्टिक सीन की ओर जाना है। होशयार ऽऽऽ (इस सीन के प्रारम्भ की पोजि़शन। दोनों उसी स्टाईल में- जैसे रैम्प पर चलते हों। पास आते हैं। ‘ये भीगे होठ तेरे’ शुरू होता है। स्टाइलाइज़्ड रोमान्स)
(अन्ध्ाकार)

दृश्य चैथा
(पुरुष आता है। उसके आने का अन्दाज़ लेते हुए स्त्री भी आती है। दोनों एक-दूसरे की ओर देखकर हँसते हैं। वह बूट उतारते हुए)
पुरुषः तुम्हारे प्राचार्य कुम्भार मिले थे।
स्त्रीः वह बाबा कैसे मिल गया?
पुरुषः पालिका की बैठक में आये थे।
स्त्रीः बाबा वहाँ भी रहता है क्या?
पुरुषः प्राचार्य के बारे में कैसे बोलती हो?
स्त्रीः प्राचार्य के बारे और कैसे बोलूँ?
पुरुषः परसों तो अच्छा बोल रही थी।
स्त्रीः (त्रस्त होते हुए) अरे प्राध्यापकों को कितने काम बताता है।
पुरुषः वह प्राचार्य ही है।
स्त्रीः तो क्या हुआ?
पुरुषः उन्हें काम बताने पड़ते हैं।
स्त्रीः कुछ भी काम बताने होते हैं?
पुरुषः कुछ भी कैसे बतायेंगे?
स्त्रीः तुझे मालूम नहीं। अपने बेटे के लिए पैसे निकालने अंग्रेज़ी के जाध्ाव को बैंक में भेजा।
पुरुषः भेजने दो। और जाध्ाव क्या बच्चा है (उन्हें भी कुछ प्राब्लेम होगा।)
स्त्रीः जाध्ाव पी.एच.डी. है।
पुरुषः तो क्या हुआ। तुझे तो काम नहीं बताते हैं?
स्त्रीः मुझे क्या बतायेगा।
(पाॅज़)
पुरुषः इस साल तेरे पास कौन-सा विभाग है?
स्त्रीः कल्चरल डिपार्टमेंट।
पुरुषः वाह, बड़ा भारी है। मज़ा आता होगा। जब हम काॅलेज में थे, हमारे यहाँ कल्चर एक्टिविटीज़ रहती थी और जो सर वह काम देखते थे, वे हम सबको बहुत पसन्द थे।
स्त्रीः लेकिन कितना समय जाता है।
पुरुषः याने क्या कोई काम ही नहीं करना चाहिये?
स्त्रीः मालूम है। (पाॅज़) वह जाध्ाव दाँत निकालते हुए कहता है। मैडम कैसी चिन्ता करती हो। मिस्टर बाहर गये तो आराम ही। फिर वह प्राचार्य और उसके चम्मच खिलखिलाकर हँसते रहते हैं।
पुरुषः अरे, वे तेरा मज़ाक करते होंगे।
स्त्रीः मज़ाक कैसा? मुझे बाल बच्चे न होने से मैं खाली रहती हूँ। इनका दोपहर का बड़ा काम याने सो जाना।
पुरुषः इतना क्या बुरा मान लेती हो।
स्त्रीः औरों के पर्सनल मामलें में दख़ल क्यों देते हैं?
पुरुषः ऐसा ही रहता है।
स्त्रीः और वह देशपाण्डे बाई भी वैसी ही।
पुरुषः (हँसते हुए) उसका आदमी कहीं जाता है, देशपाण्डे बाई वही ना?
स्त्रीः तुझे कैसे मालूम?
पुरुषः तूने ही तो बताया था।
स्त्रीः हाँ, वही।
पुरुषः वह तो तेरी अच्छी सहेली होती थी।
स्त्रीः सहेली नहीं है।
पुरुषः वह क्या कहती?
स्त्रीः मेरे पास विद्यार्थी आते हैं, उसे तकलीफ़ होती है।
पुरुषः कौन विद्यार्थी?
स्त्रीः वीरेन।
पुरुषः यह वीरेन कौन?
स्त्रीः एम.ए. का विद्यार्थी।
पुरुषः वह क्यों आता है?
स्त्रीः नया कुछ पढ़ लेने पर बताने आता है।
पुरुषः फिर देशपाण्डे बाई को क्या तकलीफ़ होती है?
स्त्रीः उसे मेरी हर बात से तकलीफ़ होती है। उसे खुद को कुछ आता नहीं। पाँच साल से पी.एच.डी कर रही है और एक लड़का भी पीरियड में नहीं रहता।
पुरुषः वह क्या कहती है?
स्त्रीः (नकल उतारते) कुछ विद्यार्थी ख़ास लेक्चरर्स की ओर ज़्यादा आते हैं। इससे समाज का उनकी ओर देखने का दृष्टिकोण अच्छा नहीं रहता।
पुरुषः देशपाण्डे बाई भली दिखती है।
स्त्रीः नहीं तो क्या? अपनी पति की ओर थोड़ा ध्यान देती तो वह कहीं और न जाता।
पुरुषः लेकिन यह वीरेन किसका है?
स्त्रीः देशस्थों में से।
पुरुषः वह क्या कहता है?
स्त्रीः याने? वह क्या कहने वाला है।
पुरुषः याने वह तेरी ओर आने पर क्या कहता है?
स्त्रीः बेचारा वह क्या कहेगा। लेकिन क्या-क्या ध्ामाल बातें करता रहता है। परसों तो बात करते-करते घण्टाभर क्या-क्या बता रहा था।
पुरुषः और तेरा पीरियड?
स्त्रीः फायनल इअर के लड़कों का पीरियड था और एक ही लड़का आया था। फिर मैंने उसको जाने के लिए कहा।
पुरुषः कमाल है (पाॅज़) वह घण्टाभर बैठा था? एकाध्ा विद्यार्थी के सामने घण्टा भर बात करना याने-
स्त्रीः अरे मैं टीचर हूँ और मैं विद्यार्थी से बात करती हूँ।
पुरुषः लेकिन एकाध्ा के साथ इतनी देर बात करना याने...
स्त्रीः तू भी क्या ऐसी बात करता है?
पुरुषः लेकिन एकाध्ा विद्यार्थी के साथ इतनी देर तक बात करना याने...
स्त्रीः फिर वही। तू देशपाण्डे बाई की तरह बोल रहा है?
पुरुषः हम समाज में रहते हैं।
स्त्रीः मैं टीचर हूँ और विद्यार्थी से बात करती हूँ।
पुरुषः तू टीचर है और तू एक पुरुष विद्यार्थी से बात करती है।
स्त्रीः (चिल्लाते हुए) पुरुष? वह मेरा विद्यार्थी है-
पुरुषः (शान्ति के साथ) एम.ए. का विद्यार्थी पुरुष नहीं होता?
