दाऊ मदराजी जीवन यदु
12-Dec-2017 05:51 PM 5813

दाऊ मदराजी की छत्तीसगढ़ में देशी-नाट्य ‘नाचा’ को बीसवीं शती के उत्तरार्ध में सशक्त करने में लगभग प्रमुख भूमिका रही है। हबीब तनवीर के ‘नया थियेटर’ के अधिकांश अभिनेता/अभिनेत्री दाऊ मदराजी की नाचा पार्टी से ही आये थे। आज भी उनके प्रति छत्तीसगढ़ और अन्यत्र गहरा सद्भाव और आदर है। यह संस्मरण हमारे विशेष आग्रह पर रायपुर के श्री राजेन्द्र मिश्र (जो स्वयं एक प्रबुद्ध आलोचक हैं) की प्रेरणा से जीवन यदु ने लिखा है।

छत्तिसगढ़ मा ‘नाच या नाचा’ अइसन देखनउक लोक-कला आय, जेला लोक-समाज देखत-देखत जमो रात ला पहा देथे। देखैया के ऊपर रात-जागरन के कोनो निसान नइ मिले। मनखे के मन प्रसन्न रहिथे अउ तन हा उछाहिल। सवाल ये उठथे के आखिर ‘नाच’ मा वो मन ला का मिल जाथे? नाच या नाचा मा जउन बिसय ला लेके नाटक करे जाथय, वोमा जतके हँसी- ठठ्ठा के बात होथे, वोतके ओमा गम्भीर किसम के बात घलो होथे। वो अइसे गम्भीर बात होथे, जउन हा वोकर जिनगी मा रोज घटत रहिथे, वोकर तिर-तखार के समाज हा वोकर प्रभाव मा रहिथे। वोमा एक सच्चाई। नाच मा समय के सचाई ला हँसी-ठठ्ठा के संग नाच-देखैया मन के आगू रखे जाथे, नाटक बना के। ये नाटक ला गम्मत कहे जाथे नाट्य नृत्य, गायन, वादन अउ नाट्य भरतमुनी के कहे अनुसार नाट्य के चारों अंग नाच मा होथे। नाच के बड़े बिसेसता ये होथे के नारी मन के काम बर पुरूष मन नारी के रूप धरके करथे। नाचा के सबले बड़े चिन्हारी ये हे के नाचा के सुरुच मा नारी के रूप धरे पुरूष हा अपन मुड़ी मा एक ठन फुलकँसहा लोटा ला बोह के गाना गावत नाचा के ठौर मा आथे। वो अवाज ला सुनके लोगन मन दुरिहा ले जान लेथे कि साज-परी हा आ गे। माने नाचा हा अब चालू हो गे। परी माने वो पुरूष जउन मन नारी के सेवांगा मा नारी पात्र के काम करथे। इही तरा ले मुख्य पुरूष पात्र ला जोकर कहे जाथे। ये लोक-कला के भाषा ऊपर आने भाषा के असर हा सफा-सफा दिखत हे। फ़ारसी अउ अँगरेजी के प्रभाव हा कला ऊपर समय के परभाव आय। येकर ले ये पता चलथे के ये कला के यात्रा हा कतेक लंबा हे। इही तरा ले कला ऊपर संस्कृति के घलो प्रभाव पड़थे। राजा-रजवाड़ा के दरबारी संस्कृति के प्रभाव ले ये नाचा मा मोजरा शब्द हा घुसरगे। मोजरा शब्द हा मुजरा के बिगड़े रूप आय। नाचा मा परी या नचकारिन (नर्तकी) हा नाचत-नाचत जब रंगीन मिजाज वाला रंगरेला-टूरा मन के भीड़ मा घुसरके नाचे लगथे तब वो टूरा मन नचकारिन ला नोट देथे। अइसन मोजरा हा पहिले नइ रहिस हे। ये ला बने नइ माने जाय। जइसे-जइसे नाचा ऊपर बाज़ार अउ सिनेमा के प्रभाव पड़त जात है। नाचा मा मोजरा के चलन बढ़त जात हे। नाचा के जुन्ना देखैया के आँखी अउ मन मा आजो ये लोककला के उही जुन्ना रूप बसे हे। नाचा के तीसर बड़े बात ये हे के जोकर हा नायक या मुख्य कलाकार होथे। संस्कृत नाटक मा ये हा सहायक कलाकार रहिथे। जोकर के संवाद हा नाचा के परान होथे। येकर व्यंग बान ले कोने नइ बाँचय।
