08-Jun-2019 12:00 AM
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शेर भी देखा?
बिल्ली देखी कुत्ता देखा
शेर भी तुमने क्या देखा
शेर है जंगल में रहता
चूहा उसके घर का राजा
भूख लगे तो रोता है
मार हिरन को खाता है
मूँछ है उसकी लम्बी-लम्बी
आँख है उसकी नीली-भूरी
रात को चमके जैसे हीरा
दिन में पड़ा लम्बा सोता
शेर से हम भी डरते हैं
दूर से बातें करते हैं
कुत्ता बिल्ली दिल्ली दूर
एक था कुत्ता एक थी बिल्ली
बिल्ली थी वो बड़ी चिबिल्ली
न था वो कुत्ता कम चालाक
सीध्ाी दुम थी भीगी नाक
बचपन ही से दोस्त थे दोनों
खाते-पीते लड़ते खूँ-खूँ
बिल्ली ने दो चूहे पकड़े
कुत्ते ने दो चूजे़ रगड़े
कुत्ते के थे दो लम्बे कान
बिल्ली सब की ख़ाला-जान
चाँद की नाव
चाँद की नाव चली
तारों भरी है नदी
नन्हे मियाँ से कहो
उड़ के चलें
तारों में घूमें फिरें
तारे चुनें
मुटठी भरें
लौट कर जब आएँ तो
अम्मी की गोद भरें
दूध्ा की नहरें चलें
मुन्ने को जब मुन्ना कहो
मुन्ने को जब मुन्ना कहो
मुन्ना कहे
सारस कहो चिडि़या कहो
भालू कहो चीता कहो
चीतल कहो ज़ेबरा कहो
रेशम-से बालों का ढँका
लामा कहो - अच्छा चलो
जि़राफ़ भी कह लो मगर
मुन्ने को मुन्ना मत कहो
मुन्ना बड़ा-सा मर्द है
दुश्मन तो बिलकुल ज़र्द है
फूल मियाँ भी तितली होते
कितना अच्छा होता जो
फूल मियाँ भी तितली होते
घर-घर उड़ते
ख़ुशबू लाते
रंग बिरंगे
हम उन को गुलदान में रखते
और जब उनके जी में आती
उड़ते-उड़ते
अच्छी अप्पी बाजी बी की गोद में आते
ख़ुश्बु लाते
रंग बिरंगे
मामूँ-मामूँ मोटे हो
जूते को क्यूँ छूते हो
मामूँ-मामूँ मोटे हो
कुत्ता-बिल्ली झूठे हो
बिल्ली बोली तोते से
आओ मियाँ जी ध्ाीरे से
ऊपर से नीचे से
जूते को क्यूँ छूते हो
मामूँ-मामूँ मोटे हो
कुत्ता-बिल्ली झूठे हो
तोता बोला ख़ाला बी
अब्बा जी से पूछा भी
होगी अभी भागा दौड़ी
जूते को क्यूँ छूते हो
मामूँ-मामूँ मोटे हो
कुत्ता-बिल्ली झूठे हो
शेर की दुम तो लम्बी है
चच्चा की दाढ़ी छोटी है
मूँछ ज़रा-सी टेढ़ी है
जूते को क्यूँ छूते हो
मामूँ-मामूँ मोटे हो
कुत्ता-बिल्ली झूठे हो
चिडि़या बीबी लड्डू खा
गुडि़या बीबी लट्टू ला
पेड़ पर चढ़ कर मिटठू जा
जूते को क्यूँ छूते हो
मामूँ-मामूँ मोटे हो
कुत्ता-बिल्ली झूठे हा
कोई बात नहीं
दाँत बड़े हों
तो भी कोई बात नहीं
कान खड़े हों
तो भी कोई बात नहीं
डाँट पड़ी हो
तो भी कोई बात नहीं
ध्ाूप कड़ी हो
तो भी कोई बात नहीं
ऊध्ाम बड़ा हो
तो भी कोई बात नहीं
कोई लड़ा हो
तो भी कोई बात नहीं
बच्चों को घर में आने दो
ध्ाूमें उन को मचाने दो
बस भाई सूरज बस
आँखें जब चमकाते हो
जान को बस आ जाते हो
कलियों को भी मुरझाते हो
कितने गन्दे बन जाते हो
बस भाई सूरज बस
कुत्ता कैसा काँप रहा है
जु़बान निकाले हाँफ़ रहा है
साये में ख़ुद को ढाँप रहा है
उसको कितना सताते हो
बस भाई सूरज बस
सरको झुकाये चिडि़याँ सारी
ध्ाूप की मारी डर की मारी
चुपकी बैठीं सब बेचारी
चिडि़यों को ध्ामकाते हो
बस भाई सूरज बस
बादल छाये मेंढक बोले
आम की डाली रिम-झिम डोले
दुनिया सारी आँखें खोले
अब घर क्यों नहीं जाते हो
बस भाई सूरज बस ... !