स्त्रीः तू क्या बात कर रहा है?
पुरुषः (ठण्डे दिमाग़ से) क्या बोलता है?
स्त्रीः गुस्सा लानेवाली बात करता है।
पुरुषः तू क्यों चिढ़ती है?
स्त्रीः याने तू कुछ भी बोलने वाला है क्या?
पुरुषः मैं क्या कहा?
स्त्रीः मैंने पुरुष से बात की याने क्या?
पुरुषः क्यों? एम.ए. के विद्यार्थी पुरुष नहीं होते?
स्त्रीः अरे, फिर वही क्या लगा रखा है?
पुरुषः तू ही बता, एम.ए. का विद्यार्थी पुरुष नहीं होता?
स्त्रीः बार-बार पुरुष क्यों कह रहा है?
पुरुषः क्योंकि एम.ए. का विद्यार्थी पुरुष होता है। और पुरुष के पास जो रहता है वह उसके पास रहता है।
स्त्रीः (उपहास के साथ) अच्छा?
पुरुषः मैं वही कह रहा हूँ विद्यार्थी पुरुष रहता है और वह तेरे पास आता है।
स्त्रीः ऐसे कई विद्यार्थी आते हैं।
पुरुषः सब डेढ़ दो घण्टे रुकते हैं।
स्त्रीः वह उनके काम पर निर्भर रहता है।
पुरुषः कुछ एक घण्टा बैठते हैं।
स्त्रीः हाँ।
पुरुषः और वे केबिन में रहते हैं।
स्त्रीः क्योंकि स्टाॅफ़-म में भीड़ रहती है।
पुरुषः इसलिये तू आयसोलेटेड केबिन में विद्यार्थी के साथ साॅरी पुरुष विद्यार्थी के साथ बात करती रहती है। उसकी देशपाण्डे बाई को अर्थात् समाज को तकलीफ़ होती है। इससे तुझे तकलीफ़ होती है और इन सबसे तुझे झुँझलाहट होती है।
स्त्रीः मुझे किस कारण झुँझलाहट हो?
पुरुषः लेकिन देशपाण्डे बाई जैसे लोगों को ऐसा क्यों लगता है?
स्त्रीः उसका मुझे कुछ मालूम नहीं लेकिन मैं विद्यार्थी से बोलती हूँ, इसका तुझे कुछ लगता है।
पुरुषः मुझे क्यों कुछ लगेगा?
स्त्रीः वह तूझे ही मालूम होगा। तू ही कह रहा है।
पुरुषः मैं कुछ नहीं कहता। तू ही सब कह रही है।
स्त्रीः मैं? मैं कहती हूँ? तू ही तो बार-बार पुरुष पुरुष कर रहा है।
पुरुषः हम देशपाण्डे बाई के बारे में बात कर रहे थे।
स्त्रीः सच बता? सच बता मैं पुरुष से बात करती हूँ, तो क्या इसका तुझे डर लगता है?
पुरुषः मुझे क्यों डर लगे?
स्त्रीः फिर तेरा प्राब्लेम क्या है?
पुरुषः प्राब्लेम, प्राब्लेम क्या रहनेवाला है? (पाॅज़) लेकिन इतनी देर तक क्या बात करना?
स्त्रीः अब देख बाहर आया।
पुरुषः क्या आया बाहर?
स्त्रीः तेरे अन्दर का पुरुष! पुरुषत्व।
पुरुषः भाषण मत देना।
स्त्रीः क्या मैं भाषण दे रही हूँ
पुरुषः नहीं तो क्या? कौन विद्यार्थी है जिसे देखकर उसके साथ घण्टे-घण्टे तक बात करना और...
स्त्रीः क्या कह रहे हो, वह तेरी तो समझ में आ रहा है क्या?
पुरुषः मैं क्या समझता हूँ उसकी चिन्ता मत कर।
स्त्रीः कौन विद्यार्थी है इसे देखने की बात क्यों कर रहा है?
पुरुषः वह कौन है पूछने पर तूने क्या कहा! देशस्थ है कहा। कहा कि नहीं?
स्त्रीः तेरा पौरूष अहंकार छिपाने के लिये कोई बहाना मत कर।
(वह अन्दर जाने के लिये मुड़ती है।)
पुरुषः (उसकी ओर देखकर चिल्लाते हुए) मेरी बात करने के पहले इसे ध्यान में रख तू जातीय सोशाॅलाजी की प्राध्यापक...
स्त्रीः (अन्दर जाते-जाते) तू पुरुष समाज सुध्ाारक डाॅक्टर... (वह क्रोध्ा से उसकी ओर देखता है।)
(अंध्ोरा)

दृश्य पाँचवाँ
पुरुषः (रंगमंच पर प्रकाश@स्त्री के घर के हाॅल में वह अकेली दिखती है। उसके सामने एक बाॅक्स दीखता है। उस पर माँ देवी की तस्वीर रखी है। बत्ती जलायी है। घण्टी भी दीखती है। बाजू में फार्मस काग़ज़ों का गट्ठर लगा है काॅलेज के लड़कों के पेपर जाँचने का काम चल रहा है।)
स्त्रीः मन चित्त में रहे ना देव?
सहारा देकर ले मुझे।
आँचल में सवार ले मुझे
मन बैर करे रे मन से।
(पल के लिये रुकती है। घण्टी बजाती है। पेपर जाँचती है)
तू ही कर्ता तू ही दाता
सब कुछ झूठ रहे रे।
क़दम क़दम पर मन देखे
तेरा नाम काम में रहे।
(क्षणभर रुकती है। घण्टी बजाती है। पेपर जाँचती है। उसे आया हुआ देखती है। सोफ़े पर बैठता है। बूट निकालते निकालते टी.वी. पर चैनेल सफऱ् करता है। स्त्री उसकी ओर देखती है, पेपर जाँचती है। जप करती है। उसके चेहरे पर नाराज़गी।)
थक गये दब गये
फिर तेरा सहारा
तू ही माता तू ही पिता
उठाकर ले गोद में।
सत सत माँ देवी। ओम शान्ति शान्ति।
(वन्दन करती है। घण्टा बजाती है। ऊदबत्ती बुझाती है। अपना सामान सामने के बाॅक्स में रखती है। डिब्बा बन्द करती है। वन्दन करती है। बाॅक्स बाजू में रखती है। चारो ओर देखते हुए ऊपर देखकर नमस्कार करती है। पेपर बाजू में हटाती है। उसकी ओर जाती है। उससे लपेटती है।)
स्त्रीः (बालों में हाथ फेरती है) काफ़ी बना दूँ?
