12-Dec-2017 05:54 PM
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गाथा सप्तशती की कविताओं के ये मुक्त अनुवाद हैं। कोई चाहे तो इन्हें पुनर्रचना भी कह सकता है। पर ये हैं अनुवाद ही जहाँ ‘अनु’ उपसर्ग लगभग उसी अर्थ में आया है जैसा वह ‘अनुनाद’ में आता है। मेरी इच्छा इस कालजयी काव्य संकलन की क़रीब दो सौ कविताएँ ‘अनु’वाद करने की है। इन अनुवादों के तकनीकी सन्दर्भ मैं उनके संकलन की प्रस्तावित पुस्तक की भूमिका में दूँगा। ये अनुवाद गाथा सप्तशती की कविताओं के प्रति गहरी जिज्ञासा रखने वाले मेरे मित्र फ़िल्मकार कुमार शहानी को समर्पित हैं।
मंगलाचरण
कोप से लाल हुआ
उसका चाँद-चेहरा
अंजुरि के जल में
पशुपति की
झलक गया
इस तरह
कमल से संयुक्त हुए
जल को नमन
2.
अमृत-सी प्राकृत कविता
सुनकर या पढ़कर
न समझ पायें
काम के तत्त्वज्ञान पर इतरायें
वे क्यों न
क्यों न शर्मायें
3.
इतना सिखाया है
यह भी
तुम्हारे निकट आने के
रास्ते कहाँ हैं ?
4.
अंग-अंग पर मेरे
बिखेर जाता वह
अपना देखना
बुहार देती उसे मैं
चाहते हुए कि
वह बिखेरता रहे
बार-बार
5.
झुलसने के भय से
पैरों तले छिप गयी छाया
बनी रहती है वहीं
पथिक
विश्राम
यहाँ है!
6.
लौटेंगे प्रिय प्रवास से
मैं रूठ जाऊँगी
वे मनाएँगे
मैं रूठी रहूँगी
वे फिर....
क्या यह सब है भी
मेरे भाग्य में ?
7.
जल के भीतर की
आलिंगन कथा को
कह ही देते हैं
खिले गाल
विस्फारित नयन
उसके !
8.
बेटा, घर के उजास
और उसके अभाव को
देख ले
स्त्री वही है
बाकी सब
बुढ़ापा है
पुरुषों का
9.
फूल-फूल पर
पाने रस को
जाता है भौंरा
यह दोष नहीं उसका
है फूलों का
रस जिनमें नहीं
10.
कुत्ते बहुत हैं
गाँव में
वह भटकती है घर-घर
चौपड़ के पाँसे-सी
तेरे लिए
तेज़ी दिखा
कोई और उसे
खा न ले
11.
बायीं आँख।
तेरे फड़कने पर
आ गये यदि वह
बन्द कर दूसरी को
मैं तुझसे ही
देखूँगी उसे!
12.
उसके
परदेस-वापसी-दिन पर
शंकित सखियाँ
बार-बार
दीवार पर खिंचीं
रेखाओं में कुछ को
पौंछ देती हैं
13.
मिल भर
जाए वह
कुछ बिल्कुल नया
करूँगी साथ उसके
हर अंग में
समा जाऊँगी
उसके
सकोरे में
पानी जैसे
14.
कौए उड़ाती
उसको अचानक
वह दीख गया
आता हुआ
आधी चूड़ियाँ
गिर पड़ी ज़मीन पर
फिसल कर
बाकी टूट गयीं
तड़
तड़
15.
बन नहीं पा रहा
पूनम का चाँद
तेरे चेहरे-सा
टुकड़े-टुकड़े कर
उसके
विधाता बनाता है
उसे
फिर फिर
16.
उसे गये
दिन आज का
बीत गया
दिन आज का
दिन आज का
यूँ गिनते हुए
वह
आधे दिन के
बीतते न बीतते
दीवार को
दिवस-रेखाओं से
ढँक देती है
17.
परदेस गये की
स्त्री के झुके हुए
हाथों से
सरक कर
गिर पड़े
कंगन के बीच रखे
बलि-पिण्ड की ओर
चौंच नहीं बढ़ता
कौआ
फन्दा समझ बैठा है
वह उसे