Home
About
...
SAYED HAIDER RAZA
Awards and Recognitions
Education
Exhibitions
Journey
Social Contributions
About Raza Foundation
Trustees
Raza Chair
Awardees
Artists
Authors
Fellowships
Grants Supports 2011-12
Grants Supports 2012-13
Grants-Supports-2013-14
Grants-Supports-2014-15
Press Coverage
Collaborative Programs
Events
Festival
AVIRAAM
Mahima
Raza Smriti
Raza Utsav
UTTARADHIKAR
Krishna Sobti Shivnath Nidhi
Yuva
Aaj Kavita
Aarambh
Agyeya Memorial Lecture
Andhere Mein Antahkaran
Art Dialogues
Art Matters
Charles Correa Memorial Lecture
DAYA KRISHNA MEMORIAL LECTURE
Exhibitions
Gandhi Matters
Habib Tanvir Memorial Lecture
Kelucharan Mohapatra Memorial Lecture
Kumar Gandharva Memorial Lecture
Mani Kaul Memorial Lecture
Nazdeek
Poetry Reading
Rohini Bhate Dialogues
Sangeet Poornima
V.S Gaitonde Memorial Lecture
Other Events
Every month is full of days and weeks to observe and celebrate.
Monthly Events
Upcoming Events
Video Gallery
Authenticity
Copyright
Publications
SAMAS
SWARMUDRA
AROOP
Raza Catalogue Raisonné
RAZA PUSTAK MALA
SWASTI
RAZA PUSTAKMALA REVIEWS
Supported Publication
OTHER PUBLICATIONS
Exhibition
Contact Us
भारतीयता और अंतरराष्ट्रीय आधुनिकता की जुगलबंदी का कवि
Yogesh Pratap Shekhar
India
28-Jun-2020 12:00 AM
1348
यूरोपीय साहित्य के आलोचकों की किताबें देखने से पता चलता है कि वे दूसरी यूरोपीय भाषाओं के साहित्य से परिचित होते हैं | उदाहरण के लिए यदि आप किसी अंग्रेजी आलोचक की किताब पढ़ें तो पाएँगे कि उस के लेखन में दूसरी यूरोपीय भाषाओं जैसे फ्रांसीसी, जर्मन, स्पेनिश आदि साहित्य के संदर्भ हैं | भारत में ख़ासकर हिंदी में ऐसा नहीं देखा जाता कि किसी आलोचक के लिखे में भारतीय भाषाओं के साहित्य का संदर्भ हो | इस का एक बड़ा कारण यह है कि भारतीय भाषाओं की अनेक श्रेष्ठ कृतियाँ हिंदी में अनूदित नहीं हुई हैं | साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली और भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली ने इस दिशा में सराहनीय काम किया है पर उन के प्रयत्नों की भी सीमा है क्योंकि ये दोनों संस्थाएँ कितना काम कर सकती हैं ! हिंदी की इस कमी की ओर भी रज़ा पुस्तकमाला का ध्यान गया है | इस पुस्तकमाला में भारतीय भाषाओं के श्रेष्ठ लेखकों की रचनाओं के हिंदी अनुवाद भी प्रकाशित किए गए हैं | रज़ा पुस्तकमाला में बँगला कवि शंख घोष, गुजराती लेखक सीतांशु यशश्चन्द्र, मराठी लेखक श्याम मनोहर, उड़िया कवयित्री मोनालिसा जेना आदि की पुस्तकें सुंदर अनुवाद के साथ प्रकाशित हुई हैं | इसी क्रम में मराठी और अंग्रेजी भाषा में लिखने वाले भारत के महत्त्वपूर्ण कवि दिलीप चित्रे की कविताओं के हिंदी अनुवाद दो खंडों में ‘मैजिक मुहल्ला’ नाम से प्रकाशित हुए हैं | उपर्युक्त दोनों खंडों का अनुवाद समकालीन हिंदी कविता के सुपरिचित कवि तुषार धवल ने किया है | तुषार धवल का दिलीप चित्रे के साथ अत्यंत घनिष्ठ संबंध रहा है इसलिए ये अनुवाद आत्मीयता से परिपूर्ण हैं | तुषार जी ने ‘चन्द संस्मरण चन्द शब्द ...’ में दिलीप चित्रे से अपने जुड़ाव, उन की जीवन-दृष्टि और इन अनुवादों के बारे में जो लिखा है उसे पढ़ कर आत्मीयता के एहसास से न केवल मन और आँखें भीगती हैं बल्कि मानवीयता और उस की बेहतरी के संकल्प भी दृढ़ होते हैं | इन सब के साथ साहित्य एवं संस्कृति में विश्वास भी बढ़ता है |
वैसे तो दिलीप चित्रे मूलतः कवि माने जाते हैं पर वे बहुत अच्छे चित्रकार और फिल्म-निर्माता भी रहे हैं | इन संकलनों में भी उन के कुछ चित्र दिए गए हैं पर उन की मूल विधा कविता ही रही है | ऐसा इसलिए कि उन्होंने ही कहा है कि “मैंने चित्रकला, चित्रपट और संगीत की संगति की और उसे अपने भीतर ज़िन्दा रखा | फिर कैमरा मिला और फोटोग्राफी शुरू हुई | इसके बाद सिनेमा का कैमरा हाथ लगा | फ़िल्में बनायीं | जो कुछ हुआ सीखा | लेकिन इन माध्यमों में काम करना ख़र्च के मामले में मेरे बूते के बाहर था, जिसे जुगाड़ कर पाना हर वक़्त सम्भव नहीं रहा | जिस कला ने फ़कीरी में भी सिर्फ़ कागज़ और पेन्सिल की ही सस्ती माँग से साथ दिया वह कविता थी | यही मेरे अच्छे-बुरे दिनों की संगिनी रही | कविता ही मेरे लिए स्वायत्त और स्वावलम्बी साधन बनी | यही मेरे आत्म-शोध का आजीवन संसाधन बनी |” | जीवन से गहन अनुराग और मृत्यु का उत्सुकता एवं तत्परता से स्वागत करने को तैयार रहना उन के लेखन की एक ऐसी विशेषता है जो उन्हें अन्य कवियों से अलग करती है | अनुवादक तुषार जी ने ठीक ही लक्ष्य किया है कि दिलीप चित्रे को ‘मृत्यु का रोमानी’ कवि कहा जाता है | दिलीप जी के लिए कवि-कर्म यों ही कोई चलते-चलाते किया जाने वाला काम नहीं है | उन्होंने तुषार जी को स्पष्ट कहा था कि “Do all it takes to be and remain a poet ; but don’t ever be a Sunday Poet ! A Poet is always Alive and Present, a Poet always “IS” ” इसी तरह उन्होंने यह भी कहा था कि “या तो तुम कवि हो, या नहीं हो | बीच की बात नहीं होती है | इस बात को ईमानदारी से स्वीकार कर लो | ख़ुद भी बचोगे और कविता को भी बचा लोगे | कवि होना एसिड पीना, एसिड जीना और एसिड नहाना होता है और यह हिम्मत माँगता है | एक कवि अपने स्वर, अपने लहजे में अपनी बात कहता है, दूसरों की नहीं | और, कविता निष्कामता में ही जीवित रहती है | यश, पुरस्कार प्रशंसा की इच्छाएँ हत्यारी इच्छाएँ हैं |” उपर्युक्त दोनों उद्धरण हमारे सामने दिलीप चित्रे की कवि-दृष्टि को स्पष्ट करते हैं | इन से यह भी पता चलता है कि यह कवि कितना आधुनिक है ! यथार्थ का कैसा साक्षात्कार यहाँ उपस्थित है ! इसी दृष्टि से जुड़ी इस संकलन के पहले खंड की पहली कविता भी है जो दिलीप जी की वैचारिक भावभूमि को हमारे सामने लाती है | कविता का शीर्षक है --- कवि का काम |
एक कवि का काम हर घण्टे
और भी मुश्किल होता जाता है
तुम्हें लगता है मैंने ख़ुद चुना है
इस पहाड़ को ?