पुरुषः (त्रस्त होकर) यही पूछनेवाली है क्या?
स्त्रीः फिर? अब क्या पूछूँ?
पुरुषः अरे अब झगड़ा मत कर।
स्त्रीः (गीली आवाज़ में) झगड़ा नहीं रे (प्रेम के साथ) पूछ रही हूँ। क्या चाहिये तुझे? कुछ खाने को दूँ?
पुरुषः (हार के स्वर में) अब कुछ नहीं चाहिये।
स्त्रीः (उत्साह के साथ) मुझे बता दे, तेरे कार्यक्रम का क्या हुआ?
पुरुषः अब पूछती है!
स्त्रीः (प्रेम के साथ) अरे अभी तो तू आया है। और देख कितने पेपर जाँचने के हैं। अलावा इसके सप्ताह भी शुरू है। आश्रम में जा नहीं पायी। फिर घर में ही जप कर लेती हूँ। अच्छा मेरी जाने दे। अब बता तेरा प्रेज़ेन्टेशन कैसे हुआ?
पुरुषः (शान्ति से) दे आर इम्प्रेस्ड।
स्त्रीः (एकदम उछलते हुए) वाव्! अमेरिका?
पुरुषः (उसे भी उत्साह आता है) उन्हें नाटक भी अच्छा लगा।
स्त्रीः वह मल्लिका।
पुरुषः यस मल्लिका। ग्लोबलायज़ेशन।
स्त्रीः फिर समझ गये वो?
पुरुषः डार्लिंग समझा दिया। ग्लोबलायज़ेशन। लोकल कल्चर। बाॅलीवुड। मल्लिका। लोकल लेंग्वेज़ मराठी। शुरू में जान नहीं पाये। फिर पूछा, यू नो जैकी चेन? फिर वे जान गये और मल्लिका ध्यान में आ गयी। फिर मैंने कहा-ग्लोबल मिक्सड विथ लोकल टु टैल अबाऊट हेल्थ इन इंडिया! डें.... ट ड।ण ऽऽऽ
स्त्रीः ख़तरनाक।
पुरुषः यस, अमेरिका। खुश हुई।
स्त्रीः चैहान का प्रेज़ेन्टेशन कैसे हुआ?
पुरुषः ओ.के. हुआ।
स्त्रीः फिर, फ़ायनल कब मालूम होगा?
पुरुषः बतायेंगे, बतायेंगे। वे अभी गाँव में चार दिन हैं।
स्त्रीः होप्स है ना रे!
पुरुषः मुझे तो है और बड़े इम्प्रेस हुए हैं। कार्यक्रम के बाद साफ़ा बाँध्ाा तो इतने खुश हुए की बस। उस बाबा ने तो आकर मुझे गले लगा लिया और वह इवलिन मेरे पास आकर बोली कि तुम्हारा नाटक अच्छा हुआ... (एक्सेंट काढ़ते हुए) ‘युअर प्ले वाज़ फ़ेबुलस’ कहते हुए फूल भी दिया। (मोबाइल दिखाते हुए) देख, कैसी खुश दिखती है। यह चैहान देख। वह नमस्ते कर रही थी तो यह हाथ में हाथ लेकर शेक हेंड करने चला गया। मैनर्स ही नहीं है और अब यह अमेरिका जानेवाला है। (वह उसे ताली देकर हँसती है।) (उसके चेहरे पर उत्साह उमड़ा है। वह उत्साह से मोबाइल पर फोटो दिखा रहा है।) अब परसों उन्हें खेत पर ले जायेंगे।
स्त्रीः क्यों रे?
पुरुषः क्यों याने चैहान आज पार्टी देनेवाला है।
स्त्रीः वह दे तो।
पुरुषः मुझे उन्हें गाँव की ब्यूटी दिखानी है (फोटो दिखाते हुए) यह देख यह कैसे खड़ा है।
स्त्रीः (बाजू होते हुए) याने दोनों रिश्वत दे रहा है।
पुरुषः कितने गँवारू शब्द का प्रयोग कर रही है। तभी तो मुझे लगा कि अब तक सोशाॅलोजी कैसी मारी नहीं।
स्त्रीः मारती नहीं। पर सीध्ो पूछ रही हूँ। इसमें गँवारूपन क्या है?
पुरुषः अच्छा मैं भी सीध्ो पूछता हूँ। तेरे पी.एच.डी. के वायवा के रेफ्रि़यों को खाना खिलाने तो गयी थी?
स्त्रीः हाँ, फिर उसका क्या है?
पुरुषः क्या वह रिश्वत देना नहीं था?
स्त्रीः अरे कहाँ का सम्बन्ध्ा कहाँ जोड़ रहा है? वह एक आदर देने का व्यवहार था।
पुरुषः हम क्या अन्याय का व्यवहार करते हैं? विदेशी मेहमानों को गाँव की ब्यूटी दिखानी है। ईख के खेत दिखाकर लाल रस पिलाना है। हम अपनी आत्मीयतापूर्ण संस्कृति का प्रचार करते रहते हैं। चैहान तो उन्हें विलायती शराब पिलानेवाला है। हम तो गाँव की ओर शराब ले नहीं जा सकते, नहीं तो और मज़ा आया होता।
स्त्रीः अच्छी ख़ातिरदारी की है।
पुरुषः वे हमारे मेहमान हैं। तू भी चल।
स्त्रीः कहाँ?
पुरुषः गाँव।
स्त्रीः तेरे साथ गाँव में घूमने का याने- वे गोरे लोग और तुम... अच्छा प्रदर्शन होगा।
पुरुषः तू सोशॅलाॅजी पढ़ाती है और तूने डाॅक्टरेट की है, ऐसा इवलीन और जार्ज को बताया है।
स्त्रीः यह भी इंप्रेशन डालने के लिये क्या?
पुरुषः (प्यार से) तू इंप्रेसिव ही है।
स्त्रीः (बाजू होते हुए) हमारे पास है क्या? पिछली बार तुम्हारी एक पार्टी में आयी थी तो वह पराडकर आगे-पीछे घूम रहा था।
पुरुषः वह पार्टी मैनर दिखा रहा होगा।
स्त्रीः शी। पार्टी मैनर। और मेरे पल्ले का किनारा उस डाॅक्टर घाटे को लगा तो झल्लाकर देख रहा था।
पुरुषः उस इश्यू पर हमने बात की है। उसे फिर से रगड़ो मत।
स्त्रीः पत्नी को सजाकर ले जाने में शौर्य क्या है? प्रोजेक्ट ठीक लिखो। उसका ग्रामर देखो। प्रोजेक्ट ठीक करो।
पुरुषः यस प्रोफेसर बाई। भाषण करने का एक भी मौक़ा नहीं छोड़ती। मुझे अब कोई बात नहीं करनी है। (पाॅज़) ठीक है, यह देख कल चैहान ने पार्टी रखी है, बाई, उसके लिए भर आना। वह घर का ही है। उसकी पत्नी ने भी तुझे लाने के लिए आग्रह के साथ कहा है।
स्त्रीः फिर आना ही पड़ेगा। अमेरिका जाने वाले दो डाॅक्टर और उनका परिवार साथ देखने मिलनेवाले हैं।
पुरुषः चैहान का और एक मित्र आनेवाला है। वह अमेरिकन टीम का लोकल कन्सल्टेन्ट और रोटरी का मेम्बर है।
स्त्रीः कौन रे?
पुरुषः तेरा परिचित है। श्रीकान्त कुलकर्णी।
स्त्रीः वह कौन है, ध्यान में नहीं आ रहा है।
पुरुषः तेरे विद्यार्थी के पिता है।
स्त्रीः कौन विद्यार्थी?
पुरुषः वीरेन कुलकर्णी।
(पाॅज़, वातावरण में असहजता)
स्त्रीः एम.ए. का पुरुष विद्यार्थी अब चलता है क्या? (क्रोध्ा से) उस दिन कैसी बात कर रहे थे? (नक़ल उतारते हुए) विद्यार्थी पुरुष रहते हैं। एम.ए. का विद्यार्थी पुरुष रहता है। तभी सोच रही थी, यह पार्टी के लिये क्यों ले जा रहा है। और समय इध्ार-उध्ार की बात कर ले जाने को टालते रहते हो। उध्ार किसी के पूछने पर उसका सिर दुःख रहा है, कहकर मैनेज भी कर लेते हो। और अब? मैं ठीक लगती हूँ। अमेरिका जाने मिलता है इसलिए मेरे पुरुष विद्यार्थी को इम्प्रेस करने के लिए मैं काम आती हूँ क्या?
पुरुषः इस इशू को तू हद से बाहर बढ़ा रही है।
स्त्रीः मैं? मैं बढ़ाती हूँ?
पुरुषः मैंने व्यवहार के लिये आने कहा। नहीं आना हो तो रहने दो।
स्त्रीः व्यवहार कैसा, सिर का।
पुरुषः अब बहुत हुआ। यह मेल-मिलाप का व्यवहार है।
स्त्रीः और काम करने का? फँस गया?
पुरुषः ए बाई, आना नहीं हो तो मत आ। पर खाली भाषण मत दे। रात-दिन मेहनत करते हैं। हम। घण्टे भर में काम पूरा करके नहीं आते। और गोल्ड मेडल लेकर डाॅक्टर हुआ हूँ। ‘तुम में से हूँ’ कहकर अपनी जाति के प्राध्यापकों का फ़ेवर नहीं लिया।
स्त्रीः हाँ ना? फिर अब पत्नी की क्या ज़रूरत है।
पुरुषः जनम भर साथ देने का वादा किया है।
स्त्रीः ऐसा क्या? दो महिने पहले जब ट्रिप गये थे तब वादे याद नहीं आये क्या?
पुरुषः ये देखो। उस समय भी मैंने तुझसे पूछा था-
स्त्रीः पूछा था न (नक़ल करते हुए) आती हो ना? मेरे रहते दोस्तों के साथ सिली जोक्स नहीं कर पाते (रुककर) विद्यार्थी से बात की तो कितना बड़ा इशू बनाया।
पुरुषः बार-बार वही कह! तेरे पी.एच.डी के वायवा के दिन मुझे लेकर क्यों गयी थी?
स्त्रीः अरे, कहाँ की बात करते हो? और अब उसकी क्या ज़रूरत है। तू हमारे सबका परिचित था इसलिये तुझे चलने कहा था।
पुरुषः फिर मैं यही शर्ट पहनँू और वही पेंट पहनँू, इसका आग्रह क्यों किया था? पी.एच.डी तेरी, गाईड तेरे, फिर उनकी पत्नी के लिये साड़ी क्यों?
स्त्रीः अरे वह जेस्चर था।
पुरुषः तुम करो तो जेस्चर और हम करते हैं वह क्या (मुँह का शब्द बाहर नहीं निकालता) हमारा भी यह कल्चर जेस्चर है। मेडिकल जेस्चर टू अमेरिका कह इसे। ओ के?
(वह मोबाइल देखते हुए बैठता है। वह उसकी ओर देखती है। दोनों में शान्ति)
(अंध्ोरा)

दृश्य छठा
(सुबह का समय। चीज़ें बिखरी पड़ी हैं। वह काउच पर लेटी है। अलसाया शरीर झटकते वह आता है। चीज़ों की ओर देखकर त्रस्त होता है। उसे सँवारने का प्रयत्न करता है। उसके पास जाकर बैठता है। वह उसे टालकर करवट बदलती है। वह उठता है। फिर थोड़ा सँवारने जैसा करता है। फिर उसके पास आकर बैठता है। उस पर हाथ रखता है, वह मुँह पर तकिया लेती है। वह पड़ा हुआ पेपर उठाकर पलटता है और बाजू में रखता है? फिर उसके पास बैठता है। उसे छूता है। पर वह कोई प्रतिसाद नहीं देती।)
पुरुषः कितनी देर ऐसी लेटी रहोगी?
स्त्रीः (शान्ति से) क्या?
पुरुषः उठनेवाली नहीं हो क्या?
स्त्रीः किसलिये?
पुरुषः किसलिये याने क्या।
स्त्रीः काॅलेज देर से है।
पुरुषः काॅलेज न हो तो जल्दी उठती नहीं क्या?
स्त्रीः टाॅयलेट होकर आये?
पुरुषः नहीं।
स्त्रीः फिर तू जा। मैं उठकर क्या करूँ?
पुरुषः क्या केवल इसके लिये ही उठते हैं?
स्त्रीः तूने चाय ली?
पुरुषः नहीं।
स्त्रीः फिर पी ले। अलमारी में पतीली है। चाय के डिब्बे में चाय। शक्कर के डिब्बे में शक्कर। फ्रि़ज में दूध्ा। एक कप पानी लेकर उसे उबाल। उसमें शक्कर डाल। ठीक तरह से हिला। फिर दूध्ा डाल और-
पुरुषः तुझसे रेसिपी नहीं पूछी थी।
स्त्रीः फिर?
पुरुषः तू उठेगी नहीं?
स्त्रीः क्यों?
पुरुषः पूछ नहीं सकता?
स्त्रीः ऐसा मैंने कहाँ कहा?
पुरुषः तुझे सुबह-सुबह क्या हुआ है?