मोरनामा
इस जंगल में मोर बहुत हैं
नीले पीले चोर बहुत हैं
दिन भर मोरों की झंकार
ऊपर-नीचे चीख़-पुकार
शेर मियाँ को नींद न आयी
लेकर एक लम्बी-सी जमाई
सरको झुकाए चिडि़याँ सारी
लोमड़ी बी से कहलाया
मोरों को किस ने बुलवाया?
मोर तो करते शोर बहुत हैं
इस जंगल में मोर बहुत हैं
नीले पीले चोर बहुत हैं
शैख़ु की सयामी बिल्ली
का सरापा
उजली-उजली मूँछों वाली
कुछ-कुछ भूरी कुछ-कुछ काली
आँख मगर उसकी नीली हैं
तेज़ निहायत चमकीली हैं
कान भी काले मुँह भी काला
आखि़र वो है शेर की ख़ाला
पंजे हैं काली कोयल के रंग
दिल को लुभाते हैं उसके ढंग
हल्का सफ़ेद है उसका माथा
पीठ का रंग है गाढ़ा भूरा
सब में अनोखी फिर भी दुम है
भूरी काली मोटी दुम है
चाल में है वो पी.टी. उषा
हाल है उसका हम तुम जैसा
खेलना खाना काम है उसका
सीमीं सुन लो नाम है उसका
तुम का मतलब हम
एक चूहा एक चुहिया
एक बिल्ला एक बिल्ली
एक कुत्ता एक कुतिया
एक घोड़ा एक गाड़ी
एक थाली एक बैंगन
एक आलू एक शलजम
एक चूड़ी एक कंगन
एक छकड़ा एक टम-टम
एक हाथी एक हथिनी
एक कुरता एक सारी
एक बिन्दी एक नथिनी
एक इंजन एक लारी
सब ने मिल कर दौड़ लगायीं
सब से पहले पहुँचे तुम
तुम का मतलब यानि हम
दौड़ ध्ामाध्ाम दौड़ ध्ामाध्ाम
एक गिलास पानी में
एक गिलास पानी में
तीन नन्हे मेंढक थे
यह न पूछिये साहब
वो कहाँ से आये थे
क्यों गिलास में उनको
घर मिला था रहने को
वह-वा! गिलासों से
मेंढकों को क्या लेना?
हाँ कँवल के तालाबों
होज़ और बाग़ों में
झील और चश्मों में
नन्हे-मुन्ने मेंढक और
उनके बाप, माँ, मामूँ
और सारे घर वाले
हम ने रहते देखे हैं
क्या पता समन्दर में
या किसी कुँए में भी
छुप-छुपा के रहते हों
कूदते उछलते हों
हाँ मगर गिलासों में
कब किसी ने मेंढक को
रहते-सहते देखा है?
यह सवाल तो साहब
हम ज़रूर पूछेंगे
एक गिलास पानी और
तीन-तीन....ऊँह हूँ हूँ
इसमें कोई गड़-बड़ है
सुन तो लीजिए साहब
सब्र कीजिए साहब
इसमें कुछ नहीं गड़-बड़
आप क्यों करें गड़-बड़
एक थे मियाँ तासीन
एक थी उनकी ख़ाला बी
घर में बाग़ था उनके
बाग़ में कँवल तालाब
सुबह को कँवल सारे
खिलखिला कर हँसते थे
दिन में ध्ाूप के मारे
चुप-चाप रहते थे
सरदियों की रातों में
चाँद की किरन पीकर
सारे फूल सोते थे
गर्मियों की शामों में
ठण्डी ओस खा-खा कर
ख़ूब मस्त होते थे
एक दिन का कि़स्सा है
कि़स्सा पूरा सच्चा है
और अम्मी का तासीन
सब से अच्छा बच्चा है
बाग़ में कई मेंढक
घूमने को आ निकले
बाग़, होज़ की ठण्डक
देख कर के सब मेंढक
बोले घर यह अच्छा है
थोड़ा-थोड़ा पक्का है
थोड़ा-थोड़ा कच्चा है
हम यहीं रहेंगे अब
हौज़ में यहीं के अब
घास पत्ती खाएँगे
ख़ूब मौज उड़ाएँगे
छप-छपाक छपछप छप
छप-छपाक छपछप छप
उठीं लहरें पानी में
मौज की रवानी में
मेंढकों ने घर ढूँढा
आयी हौज़ में हल-चल
दिल भी लग गया सब का
कोई तख़्त पर बैठा
रह गया कोई पैदल
शाम को हुआ ऐसा
मेंढकों का टर्राना
बार-बार का चिल्लाना
ध्ाूम-ध्ााम से गाना
सुन के ख़ाला बी बोलीं
इम्तेहान है सर पर
पास इम्तेहाँ कर के
डाॅक्टर बनूँगी मैं
लेकिन पढ़ूँ कैसे
बाग़ में जो मेंढक हैं
इतना शोर करते हैं
लिखते हैं न पढ़ते हैं
