08-Jun-2019 12:00 AM
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दस का गजर बजते ही आत्माएँ बुर्जों, गुम्बदों, कँगूरों से उतर आतीं। वह अप्रयुक्त गिरजाघर के हर अन्ध्ाकारमय और गुप्त गोशे पर कब्ज़ा जमा लेतीं।
इंसानों का क्या हाल है? वह आपस में कानाफूसी करतीं। पिशाच अगर बदसूरत होते तो चुड़ेलों के बाल उनके कूल्हों पर गिरे होते। उन्हें आत्माओं का ये कुतूहल बड़ा ही हास्यकर नज़र आता।
मरने के बाद भी लोग एक दूसरे की बुराई से बाज़ नहीं आते, वह आपस में कानाफूसी करतीं। उनके क़हक़हों से पुरानी दीवारें और खम्भे हिलने लगते। इंसानों से किसी दूसरी चीज़ की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है?
चुड़ैलें पूरे मुआमले से बेज़ार लगतीं। उन्होंने दुनिया को हर ज़ाविए से देखा था, परखा था। उन्हें जि़न्दा इंसानों के कितने ही टोनों, टोटकों से गुज़रना पड़ता, उनका सितम सहना पड़ता। ऊपर से इंसान का तास्सुब, निराधार भय और बेरहमी अलग। चुड़ैलें अक्सर अपने लटकते स्तनों को मसलती मरोड़ती रहतीं। वह रोने की कोशिश में दाँत कचकचातीं। मगर आँसू पर तो बहर-ए-हाल इंसानों का कब्ज़ा था। इंसान जिसने अपनी आहों से आसमान को स्याह कर रखा था। इंसान जिसने अपने आँसूओं से समुद्र को नमकीन बना डाला था।
मगर ये कहानी उस के बाद से भी शुरू की जा सकती है।
जिस दिन मुरली नस्कर पूरी तरह पागल हुआ उस के घर के पिछवाड़े एक कुतिया ने बच्चे दिये। इस कुतिया को एक-बार मुरली नस्कर ने अपने प्रयोग में लाने की कोशिश की थी। मुरली के बाल लम्बे थे और घर वाले उसकी मौत की दुआ माँगा करते। दरअसल मुरली नस्कर का सबसे बड़ा दोष ये था कि आप उस से बुरे से बुरे काम की उम्मीद कर सकते थे। सिर्फ़ थोड़ी-सी रक़म के बदले उसने अपने जिस्म को आम गुज़रगाह बना डाला था। जेब कतरे उस के पास पैसे रखते और तवाइफ़ें उसे साथ लेकर डाक्टरों के पास जातीं।
मगर कोई उस के दिल से पूछे! वह इन रोगाणु से भरी हुई तवाइफ़ों के शौहर का अभिनय करते करते थक चुका था। वह चाहता था कोई यथार्थ रूप से उसका बच्चा अपने पेट में लेकर उसे गिराने डाक्टर के पास जाये। डाक्टर जो बीमारी का आला गर्दन से लटकाये अपनी पहली फ़ुर्सत में औरतों को मेज़ पर लेट जाने की हिदायत दे डालते। औरतें जो पेशे से तो तवाइफ़ थीं मगर जिन्हें मर्दों की अँगुलियों से टटोले जाना अच्छा न लगता। मगर ख़ुदा के बाद अगर आपकी आत्मा पर किसी का पूरा हक़ बनता है तो वह डाक्टरों का है जिसके बाद आपका जिस्म पूरी तरह आपका नहीं होता। मुरली नस्कर को पढ़ने का शौक़ कोलकाता खींच लाया था। इस के माँ बाप दोनों सौतेले थे और किसी न किसी तरह मुरली नस्कर जैसे रोग से पीछा छुड़ाने में कामयाब हो गये थे। मगर कोलकाता आकर उसने इस नतीजे पर पहुँचने में देर नहीं लगायी कि जि़न्दगी में पढ़ायी-लिखायी ही सब कुछ नहीं होती। इस के पास न