अरसलान ख़ालिद जावेद
02-Aug-2023 12:00 AM 2943

अनुवादः इक़बाल हुसैन

संगीतकार, अगर वह एक वास्तविक संगीतकार है, उसे शब्द कभी पसन्द नहीं आएँगे। संगीत हमेशा अमूर्त होता है। इसे सन्नाटा अपनी ओर बुलाता है। हर वाद्य, हर राग, हर सुर, ये सब सन्नाटे के कपड़ों को बहुत पहले से पहनकर तैयार होकर वाद्य यन्त्र में समा जाते हैं, ठीक वैसे ही जैसे फाँसी के तख़्ते पर जाने वाला व्यक्ति मृत्यु का वह विशेष वस्त्र पहन लेता है, जो उसे जेल प्रशासन उपहार के रूप में पेश करता है। संगीत को शब्द पसन्द नहीं होते, यद्यपि भिन्न-भिन्न अक्षरों से निकली हुई कुछ आवाज़ें उसकी नींव में ज़हरीले साँप की मानिन्द विद्यमान होती हैं, जिसकी फुफकार को संगीत अपनी लय और राग में अर्थहीन करके रख देता है, किन्तु अर्थपूर्ण शब्द बेवजह उसकी दुनिया में ख़लल डालते रहते हैं। जैसे बिन बुलाए मेहमान के लिए बहुत कुछ सहना पड़ता है, वैसे ही संगीत को भी अपनी प्रकृति और स्वभाविक झुकाव के विरुद्ध न जाने क्या-क्या सहना पड़ता है। शब्द अक्सर षड्यन्त्रकारी होते हैं और हमेशा निजी होते हैं। प्रसंग ही वे दीवारें है जहाँ इन भूतों को क़ैद किया जा सकता है। सन्दर्भ से बाहर आते ही शब्द इंसानों पर आसेब की तरह सवार हो जाते हैं और फिर इंसानों का उसी तरह इस्तेमाल करने लगते हैं जैसे एक तेज़धार वाला बेशर्म उस्तरा लालची और नकलची बन्दर को।
वास्तविक संगीत एक सपने जैसा होता है या सपना ही संगीत होता है। सपने संगीत की तरह हमसे कुछ ऐसा कहते हैं जिसे हम समझ नहीं पाते, लेकिन प्रभावित होते हैं, इतनी बुरी तरह प्रभावित कि कोई भयानक सपना देखकर हम पसीने में सराबोर हो सकते हैं, और यहाँ तक कि अगर सही समय पर आँख न खुले तो हमारे दिल की हरकत बन्द हो सकती है। संगीत अगर इस हद तक नहीं, तो भी हमें बेहद उदास भी कर सकता है और खुश भी। ‘Magic Flute’ देख और सुनकर तो ख़ैर बहुत से लोगों को दिल का दौरा पड़ ही चुका है। वह लाख थिएटर सही लेकिन हमारी इन्द्रियों-स्नायुओं पर जो चीज़ सबसे ज़्यादा असर डालती है, वह उसका संगीत ही है। शायद संगीत पूरी तरह से मनुष्य से सम्बन्धित नहीं है। उसका सम्बन्ध ख़ुदा से भी नहीं है क्योंकि ख़ुदा भी अपने पवित्र ग्रन्थों में बहरहाल बोलता है। संगीत एक रहस्य है। इसलिए हो सकता है कि वह सिर्फ़ मरे हुए लोगों से सम्बन्धित हो।
बिना शब्दों के किसी वस्तु का प्रतिनिधित्व करना वास्तव में हमें इस दुनिया के बारे में सच्चा और वास्तविक ज्ञान देने के बराबर है। यह एक प्राचीन पाठ है जिसे हमने भुला दिया है। ठहरिए, यह कहा जा सकता है कि सपनों में शब्द होते हैं, मगर जाग जाने के बाद हम जान जाते हैं कि इन शब्दों के कोई मानी नहीं थे। वे सिर्फ़ आवाज़ें थीं। वे किसी मूर्त वस्तु का प्रतिनिधित्व नहीं करते थे। इसके बावजूद सपनों से हमने जो कुछ सीखा है, जो कुछ हासिल किया है, वह हमें सारी दुनिया के शिक्षण संस्थान मिलकर भी नहीं दे पायेंगे।
अरसलान अभी-अभी सोकर उठा है। पचास वर्षीय अरसलान, मजबूत अंगों का मालिक, लम्बे कद वाला अरसलान, जिसके पैर पलंग के बाहर निकले हुए हैं। पलंग उसके कद से लम्बाई में छोटा पड़ जाता है। वह हमेशा चित् लेटकर सोता है। उसने आज तक कभी सोते में अपनी करवट नहीं बदली। नवम्बर का महीना शुरू हो गया था। नवम्बर का महीना शुरू होते ही उसके दिल पर जैसे लुढ़कता हुआ पत्थर आकर गिर जाता है, फिर वह पत्थर वहाँ से हिलता नहीं। नवम्बर का महीना अजीब महीना है। यह कोई महीना नहीं है, उसकी अपनी कोई पहचान नहीं है। यह बस दिसम्बर की आने वाली काली सर्दियों और अँधेरी रातों के स्वागत में तीस दिन पहले से ही हाथ जोड़े खड़ा है और तत्काल इसका काम सिर्फ़ यह है कि सुबह और शाम की हवाओं को थोड़ा ठण्डा करता रहे, उन हवाओं को जिन पर अभी गुज़रे हुए दिनों के पसीने की नमी है। खिड़की से ऐसी ही हवा का एक झोंका अन्दर आ गया। अरसलान ने इसे अपने माथे और चादर से निकले हुए अपने पैरों के पंजों पर महसूस किया। वह उठकर बैठ गया है और अपनी उन आँखों को मसलने लगा है जिनसे अभी-अभी एक सपना निकलकर सुबह की हवा और रोशनी में ओझिल हो गया है। सपने में उसने कोई संगीत रचा था, लेकिन अब याद नहीं आ रहा कि वह क्या था। वह अपना माथा रगड़ने लगा। एक सप्ताह से लगातार यही हो रहा है जब से उसे वह पत्र प्राप्त हुआ है। वह इस पत्र को किसी घनिष्ठ मित्र का मज़ाक़ समझता है, या कोई चुटकुला। वह इस पत्र को गम्भीरता से ले ही नहीं सकता। लेकिन इस लतीफ़े के बाद एक बदलाव तो आया है। उसे सुबह उठकर अपने सपने याद करने की झक सवार हो गयी है। यही नहीं वह उन सपनों को भी याद करना चाहता है जो उसने कभी देखे थे। बचपन के सपने और उसके बाद के सपने। मगर अफ़सोस कि उसे कोई सपना याद नहीं रहता। न कल रात का देखा और हुआ न पुराना। इस कोशिश में उसके सिर के बाएँ ओर दर्द रहने लगा है। उसकी आँखों की रोशनी भी पहले से कमज़ोर हो गयी है। एक हफ़्ते पहले अरसलान अपनी आँखों की जाँच करवाने डॉक्टर के पास गया था। डॉक्टर ने आँखों का परीक्षण करने के बाद उसे चश्मे के नये नम्बर का कार्ड देते हुए हँसकर कहा थाः
‘कोई बात नहीं, नम्बर ज़्यादा नहीं बढ़ा। आप संगीतकार हैं। संगीतकार और घड़ीसाज़ की दूर की नज़र हमेशा कमज़ोर होती है।’
उसका बस चलता तो वह सपनों को अपनी मुट्ठी में कस कर जकड़ लेता, मगर सपने तो बिल्कुल चिकनी मछली की तरह थे। वे पकड़ में नहीं आते थे और कुछ पलों के बाद धुएँ की तरह उसके दिमाग़ की दीवारों से छन-छनकर ग़ायब हो जाते थे। उसे यह भ्रम पहले कभी नहीं हुआ था, मगर अब एक सप्ताह से लगातार हो रहा है कि जब रात में वह सपने देखता है तो वास्तव में दुनिया को वह भी उतना ही प्रदूषित करता है जितना कि दुनिया उसे। वह सपना देखते समय रात के उस वृक्ष की तरह हो जाता है जो अँधेरे में ज़हरीली जानलेवा कार्बन डाइऑक्साइड गैस छोड़ता है। वह एक बदबूदार घाव को साथ लिये-लिये चल रहा है। यह घाव शायद दिल के ऊपर बाईं ओर है। घातक गैस का ज़हरीला सोता यहीं हो सकता है।
अरसलान ने दीवार पर लगी घड़ी की ओर देखा मगर उसकी आँखों पर चश्मा न था। घड़ी के अंक नज़र आए मगर सुइयाँ नहीं। दोनों में यही तो अन्तर है। अंक हमेशा पारदर्शी और ईमानदार होते हैं, और सुइयाँ द्वेषी। वह केवल मुश्किल से नज़र आने, जादू-टोना करने और चुभोने के लिए बनायी गयी हैं। लेकिन फिर उसे याद आया कि यह नवम्बर का ज़माना है। यह सिरे से समय ही नहीं है, यह समय के महान और अनन्त समुद्र से कटा हुआ कोई बदनसीब द्वीप है। यह वह दिन हैं जब समय को घड़ी में देखने का कोई अर्थ नहीं होता।
अरसलान के वाद्य यन्त्र कमरे में चारों ओर बिखरे थे। वह बिस्तर से उठकर उन्हें क़रीने से जमाने लगा। उन पर धूल जमी थी। पिछले एक हफ़्ते से उसने उन्हें हाथ भी नहीं लगाया था और म्यूज़िक क्लासेज़ भी नहीं ली थी। खिड़की से हवा का एक झोंका फिर अन्दर आया, इस बार थोड़ा तेज़ था। मेज़पोश और पर्दे धीरे-धीरे हिल रहे थे। ठीक उसी समय अरसलान को लगा जैसे सारंगी बोल उठी हो। उसने सारंगी को उठाया, ध्यान से देखा। सारंगी उसकी अंगुलियों के स्पर्श के बिना गूंगी थी। ये एक के बाद एक भ्रम मुझे होने लगे हैं, अरसलान ने सोचा। वह सारंगी को अपनी गोद में लिए खड़ा रहा। सारंगी ज़्यादा भारी नहीं थी। यह जिस लकड़ी की बनी थी वह बहुत उम्दा रही होगी। अरसलान की गोद में वह एक छोटे बन्दर के समान थी। अरसलान ने सारंगी का पेट सहलाया, जिसकी चमड़ी के नीचे भेड़ की खाल मंढी हुई थी। फिर उसने सारंगी के उस उभरे हुए हाथी की शक्ल जैसे जोड़ पर हाथ फेरा जो पेट और छाती को आपस में जोड़ता है और ऊँट की हड्डी से बना है। फिर अरसलान ने धीरे-से सारंगी के सिर या मग़ज़ को छुआ, क्या तुमने भी सपना देखा। तुम भी सपने याद करने में इंसानों की तरह नाकाम हो। अरसलान ने निराशा के साथ सोचा।
वैसे तो यह सब जानते है कि भारतीय संगीत में जितने भी वाद्ययन्त्र हैं, वे इंसानी आवाज़ के विकल्प के रूप में उपयोग किये जाते हैं और कोमल वेदना की दशा को व्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि हम सन्तूर को बजते हुए सुनें तो बिल्कुल ऐसा लगता है जैसे सीने के अन्दर से दिल के अनगिनत टुकड़े टूट-टूटकर बाहर गिर रहे हों। इसके विपरीत, सितार की ध्वनि कुछ ऐसी है जैसे कोई आत्मा के घावों पर धीरे-धीरे मरहम लगाता है। ठण्डा मरहम जिससे घाव नहीं भरते बस कुछ देर के लिए उनकी जलन ग़ायब या कम हो जाती है और जहाँ तक तबले का सवाल है, उसकी थाप और धमक कानों से होकर दिल तक पहुँचती है, मगर वहीं नहीं रुक जाती। दिल से वह पाताल में उतर जाती है और हमें ऐसा लगता है जैसे धरती हिल रही है, भूकम्प के झटकों की तरह नहीं, बल्कि जैसे किसी नशे में धीरे-धीरे झूमती हुई शून्य में घुल रही है।
शहनाई, सरोद, तानपुरा, मृदंग, बाँसुरी, ये सब मनुष्य की ध्वनियाँ हैं जो लकड़ी की खोखली फुकनियों में सरसराती हुई हवा की मोटी चादर में लिपटी हुईं आराम से सो रही हैं, मगर मनुष्य के होंठ, उसकी साँस और उसकी अंगुलियाँ के पोरों और नाखूनों का एक हल्का स्पर्श भी उन्हें जगा देता है। शहनाई जो मनुष्य की साँसों, उसके दुःख और सुख को आवाज़ में आत्मसात् करके दूर-दूर तक बिखेर देती हैं, मगर जिसमें सिर्फ़ दो ही सुर हैं।
मगर सारंगी, अरसलान ने सोचा। उसने छोटे बन्दर को अपनी गोद से उतार कर फर्श पर कोने में रख दिया। अरसलान ने सिगरेट निकाल कर सुलगाया। सुबह का पहला सिगरेट, जिसके बाद फेफड़े प्रतिदिन के जीवन की कालिख को मिटाकर पैरों में नया ताज़ा खून भर देते हैं और आदमी अपने परेशान करने वाले सपनों के बारे में सोचना बन्द कर देता है। अरसलान को फिर लगा जैसे सारंगी धीरे-धीरे हँसी थी।