समाज ऊपर अपन प्रभाव डरैया देखनउक लोककला नाचा ला रूप देवैया लोककला के माई-साधक स्व. दाऊ दुलार सिंह के जस हा चारों डहर आज महर-महर करत हवे। आज नाचा के जउन रूप हमला दिखथे, वोमा वोकर कतका तियाग अउ तपस्या लुकाय हे ये बात हा कला के इतिहास मा आजो जगर-मगर करते हे।
कहुँ लोक नाट्य नाचा या नाच हा अपन सम्पूरन सुन्दरइ के संग मनखे रूप धरके समुहे ठाड़ हो जाय तो वो रूप हा दाऊ दुलार सिंह के होही। ये लोककला के पुजारी ला बहुत कम मनखे मन वोकर असली नाँव ले सुरता करथे। वोला वोकर घरू नाँव ले जादा मनखे मन जानथे। वोकर घरू नाँव रहिसे हे- मदराजी छत्तिसगढ़ के लोक-संस्कृति मा घर के अउ पारा-परोस के भौजी अउ काकी मन लइका के असली नाँव लेके हूँत नइ करयँ। इही तरा ले घर के सियान मन घलो नान्हें लइका के नाँव धरे मा मजा लेथे। नान्हें लइका मन के आने-आने नाँव धरके वोमन हँसी-ठठ्ठा करथे। बताय ये जाथे के दाऊ दुलार सिंह हा अपन ननपन मा बड़े पेट वाला लइका रहिस हे अउ वइसने किसम एक मुरती अँगना के तुलसी चौरा मा घलो माड़े रहिस हे। एकरे सेती घर के सियान मन वोला मदरासी कहिके बलायँ परोस के काकी अउ भौजी मन घलो उही नाँव ला धरलिन। अब वो लइका के नाँव धरागे मदरासी गाँव भर मा उही नाँव हा चलागन मा आगे। तिर-तखार के गाँव वाला मन घलो मालगुजार के लइका ला मदरासी दाऊ कहे लागिन। दाऊ शब्द हा आदर वाला शब्द आय। मालगुजार के लइका हा आदर पाय के हक रखत रहिस हे मालगुजार के जमाना मा। मदरासी माने मद्रास के रहवइया मनखे। ये मदरासी नाँव जादा दिन ले वइसनेच नइ रहि सकिय। मनखे मन मुखसुखता नियम के अनुसार शब्द ला वोकर मुलरूप मा नइ रहन दें। वोला बिगाड़ डारथे। इही कारन मदरासी हा बिगड़त-बिगड़त ‘मदराजी’ होगे। लोककला नाचा के दुनिया मा इही बिगड़े नाँव हा आज अमर हे। मदराजी के दाऊ शब्द हा जुरे रहिगे। दाऊ माने बड़े जमीन-जयदाद वाला मनखे। पर मदराजी दाऊ लोककला नाचा के घलो दाऊ रहिस हे। वोहा जनम अउ करम दुनो ले दाऊ रहिस, येमा दू मत नइ हो सकय। काबर के वोहा नाचा कला ला मान देवाय खातिर अपन सब धन-दौलत, जमीन-जयदाद ला खुवार कर दिस, तभो वो दाऊ के दाऊ रहिगे। वोकर दाऊ होय मा संखा नइये। पहली धन-दोगानी के दाऊ अउ बाद मा नाचा कला के दाऊ।
मदराजी दाऊ के बारे में लेखक कुबेर हा विचार-बीथी पत्रिका के अगस्त 2011 वाला अंक मा लिखे हे- ‘मदराजी दाऊ के जन्म एक अपै्रल 1911 ई. में राजनांदगांव ले सात किलो मीटर दुरिहा रवेली गाँव के सम्पन्न मालगुजार परिवार म होय रिहिस। पिता के नाँव श्री रामाधीन साव अउ माता जी के नाँव श्रीमती रेवती बाई साव रिहिस। इखर प्राथमिक शिक्षा कन्हारपुरी मा होइस। बचपनेच ले इखर रुचि गाना-बजाना मा रिहिस। कहावत हे- होनहार बिरवान के होत चिकने पात गाँव म कुछ लोक कलाकार रिहिन। इखरे संगत म पड़के बचपनेच म ये मन तबला अउ चिकारा बजाय बर सीखगें। वो समय इहाँ हारमोनियम के नामो निसान नइ रिहिस।’ नाचा पार्टी मा हारमोनियम हा मदराजी दाऊ के देनगी आय। वोहा नाचा मा कई ठन चीज ला सुरू करे हे। नाचा के रूप ला बदले बर वोहा नवा चीज ला डारत गिस। पन यहू धियान रखिस के नाचा हा लोक -समाज ले दुरिहा झन जावन पाय। माने पाँव ला अपन जमीन म रखके अगास ला छुए जा सकत है - ये सिखाइस मदराजी दारू हा।