इस तरह के स्वर के साथ
मेरे पास सत्य को भींचे रहने के अलावा
और कोई विकल्प भी नहीं है जब
वास्तविकता ढह रही हो |
चुपचाप मीनारें चरमरा जाती हैं,
सभी ढाँचे गिर कर ध्वस्त हो जाते हैं,
एक नयी कौंध देखने को
मैं फिर से उजड़ जाता हूँ |
यह कोई पहाड़ नहीं है |
यह ख़ुद रोशनी है |
और मैं वह मूर्ख हूँ
जो इस पर चढ़ने की हिम्मत करता है |
दिलीप चित्रे का काव्य-संसार काफ़ी विस्तृत है | वह मुंबई शहर के विविध रूपों से ले कर दुनिया भर तक फैला हुआ है | दिलीप चित्रे ने ख़ुद ही लिखा है कि “मैं बारह वर्ष की उम्र में पहली बार मुम्बई आया | उसके बाद मुम्बई में ही बड़ा हुआ | यह मेरा पसन्दीदा शहर है, इसके गली-कूचों में बहुत घूमा हूँ | जिन बस्तियों में महाराष्ट्रीय मध्यम वर्ग के बच्चे कभी गये तक नहीं होंगे, उन बस्तियों में भी मैं बहुत घूमा हूँ | शहर की भौगोलिक और सामजिक समझ मुझे दारू और चरस के अड्डों पर मिली | इसके अलावा मुझे यह समझ नाते-रिश्तेदारों, मज़दूर कार्यकर्ता मित्रों के साथ यहाँ-वहाँ घूम कर मिली | उसमें भी मेरे मित्र अलग-अलग श्रेणियों के थे |” फिर दिलीप जी पढ़ाई-लिखाई और नौकरी के सिलसिले में बहुत स्थानों पर गए | इन में आईआईटी, मुंबई से लेकर इथियोपिया तक शामिल है | आधुनिक भावबोध को उन्होंने भारतीय और पश्चिमी संदर्भों में सीधे-सीधे समझा था | इसलिए उन की कविताओं में युगीन यथार्थ की तीखी उपस्थिति तो है ही साथ ही उस में चित्रकला, फोटोग्राफी, फिल्म और शास्त्रीय संगीत की भी गहरी अनुगूँजें जगह-जगह सहजता से मिल जाती हैं | इन संकलनों के पहले भाग में संकलित ‘केदार’ और ‘सम्पूर्ण मालकौंस’ कविताएँ देखी जा सकती हैं जो यथार्थ और शास्त्रीय संगीत की जुगलबंदी की सुखद निर्मितियाँ हैं | अकारण नहीं कि ऐसा कवि ही घोषणा कर सकता है कि “कविताएँ जूँ की तरह हैं मेरे बाल में” |
1984 ई. में भोपाल, मध्य प्रदेश में भीषण गैस त्रासदी हुई थी | इस के परिणाम आज तक लोग झेल रहे हैं | इस ने न केवल शारीरिक स्तर पर बल्कि सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी लोगों को बहुत गहरे प्रभावित किया था | दिलीप चित्रे की ‘भोपाल 1984’ विषयक कविताएँ ही ‘मैजिक मुहल्ला’ शृंखला में प्रकाशित हुई हैं इसीलिए हिंदी अनुवाद के इन संकलनों का नाम ‘मैजिक मुहल्ला’ रखा गया है | ‘भोपाल 1984’ विषयक इन कविताओं में ‘सलमा’, ‘रहमान’ और ‘मैं’ नामक चरित्र हैं जो यथार्थ को उधेड़ कर रख देते हैं | इन कविताओं की दूसरी महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि ये कलात्मकता या संवेदनात्मक धरातल पर भी अत्यंत संवेगी और मर्मस्पर्शी हैं | इस शृंखला की ‘शहर में जैसे मुहल्ला’ कविता यहाँ पूरी उद्धृत की जा रही है :
शहर में जैसे मुहल्ला
मुहल्ले में जैसे मकान
मकानों में जैसे खल्वत
वैसे ही दुनिया भर में हम
सभी धर्म ख़त्म होने के बाद
धर्म शुरू होने से पहले
अल्ला का अलौकिक मौन
झरने की कल्पना जैसा
प्रलय की प्रत्याशा सी
हमारी अन्धाधुन्ध भाषा
एक अंतिम विचार
समस्त ज्ञान गँदलाया हुआ