यद्यपि सारे वाद्ययन्त्र इंसानी आवाज़ों के विकल्प हैं, मगर सारंगी तो जैसे बाक़ायदा इंसानी आवाज़ो की नक़ल करने के लिए पैदा हुई है। विशेष रूप से, गहरे दुःख में दिल से निकलने वाली आवाज़, जो गले, तालू, जीभ और जबड़ों से गुज़र कर उदास स्पन्दन के साथ मुँह से बाहर आती है और जिसे कोई नहीं सुनता, सिवाय चीड़ों के जंगल के। सारंगी को मालूम नहीं कैसे इन आवाज़ों का पता चल गया। जवान औरत की उदास आह से लेकर एक बूढ़े आदमी के कराहने तक और युद्ध के मैदान में घायल की चीख़ से लेकर मासूम सोते हुए बच्चे के मुँह से निकली सिसकी तक। सारंगी जासूस है। इंसान के कष्टों और उसके घावों की जासूस। हर किसी को कभी न कभी एक जासूस की ज़रूरत ज़रूर पड़ती है। प्रेम स्वयं एक जासूस है, वह जिसके लिए होता है उसका कुछ भी प्यार से छिपा नहीं होता। दो प्रेमी, लम्बा समय गुज़ार जाने के बाद एक दूसरे के लहज़े और आवाज़ की नक़ल करने लगते हैं। उनके बीच की दीवारें कब टूटकर गिर जाती हैं, उन्हें खुद पता नहीं चलता।
मगर सपना, किसी के सपने तक पहुँचा तो जा सकता है, उसे समझा भी जा सकता है, उसकी ताबीर भी बतायी जा सकती है, मगर उसे याद नहीं रखा जा सकता। कोई भी जासूस यह काम नहीं कर सकता कि दूसरों के सपनों में छुप-छुपकर जासूसी करता फिरे। आखिर वह अपने सपनों को कब देखेगा। अफ़सोस इस बात का है कि अच्छे सपने कभी याद नहीं रहते। वे बर्फ के टुकड़ों की तरह होते हैं जो थर्मस से निकालते ही पिघल कर बह जाते हैं। यहाँ सपनों का मामला असल ज़िन्दगी से बिल्कुल उलट है क्योंकि कहा जाता है कि इंसान कड़वी और दर्द भरी बातें ज़्यादा दिन तक याद नहीं रख सकता नहीं तो पागल हो जाएगा। वह अच्छी और मीठी यादों के सहारे ही जीवन गुज़ारता है। यहाँ वह इंसान भी हो सकता है और उसकी बुद्धि भी। क्योंकि वास्तव में पागल तो केवल बुद्धि ही होता है, या आत्मा। शरीर को पागल हो जाने में कोई दिलचस्पी नहीं। मगर केवल बुरे और डरावने सपने ही ज़्यादा याद रहते हैं। कभी-कभी तो दुःस्वप्नों का एक लगातार सिलसिला ही हाथ धोकर पीछे पड़ जाता है मगर अरसलान को अपने सपने याद नहीं। उसे तो डरावने सपने या उनकी परछाइयाँ भी याद नहीं। उसे कोई सपना नहीं आता। इसलिए वह सारंगी से यह उम्मीद करता है कि वह उसके पुराने सपनों में निकली हुई आवाज़ों, सिसकियों, कराहों और चीखों की नक़ल करे, मगर सारंगी सिर्फ़ हँसती है क्योंकि वह जानती है कि अरसलान की उँगलियों के स्पर्श मिले बिना वह किसी आवाज़ की नक़ल नहीं कर सकती। भले ही वो आवाज़ें सपने की आवाज़ें ही क्यों न हों।
क्या सपने में शरीर होता है? अरसलान बचपन से ही यह सवाल करता आया था। मगर शरीर तो बिस्तर पर खर्राटे ले रहा था। ये बातें अरसलान की समझ में न तब आती थीं और न अब। अरसलान ने सिगरेट को फर्श पर मसल दिया और केतली का सुइच ऑन करके चाय के लिए पानी उबालने लगा।
अरसलान बेचैन स्वभाव का तो हमेशा से था और कुछ ऐसी स्थिति में गिरफ़्तार रहने वाला जिसे आसानी से अवसाद और घृणा दोनों का नाम दिया जा सकता है, मगर सम्भव है कि यह कोई और अवस्था हो। कुछ स्थितियाँ अपने मुँह पर हमेशा मुखौटा लगाये रहती है। ये झूठ एक-दूसरे से बहुत मिलते-जुलते हैं, लेकिन इन स्थितियों के वास्तविक चेहरे अलग-अलग हैं। अरसलान खुद नहीं जानता कि उसके साथ क्या हो रहा है। बस इतना पता है कि यह ख़ब्तया पागलपन उस दिन के बाद ही पैदा हुआ है जब डाकिये ने उसे वह लिफ़ाफ़ा लाकर दिया था। लिफ़ाफ़ा, जिसमें एक पत्र था। और जिसे आज एक हफ़्ता बीत जाने के बाद भी अरसलान भुला नहीं सका, यद्यपि वह इस चिट्ठी को एक मज़ाक या लतीफ़े से ज़्यादा महत्व नहीं देता।
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कौन कहता है कि ज़िन्दगी चलती है? वह चलकर भी नहीं चलती। दरअसल यह रुकी रहती है। समय जीवन नहीं है। शायद समय न रुकता हो, मगर जीवन उस रुकी हुई रेलगाड़ी की तरह होता है जो किसी दूसरी गाड़ी में बैठकर अतिरिक्त गति के प्रभाव में फँसकर चलती हुई महसूस होती है। यह दूसरी गाड़ी वास्तव में मृत्यु है। हम मृत्यु के ठहराव में अपने पाँव रखते हैं और जीवन हमें भ्रम देता है कि यह निरन्तर गति में है, मगर गति हो या ठहराव, पूर्ण सत्य कहीं भी नहीं है। न जीवन में न मृत्यु में। सच की झलकियाँ अगर नज़र आ सकती हैं तो सपने में, जो जीवन और मृत्यु दोनों से अपना दामन बचाए रखता है यद्यपि वह उन दोनों के बीच एक दोस्त की तरह मौजूद भी रहता है। वरना, चाहे कोई भी दस्तावेज़ हो, लेख हो, याचिका हो या ख़त हो, या कुछ काग़ज़ात ही क्यों न हों, वास्तविक जीवन में उनका महत्व होते हुए भी सच्चाई से उनका दूर-दूर तक का सम्बन्ध भी नहीं है, क्योंकि महत्वपूर्ण यह नहीं है कि लोग अपने बारे में या अपने जीवन के बारे में क्या सोचते है। महत्वपूर्ण यह है कि वास्तव में उनके ऊपर क्या गुज़र गयी। अगर भूल जाना भी एक सच्चाई है तो हमें देखना चाहिए कि कोई व्यक्ति क्या भूलता है और ईमानदारी के साथ हमें क्या दिखाना चाहता है। मनुष्य की परम मासूमियत इस बात में निहित है कि यदि कभी वह हत्या करने के बाद इसे भूल जाए कि उसने कभी हत्या की थी तो...? जो ठीक उसी तरह है जैसे कोई सपना देखने के बाद उसे भूल जाता है।
हफ़्ता भर पहले, भरी दोपहर में जब अरसलान खाना खाने के बाद कुछ देर के लिए आँखें बन्द करके बिस्तर पर दाएँ करवट लेटने के लिए जा रहा था और सिगरेट का आखिरी कश लेकर उसे ऐश ट्रे में मसल रहा था, दरवाज़े की घण्टी बज उठी। उसने दरवाज़ा खोला तो मिट्टी और बालू का सा वस्त्र पहने उस डाकिये ने मिट्टी जैसे रंग का ही एक रजिस्टर्ड लिफ़ाफ़ा उसके हाथ में थमा दिया। अरसलान ने कमरे में आकर लिफ़ाफ़े को ग़ौर से देखा। उसकी आँखों में नींद थी क्योंकि वह दिन का खाना खाकर सोने का आदी था। लिफ़ाफ़े को एक ऊब भरे भाव से देखने के बाद उसने पढ़ा कि यह जॉर्जिया से आया था। शायद किसी म्यूज़िक कन्सर्ट में शामिल होने का निमन्त्रण होगा, उसने सोचा, फिर बेदिली के साथ उसने लिफ़ाफ़ा फाड़ा। अन्दर एक दफ़्तरी पैड पर टाइप किया हुआ पत्र था। पत्र का कागज़ हल्के भूरे रंग का और मोटा था। पत्र जॉर्जिया के दूतावास से आया था। अरसलान ने मन ही मन में कहा कि इन दूतावास वालों को भी अब कोई काम ही नहीं रह गया है बस जब देखो सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं। लेकिन जैसे ही उसने पत्र की लाइन पर नज़र डाली, उसकी आँखों की नींद इस तरह दूर हो गयी जैसे किसी शराबी के सिर पर पानी की बाल्टी उलट देने से उसका नशा उतर जाता है।
इबारत कुछ इस प्रकार थीः
‘मिर्ज़ा अरसलान बेग
सुपुत्र मिर्ज़ा ज़ैग़म बेग
जैसा कि आप जानते होंगे कि आपकी तलाक़शुदा पत्नी बर्था रिचर्डसन की मृत्यु आज से दस वर्ष पूर्व 13 नवम्बर, 1961 प्लेग की माहमारी की शिकार होकर हो गयी थी। आप दोनों का विवाह तिबलीसी में हुआ था। सुबह उनके फ़्लैट में इस्लामिक रीति-रिवाजों के अनुसार निकाह पढ़ाया गया। यह निकाह मौलाना जिब्रान ने पढ़ाया था और शाम को सेंट फ्लोरेना गिरजाघर में आपकी शादी कैथोलिक धर्म और क़ानून के अनुसार हुई थी, फ़ादर तूदरोफ़ के द्वारा। अफ़सोस कि ये दोनों लोग अब जीवित नहीं हैं, क्योंकि शादी के सात महीने बाद ही आप दोनों तलाक लेकर अलग हो गये थे और आप भारत वापस आ गये थे, मगर इसके बावजूद आप दोनों का पत्राचार जारी रहा जिसका सिलसिला मैडम बर्था रिचेर्डसन की मृत्यु के बाद ही ख़त्म हुआ। आप दोनों ने तय किया था कि आपका बेटा जैक रिचर्डसन दस साल तक अपनी माँ के साथ रहेगा, जिसके बाद वह आपको सौंप दिया जाएगा। जैक रिचर्डसन का जन्म 30 अप्रैल, 1956 को तिबलीसी के एक निजी नर्सिंग होम में रात के दो बजे हुआ था। मैडम बर्था रिचर्डसन ने अपनी वसीयत में स्पष्ट रूप से लिखा है कि जैक रिचर्डसन को अपनी आयु के दस साल पूरे करने के बाद उनके पिता मिर्ज़ा अरसलान बेग को सौंप दिया जाएगा जो उनके पालन-पोषण और शिक्षा के ज़िम्मेदार होंगे और एक अच्छे और कर्त्तव्यपरायण पिता की हैसियत से अपनी सभी ज़िम्मेदारियाँ निभाने के साथ-साथ बच्चे को पिता की करुणा और प्रेम से भी नवाज़ेंगे। जैसा कि आपको ज्ञात होगा कि मैडम बर्था रिचर्डसन ने अपने पिता डैफ़ोडिल रिचर्डसन की मृत्यु के बाद उनका व्यवसाय पूरी तरह अपने हाथ में ले लिया था। यह कारोबार शराब की आयात पर निर्भर था। मैडम बर्था रिचर्डसन के सिवा डैफ़ोडिल रिचर्डसन का कोई और वारिस नहीं था। मैडम बर्था रिचर्डसन ने अपनी सारी दौलत जिसकी मालियत लगभग एक मिलियन जॉर्जियाई लॉरी है, आधी आपके और आधी आपके बेटे के नाम कर दी है। वसीयतनामा मैडम के सॉलिसिटर माइकल रोबोरियो की देखरेख में तैयार किया गया है। वसीयत की एक प्रति श्री माइकल रोबोरियो के पत्र के साथ आपको शीघ्र ही भेजी जाएगी।
इन मुद्दों की रोशनी में आपसे अनुरोध है कि आप अपने बेटे को जल्द से जल्द अपनी सरपरस्ती में ले लें और तिबलीसी पहुँच कर अन्य कानूनी औपचारिकताओं को पूरा करें। आपको यह सूचना देनी भी ज़रूरी है कि फ़िलहाल जैक रिचर्डसन का तिबलीसी के एक सरकारी संस्थान की देखरेख में पालन-पोषण हो रहा है जो समाजी कल्याण के लिए कार्य करती है। मैडम बर्था रिचर्डसन ने अपनी वसीयत में यह भी लिखा है कि अगर मिर्ज़ा अरसलान बेग जैक का सरनेम रिचर्डसन से बदलकर अरसलान बेग करना चाहें तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी।
आपसे एक बार फिर अनुरोध किया जाता है कि इस सम्बन्ध में जल्द से जल्द कार्यवाही करें और दूतावास से सम्पर्क करें। जॉर्जिया का दूतावास इस सम्बन्ध में सभी प्रकार की सहायता प्रदान करने के लिए तैयार है।