कला के रसदा हा बड़ काँटा-खुँटी वाला होथे, बड़ उबड़-खाबड़ होथे। कोनेा सीधा रसदा हा कला के पहाड़ मा नइ चढ़े। जउन ला ये पहाड़ मा चढ़ना हे, वोला अपन मन अउ हिरदे ला टाँठ करे बर परही। मन मा एक ठन सुर रहे कि मोला वो पहाड़ फपर चढ़ना हे, चाहे कोनो कुछ कहय अउ कुछ समझे। एकं जीयत उदाहरन मयँ हा आजो देखत हवँ। एक झन सेवक नाँव के जवान लइका हे। बर-बिहाव होगे हे। एक झन 5-7 साल के लइका घलो हे। वोहा एक ठन नाचा-पार्टी मा नचकारिन (परी-नर्तकी) बनके नाचथे। चुँदी ला घलो बढ़ा डारे हे माई-लोगन कस। वोहा तिर के गाँव ले रोज दूध बेचे बर आथे। मोरो घर लाथे बँधौरा दूध। मोर घरले महिना मा पइसा पाथे। जेन दिन वोहा नइ आय, मयँ जान लेथों के वोहा कहूँ नाचा-पेखन मा चल दे होही। वोकर महतारी हा दूध ला के पहुँचाथे। वो जब आथे मोला ज़रूर कहिथे- ‘भइया ये लइका ला थोरिक समझा देते। नाचा पेखन मा जादा धियान झन देतिस। काम के बड़ हरजा होथे।’ मयँ वोकर महतारी ला कहिथो- ‘तयँ अपन लइका ला काबर नइ समझावस।’ वोकर महतारी कहिथे- ‘‘मयँ तो समझावत-समझावत थक गेव हवँ।’ एक दिन मयँ वो लइका ला केहेवँ- ‘कस रे सेवक तयँ जवान लइका अस तोर महतारी अब सियान हो गे हे। तयँ हा नाचा-पेखन करबे त घर कइसे चलही?’ सेवक कहिस- ‘घर तो चलत हे दादा। घर ला वोकर बहू अउ नाती हा चलावत हे। मोला नाचा के सौख हे। अपन सौख ला मयँ पूरा नइ करहूँ को कइसे बनही?’’मयँ समझ गेंव के वोहा अपन नाचा-पेखन के सौख के आगू ककरो समझना ल नि माने। दारू दुलार सिंह के आगू घलो इहिच संकट रहिस हे।
जेन लइका हा मालगुजार के घर फूले-फूल मा पले हे, वो लइका हा कला के काँटा- खुँटी वाला रसदा मा रेंगे बर तियार हे- ये बात ला मालगुजार बाप कइसे मान जतिस? गाँव मा कोनो गवैया-बजैया के संग उठे-बइठे, मिले-जुले बर मना करिस समझाइस घलो होही। पन जेला गाय-बजाय के चट लग गे हे, वोहा कहाँ मानतिस? बाप के कहना ला धियान नइ दिस। लइका दुलार सिंह के मुड़ी ऊपर नाचा अउ गाय-बजाय के भूत चढ़हे रहय। वोला उतारे खातिर कोनेा बइगा-गुनिया के झार-फूँक, मंतर-तंतर काम नइ आइस।