रोज़-रोज़ बढ़ते हैं
मुझ को काम करना है
पढ़ने यह नहीं देते
सोने यह नहीं देते
कल में चाक़ू लाऊँगी
ख़ूब तेज़ पतला सा
मेंढकों को मारूँगी
हौज़ से निकालूँगी
कल क्लास में मुझको
चीर-फाड़ करना है
बस उन्हीं को काटूँगी
जान से सबको मारूँगी
यह तो था मगर तासीन
दूर बैठे सुनते थे
अपने दिल में डरते थे
मेंढकों को ख़ाला बी
काट-पीट डालेंगी
बात यह नहीं अच्छी
उन को मैं बचा लूँगा
जेब में छुपा लूँगा
चुपके-से मियाँ तासीन
एक गिलास छोटा सा
लेकर बाग़ में आये
झुक कर हौज़ में लम्बे
चाहा पकड़ेें मेंढक को
फिर कहीं छुपा लेंगे
ख़ाला बी के चाक़ू से
उन का सिर बचा लेंगे
और कुछ न हाथ आया
तीन बच्चे मेंढक के
इस गिलास में लेकिन
कूदते हुए आये
समझे यह नया घर है
अब इसी में रहना है
क्या हुआ जो छोटा है
हम में कौन मोटा है
सब ही दुबले-पतले हैं
मोटे हैं न लम्बे हैं
हम मज़े से रह लेंगे
घर बहुत ही अच्छा है
सर पे छत नहीं तो क्या
खिड़कियाँ हैं शीशे की
ख़ूब ध्ाूप आती है
रात भी अँध्ोरे में
झूमती है गाती है
अब मगर मियाँ तासीन
थक गये थे बेचारे
एक जमुहाई गहरी-सी
ली उन्होंने उसके बाद
हो कर घास पर लम्बे
सो गये शराफ़त से
गहरी नींद ख़र्राटा
ख़र ख़र्र ख़र्र ख़र-ख़र
मेंढकों के बच्चे तीन
उस गिलास में अब तक
घूमते हैं फिरते हैं
हम ने आज ही देखा
फिर तभी जो कहते हैं
एक गिलास पानी में
तीन नन्हे मेंढक हैं
इरम और उसके दादा का कि़स्सा
इरम के दादा हैं तो बहुत ही बूढ़े
लेकिन फिर भी
इरम में उनमें गाढ़ी छनती है
इरम तो है एक दुबली-पतली नन्ही बच्ची
और दादा हैं बिल्कुल खूसट
लेकिन फिर भी
इरम में उनमें गाढ़ी छनती है
बूझो तो ऐसा क्या है
बात यह है मेरे भाई
इरम की बोली मीठी है
इरम बहुत ही हंसमुख और बहुत ही नेक
और चाहने वाली बेटी है
दाँत हैं उसके मोती जैसे
आँखें कोयल जैसी,
गहरी काली और चमकीली
दादा ऐसे कभी न थे
दादा अब खूसट हैं
दादा पहले भी खूसट थे
इरम में उनको अपना बचपन
थोड़ा झलकता लगता है
वह बचपन जो उन्हें नहीं मिला और
इरम कोे उसके अब्बा-अम्मी ने
चमकीली आँखों वाली
साफ़-सफ़ेद झलकते दाँतों वाली
सुबह के फूलों जैसी हँसने वाली
बेटी बना कर रखा है
दादा जी अब सोचते हैं
काश कि मैं भी ऐसा होता
यही है बात कि जिस के बाइस
इरम में उनमें गाढ़ी छनती है
कराची 17 मार्च 2010
यह नज़्म मैंने अपने भांजे मुस्तफ़ा कमाल फ़ारूक़ी
की बेटी इरम के लिए फि़ल-बदीह कही थी।
नीसाँ और तज़मीन के
लिये तीन रूबाइयाँ
तुम ज़ोर से दरवाज़ा कभी भेड़ो मत
हाँ दौड़ो-भागो टेढ़ो-मेढ़ो मत
जंगल का राजा है तुम्हारा है शेर
देखो तो करो सलाम उसे छेड़ो मत
बिल्ली, कुत्ते, शेर कि ख़रगोश के कान
सब में उसने फूँकी क्या मीठी तान
फिर दाँत में डाली सब के नरम ज़बान
सच ही बालो उस पर रखो ईमान
एक भेड़ का बच्चा था गोरा-काला
एक शातिर भेडि़या पुकारा ला-ला
आ दूध्ा तो पी ले तो बच्चे ने कहा
बिल्ली ने भला कब से है चूहा पाला
अब्दुर-रहमान भी है हस्सान का नाम
क़ुदरत से मिले इनको बहुत से इनाम
सूरत के बहुत अच्छे पढ़ने में भी ठीक
जो इनसे मिले चाहे इन्हें सुबह-शाम
कराची 21 मार्च 2010
बड़ी बहन के पौते हस्सान अब्दुर-रहमान के लिए।