स्त्रीः अमरीकी बाई के साथ क्या बात कर रहा था।
पुरुषः कब?
स्त्रीः रात में।
पुरुषः क्या बात कर रहा था?
स्त्रीः याद कर।
पुरुषः कुछ विशेष हुआ याद नहीं आता। तू ही बता।
स्त्रीः (नकल उतारते) मॅडम, वी आर मराठाज़, यू नो मराठा?
पुरुषः (मुस्कराते हुए) उसे क्या समझता था?
स्त्रीः न समझने को क्या। तू था ही न। चैहान भी था। वह बता रहा था कि वी आर टाॅप मोस्ट इन हिन्दूज़। यु गिव मनी टू चव्हाण आॅर पाटिल, मराठाज़ विल बी देयर नो अदर। वी विल रेन द नाॅलेज। क्या पाटिल? फिर आपने ही ताली दी। फिर बोले आनन्दराव पाटिल, बोले नाऊ वी विल बी ब्राह्मिन्स! चिअर्स।
पुरुषः अरे हमें चढ़ गयी होगी।
स्त्रीः (क्रोध्ा में) यह सब बोलते समय चैहान मेरी ओर देख कैसे बात कर रहा था।
पुरुषः उसे जरा ज़्यादा हुआ था।
स्त्रीः और क्या? तो मॅडम यू आर क्रिश्चियन, वी आर क्षत्रिय, वी विल रेन, इट विल बी लकी ‘के’ फाॅर द वर्ड (‘के’ इज किंग) ‘के’ एव्हरी व्हेअर। फिर आप की आपस में सन्ध्ाियाँ (पाॅज़) अरे तुम डाॅक्टर लोग। क्रिश्चियन की स्पेलिंग सी से शुरू होती है, ‘के’ से नहीं। इतना भी तुम समझ नहीं पाते?
पुरुषः जाने भी दो।
स्त्रीः जाने भी दो क्या? तुम लोग डाॅक्टर और चापलूसी?
पुरुषः रिलॅक्स। इतना एक्साईट मत हो। मन सम्हालना इतना ही।
स्त्रीः तू इसे इतना ही कहते है? और किसलिए मन रखना होता है?
पुरुषः फिर क्या किसी काॅलेज में मास्टर बन कर अपना जीवन बिता दूँ?
स्त्रीः अपना काम करो। और मास्टर की बात करने की ज़रूरत नहीं।
पुरुषः क्यों नहीं? तुम प्राध्यापक लोग प्राचार्य को सब्ज़ी लाकर देते हो। हमने ज़रा उससे बात की तो कितना ड्रामा।
स्त्रीः अरे लेकिन उसकी कोई सीमा?
पुरुषः सीमा? कैसी सीमा? क्या हम गाँव में गोबर उठाते रहे? अभी थोड़ा कमाने लगे तो कितनी हाय तोबा?
स्त्रीः श्शी हाय तोबा कौन करता है?
पुरुषः तुम ही कर लेती हो। हमारा समय ठीक नहीं चल रहा था इसलिये...
स्त्रीः कमज़ोरी का दोष समय पर मत डाल।
पुरुषः कमज़ोर कहने की ज़रूरत नहीं। मैं कुलीन हूँ।
स्त्रीः यहाँ भी ले आये अपनी कुलीनता।
पुरुषः तू अपना देशस्थी ढंग अपने विद्यार्थी को देखते हुए लाती नहीं है क्या?
स्त्रीः मैंने किया इसलिए ऐसा नहीं कि तू भी करें।
पुरुषः हाँ? क्यों हमारा देखा नहीं जाता?
स्त्रीः ओह शट अप। आय अॅम युवर वाइफ़। मैं ऐसा क्यों सोचूँ? और बार बार क्यों उठाते हो जाति को।
पुरुषः कितना भोला चेहरा करके बोलती हो, किसको लगेगा... मीठी मीठी बात कर... मुझे मालूम है तुम्हारा देशस्थी ढंग।
स्त्रीः अरे बार-बार वही जाति का सुनकर--
पुरुषः मैं सीध्ो बोलता हूँ इसलिए दीखता है और तू न बोलते हुए ध्ाीरे-से परदे के पीछे। और जाति के उद्देश्य से कोई निकालता नहीं। वह आती ही है। जाति ने ही तय किया है कि नाॅलेज कौन ले और कौन न ले। जिन्हें लाभ हुआ है, उन्हें जाति जाति कहते रहने में क्या बिगड़ता है? जाति के समूह ने फायदे उठाये हैं ही। ऐसा कहने में क्या बिगड़ता है कि नाॅलेज जाति के परे जाता है। (पाॅज़) इतने शौक से प्राध्यापक बनने निकली हो। मेरे साथ शादी करने पर कन्फ़र्म हुई। तू कुछ भी करे तो वह न्याय का व्यवहार... बता ना मैं क्या बुरा कर रहा हूँ? डाका डालता हूँ? किसी को सताता हूँ? बोल ना? (वह उसकी ओर देखता है। वह कन्ध्ो उचकाती है। वह त्रस्त होता है।)
ऐसा नीचे मत दिखाना। तू इसे भूलना मत कि तेरे पी.एच.डी. का गाईड उसके उपनाम से फ़ायनल किया हुआ था। और तूने तेरे गाईड की पत्नी को जिस जेस्चर में साड़ी दी थी उसी जेस्चर से मैं उस अमरीकी बाई के सामने गया। दैट्स आॅल। (पाॅज़) और तुझे क्या नहीं दिया? तेरी नौकरी के लिये तूने जो पैसे तय किये, वे सब कि़स्त से तेरे काॅलेज में भर दिये। कर्जा लेकर घर लिया। उसके पहले तेरे साथ शादी की। अलग-अलग तरह से सेक्स कर तुझे एंटरटेन करता हूँ...
स्त्रीः श्शी... क्या बात करते हो।
पुरुषः मेरे कारण लज्जा आती है?
स्त्रीः कहाँ की क्या बात कर रहे हो?
पुरुषः अब मेरे साथ बात करोगी नहीं?
स्त्रीः ऐसा तुझे लगता है?