मालगुजार रामाधीन साव के मन रहिस के बेटा हा मालगुजार सही अपन मालगुजारी ला सम्हारे, नौकर-चाक मन ला बूता तियारे, अपन जमीन-जयदाद के देखरेख करे अउ मालगुजार सही आराम के जिनगी जिए। पन जे मनखे हा सुर अउ ताल के चद्दर अउ मुड़ेसा (तकिया) लगाके साथे-जागथे, वोहा धन दौलत अउ मालगुजारी-टेस के मुड़ेसा लगाके कइसे सो सकत हे? बाप ला लगिस के बेटा हाथ ले निकले चाहत हे, तब लड़का ला फिर से लाइन मा लाय बर वोकर बिहाव करे के सोचिस। वो समय मा ननपन के बिहाव के समाज मा चलन रहिस। बाप हा दुलार सिंह के धियान ला नाचा-पेखन कोती ले हटाय बर अउ घर संसार के माया मोह मा फँदोय बर वोकर बिहाव ला राम्हिन बाई नाव के सुन्दर कन्या लेकर दिस। वो समय दुलार सिंह के उमर हा चउदा (14) बरिस के रहय। चउदा बरिस के उमर हा कोनो समझदारी के उमर नइ होय। ऊपर ले गाना-बजाना के निसा। वोला संगीत के दुनिया मा चौबिस घंटा घूमे-फिरे मा जादा अनंद आय। ये निसा हा बड़े निसा होथे। बिहाव बाद घलों वोहा अपन गवइ-बजई अउ नचई-कुदइ नइ छोड़िस।
धीरे-धीरे दाऊ दुलारसिंह के नाँव चारों कोती बगरे लगिस। दुरिहा-दुरिहा ले वोकर बर नेवता के पाती आये ला सुरू होगे। वोकर नाच-पारटी के चारों कोती धूम मचगे। इही समय वोकर जिनगी मा अइसे घटना घटिस, जेकर ले वोकर नाचा-कला खातिर देवानगी ला समझे जा सकत हे। अपन घर परिवार ला वोहा मया करत रहिस हे। ये बात ला लेखक कुबेर हा अपन एक ठन लेख मा लिखे हे- ‘एक समय वोहा नाचा बर नरियर झोंक डरे रहय। घर म बेटा बीमार पड़े रहय। भगवान ला परछो लेना रिहिस। विही दिन बीमार बेटा के सांस टूटगे। पुत्र-सोग ले बढ़के दुनिया म अउ कोनो दुख नइ होवय, फेर वो तो रिहिस हे ए युग के राजा जनक वीतगारी। बेटा के लहस ला छोड़ के पहूँच गे नाचा के मंच मा। रात भर नाचा होइस। देखइया मन रात भर मजा लूटिस। मदराजी के मन के दुख ल कोई नइ जान सकिन, न देखइया मन, न संगवारी कलाकार मन। बिहनिया नाचा खतम होइस। मदराजी के आंखी ले तरतर-तरतर आंसू बोहाय लगिस। संगवारी मन चकरित होगे।’ जन कोनो भी कला खातिर अइसन किसम के देवानगी कलाकार के मन-हिरदे मा समाथे, तब वो कलाकार बर कला हा घलो अपन हिरदे ला खोल देथे। मदराजी नाच-पार्टी हा रवेली के नाचा पारटी के नाँव हा आज लोककला के इतिहास मा लिखा गे हे, वोकर पाछू ये हा बड़े कारन आय।
सन् 1927.28 में दाऊ जी हा एक संगठित नाच पार्टी बनाइस। येकर पहली कोनो नाच-पार्टी नइ रहिस। गाँव-गाँव मा कलाकार मन बगरे रहयँ। जब कोनो कार्यक्रम होय तब वोमन ला नेवता के नरियर दे के बला ले जाये। वोमन तब पार्ट-टाइम वाला कलाकार रहिन। मदराजी दाऊ हा वोमन ला संघेर के एक संगठन के रूप देइस। पहली बार रवेली नाच पार्टी पाँच कलाकार के संगठन बनिस। येमा नारद निर्मलकार मुंडरदेही, सुकालू ठाकुर भर्रीटोला, नोहरदास खेरथा, राम गुलाल निर्मलकार कन्हारपुरी अउ पाँचवा कलाकार स्वयं दाऊ मदराजी रहिस हे। ये पार्टी मा नारद निर्मलकार हा परी (नर्तकी) बने, सुकलू ठाकुर हा जोकर बनके गम्मत करे, नोहरदास हा घलो गम्मत वाला रहिस हे। रामगुलाल निर्मलकार हा तबला बजाय अउ दाऊ मदराजी हा चिकारा मा सुर ला साधे। जब नाच-पार्टी बनगे तब आने-आने कलाकार मन घलो जुरे लगिन। दाऊ मदराजी हा अपन साथी कलाकार मन ला अपन परिवार के मनखे बरोबर मया करे, वोकर