रेग ली जॉन
कानूनी मामलों के अताशी
दूतावास, जॉर्जिया
दिनांक
22 नवम्बर, 1966
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क्या कोई कह सकता है कि कब हमारे हाथ-पाँव फूल जाएँगे, रक्तचाप इतना बढ़ जाएगा कि दिमाग़ की नसें फट जाने की नौबत आ जाएगी, सारा शरीर ठण्डे पसीने से भीग जाएगा और रीढ़ की हड्डी साँप की तरह कुलबुलाने लगेगी।
अरसलान सन्नाटे में आ गया। फर्श पर उसके नंगे पैर अचानक बुरी तरह दुखने लगे। उसे लगा कि वह जैसे फ़र्श पर नहीं बल्कि सुइयों के पहाड़ पर खड़ा है।
लेकिन वह निर्बल पुट्ठों वाला आदमी नहीं था। वह उन लोगों में से था जो हर मुसीबत और आतंक के समय किसी लतीफ़े या मज़ाक़ का आविष्कार कर लेते हैं और कठिन से कठिन वक़्त को यहाँ तक कि मौत को भी टालने की कोशिश करते रहते हैं। वे बहुत तेज़-रफ़्तार जीवन के आदी होते हैं और इसी को सफलता की गारण्टी समझते हैं। उनका जीवन ही नहीं बल्कि उनके सपने भी बहुत तेज़-रफ़्तार होते हैं, मगर वे नहीं जानते कि तेज़-रफ़्तार सपने काग़ज़ की मामूली कतरन की तरह उड़ाते हुए उन्हें मौत के सूखे कुएँ में बहुत जल्द फेंक सकते हैं।
ज़ाहिर है, अरसलान ने यह सब नहीं सोचा। फ़ौरन ही उसने अपनी घबराहट पर काबू पा लिया और अपने उन घनिष्ठ शरारती दोस्तों के बारे में सोचने लगा, जो उसके साथ एक ऐसा मज़ाक़ भी कर सकते थे जिसे ख़तरनाक कहना शायद अभी दूर की कौड़ी लाने के बराबर था। मगर बहुत कोशिश करने के बाद भी वह ऐसे किसी दोस्त का नाम अपने दिमाग़ में तलाश न कर सका। दरअसल एक लम्बे समय से अब ऐसा कोई व्यक्ति इस दुनिया में न था जिसे वह गहरा दोस्त कह सकता था। बचपन के कुछ साथी मर चुके थे और कुछ ऐसे भी थे जो एक दिन अचानक आपको पीठ दिखाकर दूसरे रास्तों पर मुड़ जाते हैं और फिर दिखायी नहीं देते। जिन एक आध दोस्तों से सम्बन्ध था, वह सिर्फ़ साथ में चाय पीने, स्मोकिंग या संगीत सुनने तक ही सीमित था। ये लोग उससे जुड़े तो थे लेकिन कुछ इस तरह जैसे दो आदमी एक दूसरे की पीठ से पीठ मिलकर विपरीत दिशाओं में चलते जा रहे हों। यह एक घनिष्ठ सम्बन्ध होते हुए भी वैराग्य का दूसरा नाम है।
अरसलान ने सोने का इरादा टाल दिया और अब बजाए दोस्तों के अपने कुछ ईर्ष्यालुओं के बारे में सोचने लगा जो उसे तंग करने के लिए यह घिनौनी हरक़त कर सकते थे। मज़ाक या लतीफ़े का स्वभाव अब साजिश में बदल रहा था। ऐसा होता ही है। वस्तुओं का स्वभाव इसी तरह बदलता रहता है और मनुष्य की बुद्धि भी अपनी चेतना की चिकनी ढलान पर पाँव जमाकर खड़ी नहीं हो सकती। जब तक इसके भेजे में सफ़ेद और भूरे रेशे सही मात्रा में मौजूद रहते हैं फिसलते रहना ही उसका भाग्य है।
अरसलान के ईर्ष्यालु लोगों की संख्या अवश्य ही अधिक थी। उन्होंने भारतीय और पश्चिमी संगीत को मिलाकर बहुत से नये प्रयोग किये थे जो बहुत सफल साबित हुए थे। इन प्रयोगों के बारे में सबसे उल्लेखनीय बात यह थी कि दोनों के मूल तत्व एक दूसरे का समर्थन करते या एक दूसरे के पूरक थे और आख़िर तक खुद का प्रतिनिधित्व करते थे। वे सुनने वालों के कानों में लम्बे समय तक स्थान बना लेते थे और उनकी ध्वनियों की लगातार उपस्थिति न केवल कान में रहती बल्कि पंचज्ञानेन्द्रियों की गहराई में भी जगह बना लेती थीं। यह बिल्कुल इसी तरह था जैसे दो शराबों को मिलाकर एक परिष्कृत और अद्भुत कॉकटेल तैयार की जाए जिसके हर घूंट में दोनों शराबों का स्वाद महसूस हो। जीभ की नोक पर एक का और जीभ की जड़ पर दूसरे का, तालू में अंगूर की शराब का और मसूड़ों या जबड़ों में गेहूँ की शराब का।
यदि यह उदाहरण पर्याप्त नहीं है या आसानी से समझ में आने वाला न हो तो यह भी कहा जा सकता है कि अरसलान ने भारतीय और पश्चिमी संगीत को आपस में कुछ इस तरह मिलाने की कोशिश की थी जैसे दो नदियाँ मिलती हैं और उनकी धाराएँ स्पष्ट रूप से अलग-अलग पहचान ली जाती हैं। एक सफ़ेद पानी की धारा है और दूसरी थोड़े हरे रंग की। ये दोनों धाराएँ जहाँ मिलती हैं उसे पवित्र स्थान कहा जाता है। मगर इसका मतलब यह नहीं है कि अरसलान इस तरह का संगीत बनाकर कोई पवित्र कर्तव्य निभा रहा था। दरअसल, ये सब उदाहरण हैं और उदाहरण वास्तविकता की अधूरी व्याख्या ही हो सकते हैं क्योंकि उन्हें शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।
सच्चाई यह है कि भारतीय संगीत में सामंजस्य या अनुपात का कोई स्थान नहीं है (यदि सामंजस्य को शुद्ध संगीत के सन्दर्भ में देखा जाए अन्यथा सामंजस्य तो ज्वालामुखी के दहाने से निकलने वाले धुएँ में भी है और ब्रह्माण्ड में गतिमान सभी ग्रहों की गति में भी)। भारतीय संगीत एक ही मनोदशा पर ध्यान लगाता है। वह एक ही भाव की बार-बार नये सिरे से खोज करता है। उसकी परत-परत को खंगालता और छानबीन करता है। वह राग पर आधारित है और राग हमारी आत्मा में चुपचाप उतर जाता है। राग हमारी आत्मा के सुख और दुख दोनों का पता लगाने वाला है।
पश्चिमी संगीत जैसे-जैसे आगे बढ़ता है, वह मानो एक मूड या भाव को धीरे-धीरे तैयार करता जाता है, इसलिए सामंजस्य के बिना पश्चिमी संगीत आगे नहीं बढ़ सकता। मगर अरसलान इस समय संगीत के बारे में कुछ नहीं सोच सकता। वह अपने ईर्ष्यालु, प्रतिद्वन्द्वियों या शत्रुओं के बारे में सोचते हुए अपनी सारी मानसिक शक्ति को उपयोग में लाने में व्यस्त है और उसे अपने पेट में एक भयानक शून्यता महसूस हो रहा है। ज़्यादातर यही होता है। इंसान अपना अधिकांश समय दूसरे इंसानों के बारे में सोचने में ही व्यतीत करता है। वह चीज़ों के बारे में इतना नहीं सोचता। वह पहाड़, नदी, समुद्र और फूलों के बारे में बस बनावटी बातें करता है, इसके विपरीत एक साँप केवल बिल के बारे में ही सोचता है। नफ़रत, ग़ुस्सा और अफ़सोस बल्कि इसके एक और रूप यानी प्यार भी शामिल कर लीजिए। ये सब इंसान को हर समय जकड़े रहते हैं। क्या कोई यह कह सकता है कि उसे किसी पहाड़ पर बहुत ग़ुस्सा आया हो और जिसकी वजह से उसे दिल का दौरा पड़ गया हो। यह एक बीमारी है, मनुष्य की निर्मिति की एक मूलभूत चूक। जबकि विवेक की माँग है कि इंसान को दूसरे इंसानों के बारे में बीमार होने की हद तक नहीं सोचना चाहिए क्योंकि हर इंसान एक दूसरे के लिए एक अमूर्त नियमों की दूरी पर मुहय्या है। इसलिए, हर मानवीय भावना उस भ्रमित बेहूदे व्याकरण के किसी बेतुके काल में फँसकर रह जाती है, उपहासपूर्ण हद तक।
अरसलान आज से संगीत में एक नया प्रयोग करना चाहता है जो मुश्किल से ही सफल होगा क्योंकि आप हर चीज़ को हर चीज़ में मिला नहीं सकते। आप जैविक और रासायनिक सिद्धान्तों को पूरी तरह से अनदेखा नहीं कर सकते। उदाहरण के लिए यदि आप तली हुई मछली भरपेट खाने के बाद एक गिलास गर्म दूध भी चढ़ा जाएँ तो कुछ ही दिनों बाद आप सफ़ेद त्वचा के रोग से पीड़ित हो सकते हैं और यदि नहीं हुए तो आप इसे अपना सौभाग्य समझ लीजिएगा जो सम्भावनाओं के जटिल और अँधेरे रास्तों से बाहर निकल आने का हुनर जानता है।
दरअसल, अरसलान मोज़ार्ट के सुप्रसिद्ध ओपेरा The Magic Flute में सारंगी और सितार को शामिल करना चाहता है। ओपेरा देवमालाई तत्वों पर आधारित है जिसमें अँधेरी रात की रानी एक राजकुमार से अपनी बेटी (जो राक्षसी शक्तियों से युक्त एक जादूगर के कब्ज़े में है) को शैतानी शक्तियों से छुड़ाने की विनती करती है। यह ओपेरा भयानक ध्वनियों और रहस्यमय संगीत द्वारा तैयार किया गया है और वास्तविकता से ज़्यादा अलौकिकता की व्याख्या करता है।
इसी तरह, अरसलान वेगनर के ओपेरा Ring में भी भारतीय संगीत वाद्ययन्त्रों के इस्तेमाल को आज़माना चाहता है। Ring के पूरे संगीत का ताना-बाना कथन और संवादों से बना है, जिसमें ऑर्केस्ट्रा भी शामिल है। यह भी एक पौराणिक कथा है जिसमें देवता, मनुष्य और बौनों के रूपकों के माध्यम से मानवीय भाव की जाँच-पड़ताल हुई है। हम जानते हैं कि ओपेरा संगीत के माध्यम से कहानी कहना पश्चिमी कला है। उस कला का निर्माण जिन इकाइयों से होता है वह संगीत के सुर हैं जो शब्दों के क़ैदी नहीं और तर्क से मुक्त हैं। इसी तरह संगीत का, ग़ैर-प्रतिनिधि रूप हमारी आत्मा को कुछ-का-कुछ बनाकर रख देती है। यानी संगीत के रूप में एक कहानी उभरने लगे जिस तरह सपने के रूप से ज़िन्दगी की कहानी बदलने लगे।
अरसलान का मानना है कि भारत प्राचीन क़िस्से कहानियों का पालना रहा है और अलौकिक तत्वों ने भारतीय दिमाग़ को आकार दिया है। पश्चिम में ज्ञानोदय के बाद, जिस तरह विवेक और तर्क का चलन फला-फूला है, इसने इस तरह के ओपेराओं को एक उपहासपूर्ण चीज़ बना दिया है, जिससे ज़्यादातर बच्चे ही आनन्द लेते हैं। मनोरंजन का यह शग़ल भी हाल के दिनों में हैरी पॉटर की अपार लोकप्रियता से भी मज़बूत हुआ है। अरसलान के अनुसार यदि इन ओपेराओं में भारतीय संगीत के भावात्मक तत्त्वों का भी सृजन किया जाए तो इन कथाओं में छिपे हुए गूढ़ अस्तित्वगत अर्थ को आसानी के साथ सामने लाया जा सकता है और फिर यह भी है कि ऐसी कोशिश को सांस्कृतिक आदान-प्रदान के उत्कृष्ट आदर्श के रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है जिनमे राजनीतिक आयाम अपने आप सम्मिलित हो जाएगें। लेकिन यह आसान काम नहीं। आखिर पियानो, गिटार, वायलिन और ड्रम की आवाजों के साथ सारंगी, सितार और तबले की आवाज़ें कैसी लगेंगी? सम्भव है कि यह दोग़ली और मिली-जुली नस्ल की उन सब्ज़ियों या फलों की तरह भद्दी, बेढंगी और उपहासपूर्ण लगें, जो कुछ लोग हाथ लगाते हुए भी डरते हैं या उन कुत्तों की तरह जो अपने मिली-जुली नस्ल के होने के कारण इंसानों के प्रति अपनी सारी वफ़ादारियों के बावजूद अपने हिस्से का सम्मान भी नहीं पा सके। जहाँ तक इंसानों का सम्बन्ध है, वे इससे मुक्त हैं। उनके शरीर और शरीरों की तुलना में उनके दिमाग़ अधिक दोग़ले हैं, मगर इससे उनके सम्मान में कमी नहीं आती।
अरसलान इस दोग़ली संगीत की प्रकृति पर विचार कर रहा है और डबल रोटी का एक स्लाइस भी चबा रहा है। यद्यपि उसका दिल अब इन बातों में ज़्यादा लग नहीं रहा। अरसलान के मुँह में बाईं ओर का एक ऊपरी दाँत सड़ रहा है जो स्लाइस चबाते समय दर्द करने लगा है। फिर भी मुँह के अन्दर स्वाद जाग उठे हैं। कभी-कभी कॉफ़ी का एक घूँट, आमलेट का एक टुकड़ा और मसूर की दाल में भिगोया हुआ एक निवाला भी मुँह में एक संगीत रच देता है। जीभ के तल पर ये अज्ञात स्वाद नाचने लगते हैं जिनका साथ निभाने के लिए मुँह से निकलने वाली चपड़-चपड़ की आवाज़ें एक सार्थक और गहरा संगीत बिखेरती रहती हैं। अपरिचित स्वादों के बारे में हम जानते ही कितना हैं?
अरसलान को यह नहीं पता। उसे सिर्फ़ नवम्बर की वह हवाएँ जानती हैं जो उस समय कुछ ज़्यादा ही तेज़ चलना शुरू हो गयी हैं। खिड़कियों के पर्दे ज़ोर-ज़ोर से हिलने लगे हैं। बाहर बहुत धूल उड़ रही है। नवम्बर के ये ईर्ष्यालु झोंके धूल के बारीक और महीन कणों को इतने धीमे और सफ़ाई के साथ अरसलान के वाद्ययन्त्रों पर इकट्ठा करते जा रहे हैं कि किसी को नज़र ही नहीं आ सकते। अरसलान को भी नहीं जो अब खामोशी के साथ टकटकी बाँधे इन वाद्य यन्त्रों को देखता जा रहा है, मगर इन पर जमी हुई महीन धूल उसे नज़र नहीं आ रही।
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लेकिन वह कुछ भी नहीं कर सका। वह तो आज सारंगी को छू भी नहीं सका, जिसका वह विधिपूर्वक हर दिन रियाज़ किया करता था।
दोपहर का भोजन खा लेने के बाद, जो अनचाहे मन से ही खाया गया था, अरसलान जब सोने के लिए तैयारी करने लगा, ठीक उसी वक़्त दरवाज़े पर दस्तक हुई। मिट्टी का वस्त्र पहने, धूल-मिट्टी में अटे हुए डाकिये ने फिर एक ख़ाकी रंग का लिफ़ाफ़ा उसके हाथ में दे दिया। यह लिफ़ाफ़ा पहले वाले लिफ़ाफ़े से ज़्यादा भारी था। डाकिए ने जाने से पहले उसे ऐसे नेत्रों से देखा जो सपने से जागने के बाद होते हैं।
अरसलान ने धड़कते हुए दिल से लिफ़ाफ़ा फाड़ा। उसे एक के बाद कई एक अपच की डकारें आईं।
इस बार पत्र में मैडम बर्था रिचर्डसन के सॉलिसिटर, माइकल रोबोरयू के हस्ताक्षर और एक सौ नव्वे लॉरी के स्टैंप-टिकट के साथ वसीयतनामे की एक फोटोकॉपी भी मौजूद थी। पत्र में अरसलान को यह चेतावनी दी गयी थी कि अगर उसने पन्द्रह दिनों के भीतर कोई जवाबी कार्यवाही नहीं की तो उसके देश के दूतावास को सूचित कर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाही की जा सकती है।
अरसलान की सड़ती हुई बायीं दाढ़ अपना एक अलग ही राग अलापने में व्यस्त थी। उसने लिफ़ाफ़ा बेदिली से मेज़ पर डाल दिया और शीशे के सामने खड़ा हो गया। बायाँ जबड़ा फूला हुआ था, जैसे उसने वहाँ पान दबा रखा हो। वह बहुत ही सफ़ेद और गोरे रंग की खाल का मालिक था। उसकी आँखें बड़ी और कुछ-कुछ औरतों की आँखों की तरह थीं। कलाइयाँ घने बालों से भरी हुई थीं। अरसलान ने अपना चेहरा देखा। उसे कुछ बदला हुआ नज़र आया। मगर फिर उसने सोचा कि चेहरा तो हर समय बदलता रहता है, यद्यपि जीवन भर आईने के सामने खड़े होने के बावजूद इस बदलाव को हरकत में आते हुए नहीं देख सकता, बिल्कुल पृथ्वी के घूमने की तरह, जिसे न तो महसूस किया जा सकता है और न ही उसकी आवाज़ को सुना जा सकता है। वह असल में अपने सूजे हुए जबड़े को देखने के लिए आईने के सामने जा खड़ा हुआ था। उसे अपने चेहरे में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वह ख़ुद को ही निहारने वाले क़िस्म का आदमी न था और न ही ज़्यादा अपने बारे में सोचता था। उसे रात को भरपूर गहरी नींद आती थी। ऐसी बेखबर नींद मानों उसका फिर से जन्म हुआ हो, क्योंकि कुछ याद दिलाने के लिए सपने नहीं थे, या सुबह जागने पर उसे अपने सपने याद नहीं रहते थे। उसका मानना था कि शायद उसे सपने आते ही नहीं थे। सच्ची बात तो यह थी कि सपनों के बारे में उसने दूसरों से ही सुना था, इसलिए वह अक्सर बचपन में सोचा करता था कि क्या सपने में सचमुच कोई शरीर होता है। मगर इस सबके बावजूद अब उसे इस बात को पूरा-पूरा अहसास हो गया था कि सपना तो वह भी देखता ही था। वह बस उन्हें याद नहीं कर पाता था। वे उन भूमिगत खज़ाने की तरह थे जिन तक पहुँचने के लिए अँधेरी रात में ज़मीन की खुदाई करनी पड़ती थी या जैसे पुरातत्वविद ज़मीन में गहरी खुदाई करके उसके अन्दर से एक दबे हुए या डूबे हुए शहर के अवशेषों को निकाल बाहर करते थे।
अरसलान को अपने दिमाग़ के साथ यही करना था और शायद संगीत इस काम में उसका सहायक सिद्ध हो सकता था क्योंकि उसके सुर और कम्पन मन और मस्तिष्क के महीन तन्तुओं तक वैसे ही पहुँच सकते थे जैसे कुदाल और फावड़े ज़मीन के अन्दर मिट्टी की हर तह और इसके अणुओं तक पहुँच जाते हैं। जिस तरह कुदाल किसी पत्थर, मूर्ति या हड्डियों के ढाँचे से टकराकर ध्वनि उत्पन्न करती है, उसी तरह सारंगी या सन्तूर का कोई सुर मस्तिष्क में सफ़ेद रेशों में से गुज़रते हुए किसी एक तन्तु में फँसे हुए किसी प्राचीन स्वप्न से टकराता है और उसे इन अँधेरी गुफाओं से निकाल कर मस्तिष्क की ऊपरी खून से भरी हुई सतह और स्मृति की कगार पर लाकर पटक देता है।
लेकिन दुर्भाग्य से इन पत्रों ने अरसलान की सभी योजनाओं को स्थगित करके रख दिया है। वह मानसिक रूप से न केवल परेशान है, बल्कि अब तो सदमे में भी आ गया है। अब वह इन संकीर्ण सोच वाले ईर्ष्यालु और कायर शत्रुओं की उपेक्षा नहीं कर सकता। उसे अब कुछ करना चाहिए नहीं तो उसका सारा सुकून बर्बाद होकर रह जाएगा।
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अरसलान आज सुबह-सुबह ही बहुत गु़स्से में है। शायद ज़िन्दगी में पहली बार वह बीती रात एक पल को भी नहीं सो सका है। वह अपने अनदेखे शत्रुओं की हड्डियाँ चबा जाना चाहता है जो छुपकर वार कर रहे हैं और उसकी पीठ में छुरा घोंप रहे हैं। इतनी घटिया और गिरी हुई हरकत की किसी से उम्मीद कैसे की जा सकती है और जबकि वह ख़ुद आज तक किसी का दुश्मन नहीं रहा और न ही उसने किसी के लिए कुछ बुरा किया। फिर आखि़र यह हरामी कौन हो सकता है हालाँकि इस बात से कौन अनजान है है कि हरामी के बारे में कोई अन्तिम फ़ैसला नहीं किया जा सकता। कभी-कभी तो हरामी की माँ भी यह नहीं बता सकती कि वह किसकी संतान है और उसने किस नियत समय पर उसके गर्भ में प्रवेश किया है।
अरसलान ग़ुस्से में टहल रहा है और कमरे के फ़र्नीचर से टकरा भी रहा है। वह कभी मेज़ से टकराता है, कभी कुर्सी, कभी पलंग के पाए से और कभी वाद्ययन्त्रों से जो उसके पैर की ठोकर से बेसुरी आवाज़ में बजने लगते हैं। आज हवा बन्द है, सूरज मन्द है, क्योंकि आसमान में बादल छाये हुए हैं। नवम्बर का महीना ऐसा ही होता है। उसके अन्दर निरन्तरता का अभाव है। नवम्बर हमारी खाल पर वैसे ही वार करता है, जैसे अरसलान के अदृश्य शत्रु करते हैं।
यह पहले ही कहा जा चुका है कि अरसलान एक निडर और ताकतवर इंसान है। उसे किसी चीज़ से डराना मुश्किल है। डरने और चिन्तित होने में अन्तर है। वह चिंतित और झल्लाया हुआ अवश्य है मगर भयभीत नहीं है। वह किसी भी चीज़ की इस हद तक परवाह नहीं करता कि अन्ततः वही चीज़ उसे डराने लगे। अरसलान की बलशक्ति मजबूत है और उसने अपनी युवावस्था में मुक्केबाज़ी भी सीखी था। इनकी कलाइयाँ चौड़ी और हथेलियाँ बहुत सख्त होती हैं। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में (जो बनावट में हालाँकि महिलाओं की आँखों की तरह हैं) एक मर्दाना गरिमा और कठोरता की चमक है।
अरसलान टहलते-टहलते रुक गया। उसे लगा जैसे इस तरह टहलने के कारण उसका दाँत हिल रहा है। उसने घड़ी की ओर देखा। दस बज गये थे। अरसलान ने अपना नाश्ता स्थगित कर दिया। अब वह बाथरूम जाएगा, दाढ़ी बनाएगा, नहाएगा और घर से निकल जाएगा। आज दिन में उसे तीन लोगों से मिलना है और जहाँ वह लोग उससे मिलेंगे उसके आसपास बहुत अच्छे रेस्टोरेंट हैं। आज वह साउथ इंडियन रेस्टोरेंट में नाश्ता करेगा। इस बेतुके गु़स्से को काबू में करने के लिए यह सोचना ज़रूरी था।
अरसलान डेंटल चेयर पर भाड़-सा मुँह खोले हुए निश्चल लेटा हुआ है। उसके मुँह में एक तेज़ रोशनी पड़ रही है। एक कटनी रोशनी जो उसके जबड़ों, दाँतों, मसूढ़ों और गले की ग्रन्थियों पर साँप की तरह रेंग रही है।
‘अपना मुँह थोड़ा और खोलिए।’ डॉक्टर कहता है।
‘आ आ’ अरसलान के गले से आवाज़ निकलती है और उसका मुँह बुरी तरह चौड़ा हो जाता है। मुँह में बनने वाली लार को रोकने के लिए उसकी जीभ की जड़ में एक छोटी-सी ट्यूब लगा दी गयी है, जिसकी चुभन से उसका जी मितलाने लगा है।
‘दाँत तो सारे ही सड़ रहे हैं। कहीं गड्ढा है तो कहीं कीड़ा है।’
अरसलान कोई जवाब नहीं देता। पलकें झपकाते हुए डॉक्टर के चेहरे को देखता रहता है जिस पर हरे रंग के कपड़े का मास्क लगा हुआ है। बस डॉक्टर की आँखें नज़र आ रही हैं जो उसके मुँह के अन्दर के दाँतों की जाँच कर रही हैं जैसे फाँसी देने से पहले अपराधी के साथ किया जाता है।
‘आपकी बायीं दाढ़ पूरी तरह से सड़ चुकी है। इसे उखाड़ना होगा नहीं तो यह आगे चलकर खतरनाक हो सकता है। आइए उठ जाइए। पहले कुल्ली कर लीजिए।’ डॉक्टर ने अपने चेहरे से मास्क हटाते हुए कहा।
अरसलान ने इसी तरह कुर्सी पर लेटे-लेटे बायीं ओर झुक कुल्ली की। कुल्ली में कुछ खून के कुछ कण भी शामिल थे जिन्हें अरसलान ने अनदेखा कर दिया।
‘आपको मधुमेह तो नहीं है?’
‘मुझे नहीं पता, मैंने कभी जाँच नहीं करायी।’
‘आपका ब्लड-प्रेशर सामान्य रहता है?’
‘शायद’
‘देखिए मिस्टर अरसलान! आप पचास के ऊपर के हो रहे हैं। यह उम्र बीमारियाँ लगने की उम्र कही जाती है। सबसे पहले आप अपनी शुगर की जाँच कराइए और कल मुझे इसकी रिपोर्ट दिखाइए। हो सके तो किसी अच्छे डॉक्टर से। जी हाँ, अच्छे डॉक्टर से अपना ब्लड-प्रेशर भी नपवाइए, यह ज़रूरी है, नहीं तो दाढ़ निकालते समय जो खून निकलता है उसे रोकना मुश्किल हो जाएगा और अगर शुगर बढ़ी हुई है तो समझ लीजिए कि घाव कभी भरेगा ही नहीं। फ़िलहाल, मैं दर्द की यह दवाइयाँ लिख रहा हूँ।’
अरसलान ने डॉक्टर का नुस्ख़ा अपनी कमीज़ की जेब में रख लिया और उठकर खड़ा हो गया।
‘आजकल आपका कोई कन्सर्ट नहीं हो रहा है।’ डॉक्टर ने कहा। वह अरसलान से परिचित था।
‘नहीं, अभी तो नहीं।’
‘मेरी पत्नी पियानो बहुत अच्छा बजा लेती है।’
‘अच्छा।’
‘मैं भी बाँसुरी बजा लेता हूँ।’
‘अच्छा।’
अरसलान डेंटल क्लिनिक से निकल कर बाहर सड़क पर आ गया है। न जाने कहाँ से एक बहुत पुराने फ़िल्मी गीत की धुन आप ही आप उसके बाएँ कान की गहराइयों में बजने लगी है। वह सोचता है कि दाँत क्यों सड़ जाते हैं और गल जाते हैं और क्या उनके साथ उसी तरह जीवन बिताया नहीं जा सकता जिस तरह सड़े-गले विचारों के साथ लोग जीवन बिताते आये हैं और वह भी बड़े प्रफुल्लता के साथ। वह अपनी सड़ती हुई बाईं दाढ़ में चुपचाप वही गीत गाने लगा जिसकी धुन पहले ही से उसके कानों आकर बैठ गयी थी।
हमेशा धुन पहले आती है, ध्वनि पहले उत्पन्न होती है। शब्द बाद में और अर्थ उसके भी बाद में। इन चीज़ों ने दुनिया का बेड़ा गर्क कर रखा है।
सड़क पर ट्रैफ़िक बहुत ज़्यादा है। इंसानों की एक बड़ी भीड़ है। बहुत चौड़ी सड़क है और लोग उसे पार करने के लिए ऐसे चौकन्ने और होशियार खड़े हैं जैसे वे पुल-सिरात पार करने वाले हों। गाड़ियों के तेज़ हॉर्नों और शोर से उसके कानों के अन्दर बजते हुए पुराने गीत ने दम तोड़ दिया। यह बहुत बड़ा शहर है। आबादी बढ़ती ही जा रही है और यह शहर किसी फ़ाज़िल आँत की तरह फूलता और बड़ा होता जा रहा है।
सामने बच्चों के एक स्कूल की छुट्टी हुई है। बच्चों की बाहर निकलती हुई भीड़ ने अरसलान के मूड को खराब कर दिया। वे चले आ रहे थे। गले में पानी की रंग-बिरंगी बोतलें ल़टकाए, पीठ पर अपने वज़न से ज़्यादा भारी बस्ते लादे हुए और दुनिया के हर सुख-दुख से अनजान, बिना वजह खिलखिलाते और शोर मचाते हुए।
अरसलान को बच्चों में कभी कोई रुचि नहीं रही थी, उसने इन बच्चों को लगभग ग़ुस्से की नज़र से देखा और सोचा, दुनिया बहुत जल्द हानिकारक मूर्खों से असहनीय हद तक भरी जाने के लिए तैयार हो रही है।
अरसलान सड़क पर आगे बढ़ता चला गया। कुछ दूर चलने के बाद वह एक गली में मुड़ गया। इस गली में तरह-तरह के डॉक्टरों के क्लीनिक और हकीमों के मतब थे। इस गली को आमतौर पर हकीमों वाली गली के नाम से जाना जाता था। इसी गली में पहलवानों ने भी अपना डेरा जमा रखा था जो टूटी हुई हड्डियों को बिना प्लास्टर या सर्जरी के जोड़ देने का दावा करते थे। किसी का पैर टूट गया, किसी के दोनों हाथ, किसी की रीढ़ की हड्डी टूटी पड़ी थी और किसी के कूल्हे की हड्डी। इनमें बूढ़े, बच्चे, जवान महिलाएँ और पुरुष लगभग बराबर संख्या में थे। कूल्हे की हड्डी टूटने वालों में अधिकांश वृद्ध लोग ही थे। उनकी हड्डियों पर तेज़ पीले रंग के किसी मलहम का लेप कर दिया गया था और वहाँ दो पतली-पतली लकड़ियाँ बाँध दी गयी थीं। उन पर मक्खियाँ भिनक रही थीं और आवारा कुत्ते बार-बार इस पीले मलहम के लेप को सूँघने के लिए अपनी जीभ निकाले हुए आसपास घूम रहे थे। यहाँ एक अजीब-सा शोर हो रहा था, मानो मधुमक्खियाँ भिनभिना रही हों। दूर-दूर तक बसान्ध-सी फैली हुई थी।
अरसलान बड़ी तेज़ी के साथ आगे बढ़ गया। यह सोचते हुए कि मनुष्य के सारे कष्ट ख़ुद उसके भीतर से ही पैदा होते हैं। उसका शरीर, उसकी त्वचा और उसकी हड्डियाँ ही अचानक उसकी आत्मा के दुश्मन बन जाते हैं। सबसे बढ़कर त्रासदी तो यह उसकी हड्डियाँ तक, जबकि कौन नहीं जानता कि मनुष्य के शरीर के अन्दर उसकी हड्डियों से अधिक टिकाऊ और स्थायी कुछ भी नहीं है। मगर दुर्भाग्य से आदमी की नीयत के बिना ही सपने भी आते हैं और उसकी हड्डियाँ भी टूट जाती हैं, बाद में जिन पर मक्खियाँ भिनकती हैं।
काफ़ी आगे चलकर यह गली एक साफ़-सुथरे स्थान में तब्दील हो गयी। यहाँ बड़े-बड़े डॉक्टरों के खूबसूरत और महँगे क्लीनिक थे और क्लीनिक की खिड़की से एयर कंडीशनर गर्म हवा बाहर फेंक रहे थे। नवम्बर में भी यहाँ एयर कंडीशनर चल रहे थे। बन्द कमरों की गर्म हवा बाहर चली जाती है और वे ठण्डे हो जाते हैं, जैसे किसी के शरीर से जान निकल जाती है तो वह ठण्डा हो जाता है। ये मृत और ठण्डे क्लीनिक थे।
अरसलान ने एक न्यूरोलॉजिस्ट के यहाँ पहुँचकर अपना पर्चा बनवाया। डॉक्टर के कमरे के बाहर बैठकर उसे काफ़ी देर तक इन्तज़ार करना पड़ा। जब उसकी बारी आयी तो उसे अपनी मूर्खता का एहसास हुआ। शायद वह भ्रम का शिकार हो गया है और अकारण ही यहाँ आ गया है मगर अपने अनदेखे शत्रुओं का सामना करने के लिए अपने शरीर और मन की संतोषजनक जाँच, युद्ध में इस्तेमाल होने वाले हथियार से किसी तरह कम नहीं।
रूमाल से अरसलान ने अपने माथे का पसीना पोंछा जो नवम्बर में भी न जाने क्य़ों इधर आ भटका था। मगर एक तो नवम्बर के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है और पसीने के बारे में तो बिल्कुल ही नहीं। पसीना हमेशा रहस्यमय होता है और इसके स्रोत के बारे में अन्दाज़ा नहीं लगाया जा सकता।
‘आपको क्या परेशानी है?’ डॉक्टर ने पूछा, जिसकी आँखें बहुत चमकीली थीं और खोपड़ी बिल्कुल साफ़ और चिकनी।
‘मुझे ऐसा लगता है कि मेरी स्मृति के बीच में कहीं कोई टूट-फूट है, मेरा मतलब है कि दरार है।’ अरसलान ने अपराधियों की तरह जवाब दिया।
‘अभी आपमें मतिभ्रंश या अल्ज़ाइमर की कोई सम्भावना नहीं दिख रही है मगर आपको ऐसा क्यों महसूस होता है?’
‘बस एक एहसास है, बेनाम-सा कि मैं कहीं कुछ भूल गया हूँ। जीवन की कोई ऐसी अवधि जो मुझे अब बिल्कुल याद नहीं जैसे एक द्वीप समुद्र से कटकर अलग हो जाता है।’
डॉक्टर धीरे से मुस्कुराया। ‘मगर यह तो सामान्य बात है। मानवीय मस्तिष्क की प्रकृति और रचना ही ऐसी है कि वह हर चीज़ को हर समय याद नहीं रख सकता। विशेष रूप से कड़वी यादों को तो बिल्कुल नहीं। वह चेतन से अचेतन में धकेल दी जाती है।’
‘मेरा मतलब वह नहीं है।’ अरसलान धीरे से बोला।
‘मैं यह कहना चाह रहा हूँ कि शायद मैं अपनी स्मृति का एक बड़ा हिस्सा खो चुका हूँ और कोशिश करने के बावजूद वह सिरा मेरे हाथ नहीं लगता जिसे थामकर मैं उस अँधेरे द्वीप में उतर सकूँ।’
डॉक्टर फिर हँसने लगा। ‘मैं आपसे परिचित हूँ मिस्टर अरसलान। अब आप शायरी करने लगे हैं। शायद संगीत और कविता का साथ बहुत पुराना है। ऐसा मैंने सुना है। अच्छा यह बताइए आपको रात में नींद आती है या नहीं।’
‘नींद तो मुझे बहुत गहरी आती है। सुबह जागने पर पहले मैं दीवारों और छतों को ध्यान से देखता हूँ कि आखि़र वे हैं क्या बला और कहाँ से प्रकट हो गयी हैं? अपना बिस्तर, तकिया, चादर, सब पल भर में मुझे कभी न देखी हुई चीज़ें लगती हैं और मुझे स्वयं अपने बारे में भी नहीं पता कि मैं कौन हूँ और मेरा नाम क्या है? मगर यह बस एक पल के लिए ही होता है और जैसे ही मेरी नज़र मेरे वाद्ययन्त्रों पर पड़ती है, वैसे ही एक अस्पष्ट-सी लहर, एक धुँधली लकीर की तरह रेंगती हुई मेरे लहराते दिमाग़ और नींद से बोझल आँखों में प्रवेश कर जाती है। यही वह क्षण होता है जब मैं दोबारा इस दुनिया से सम्पर्क बनाता हूँ। मुझे लगता है कि मैं अभी-अभी पैदा हुआ हूँ।’
‘आपको सपने दिखायी नहीं देते?’
‘वही तो... वही तो डॉक्टर! मुझे नहीं पता कि सोते में मुझे भी दूसरों की तरह सपने आते हैं या नहीं।’ अरसलान के लहजे में जोश पैदा हो गया, उसका चेहरा चमकने लगा।
‘आपको कोई सपना याद रहता है या नहीं?’
‘नहीं, कोई सपना याद नहीं रहता। यही मेरी समस्या है मगर कुछ दिनों से संगीत का अभ्यास करते समय मेरे मन में एक रहस्यमयी गुदगुदी होने लगी है, जैसे संगीत का कोई सुर अवचेतन के किसी अँधेरे कोने के पार जाना चाहता हो। वह अँधेरा कोना शायद मेरे सपनों का घर हो।
‘तो मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?’ डॉक्टर ने गम्भीर स्वर में पूछा।
‘आप सी. टी. स्कैन या एमआरआई से मेरे दिमाग की जाँच करा सकते है।’
‘आपके सर में कभी कोई चोट आयी है?’
‘नहीं।’
‘बचपन की कोई चोट, जो सिर में लगी हो?’
‘मुझे नहीं लगता। मुझे याद नहीं।’
‘इधर आप कुछ मानसिक तनाव में तो नहीं हैं?’
अरसलान थोड़ा ठिठका, फिर कहा, ‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। मैं मानसिक तनाव में रहने वाला व्यक्ति नहीं रहा। मुझ पर इस दुनिया के मिथकों का बहुत कम प्रभाव पड़ता है। मैं अपने काम में खोये रहना चाहता हूँ।’
‘इधर कोई और तकलीफ़? मेरा मतलब है कोई बीमारी?’
‘नहीं, बस मेरे मुँह में एक दाँत गल रहा है जिसमें कभी-कभी गम्भीर दर्द हो जाता है। उसे मैं जल्द ही निकलवा कर फेंक दूँगा।’
‘तो फिर हो सकता है कि आपके इस अहसास की वजह यह दाँत ही हो।’ डॉक्टर बोला।
‘मतलब?’
‘मतलब यह कि दाँत के संक्रमण के कारण आपके दिमाग के एक हिस्से में गुदगुदी-सी महसूस होती है।’
‘अजीब बात है’ अरसलान ने अपने कन्धे उचकाए।
‘मतलब है कि दाँत का कीड़ा मस्तिष्क तक पहुँच रहा है।’ वह अनिश्चिता के भाव से हँसा।
‘आश्चर्य की बात नहीं। दाँत के साथ ऐसा ही होता है। मसूड़े की गहराई और दाँत की नलिका के गूदे में अगर सूजन आ जाए तो कन्धे और गर्दन में उसकी दर्दनाक कम्पन महसूस होती है। आदमी के कान या तो बन्द हो जाते हैं या बजने लगते हैं। मानव शरीर के साथ ऐसा ही होता है। हर तार दूसरे तार से एक जटिल गणित की तरह जुड़ा होता है। कुछ नहीं कहा जा सकता कि कहाँ क्या हो जाने पर परिणाम स्वरूप कहीं और क्या रूनुमा हो जाएगा।’
अरसलान अनमने भाव से हँसा।
‘फिर भी अरसलान सर, मेरा मानना है कि सीटी स्कैन या एमआरआई आदि की कोई ज़रूरत नहीं। पहले आप अपना यह सड़ता हुआ दाँत निकलवा लें, उसके बाद भी अगर आपको महसूस होता है कि दिमाग़ के किसी भाग में कुछ चुभ रहा है, झुनझुनाहट हो रही है या गुदगुदी, जो आप कह रहे हैं, तो अवश्य हम ये जाँचें करवाएँगे और देखेंगे कि आगे क्या किया जा सकता है।’ डॉक्टर ने एक लम्बी साँस ली।
‘एक कोई नींद की भी जाँच होती है, मशीन लगाकर’, अरसलान ने बच्चों की तरह कहा।
‘हाँ, पॉलीसोनोग्राफी। मगर वह तब की जाती है जब नींद नहीं आती हो या बार-बार टूट जाती हो और रोगी मधुमेह या हृदय रोग से भी पीड़ित हो। आपकी नींद चिकित्सा विज्ञान के अनुसार इतनी स्वस्थ है कि इसे एक आदर्श नींद कहा जा सकता है।
‘और ऐसा कोई आविष्कार या मशीन’.... अरसलान ने वाक्य अधूरा छोड़ दिया।
‘जी?’
‘मेरा मतलब है जिसके माध्यम से पुराने सपने बाहर आ जाएँ या उनकी जाँच हो सके।’
डॉक्टर हँसने लगे, फिर कहा, ‘मेरा सुझाव है कि आपको किसी मनोचिकित्सक से भी सलाह लेनी चाहिए। इस बिल्डिंग की तीसरी मंजिल पर एक बहुत अच्छे मनोरोग विशेषज्ञ का क्लिनिक है, मैं उसका कार्ड आपको दे रहा हूँ। आप उससे भी मिल सकते हैं।’
अरसलान का चेहरा लाल होने लगा। मनोचिकित्सक का कार्ड हाथ में पकड़ते हुए वह कुर्सी से उठकर बाहर जाने लगा।
‘शुक्रिया डॉक्टर’
डॉक्टर मुस्कुराया और पूछा, ‘आपकी शादी हो गयी है?’
अरसलान ने इस सवाल का जवाब देना ज़रूरी नहीं समझा। वह दरवाज़ा खोलकर बाहर निकलता चला गया।
XXX
अरसलान ने बाहर निकलकर दाएँ-बाएँ कुछ गलियाँ और पार कीं। दोपहर ढल रही थी और हवा में कुछ ऐसी कैफ़ियत थी जो उसके ठण्डा होने से कुछ पहले पैदा हो जाती है। अरसलान ने अपनी कमीज़ की झूलती हुई आस्तीनों के बटन लगाएँ। एक आवारा कुत्ते ने उसे ग़ौर से देखा, फिर एक तरफ मुड़ गया। अरसलान चलता रहा। उसे इस स्थिति पर स्पष्ट रूप से गु़स्सा आ रहा था।
मनोचिकित्सक, हूँह.... इससे अच्छा तो यह है कि मैं किसी आदमख़ोर पशु को अपनी हड्डियाँ चबाने के लिए भेंट कर दूँ। यह कितना शर्मनाक है, भयानक हद तक शर्मनाक।
अरसलान कल्पना भी नहीं कर सकता कि उसकी आत्मा भी बीमार और धूर्त हो सकती है। नहीं, बिल्कुल नहीं, जो कुछ भी दोष पैदा हुआ है वह शरीर ही में है। यह कोई शारीरिक रोग ही है, मस्तिष्क की किसी नस या झिल्ली में आ गयी सूजन। यह सम्भव नहीं कि उसे कोई मानसिक रोग लगने वाला हो, वह मज़बूत स्नायुओं का आदमी है। फालतू और बेतुकी बातें सोच-सोचकर वह कभी भी शिथिलता, उदासी और डिप्रेशन से ग्रस्त नहीं हुआ। और सबसे बढ़कर तो यह कि उसके अन्दर कभी किसी अपराध-बोध या ग्लानि का भाव भी नहीं रहा है। क्योंकि उसने बचपन से लेकर आज तक ऐसा कोई काम नहीं किया जिसके कारण इस प्रकार की भावनाएँ आदमी में पलने लगती हैं। फिर भी यदि वह पाप या दोष की भावना से भ्रमित हो रहा है तो वह उसके शरीर का ही कोई विश्वासघात होगा। उसकी आत्मा का नहीं। वह कदापि किसी दुर्भावनापूर्ण मनोवैज्ञानिक के अश्लील और व्यर्थ सवालों का जवाब देने के लिए तैयार नहीं। यह द्वेषपूर्ण और अत्याचारी मनोवैज्ञानिक इंसानी आत्मा को निर्वस्त्र करके वासना सुख को हासिल करने में दक्षता हासिल कर चुके हैं।
‘नहीं, मेरी आत्मा मेरी निजी भाषा का क़िला है। इस भाषा के अक्षर केवल मैं ही समझ सकता हूँ। इस क़िले की दीवार में मैं खुद सेंध लगाऊँगा। ये मूर्ख मनोवैज्ञानिक किले की बाहरी दीवार तक भी बिना लंगड़ाए चहलक़दमी नहीं कर सकते।’ उसने सोचा।
अरसलान एक बलशाली और साहसी व्यक्ति है और बेहतरीन महान संगीतकार मगर बहुत कम लोग यह जानते हैं कि वह कभी मुक्केबाजी का भी प्रशिक्षण ले चुका है। उसके गालों की हड्डियाँ बहुत चौड़ी हैं। माथा लोहे के टुकड़े जैसा सख्त है और होंठ उभरे-उभरे हैं। यह सच है कि उसकी बायीं दाढ़ सड़ रही है, मगर उसे इसकी कोई खास परवाह नहीं। वह कभी भी किसी भी दिन उसे निकालकर फेंक सकता है।
अरसलान एक वकील के कार्यालय में प्रवेश करता है। वकील उसका पुराना परिचित है और सिविल केस लड़ने के लिए जाना जाता है। इस वकील की मदद से अरसलान ने कई पश्चिमी वाद्ययन्त्रों का आयात करवाया है। अगर वह न होता तो सीमा शुल्क अधिकारियों के जंजाल में बुरी तरह फँसता रहता।
वकील ने अपनी कुर्सी से उठकर गर्मजोशी से अरसलान से हाथ मिलाया।
‘बहुत दिनों बाद दिखे। किसी कार्यक्रम में बाहर गये हुए थे?’
‘नहीं, बस थोड़ा व्यस्त रहा।’
‘अच्छा, कैसे तकलीफ़ की? क्या अमेरिका से किसी गिटार का ऑर्डर दिया है?’ वकील मुस्कुराया।
वकील ने सफ़ेद क़मीज और काला ठण्डा कोट पहन रखा था, क़मीज के कॉलर बर्फ़ की तरह सफ़ेद थे। अरसलान देर तक कॉलरों पर नज़र जमाये रहा, फिर कहाः
‘मैं एक सुझाव लेने आया हूँ।’
‘किस के बारे में?’
‘मेरे कुछ दुश्मन मेरे खि़लाफ़ बहुत गन्दी हरकतों पर उतर आये हैं।’
‘दुश्मन? तुम्हारा कौन दुश्मन हो सकता है अरसलान?’
‘नहीं, इस तरह के दुश्मन नहीं जो तुम समझ रहे हो।’
‘फिर?’
‘वे घटिया और औसत दर्जे के संगीतकार जो मेरी लोकप्रियता से जल-भुनकर क़बाब हुए जा रहे हैं। वे स्वयं एक सही सुर नहीं पैदा कर सकते और न ही किसी राग की बारीकियों को समझ सकते हैं।’ अरसलान ने थके हुए लहज़े में उत्तर दिया।
‘ओह! तो हुआ क्या?’
अरसलान ने पतलून की जेब से निकालकर वह ख़ाकी लिफ़ाफ़ा वकील के सामने मेज़ पर रख दिया।
‘यह क्या है?’
‘पढ़ लो।’
वकील ने लिफ़ाफ़े से चिट्ठी और दूसरे कागज़ात निकाले। पहले उसने उनको ऊपर-ऊपर से सरसरी देखा फिर अपनी आँखों पर पास का चश्मा लगाकर ध्यान से पढ़ने लगा।
अरसलान फिर से उसकी कमीज़ के बर्फ़ जैसे कॉलरों को देखने लगा। उनमें एक अन्जाना आकर्षण था। जैसे बिल्ली की घूरती हुई आँखों में होता है। कब कोई चीज़ किसी और चीज़ से मेल खा जाएगी, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता और यह हर इंसान की आन्तरिक और मानसिक संरचना पर निर्भर करता है।
अरसलान ने आखिरकार कॉलर से अपनी नज़रें हटाकर खिड़की के शीशे से बाहर देखा। दूर आकाश में अनेक कौवे उड़ रहे थे। वे वहाँ नन्ही-नन्ही काले पतंगों की तरह बिखरे हुए दिखायी दे रहे थे।
अरसलान को फ़्रांसीसी ओपेरा में अदा किया जाने वाला एक वाक्यांश याद आयाः
‘स्वर्ग और नरक दोनों के बीच बर्फ़ का एक भयानक समुद्र है जिस पर कौवे, काले तिलों की तरह चिपके हुए हैं
उसने कब से कोई थिएटर नहीं देखा, न ही कोई फ़िल्म। संगीत के किसी कार्यक्रम में भी हिस्सा नहीं लिया। अरसलान ने पछतावे के साथ यह सोचा कि वह यहाँ मूर्खों की तरह सिविल मामलों के एक वकील के सामने बैठा है जो लिफ़ाफ़े से निकले काग़ज़ों के पन्नें पल्टे जा रहा हैं।
अन्त में वकील साहब ने एक लम्बी साँस ली और कुर्सी की पीठ से टिक कर आँखें बन्द कर लीं।
फिर उसने घण्टी बजाकर अपने स्टेनो को बुलाया।
‘दो कप कॉफ़ी और कुछ बिस्कुट के लिए कह दो, और हाँ ! कम से कम एक घण्टे के लिए किसी को अन्दर मत आने देना।’
जब स्टेनो चला गया तो वक़ील ने अरसलान से कहाः
‘देखो अरसलान! यह बहुत गम्भीर मामला है, तुम्हारी शादी?’
‘पूरी दुनिया जानती है कि मैंने शादी नहीं की है।’
‘सम्बन्ध? किसी महिला से?’
‘नहीं, कभी नहीं। आज तक मेरे किसी महिला से शारीरिक सम्बन्ध नहीं रहे।’
‘समझ में नहीं आ रहा है कि क्या किया जाए। ये काग़जात फ़र्ज़ी नहीं हैं और जल्द ही हमारा दूतावास भी इसमें दिलचस्पी लेना शुरू कर देगा। तुम किसी बड़ी मुसीबत में पड़ सकते हो। तुम्हें विश्वास है कि तुम्हारे जीवन में कभी, किसी छोटे से पल के लिए भी कोई महिला नहीं रही है?’
‘मैं कैसे विश्वास दिलाऊँ?’ अरसलान का लहज़ा बेस्वाद हो गया।
‘नहीं मेरा मतलब था कि तुम संगीत के कार्यक्रमों में बारम्बार विदेशों का दौरा करते रहे हो, वहाँ तुम्हारी कोई प्रशंसक...’ वकील कहते-कहते चुप हो गया।
‘नहीं-नहीं। मैं हर जगह बहुत सावधानी बरतता हूँ। किसी महिला को अपने पास भी फटकने नहीं दिया है। और जॉर्जिया मैं कभी गया ही नहीं। तुम मेरा पासपोर्ट देख सकते हो।’ अरसलान ने जल्दी-जल्दी उत्तर दिया।
वकील कुछ देर चुप रहा।
‘अगर आप पुलिस से मदद लेते हो तो और मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। आजकल हवाला और तस्करी से सम्बन्धित जिस किसी पर भी आसानी से आरोप लगाया जा सकता है। तुम्हारा पासपोर्ट कोई मज़बूत सबूत नहीं है। अवैध और आपराधिक गतिविधियाँ मूल पासपोर्ट के ज़रिए नहीं की जाती हैं। पुलिस इस केस को कुछ का कुछ बनाकर दिखा सकती है क्योंकि उसे अपने पेट भरने की चिन्ता है।’
‘हम केस नहीं कर सकते? मानहानि का केस नहीं बनेगा?’ अरसलान ने पूछा।
‘किसके ख़िलाफ़? बर्था रिचर्डसन के ख़िलाफ़? जिसे तुम जानते नहीं, या उसके सॉलिसिटर के खिलाफ़ जो है भी या नहीं, इसके बारे में फैसला कैसे होगा? मुक़दमा दायर करने के लिए नियामक कार्यवाही भी ज़रूरी होती है। दूसरी बात यह कि मीडिया और प्रेस वालों को अगर इस बात की भनक भी लग गयी तो तुम्हारा जीना मुश्किल हो जाएगा और सारे करियर की मिट्टी पलीद होकर रह जाएगी। मुझे तो अभी भी यह सम्भावना लग रही है कि अगर तुम चुप रहे तो शायद अख़बारों में यह लोग इस ख़बर को फैलाना चाहें।’
अरसलान को अचानक ठिठुरन-सी महसूस होने लगी। उसका सिर चकराने लगा। उसे लगा जैसे वह बर्फ़ के समुद्र में डूब रहा है और उसके ऊपर कौवों के झुण्ड मँडरा रहे हैं।
जल्द ही उसने अपने आप को संभाला। वकील उसके चेहरे के बदलते हाव-भाव को ध्यानपूर्वक देख रहा था।
‘क्या हुआ?’
‘कुछ नहीं, यह ! वहाँ उधर ! आसमान में इतने सारे कौवे क्यों उड़ रहे हैं?’
‘ओह ! वह उधर शहर का सबसे बड़ा बूचड़खाना है। नाले के पार, कूड़े के पहाड़ से मिला हुआ। हर समय यहाँ चील कौवे उड़ते रहते हैं। कई बार इधर से गुज़रने वाले विमानों को भी हानि पहुँच चुकी है। अब सरकार इस बूचड़खाने को यहाँ से हटाकर कहीं और स्थानान्तरित करने का सोच रही है मगर कूड़े के पहाड़ को हटाना शायद सम्भव नहीं हो।’
‘जॉर्जिया मैं कभी गया नहीं। मेरे संगीत का भी कोई कंसर्ट वहाँ नहीं हुआ है। मेरे प्रशंसकों के जो पत्र मुझे मिलते है, उनमें से कोई वहाँ का निवासी नहीं है। मेरे विचार में जॉर्जिया में कोई मेरे नाम से परिचित ही नहीं होगा। मैं कैसे मान लूँ कि ये काग़ज़ात असली हैं और जार्जिया से ही मेरे पते पर भेजे गये हैं।’ अरसलान ने बात बदल कर कहा। उसका सिर अभी भी हल्का-सा चकरा रहा था।
‘अरसलान...मैं पिछले तीस साल से इस पेशे में हूँ। असली दस्तावेज़ की सभी बारीकियों और छिपी हुई विशेषताओं से अच्छी तरह वाक़िफ़ हूँ। इसे पहचानने में मेरी आँखें कभी धोखा नहीं खा सकतीं। फ़र्ज़ी दस्तावेज मेरी नज़र से बच नहीं सकते। मैं काग़ज़, काग़ज़ के आकार, सियाही, टाइप किये हुए अक्षरों और उनकी दरमियानी रिक्ति, शैली, वर्तनी, हर चीज़़ से वाक़िफ़ हूँ। मैं उस पूरे सिंडिकेट या माफ़िया से भी वाक़िफ़ हूँ जो गुप्त रूप से इस सिस्टम को चलाता है। उसके हाथ बहुत लम्बे हैं और क़ानून इस वजह से उस तक पहुँच नहीं सकता। मैं यह इसलिए कह रहा हूँ, तुम से क्या छुपाना कि मेरा पेशा ही ऐसा है कि मैं ख़ुद इस सिंडिकेट का आलाए कार बनता रहा हूँ। मगर यक़ीन करो कि ये काग़ज़ात असली हैं। सौ फीसदी असली।’ वकील ने अरसलान की आँखों में आँखें डालकर कहा।
कॉफ़ी के दो कप टेबल पर रख दिये गये हैं। अरसलान ख़ाली-ख़ाली आँखों से वकील का चेहरा देखे जा रहा है। उसकी कमीज़ के कॉलरों की ओर नज़र उठाने की हिम्मत अब इसमें नहीं है।
कॉफ़ी खत्म करके अरसलान उठ गया।
‘मुझे लगता है कि तुम्हें एक बार जॉर्जिया के दूतावास ज़रूर जाना चाहिए और उसके बाद तिबलीसी भी। वहाँ मेरा एक दोस्त है जो शराब का कारोबार करता है। यहूदी नस्ल का है। वह तुम्हारी मदद कर सकता है। मैं तुम्हें उसका पता और फ़ोन नम्बर दे दूँगा।’
‘मुझे लगता है कि ऐसी नौबत नहीं आएगी। शायद मैं कल पुलिस से सम्पर्क करूँगा। जो भी हो, ऐसी धोखाधड़ी का कुछ तो पर्दा खुलेगा!’