सलमा की हँसी
तूफ़ानों में चमकती बिजली
रहमान की निष्ठा
रिक्त भूगोल
सिर्फ़ मेरे ही प्राण
सिर्फ़ मेरी ही मौत
यहीं मेरी खल्वत
यहीं मेरी जल्वत
सिर्फ़ मेरा ही शरीर
सिर्फ़ मेरा ही भोग
सिर्फ़ मेरा ही विचार
गुप्त और ज़ाहिर
दिलीप चित्रे की कविताओं में प्रेम एक विलक्षण रूप में उपस्थित है | इन में प्रेम की तड़प, लरजिश और शिद्दत के साथ-साथ अकुंठ ऐन्द्रीयता भी है | प्रेम की संवेदना ‘भोपाल 1984’ शृंखला की ही एक कविता है ‘सलमा-6’ में देखी जा सकती है |
वह कैसी थी
कभी जानने नहीं दूँगा यह तुम्हें
उसे रखूँगा
हवा की तरह रहस्यमय
इसी तरह अकुंठ ऐन्द्रीयता संवेदना उदाहरण के लिए ‘भोपाल 1984’ शृंखला की ही एक कविता ‘सलमा की नीली सलवार’ और पहले खंड में संकलित कविता ‘कामोत्तेजक इलाके’ में देखी जा सकती है |
उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट हो गया होगा कि दिलीप चित्रे की कविताएँ न केवल यथार्थ के विविधवर्णी रूप से हमारा साक्षात्कार कराती हैं बल्कि इस की अनेक अनदेखी, अनजानी दुनिया में हमें विश्वास के साथ ले जाती हैं | आधुनिकता की एक बड़ी पहचान यह है कि उस में यथार्थ की पहचान अपने भरोसे की जाती है | यह पूरी प्रक्रिया इन कविताओं में सूक्ष्म रूप से सामने आती है | इन कविताओं की ख़ास बात यह भी है कि ये यथार्थ के इतने क़रीब हो कर भी केवल इसी में सीमित नहीं हैं | कल्पना, प्रेम, स्वप्न, आकांक्षा आदि की भी अत्यंत मार्मिक अभिव्यक्तियाँ इन कविताओं में हैं | दिलीप जी ने अनुवादक तुषार जी से यह कहा था कि “तुम नौजवान लोग हर चीज़ को तर्क से ही क्यों समझना चाहते हो ? तर्क से परे का एक तर्क है, उसे भी समझो |” इस वाक्य से ही आधुनिकता की विशेषता, उस की सीमा और उस सीमा से परे जा कर भी आधुनिक बने रहने की विशिष्टता समझी जा सकती है | “तर्क से परे का एक तर्क” पद इसे हमारे सामने स्पष्ट कर देता है |
दिलीप चित्रे के विविध काव्य-संसार को हिंदी की दुनिया में इतने बृहत्, सुसंपादित और रचनात्मक रूप से लाने के लिए अनुवादक तुषार धवल निश्चय ही धन्यवाद के साथ-साथ कृतज्ञता के भी पात्र हैं | इन अनुवादों को देख कर लगता है कि उन्हें मराठी का और भी श्रेष्ठ साहित्य एवं कविताएँ हिंदी में लाना चाहिए | यह उनकी विशेषज्ञता भी है और इस से अधिक उन की जिम्मेदारी भी |
-योगेश प्रताप शेखर, सहायक प्राध्यापक, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय
«
महाप्राण निराला । गंगाप्रसाद पाण्डेय
Raza Pustakmala Articles
»
मैं सितार में ख्याल गाता हूँ - मिथलेश शरण चौबे
×
© 2025 - All Rights Reserved -
The Raza Foundation
|
Hosted by SysNano Infotech
|
Version Yellow Loop 24.12.01
|
Structured Data Test
|
^
^
×
ASPX:
POST
ALIAS:
bharateeyata-aura-antararashatareeya-adhaunikata-kee-jaugalabandee-ka-kavi
FZF:
FZF
URL:
https://www.therazafoundation.org/bharateeyata-aura-antararashatareeya-adhaunikata-kee-jaugalabandee-ka-kavi
PAGETOP:
ERROR: