22-Mar-2023 12:00 AM
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1946 में मास्को में रह रहे साहित्यिक परिवार में जन्म। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के प्रतिभाशाली कवि के रूप में चर्चित। काव्यान्दोलन ‘स्मोग’ से सम्बद्ध। भूमिगत रचनाकारों में से एक। जीते जी बहुत ही कम रचनाएँ प्रकाशित। 1983 में मृत्यु के बाद देश और विदेश के प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थानों से कविता संकलन प्रकाशित। कृतित्व पर अनेक शोध प्रबन्ध और आलोचनात्मक पुस्तकें।
डरी हुई हमारी ज़िन्दगी
हमारी ज़िन्दगी डरी हुई है इस आसमान से
और हमारी ज़िन्दगी से डरा हुआ है यह आसमान,
अच्छा है होना लोहे की नसों वाला स्मारक
मुलायम धमनियाँ मनुष्य के लिए ठीक नहीं।
गिर रहे हैं, गिर रहे हैं मृत पŸो
मातम के वक़्त ऐसी चापलूसी से ज़्यादा मीठा कुछ भी नहीं।
काश, विदाई के वक़्त तुम्हारे लिए अगाथा क्रिस्टी हाज़िर होती !
काश, मेरे लिए उपलब्ध रहता एक काला चमकदार सलीब !
अधिक कुछ नहीं ... इस सैन्याधिकारी पर कुछ रहम करो
रहम करो कामेच्छाओं के सात सप्ताहों पर,
चर्च के पास से गुज़रती अनुभूतियों की फौज पर,
खरोचों की बटालियन पर सोये रहो !
मैं न तुम्हारा नाम बूझ पाया हूँ
और न ही खूनी खौफ़ के तुम्हारे रिश्तेदार पत्थर को,
तुम फिर से मेरे पास आये हो लालची हाथ फैलाते हुए
ठीक जैसे ऑर्गनवादक बाख़ की प्रार्थनाओं के पास।
मैंने नाटक किया ... मैं मर गया हूँ ... तुम दुःसाहस न करो,
वो देखो-एड़ियों के बल पहले ही खड़ी हो गयी है नफ़रत
ताकि देख सके-कितने डिग्री सेन्टिग्रेड की है यह उदासी,
मुझ जैसों के लिए केवल एक यही आकाश है,
घाटियों में कड़ी मेहनत कर रही हैं जिप्सी औरतें,
चीड़ का काला जंगल खर्राटे भर रहा है,
काँय काँय कर रही हैं उम्मीदें,
झील पर बेंत के कितने ही झाड़ क्यों न रोते रहें
सब कुछ ढक जाता है लहरों से, झूठे नक़्शों से,
पूरी आत्मा चरमरा रही थी, निराशाओं ने सुखा डाला उसे
लेकिन पूरी लादोगा को याद है मेरी हथेली।
मोटे चोग़े की बिजली ने उकेरे हैं कुछ शब्द
‘याद है’ और ‘मुझ पर खुश है’।
इतनी सहजता से लिस्ट की भूमिका निभाते
लेकिन मेरी भूमिका प्राप्त हुई एक दूसरे अभिनेता को,
अनुमति मिली थी उसे फिर से यह भूमिका न करने की।
कितना अच्छा है होना जो हैं हम स्वयं,
और ज़्यादा चालबाज़ी न करना न भले के लिए न बुरे के लिए
आखिर चर्च के पीछे कहीं हम दफ़ना डालेंगे प्राम्पटर को
और पीयेंगे प्रसन्नता में डूबे !
मैं पी रहा हूँ ...
मैं पी रहा हूँ चाँदी की भाषा,
मैं सुन रहा हूँ प्राचीन लिखावट,
मुलाक़ातों के फड़फड़ाते पन्ने
शीघ्र विवाह की कर रहे हैं भविष्यवाणियाँ।
ज़री का काम अभी भरा नहीं है नफ़रत से,
पतले कन्धों पर बैठने की नफ़रत से !
अभी तक किसी डॉक्टर की ज़रूरत नहीं पड़ी
मेरे सफ़ेद सिर वाले अर्धविरामों को।
अभी तक वयस्क नहीं हुआ वो कवि
जो बजाता बांसुरी पर
मेरी विजयों की धुनें
सफ़ेद चुड़ैल के कमरे में।
बुला रही है क़ब्र की शिला ...
बात नहीं बन रही प्रेमिका के साथ
व्हेल मछली के जैसा एक बड़ा गिलास
भर डालो ऐशबेरी और शराब से।
गहरी नींद सो रहे तुम्हारे बंगले
हृदय के चौबारे पर बहस कर रहे हैं
कौन हैं वे जिनकी मृत्यु बेचैन कर रही है मुझे
क्या कह रहे हैं फूलों के ये हार
अपनी आत्मा के क़ब्रिस्तान में
मैं ढूँढ रहा हूँ अनाम स्त्री की क़ब्र ...
जिसे यूँ ही नहीं दफ़नाया गया यहाँ
इन शब्दों के साथ -
‘मैं बदला लेकर रहूँगी’
मैं, मैं ही रहूँगा
मैं, मैं ही रहूँगा
कुछ भी हो, मैं, मैं ही रहूँगा
भले ही तुम्हारा दर्द
खोल डाले मेरे लिए नील लोहित द्वार।
मैं स्वयं अपने आपके लिए रहूँगा
बकाईन का अकेला झाड़,
मुझे डर नहीं किसी के भी काँटों का
हँसी नहीं आती किसी के भी पंखों पर।
मेरी रक्षा करेंगी भौहें
झिमड़ियों के बल यायावरी करूँगा।
तफ़रीह चाह रहा है हृदय,
नीले भ्रमों का अहसास हो गया है उसे।
घबराओ नहीं, मेरे होंठो,
परेशान न होओ, ओ मेरी बाँसुरियो।
आखिर हर तरह का गढ़ा एक नुक्सान है
और रही पहाड़ की बात
उससे तो मौत की गन्ध आ रही है।
प्रार्थना
पिघलो नहीं, पिघलो नहीं, ओ मेरे तारे
हम भी करेंगे मौज-मस्ती, ओ मेरे तारे !
इतनी पीने न दो
गोली का निशाना बनने न दो अपने ही हाथों !
कितना अच्छा है कि हम दोनों एक साथ हैं,
कितना अच्छा है कि हम कुबड़ा जाते हैं ईश्वर के सामने,
कितना अच्छा है कि ज़ार के सामने
पंख लग जाते हैं हमें !
हमारा गला काट दिया जाता है
ज़ार की ख़ातिर नहीं
बल्कि किसी पुराने अनुष्ठान की ख़ातिर।
जब बगल से उड़ रहा हो पुच्छलतारा,
तुम पिघलना नहीं, ओ मेरे तारे।
दुखी न होना पुच्छलतारे के लिए महज़ इसलिए
कि उसने छिपा रखे हैं सैंकड़ों रहस्य
हमारी सुबहों और शामों ने।
हम एक ही जैकेट के नीचे
इन्तज़ार कर रहे हैं उस अलौकिक हस्तक्षेप का।
दम घुटने लगता है
बारिश का होना जब हो जाता है इतना विरल।
मेरा तारा-मेरा सिर है,
प्रिये, फाँसी के तख़्त पर
मैं पहचान जाता हूँ जल्लाद की कमीज़,
पहचान जाता हूँ माया लगा आस्तीन।
कसी नसों के साथ नरक झेलने के बाद
अमर रहे तुम्हारी सुरा
बहती है जो साढ़े बारह बजे !
अमर रहे तुम्हारी आँखें,
अमर रहें आधे दुखी ये तुम्हारे फूल,
अमर रहे यह अन्धा उल्लास,
पीठ पीछे खुशी के ठहाके !
पिघलो नहीं, पिघलो नहीं, ओ मेरे तारे
होटल की तरह हमारे भीतर भी भर गया है शोर।
और यदि लिखा है हमने शब्द ‘स्वर्ग’,
ईश्वर से तो हमें करनी नहीं है कोई प्रार्थना।
आँखें साथ छोड़ देंगी
जब आँखें साथ छोड़ देंगी मेरा
बरदाश्त नहीं होगा जब एक भी आँसू
चला जाऊँगा मैं किसी दूसरी के पास
जैसे हिरण के पास जाता है चाकू
जैसे कोपिर्निकस के पास जाती है इंर्धन की लकड़ी
पूरा हो रहा होता है जब ईश्वर का फ़ैसला।
खुदाई करने वालो, इतनी देर क्यों कर रहे हो,
डरो नहीं, तुम नीचे नहीं गिरोगे।
मैंने अपनी आत्मा को बदल दिया है एक खुरली में
इन नितान्त अकेले पक्षियों के लिए।
मेरे भीतर रहो ओ मेरी ज्ञान-दृष्टि
दर्द की इस रोटी के टुकड़े-टुकड़े कर दे
और अधिक उदारता के साथ
कि वह याद दिलाती रहे हमें इस मिट्टी की
याद दिलाती रहे सफ़ेद पक्षियों और दूसरों को भी।
सचमुच में यह बर्फ़ हो रही है,
हवा और बपतिस्मा की गन्ध आ रही है इससे,
तुम्हारी छाती के भीतर पूरी तरह अन्धा हो गया है
क्षमा का वो पिल्ला रो रोकर अन्धा हो गया था जो !
ओ अबोध शिशु, तू जो पड़ा हुआ मिला था कहीं,
कब छोड़ देगा अपनी माँ को ?
आओ, हम दोनों चल देते हैं किसी दूसरी के पास,
तुम ऐसे ही और मैं पथप्रदर्शक के रूप में ...
आओ, लाइलैक के जैसे इन होंठों में,
कुछ न देख पाती इन आँखों में,
सफ़ेद पत्थरों से बने इन गुम्बदों में,
आओ, चलें शरण ढूँढते हैं कहीं !
हँसते हो तुम- ‘अपनी चाची के यहाँ नहीं,
कहाँ जाओगे मुझसे दूर भागकर ?’
क्षमा करना, हकलाते हुए क्षमा करना मुझे
कि मैं खेलने लगा हूँ तुम्हारी वेणी से।
सुनाने लगा हूँ हास्यजनक क़िस्से।
तुम्हारे सहमे-सहमे-से हृदय की क़सम
खा रहे हैं हंस झोपड़ी के पीछे।
मैं सुपात्र नहीं तुम्हारी शुचिता का
मुझे चूमा गया है, ख्ांगाला गया है मुझे।
मैं चला जाऊँगा अब दूसरे होंठों के पास,
बर्फ़ के बीच बने किन्हीं दूसरे छिद्रों के पास,
मैं चला जाऊँगा दुखों और आश्चर्यों से घिरा।
किसी के लिए मैं प्रिय हूँगा,
अभिशप्त हूँगा किसी दूसरे के लिए,
किसी के लिए इतना रुलाया हुआ
और किसी के लिए इतना खुश।
नींद में तुम भेंट करती हो मुझे चुम्बन
इसी क्षण मैं पोंछता हूँ आँसू-
मैं प्रेम के भी योग्य हूँ
और पर्याप्त शत्रुता शेष है अभी कविता के प्रति।