'ब्रज ऋतुसंहार' से गुजरते हुए ।
23-Jun-2020 12:00 AM 2354
जब तें रितुराज-समाज रच्‍यौ, तब तें अवली अलि की चहकी।
'ब्रज ऋतुसंहार' से गुजरते हुए ।

भारत ऋतुओं का देश है। वसंत, ग्रीष्‍म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर। सारी ऋतुओं की अपनी खूबियां हैं। कवियों के लिए यों तो बसंत ऋतुराज है। पर वे धुर ग्रीष्‍म में भी अपनी कल्‍पनाओं का चंदोवा तान देते हैं और घोर बारिश में भी कविता के लिए कुछ न कुछ आलंबन और उद्दीपन सहेज लेते हैं। लिहाजा मौसम सबसे पहले किसी को छूता है आंदोलित करता है तो जैसे कवियों को ही। दिनोंदिन ग्‍लोबल वार्मिंग के इस दौर में किसी भी मौसम का अहसास जैसे कुछ अलग सा होता जा रहा है किन्‍तु आज भी ऋतुओं की अनुकूलता पर जैसे मनुष्‍य का चित्‍त गमक उठता है। जैसे मोर मौसम के अनुकूल होते ही पंख पसार कर नाच उठते हैं, धरती पर फुहारें पड़ते ही मृगशिरा की तपन झेलते मन को कुछ राहत मिलती है। बांग्‍ला में वारिश का आनंद अपूर्व है: बृष्‍टि परे टापुर टुपुर कहते ही बरसात का सारा चित्र आंखों के सम्‍मुख खिंच जाता है। शरद की चांदनी का तो कहना ही क्‍या। बरसात के साथ वियोग का भी खासा संबंध रहा है। जहां आधुनिक कविता की एक नायिका कहती है, किसी के प्‍यार का संदेश लेकर आ गए बादल/ तुम्‍हारी आज भी पाती नहीं आई। वहीं ब्रज में भी बारिश का विलास है तो वियोग के पल भी कवियों ने चिह्नित किए हैं। बड़े कवियों के यहां उनकी महाकाव्‍यात्‍मकता में ही ऋतुओं का गान होता है---वह जीवनचर्या का हिस्‍सा होता है।
 
कालिदास के काव्‍यों में यों तो अनेक जगहों पर ऋतुओं का उल्‍लास है, उनका वर्णन है किन्‍तु अलग से ऋतुओं की महिमा के बखान के लिए उन्‍होंने ऋतुसंहार लिखा । ऐसी ही किसी जुनून से प्रेरित होकर लगभग सात दशकों पहले प्रभुदयाल मीतल ने 'ब्रज भाषा साहित्‍य का ऋतुसौंदर्य' नामक ग्रंथ में ब्रज भाषा में लिखे ऋतुपरक काव्‍य का चयन संकलित किया था, उसे रजा फाउंडेशन ने रजा पुस्‍तक माला के अंतर्गत 'ब्रज ऋतुसंहार' नाम से पुनर्प्रकाशित कर हमारे पुरातन आकर ग्रंथों को पुनर्जीवित किया है। हमारी बोलियां कितनी सशक्‍त हैं, इसकी एक झलक ब्रज भाषा में लिखी इन कविताओं को देखकर होता है।
 
इस चयन में केशव, कुंभनदास, विष्‍णुदास, कृष्‍णदास, सूरदास, रसखान, नंदराम, द्विजदेव, सेनापति, ग्‍वाल कवि, गिरिधरदास, नंद दास, देव, बच्‍चूराम, रत्‍नाकर, कवि बेनी, जगन्‍नाथ कविराय, हरीचंद इत्‍यादि अनेक कवियों के पद/कवित्‍त संजोए गए हैं तथा ऋतुओं के वर्णन के माध्‍यम से ब्रज भाषा के काव्‍य सौंदर्य की अनेक भंगिमाएं यहां विद्यमान हैं। जहां इन पदों/कवित्‍त में रीति, रस, ध्‍वनि, वक्रोक्‍ति, पर्यायोक्‍ति, अन्‍योक्‍ति,,अनुप्रास,रूपक,उपमा, उत्प्रेक्षा,श्‍लेष आदि का पूर्ण परिपाक दिखता है ;वहीं सधी हुई कविताई भी । ऋतुओं के सौदर्य को किसी एक बोली में समाहित देखना हो तो ब्रज ऋतुसंहार एक विलक्षण संचयन है। रजा फाउंडेशन को साधुवाद कि उसने अपने समय के मूल्‍यवान किन्‍तु अब तक अनुपलब्‍ध प्रभुदयाल मीतल के इस संकलन का पुनर्प्रकाशन कर ब्रज के उदात्‍त काव्‍य वैभव का पुनर्स्‍मरण कराया है।
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