‘पुलिस से सम्पर्क करना ग़लत फैसला होगा। मैं पहले ही कह चुका हूँ। तुमने क़ानून का असली चेहरा नहीं देखा। तुम इसे सह नहीं पाओगे। बेहतर यह है कि तुम कुछ दूसरी सम्भावनाओं पर विचार करो और सबसे ज़्यादा तो अपनी स्मृति को टटोलो। वह बहुत ज़रूरी है। हर सुराग़ स्मृति की अँधेरी भूल-भुलैयाँ में ही छिपकर बैठता है। वह सुराग़ नहीं सबूत कहलाता है जो हत्यारे की उंगलियों के निशान की तरह फ़ॉरैन्सिक प्रयोगशाला में अपना चहरा अपने आप पेश कर देता है।’
‘मैं जा रहा हूँ, शायद मैं फिर आऊँ! और हाँ यह बात अपने तक ही सीमित रखना।’ अरसलान ने कहा।
‘यह कहने की ज़रूरत नहीं।’ वकील मुस्कुराया।
बाहर निकलते ही अरसलान ने वकील से कहे हुए अपने अन्तिम वाक्य पर पछतावा महसूस किया क्योंकि इस वाक्य का मतलब यह था कि उसके दिल में डर का पहला कदम पड़ चुका था। अरसलान को हल्का-सा चक्कर आ रहा था मगर जब उसने तेज़-तेज़ चलना शुरू किया तो यह चक्कर धीरे-धीरे ग़ायब हो गया।
अब सूर्य डूब रहा था। पश्चिम में आकाश की लाली देखकर उसे अच्छा नहीं लगा।
अरसलान जानबूझकर अपनी गाड़ी नहीं लाया था और इन जगहों तक पहुँचने के लिए उसने टैक्सी ली थी और फिर पैदल चलता रहा था।
उस समय अरसलान को नहीं पता था कि उसे कहाँ जाना है। वह यूँ ही चलता रहा। लापरवाही में, इधर-उधर गलियाँ और चौराहा पार करता हुआ। उसे ऐसे चलते चले जाना अच्छा लग रहा था। धरती पर उसके पैरों की चाप एक लय में बदलती जा रही थी। एक उदास संगीत उसके पैरों से लिपटा हुआ था। उनके बाएँ कान में एक पुराना फ़िल्मी गीत बज रहा था। सिर के पिछले हिस्से में गुदगुदी हो रही थी और उसके मुँह के अन्दर एक दाँत सड़ रहा था।
यूँ ही चलते-चलते उसने अपने आप को एक लम्बी-चौड़ी सड़क पर पाया।
सड़क पर एक बहुत पुराना सूनापन भटक रहा था। एक उदास और बूढ़े भूत की तरह। सामने वह काला पहाड़ था, कचरे का विकट पहाड़, जिससे मिला हुआ एक गन्दा नाला बह रहा था। डूबते सूरज की किरणें गन्दे नाले के, उस काले पानी में न जाने कहाँ ओझल हो रही थीं ! स्याही, लाली को निगल रही थी। कूड़े के पहाड़ की उस ओर बूचड़खाना था, जिसके सारे खून को इस काले पहाड़ ने पी लिया था। पहाड़ के ऊपर चील और कौवे उड़ रहे थे।
अरसलान कई बार इस सड़क से गुज़रा था और शहर के कचरे से बने इस टीले पर भी उसकी नज़र पड़ती थी, मगर हर बार देखी गयी चीज़ वही नहीं होती जो पहले थी। चीज़ें हमेशा नयी होती हैं। वे कभी पुरानी नहीं होतीं। इन नयी चीज़ो को हम पुरानी नज़रों से देख नहीं सकते। उन्हें देखने के लिए नज़र भी नयी चाहिए।
अरसलान को याद है कि कुछ साल पहले तक यहाँ सिर्फ़ कूड़े का एक छोटा-सा ढेर हुआ करता था। सारे शहर का कूड़ा यहाँ लाकर फेंका जाता था जिस पर आवारा मवेशी और कुत्ते चहलक़दमी करते रहते थे या फिर कूड़ा बीनने वाले ग़रीब बच्चे किसी काम की चीज़ के हाथ लगने की उम्मीद में इस ढेर पर चढ़कर अपने पैरों के पंजे और हाथों की उँगलियाँ ज़ख़्मी कर लेते थे।
पहले कूड़ा इंसान के घर में पैदा होता है, फिर बाहर फेंक दिया जाता है। कचरा मानव के जीते रहने की प्रक्रिया से जुड़ा है। वस्तुतः वह पैदा ही जीवन से होता है। वह ज़मीन पर इकट्ठा होने लगता है और अपनी मात्रा बढ़ाने लगता है। कचरे के काले पहाड़ के सामने खड़े होकर अरसलान ने सोचा कि बिल्कुल ऐसे ही जैसे पृथ्वी की सतह पर मिट्टी और पत्थर जमा होते-होते अपना आयतन बढ़ाते रहते हैं और ऊँचे होते रहते हैं, पहले ढेर, फिर टीला, और फिर एक पहाड़। इस संसार की प्रत्येक वस्तु इसी संसार में संसार के ही द्वारा निर्मित होती है। वह किसी दूसरे ग्रह से यहाँ लाकर नहीं फेंकी जाती।
महिला के गर्भ में किसी शुक्राणु के बीज का कूड़े के एक तुच्छ टुकड़े से ज़्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। फिर वह वहीं पलता रहता है। अपना आकार बढ़ाता रहता है और एक झाड़ू से बाहर निकालकर उसे दुनियाँ के कूड़ेदान में शामिल कर देता है, जहाँ हज़ारों मनुष्य कूड़े का वस्त्र पहने भटक रहे हैं। और कभी-कभी तो बहुत पहले ही माँ के गर्भ से निकालकर रक्त और माँस के इस लोथड़े को वास्तव में इस काले पहाड़ पर फेंक दिया जाता है जहाँ या तो गिद्ध उसे अपनी चोंच में भरकर ले जाएँगे या कुत्ते और सूअर नोच-नोचकर कर खा जाएँगे।
मगर क्या सबको यह पता है कि कूड़े के इस काले विराट पहाड़ में बड़ी क़ीमती वस्तुएँ भी छिपी रहती हैं। जैसे समुद्र अपने अन्दर अनमोल मोती छिपाए रहता है। कूड़े के इस पहाड़ में खज़ाना भी दबा रहता है, गन्दगी भी, हत्या के हथियार भी और वो छिपे हुए सुराग भी जो इंसानों के छिपे हुए पापों की तरह हैं।
अचानक शाम ढल गयी। बढ़ते हुए अँधेरे ने इस गन्दे और भयानक पर्वत को धुँधला कर दिया। अब बस आसमान में इसके किनारे ही दिखायी दे रहे हैं। सुरमई, टेढ़ी-मेढ़ी, ऊँची-नीची रेखाएँ।
यह नहीं मालूम कि वह कब उसके पास खड़ा हो गया है। शायद उसे इस कूड़े के पहाड़ ने ही उगल दिया था।
अरसलान चौंक कर मुड़ा।
वह बहुत उँचे क़द का आदमी है, अरसलान से भी ज़्यादा लम्बा। उसका चेहरा अरसलान को साफ़ दिखायी नहीं दे रहा। यहाँ रोशनी बहुत कम है और सड़कों पर लगे बिजली के खम्भे अभी रोशन नहीं हुए हैं। फिर भी अरसलान यह अनुमान लगा सकता है कि इस व्यक्ति का चेहरा कुछ अजीब और असामान्य है, इसके बावजूद कि उसका चेहरा-मोहरा उसे दिखायी नहीं दे रहा मगर असामान्य चेहरे और उनके रहस्य केवल चहरे-मोहरे या स्वरूप पर निर्भर नहीं होते। ऐसे चेहरों से कुछ और भी झलकता रहता है जिसे आँख देखे या न देखे, दिल अवश्य देख लेता है।
‘यहाँ कुछ नहीं मिलेगा तुम्हें।’ यह एक बहुत भारी आवाज़ थी जैसे किसी ने भारी ढोल पर हाथ मारा हो।
‘तुम कौन हो?’ अरसलान के दाहिने हाथ की मुट्ठी ने पूरी ताक़त के साथ बँधकर एक शक्तिशाली मुक्के का रूप ले लिया।
‘घबराओ मत, मैं कोई लुटेरा नहीं हूँ। मैं तुम्हें जानता हूँ। तुम्हारा नाम अरसलान है।’
‘तुम मुझसे क्या चाहते हो?’
‘शायद तुम्हें मेरी ज़रूरत है।’
‘कैसी ज़रूरत?’
‘न वकील कुछ कर सकता है, न पुलिस और न अदालत। ये सब मूर्खों की औलादें हैं।’
अरसलान मजबूत पुट्ठों का आदमी है, इसमें कोई सन्देह नहीं। वह बिल्कुल नहीं घबराया।
‘तो तुम हो इस साज़िश की जड़, तुम ब्लैकमेलर हों?’ अरसलान ने शान्त स्वर में कहा।
‘नहीं, तुम ग़लत समझ रहे हो। मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ। और याद रखो जनाबे आला कि कूड़े के इस पहाड़ के सामने खड़े होकर अभी तुमको कुछ नहीं मिलने वाला। यह तो सामने है और दिखायी दे रहा है, तुम्हें उन चीज़ां के सामने जाकर खड़ा होना चाहिए जो आसानी से दिखायी नहीं देतीं।’
‘तुम क्या बक रहे हों?’
‘मैं बक नहीं रहा। तुम इस पहाड़ को आसानी से देख सकते हो। इस बहते हुए गन्दे नाले को भी, मगर मुझे लगता है कि तुम्हें कुएँ में झाँकना चाहिए जिसके तल में पानी चुपचाप छुपकर रहता है। वह दिखायी नहीं देता जब तक तुम कुएँ के अन्दर झाँककर न देखो। वहाँ अपना प्रतिबिम्ब देखना चाहिए और कुएँ में मुँह डालकर ज़ोर से चिल्लाना चाहिए। फिर इस चीख की प्रतिध्वनि को बड़े ध्यान से सुनना चाहिए। कुएँ के तल में छुपा हुआ पानी पुराने ईर्ष्यालु स्वप्न की तरह है जो अपने आप सतह पर नहीं आ सकता। उसे ऊपर खींचना पड़ता है और वह कुएँ में लगायी गयी पुकार की प्रतिध्वनि को भिगोकर रख देता है। तुम्हें छुपी हुई चीज़ों पर अपना ध्यान लगाना चाहिए और उनसे सावधान रहना चाहिए।’
‘तुम कौन हो?’
‘मैं एक उचित मुआवज़े के बदले तुम्हें सेवाएँ दे रहा हूँ। तुम मुझ पर विश्वास कर सकते हो।’
‘तुम कौन हो?’
‘मैं कल दोपहर ठीक उस समय जब तुम खाना खाने के बाद, थोड़ा आराम करने का इरादा रखते हो, तुम्हारे घर आऊँगा।’
‘तुम कौन हो?’
‘मैं एक प्राइवेट जासूस हूँ। मेरा नाम तुग़रल है, यहाँ रहा मेरा कार्ड।’
लम्बे आदमी ने एक विजिटिंग कार्ड अरसलान के हाथ में ठूँस दिया।
इससे पहले कि अरसलान कुछ कहता या विरोध करता, वह एक लम्बे साँप की तरह वहाँ से सरक गया। फिर सामने गन्दे नाले के किनारे उसकी परछाईं नज़र आयी। उसके बाद वह ग़ायब हो गया जैसे अँधेरे ने उसे निगल लिया हो।
सड़क पर लगे बिजली के खम्भे रोशन हो गये।
अरसलान हक्का-बक्का कुछ देर तक उसी जगह पर खड़ा रहा। वह उस कार्ड को देखे जा रहा है जिस पर लिखे हुए अक्षर इतने महीन है कि यहाँ नहीं पढ़े जा सकते। मगर अरसलान इन अक्षरों को नहीं पढ़ रहा है। जब हमारे हाथ से किसी बोतल की डाट अचानक फिसलकर नीचे फर्श पर गिर जाती है, फ़र्नीचर के पीछे कहीं छिप जाती है, तो हम कुछ देर तक ङस बोतल को ही हाथ में पकड़े देखते रहते हैं। खाली दिमाग़ होकर, मूर्खों की तरह। कुछ देर बाद ही हम फर्श पर डाट खोजने के लिए नीचे झुकते हैं। अरसलान की स्थिति इसी स्थिति से मिलती-जुलती है।
सपने एक अतिरिक्त जीवन हैं, मगर यह अतिरिक्त जीवन आनन्द से दूर है और अपराध बोध या बुरे विवेक के अलावा और कुछ भी नहीं। अरसलान को लगा कि कोई उसके पीछे नाचता हुआ चल रहा है। कौन है ? यह शरीर ! यदि शरीर नहीं तो नाचता कौन है? भूत भी शरीर को ही नचाता है और अगर भूत नाचता है तो वह भी अपने मरे हुए राख हो गये शरीर की भोंडी नक़ल ही करता है।
आत्मा कितनी भी पवित्र क्यों न हो, शरीर का अंगरखा पहनकर ही आती है। भूत-प्रेत, आत्माएँ, सब उसी शरीर की प्रतियाँ हैं जो कोख के अँधेरों से निकलकर संसार के ओछे, काट खाने वाले प्रकाश में आते ही अपने दुर्भाग्य पर रोया था।
अरसलान ने परवाह नहीं की। उस सड़क पर अक्सर हिजड़े नाचते थे। उसे कोई स्वप्न तो याद नहीं, मगर इतना पता है कि स्वप्न में शरीर तो होता ही है और बिना शरीर की आत्मा स्वप्न में ज़्यादा ही पापी होती होगी, यह कहते हुए वह बाहर निकलता चला गया।

 

 

 


यह अंश ख़ालिद जावेद के नये उपन्यास ‘अरसलान और बहज़ाद’ से लिया गया है। यह उपन्यास उर्दू में प्रकाशित हो चुका है। शीघ्र ही यह हिन्दी में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित होने जा रहा है।

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