पुरुषः तुझे लगता होगा कि मुझे अपनी लज्जा ल.... और मैं खुद का तिरस्कार करूँ। सब छोड़कर घर में बैठूँ। डिस्पेन्सरी में बैठूँ। दोपहर में सो जाऊँ।
स्त्रीः अंट संट करने की अपेक्षा यह अच्छा।
पुरुषः ऐसा नीरस फीका खाकर जीवन बिताने के लिये अगर मैंने ग्रांट नहीं ली तो कोई तो लेगा ही। लाॅबी का व्यवहार छोड़कर सब करने की बुद्धि मेरे पास है। भले ही तू पी.एच.डी. हो गयी है फिर भी शिक्षा संस्था को घूस न देने के लिये नौकरी को तलाड़ने के गट्स तेरे पास है क्या? बताती रहती हो अभिमान से कि संस्था मराठों की है, हम मराठे हैं। अपने आय को दूर रख सकती हो क्या? नहीं। क्यों? उसके लिये हिम्मत लगती है। मैं कहता हूँ छोड़ दे सब। हमारे पास खूब पैसे हैं। हम सीमा के बाहर जाकर करते हैं वैसा तू मत कर। छोड़ दे नौकरी और (उपहास के साथ) तेरी परम्परा को शोभनेवाला ज्ञान से काम करा चल। समाजशास्त्र पर एक साॅलिड लेख लिख। (पाॅज़) जमता नहीं इसीलिये ऐसे रिलेशन्स मेंटेन करती हो, मान लो। बदमिज़ाजी मत दिखा। एक दूसरे की सहायता से जितना बनता है वह करेंगे। नाॅलेज इंडस्ट्री में थोड़ी आयडेन्टिटी मिलती हो तो लेट्स फ़क सम होल्स। (चिढ़ती क्यों हो?)
(दीर्घ शान्ति)
अंध्ोरा

दृश्य सातवाँ
(दोनों बेड पर लेटे। सीने तक चद्दर ओढ़ी है। सहवास के बाद का वातावरण)
पुरुषः हमें ऐसा क्यों होता होगा रे?
स्त्रीः याने?
पुरुषः सेक्स करते समय मज़ा क्यों नहीं आता?
स्त्रीः आता नहीं यह सच है। केवल थककर सो जाते हैं।
पुरुषः केवल ध्ाांध्ाालयाँ होती है। काॅन्सन्ट्रेशन भी नहीं होता। मन में बार-बार कुछ और आता है।
स्त्रीः मुझे भी तेरे जैसा ही होता है।
पुरुषः काॅन्सन्ट्रेशन के लिये कुछ तो करना होगा।
स्त्रीः क्या-क्या करके देखा। कुछ हुआ नहीं।
पुरुषः प्रयत्न करना होगा।
स्त्रीः सच है।
पुरुषः तू कुछ तो सुझा।
स्त्रीः कुछ सूझता नहीं।
पुरुषः विचार करके तो देखना चाहिये।
स्त्रीः मेरा दिमाग़ काम नहीं करता।
पुरुषः दूसरे के चमड़े का रंग हमें भूलना आना चाहिये।
स्त्रीः दूसरा कैसे बोलता है, इसको हमें बाजू में रखना चाहिये।
पुरुषः आगे के उपनाम से ही मेरे मन में यह विचार आता है कि वह मुझसे नीचे का है या ऊपर का। नीचे का हो तो अच्छा लगता है। अगर वह ऊपर का हो तो मुझे हलकापन लगता है।
स्त्रीः मुझे तो आगे का उपनाम हममें से हो तो ही अच्छा लगता है।
पुरुषः कुछ उपनाम सुनते हैं तो लगता है हमें पीछे ध्ाकेला गया है।
स्त्रीः उपनामों के सुनते ही टिड्डी दल की याद आती है।
पुरुषः मैं कुआँ लगता हूँ।
स्त्रीः मैं नाव जैसी लगती हूँ।
पुरुषः तू कुआँ क्यों नहीं होती?
स्त्रीः तू नाव क्यों नहीं बनता?
पुरुषः कुएँ को सुरंग लगाता हूँ।
स्त्रीः नाव में दरार पड़ती है।
पुरुषः सुरंग लगाने पर दरार पड़ेगी ही।
स्त्रीः दरार से पानी आयेगा।
पुरुषः पानी फूटेगा।
स्त्रीः बाँध्ा डाल।
पुरुषः कैसे बाँध्ा डालूँ? ज़मीन टूटी है, पत्थर तड़के हैं।
स्त्रीः सो जा।
पुरुषः किसलिये।
स्त्रीः पानी को रोकने के लिये। क्या स्वामी की वह कहानी मालूम नहीं? शिष्य की परीक्षा लेनी थी। उन्होंने बताया उस शिष्य को, खेत की ओर आनेवाली बाढ़ का पानी रोकने के लिये। मिट्टी कम पड़ने लगी। पत्थर मिल नहीं पा रहे थे। वह क्या करता, खुद मेड़ बनकर लेट गया...
पुरुषः इसी इतिहास को बार-बार रटते रहना और हम लेटते रहें?
स्त्रीः क्यों? फिर तेरे लिए कौन लेटेगा?
पुरुषः तू?
स्त्रीः मैं क्यों?
पुरुषः पत्नी हो।
स्त्रीः मेरी रात बीतेगी।
पुरुषः दूसरे दिन सो जाना।
स्त्रीः जम नहीं पायेगा। सर्दी की तकलीफ़ है।
पुरुषः फिर मुझे ही लेटना पड़ेगा?
स्त्रीः तू तो खेती बाड़ी में काम करनेवाला। तुझे वह सम्भव है।
पुरुषः हमेशा हम ही?
स्त्रीः फिर छोड़ देंगे।
पुरुषः ठीक है। छोड़ देंगे। मुझे अब गद्दी पर ही नींद आती है और पूरी रात उस पानी में बिता दूँ।
(वह उठती है। सँवरने लगती है।)
पुरुषः उठी क्यों?
स्त्रीः फिर क्या करूँ? (वह बाल बनाती है)
ऐसी बात करते रहना याने तेरे नाटक में काम करने जैसा लगता है, कुआँ क्या, पेंट क्या, नाव क्या, दरार क्या?
पुरुषः हम तो मन की ही कह रहे थे। शरीर अपने चिपके उपनाम से और अपने पर स्टैप लगाने वाली चमड़ी के रंग से बेज़ार होते हैं।
स्त्रीः (कपड़े ठीक करते हुए) हमें कुछ तकलीफ़ भी उठानी नहीं है। और अपने को चिपकने वाला भी कुछ नहीं चाहिये।
पुरुषः बीच का रास्ता ढूँढना है।
स्त्रीः (अचानक रुककर) हम ऐसा करें क्या? हम ऐसी जगह जायें जहाँ हम अपना फिजूल फेंक सके।
पुरुषः और कुछ नया आकर चिपकेगा तो?...
स्त्रीः अब बीच-बीच में बाध्ाा मत डाल।
पुरुषः तू समाजशास्त्री। तुम्ही बताओ क्या करूँ?
स्त्रीः हम भीड़ में घुसेंगे। भीड़ में घुसने के बाद खुद को फेंका जा सकता है।
पुरुषः खुद को फेंकना?