सुख-दुख के फिकर करे। नाचा-गम्मत के कोनो संगठित पार्टी बनाना- छत्तिसगढ़ी लोककला के दुनिया मा गजब बड़े बात आय। ये काम ला वो तब करिस, जब वोहा सिरिफ 17-18 बरिस के रहिस। रवेली नाच-पार्टी ला देखके कई ठन नाच-पार्टी बने लगिन। खेली नाच पार्टी मा बड़े-बड़े कलाकार मन आगू-पाछू जुरते गिन। काबर के दाऊ मदराजी के रवेली वाला नाचा ले जुरे के मतलब रहिस हे लोककला नाचा के एक बड़े अउ समाज ला झकझोर के जगवैया परिवार ले जुर जाना। कई ठन पुरस्कार अउ सम्मान पवैया नामी नाचा-कलाकार मदन निषाद हा डॉ. महावीर अग्रवाल संग गोठियाय रहिस हे- अब रवेली साज के नाचा सपना होगे। सपना एकर सेती होगे, काबर के अब वो परिवार सही मया कहूं नइ मिले।
मदराजी दाऊ अइसन कल्पनाशील कलाकार हा कोनो भी कला ला जरमूर ले बदल सकत हे। वोहा नाचा-कला ला समाज मा आदर-मान देवाय खातिर पहली नाचा के रूप ला बदलिस। रूप घलो हा मान देवाय मा मददगार होथे। पहली नाचा के खड़े-साज रूप हा समाज के मनोरंजन करे, पन वोमा जमो कलाकार मन खड़े-खड़े अपन कलाकारी देखायँ। उहाँ बइठे के कोनो व्यवस्था नइ रहय गवैया-बजैया बर। ये हा बड़े अलकर काम रहिस। सबले पहली मदराजी दाऊ गवैया-बजैया कलाकार बर बाजवट (तखत) लगवाइस। कलाकार मन बाजवट मा बइठ के गाय-बजाय लगिन। बाजवट के ऊपर चँदोवा ताने जाय लगिस। अब नाचा हा मंच वाला साज के रूप धर लिस। खड़े साज के नाचा मा मशाल जला के अँजोर करे जाय। परी (नर्तकी) जब नाचे तब मशाल वाल हा परी के आगू-आगू मशाल ला धरके जाय। मदराजी दाऊ हा अब मंच ला अँजोर करे बर पेट्रोमैक्स (गैसबत्ती) के शुरूआत करिस सन् 1930 मा पहली बार नाचा के मंच मा चिकारा के जघा हारमोनियम के सुर हा सुनाइस येला छत्त्सिगढ़ के गाँ मा पेटी बाजा कहयँ। ये पेटी बाजा दाऊ मदराजी हा कलकत्ता जाके लाय रहिस हे। जब नाचा के रंग-रूप बदलगे, तब नाचा के उद्देश्य ला घलो बदले के उदिम करिस दाऊ हा।
नाचा के उद्देश्य का हे? अउ का होना चाहिए? ये बड़े सवाल रहिस हे दाऊ मदराजी के आगू। नाचा के उद्देश्य मनोरंजन के संगे-संग समाज-सुधार अउ समाज ला जगाय के घलो होना चाहिए। कला के दखल राजनीति अउ धरम मा घलो होना चाहिए। मदराजी दाऊ देखिस के धरम के नाँव मा कईठन कुरीत हा घलो अमागे हे। वोला हटाय के उदिम करना घलो कला के काम आय। वो समय मा देश हा अँगरेज मन के गुलाम रहय। गाँधी जी हा देस ला आजाद कराय बर आन्दोलन करत रहय। येकर परभाव हा देस के जवान लइका ऊपर जादा परत रहिस हे। मदराजी दाऊ हा अपन गम्मत के विसय ला बदल दिस। जेमा मनोरंजन अउ सिखावन दुनो रहयँ। डॉ. महावीर अग्रवाल (सं. सापेक्ष) ले बातचीत मा दाऊ मदराजी हा बताय रहिस के वोहा कइसन-कइसन गम्मत नाचा मा करत रहिस हे। एक गम्मत के नाँव रहिस हे ‘मेहतरिन’। इही गम्मत स्व. हबीब तनवीर के पार्टी हा बहुत बाद मा खेलिस। रवेली साज के कई झन कलाकार मन स्व. हबीब तनवीर के संग जुर गे रहिन हे। वो मन करे ये गम्मत ला ‘पोंगा पंडित’ के नाँव मा। ये गम्मत मा छुआछूत के कुरीत फपर चोट करे गे हे। ‘इरानी’ गम्मत मा हिन्दु-मुसलमान के एकता ऊपर बात करे गे रिहिस। एक ठन गम्मत छत्तिसगढ़ मा बड़ नाँव कमइस- ‘मोर नाँव दमाद मोर गाँव के नाँव ससुराल।’ ये गम्मत ला दाऊ मदराजी के रवेली-साज हा बहुत पहली ‘बुढुवा बिहाव’ के नाँ ले खेले रहिस। येमा बाल-विवाह अउ बड़े उमर वाले मनखे के बिहाव ऊपर चोट करे गे हे। कहे के मतलब हे, दाऊजी जमो गम्मत हा समाज मा घटत घटना-दुर्घटना के दरपन रहिन हें।
रवेली साज ला देखे बर जउन मनखे बइठ जायँ, वोमन रात-भर अपन जघा ले नइ उठें। बताय जाथे के एक बार रायपुर मा दाऊ मदरा जी के रवेली साज के कार्यक्रम होइस, वोहा सरलग डेढ़ महिना ले चलिस। मनखे मन रात-रात भर नाचा देखें। सिनेमा देखे ला भुलागे देखैया मन। टाकिज मन ला बन्द करे बर परगे।
दाऊ मदराजी के गम्मत मा अइसे संवाद घलो रहय, जेहा अँगरेजी सरकार के विरोध मा जाय अउ आजादी बर लड़ैया मन के तारीफ मा। येकरे कारन सरकार हा वोकर साज ऊपर बंधेज (प्रतिबंध) घलो लगा दे। कला के ताकत ला सरकार हा समझत रहिस हे। मोर बिचार ले दाऊ मदराजी हा पहली लोककलाकार हे, जउन हा छत्तिसगढ़ मा अपन कला ला बिदेसी सरकार के बिरोध मा औजार बनाके जनता ला जगाय के काम करिस।
छत्तिसगढ़ के नाचा के बड़े कलाकार मन के बिचार हा दाऊ मदराजी बर बड़ मया वाला रहिस हे अउ आजो हवे। हबीब तनवीर के संग काम करैया फिदा बाई मरकाम कहिथे के मयँ हा मदराजी दाऊ ले बड़ सीखे हवँ। झुमुकदास बघेल कहिथे के मयँ हा दाऊ जी ला नाचा के धारण (आधार) मानथवँ। परदेसी राम बेलचंदन कहिथे के दाऊ जी संग काम करइ ला मोर गाँव वाला मन बने कहयँ। जतका बड़े कलाकार नाचा के माने जाथें, वोमन कभू-न कभू दाऊ मदराजी के रवेली साज या कहे रवेली-रिंगनी साज मा नाचा गम्मत के काम करे हें मदन निषाद, लालूराम, ठाकुर राम, बाबूदास, भुलवाराम, परदेसी राम, फिदाबाई, गोविन्द, राम निर्मलकर आदि अइसन कलाकार आयँ, जेकर ऊपर रवेली-साज के असर सदा बने रहिस।
दाऊ दुलार सिंह मदराजी दाऊ अइसे मालगुजार रहिस, जेन हा लोककला नाचा के बिकास बर अपन माल ला गुजारत गिस। वोहा कला पाछू माल कमैया मालगुजार नइ रहिस। कला ला कमई के जरिया बनैया कलाकार नइ रहिस। वोहा अपन कला ला देवता-धामी कर मानिस अउ वोकर पूजा करिस। वोकर बिकास बर धन-दौलत ला फूँक दिस अइसन मनखे अब खोजे मा नइ मिले। अइसन कला के महान पुजारी हा सन् 1984 के दिन ये दुनिया ले बिदा होगे। जब वो दुनिया ले बिदा होइस तब वो सौ एकड़ के मालगुजार तिर धन के नाँव मा सिरफ वोकर पेटी बाजा (हारमोनियम) भर रहिगे रहिस। आज वोकर जनम दिन ला कलाकार मन वोकर गाँव रवेली मा तिहार कस मनाथे। छत्तिसगढ़ के सरकार वो इतिहास पुरुष ला मान दे बर हर बरस कोनो लोककलाकार ला दू लाख के ‘मदराजी’ सम्मान देथे।

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