स्त्रीः याने अपना उपनाम भूल सकते हैं।
पुरुषः भीड़ में ऐसा होता है?
स्त्रीः ऐसा मत बोल जैसे तेरी समझ में कुछ न आता हो। तूने कहा था भीड़ का चेहरा नहीं होता। भीड़ में घुसने के बाद हमें अपना उपनाम याद नहीं रहेगा और पूछेगा भी नहीं कोई अपनी जाति।
पुरुषः फिर इतनी भीड़ कहाँ मिलेगी?
स्त्रीः पूना में।
पुरुषः (अच्छा न लगकर) वहाँ? वहाँ कौन किसे पूछता है? वहाँ के घरों के बोर्ड पढ़े हैं क्या?
स्त्रीः अरे, कोई पूछनेवाला नहीं इसीलिये तो हम वहाँ जाते हैं।
पुरुषः पर वहाँ तुम्हारे लोग अध्ािक हैं।
स्त्रीः रे बाबा फिर इसको वहाँ मत निकाल और अब पूना वैसा नहीं रहा है।
पुरुषः पर पूना को आखिर के आॅप्शन के-प में रखेंगे। इसके बदले ऐसा करें क्या? मुम्बई जायेंगे। वहाँ भीड़ की कमी नहीं है?
स्त्रीः पर मुझे लोकल से डर लगता है। उसमें घुसने के लिए जगह नहीं रहती। चढ़ते समय अपनी जूती छूट गयी तो?
पुरुषः थोड़ा ख़तरा तो लेना चाहिए। यहाँ से वहाँ जाना मतलब होगा ही।
स्त्रीः पर इतना उठना, जाना और उतने में जूती खोजने में सब समय चला जायेगा। बिना तकलीफ़ की रेडीमेड भीड़ चाहिये।
पुरुषः अब रेडिमेड भीड़ तुझे कहाँ मिलेगी?
स्त्रीः रहती है न। अपने बिग बाज़ार में कितनी रहती है।
पुरुषः उस बिग बाज़ार में! वहाँ लोग स्कीम्स देख के जाते हैं। कोई स्कीम न हो तो कौन आयेगा?
स्त्रीः (सोचते हुए) यह देख। हम माॅल में जायेंगे। खालिस माॅल में। वहाँ ज़्यादा स्कीमें नहीं रहती पर भीड़ रहती है।
पुरुषः बढि़या आयडिया है। तुझे वह माॅल अच्छा लगा था। वहाँ से क्या क्या लायी थी। लेकिन वहाँ सब महँगा रहता है।
स्त्रीः अब थोड़ा ख़र्च करना ही पड़ेगा। सब कैसे कम दाम में या एक पर एक फ्ऱी में होगा?
पुरुषः वहाँ कितनी लाईट रहती हैं ना? हमारे दस गाँवों के लिये काफ़ी होंगी वहाँ इतनी बिजली ख़र्च होती हैं।
स्त्रीः यहाँ अब तेरा गाँव मत निकाल। अब बहुत हुआ। चकाचक हटती हुई सीढि़याँ-महक-सिनेमा थिएटर भीड़ ही भीड़ हमें चाहिए।
पुरुषः दुकानों को देखते देखते और ब्राण्डेड माल हाथ में लेते लेते कौन हैं हम, ये भूल जायेंगे। हमें अपने उपनाम क्या हैं, ये भी याद नहीं आयेंगे। चकाचैंध्ा... जगमगाहट... महक...
स्त्रीः (उसके पीछे) चकाचैंध्ा... जगमगाहट... महक। वहाँ क्या-क्या नहीं रहता। हम अपनी ओर देखेंगे ही नहीं। सभी के साथ सरकते जायेंगे... कभी क़तार में तो कभी फैल के। अपनी ओर देखना नहीं और आगे का भी हमें देखना सम्भव नहीं। क्योंकि आँखें चकाचैंध्ा होकर रहेंगी। और आनन्दराव अपनी चप्पल सम्भालना। नीचे देखकर चलना। बड़ी फिसलन रहती है। लोग निरन्तर फर्श पोछते रहते हैं।
पुरुषः तू पागल है। मैं वहाँ चप्पल पहनकर कैसे आऊँगा। मैं शूज़ पहनूँगा।
स्त्रीः पर अब मैं कुछ तय नहीं कर पाऊँगी। मुझे मैचिंग चप्पल पहननी है लेकिन ऐसी जो फिसले नहीं।
पुरुषः इतनी मुश्किल उठाने के बदले ऐसा किया तो?
स्त्रीः अब क्या? माॅल कितना सुन्दर दिखने लगा है।
पुरुषः मेरे पास एकदम बढि़या आयडिया है।
स्त्रीः अब कोई नया आयडिया नहीं चाहिये। मैं काॅन्सन्ट्रेट करती हूँ। हम उस माॅल में गये थे। (माल में पहुँचने का अभिनय) देख, वह मुझे सेल्यूट कर रहा है। थैंक यू (वह अपनी दुनिया में)।
पुरुषः पर वहाँ कब पहुँचने का?
स्त्रीः पूना जाने में कितना समय लगता है।
पुरुषः रास्ते कितने ख़राब हो गये हैं।
स्त्रीः नाम मात्र के लिये सुपर हाय वे है।
पुरुषः फिर माॅल को ही इध्ार ले आयें तो?
स्त्रीः (वह स्तब्ध्ा होकर देखती है। शान्ति। एकदम आनन्द का कुछ मिलने का भाव) अजीबो ग़रीब आयडिया है।
पुरुषः गाँव में लाने का।
स्त्रीः तेरे गाँव में?
पुरुषः यस।
स्त्रीः वहाँ जगह कहाँ है?
पुरुषः जगह ही जगह। हमारे खेत में। आम के डेरे जैसे पेड़ पर।
स्त्रीः आम के पेड़ पर माॅल?
पुरुषः अब बीच में कुछ मत बोल। आय वाॅन्ट टु बिल्ड अ माॅल आन द टाॅप आॅफ़ द डेरे जैसे मँगो ट्री। चार डेरे जैसे पेड़ों पर एक माॅल। कम्प्यूटर का इस्तेमाल करेंगे। झट से बना देंगे। पेड़ में आम लगेंगे। उन्हें तोड़ने कम्प्यूटराइज़्ड मशीन ले आना। फिर माॅल। अरे, वह देख चार स्तरीय हाय वे तैयार हो रहा है। अपने कामवाले भागध्ाारी कैसे आनन्दित हुए, देख। उन्हें बुलडोज़र पर पानी मारने का काम मिल रहा है। सभी के घर में हमने केवल जोड़ा है। फिर लड़के टी.वी. देखते बैठेंगे। एक-दूसरे को अड़ंगा नहीं लगायेंगे और हाँ, माॅल के ओपनिंग के लिए हम पूजा करेंगे। हमारे घराने का पुजारी बुला लेंगे। देख, शहनाई बज रही है। इमारत फूलों से सजी है। दीपों की मालाएँ फैली हैं।
स्त्रीः आनन्द-
पुरुषः शु ऽऽ डिस्टर्ब मत करना।
स्त्रीः अरे लेकिन माॅल कैसे बँध्ाायेंगे?
पुरुषः इसमें क्या मुश्किल है। कुलकर्णी-जोशी आर्किटेक्ट एण्ड कम्पनी को बुलायेंगे। वे उनमें भेजे का उपयोग करेंगे। वह उन्हें जम जायेगा। नहीं तो अब तक वे मेंड पर खड़े रहकर डिज़ाइनिंग का काम करते आये हैं। बाँध्ाने को, करने को हमारे लोग हैं ही। ध्ाूप में खड़े रहकर, कष्ट सह कर, जल कर, पसीना बहाकर काम तो ये ही करेंगे। अरे वह देख अंजु हेगड़े। अब वह ध्ाोती में नहीं है पेन्ट में है। और वह श्रीया कालोजी देख, हारमोनियम कितना बढि़या बजाता था। सुर तैयार करता था अब माॅल के ऐंट्रन्स पर वाॅचमैन बनकर खड़ा है। और वह राज की सोना बाई देख, सफ़ेद टी शर्ट पहनकर आयी है। तेरे चाचा के घर में पीछे के दरवाजे़ से आकर बर्तन माँजती थी। देख यहाँ पसीना बहाती है लेकिन ए.सी. में स्वीपिंग करते हुए। पिछवाड़े के ताक में रखे बिना कान के कप से कूड़ेखाने के पास बैठकर चाय पीती थी और उस सोना बाई का लड़का देख ग्रेज्युएट हुआ है पर कोका कोला के केन्स कन्ध्ो पर लेकर जा रहा है।
स्त्रीः ऐ, मुझे भी साथ ले ना।
पुरुषः अरे आना। तू भी है मेरे साथ ही। पर रुक जा, अब पहले मैं जाता हूँ। अब तक तुम ही आगे-आगे जाती रही हो- चल, चल जल्दी आ। स्लायडिंग स्टेअर्स पकड़ने हैं...
स्त्रीः मुझे अपनी माँ की याद आती है। उसे भी ऐसे ही बारबार तुरन्त जाना पड़ा।
पुरुषः तय हुआ ना अब, अनावश्यक यादों को जुगाड़ना नहीं। (वह उसका हाथ मज़बूती से पकड़ती है)
स्त्रीः तेरा हाथ कितना चिपचिपा हुआ है।
पुरुषः कहाँ (हथेली जाँचता है।) अरे हाँ ना। ए.सी. फुल नहीं है। ऐ उध्ार कौन है रे... ए.सी. फुल करो। देख मेरी ओर कैसे आदर से देखते हैं। बचपन में बैलगाडि़यों की दौड़ में हमें परास्त किया इसलिए चैहान कितना घमण्ड में रहता था। अब देख मेरी ओर कैसे आदर से देखता है। यह जीवन है।
स्त्रीः यहाँ कैसे भूले खूद को?
पुरुषः दूसरी ओर देखकर।
स्त्रीः फिर क्या होगा?
पुरुषः हमारे न होने का भ्रम होगा।
स्त्रीः देख देखें सरकती ट्रालियाँ- बजते कम्प्यूटर्स फैले सैकड़ों पदार्थ-रंगीन चित्र-पोस्टर्स और उस पर चमकते चेहरे कोने कोने में पड़े व्हिज्युअल्स...
पुरुषः वह देख, खुला सीना बारीकी से देख- उसके निपल्स वह देख, कैसे बाल बिखराते हुए आ रहा है और देख उसकी लो वेस्ट निकर-
स्त्रीः मुझे अब एक्साइट होने लगा है।
पुरुषः बाहर रात है पर यहाँ सूर्य का प्रकाश है।
स्त्रीः मुझे यहाँ का प्रकाश भाता है।
पुरुषः आसपास देख कितनी भीड़ है। भीड़ अपनी ही ताल में है।
स्त्रीः वह ठीक है, हम भी उसी ताल में रहेंगे।
पुरुषः चायनीज़ केलेण्डर का समय पास आ रहा है।
स्त्रीः आनन्द भोगने का क्षण निकट आया है। आनन्द, अब मुझे केवल मैं ही दिखती हूँ रे।
पुरुषः अरे तेरे लिए अच्छा ही है। तेरी माँ देवी अपनी ओर निहारने को कहती है। वह देख, सामने के परदे की मल्लिका मेरी आँखों में घुसती है।
स्त्रीः मुझे अब माँ देवी दिखायी देती है। आनन्द (हाथ में लेते हुए) परसो ही उन्होंने मुझे प्रसाद दिया है। केलेण्डर फ़ाॅलो करो। रहेगा। बहुतों को अनुभव हुआ है।
पुरुषः हम जैसे ही इस माॅल में आये हैं, वह बहुत मेल खाता जा रहा है।
स्त्रीः माँ देवी ने बताया है, ‘न’ से शुरू होने वाले शब्द का जप करते रहना।
पुरुषः नाचता-गूँजता जीवन।
स्त्रीः यह शब्द बहुत बड़ा लगता है।
पुरुषः नीला नीला जीना।
स्त्रीः ‘नीला नीला जीना’ बहुत कठिन लगता है रे। जप कैसे करे?
पुरुषः (विचार करते हुए) फिर तो, नावेल लाइफ़’
स्त्रीः (उसके पीछे) नावेल लाइफ़।
पुरुषः और आसान करता हूँ नावल लाइफ़।
स्त्रीः वाह! नावल लाईफ। माँ देवी को खूब भायेगा। नावल लाईफ। माँ देवी ने प्रसाद दिया है।
पुरुषः यह माॅल हमें महाप्रसाद देगा।
स्त्रीः भक्तों की कामना पूर्ण करने की दैवी शक्ति इस महाप्रसाद में है।
पुरुषः अब मेरा काॅन्सन्ट्रेशन हो रहा है।
स्त्रीः मगन हो रही हूँ मैं, तू भी मगन हो जा। आनन्द, आ रहा है अपनी नयी लाईफ। अब हमें आँखें बन्द करने की ज़रूरत नहीं। पूरे आसमत के ही हम आँखें मूँद रहे हैं।
(दोनों तल्लीन। घूसर प्रकाश। ‘ये भीगे होठ तेरे’ गाना शुरू होता है।)

(परदा)

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