होस्टल के खर्चों के लिए पैसे थे न किताब और काॅपियों के लिए। शायद वह भी दूसरे लड़कों की तरह आवारागर्दी करते करते एक पतली कापी थामे बी ए पास कर लेता और कहीं क्लर्क या टीचर के पद पर नियुक्त हो कर एक बकवास और कायरता से भरी जि़न्दगी गुज़ारता। मगर सोना गाछी के दलाल गिरजा शंकर ने उसे सम्भाल लिया और इस घिसी-पिटी जि़न्दगी से नजात दिलायी। गिरिजा शंकर से इस की मुलाक़ात लोकल ट्रेन में हुई थी जहाँ से वह उसे अपने साथ सोना गाछी ले आया और मेहंदी लक्ष्मी के कमरे में इसका ठिकाना तै कर दिया। ठीक उस के एक हफ़्ते बाद गिरजा शंकर को पुलिस उठा कर ले गयी। गिरजा शंकर थाने के इंचार्ज गयाप्रसाद के लिए कोठों से हफ़्ता वसूलता था।
ये बात मेहन्दी लक्ष्मी ने मुरली नस्कर को बतायी थी। मेहन्दी लक्ष्मी की उम्र ढलने लगी थी इसीलिए वह अब गाहक बहुत कम ही रिझा पाती। फिर भी सोना गाछी के पूरे इमाम बख़श लेन में वही सबसे लोकप्रिय तवाइफ़ थी जो एक ही समय पर ग्राहकों के साथ बैठ भी जाती और मासी का फ़जऱ् भी निभाती। अपना पाप कम करने के लिए उसने अपनी चारों दीवारों को देवी देवताओं की तस्वीरों से ढाँक रखा था। मुरली नस्कर जैसे पढ़े लिखे लड़कों की मदद करना, ये उसकी दूसरी हाॅबी थी। अपने कमरे में चादर लटका कर मेहंदी लक्ष्मी ने उसे दो हिस्सों में बाँट रखा था। अपने हिस्से में मुरली नस्कर नीत्शे और आचार्य रजनीश की किताबें पढ़ा करता जिन्हें वह गोल पार्क की एक लाइब्रेरी से चुरा कर लाता और पढ़ने के बाद एक सिन्धी को बेच दिया करता जिसकी फ्री स्कूल स्ट्रीट में पुरानी किताब की दुकान थी। दूसरे हिस्से में मेहंदी लक्ष्मी अपना धन्ध्ाा चलाती, खाना पकाती, रामायण का पाठ करती या अपने फ़जऱ्ी शौहर नवल पुरोहित के लिए माँग में सिन्दूर भरा करती।
नवल पुरोहित? मुरली नस्कर पूछता। वह जि़न्दा है तो उसे तुम्हारे साथ होना चाहीए।
तुम क्या समझते हो ? तुमने दो-चार अक्षर किया पढ़ लिए पूरे ज्ञानी हो गये हो किया? मेहंदी लक्ष्मी कहती। अपनी बात वापिस ले मुरली। वह न सिर्फ़ जि़न्दा है बल्कि पूरे मन्दिर हाट में इस के जैसा बढ़ई कोई दूसरा नहीं।
अजीब बात है। मुरली नस्कर लाजवाब हो कर कहता। नीत्शे को पढ़ कर उस के अन्दर जो जोश पैदा होता वह तुरन्त मर जाता। वह सिर खुजाते हुए कुछ सोचने लगता और ये सब कुछ उस वक़्त तक चलता जब तक मेहंदी लक्ष्मी के धन्ध्ो का वक़्त न आ जाता। अपने ग्राहक के साथ मेहंदी जब कमरे के दूसरे हिस्से में दाखि़ल होती तो डोरी से लटकती चादर का कोना खिसका कर अपने पान खाये हुए दाँत चमका कर हँसती।
बहुत आँख ख़राब कर ली तूने मुरली। अब कुछ टीवी भी देख ले। और मुरली नस्कर अपनी किताबें समेट कर निकल जाता। मगर कभी-कभार वह भी काला और सफ़ेद टीवी से जा चिपकता जो गली के कोने में पनवाड़ी की दुकान में चलती रहती। यहाँ बूढ़ी और कम आयु की वेश्याएँ जिन्होंने अपना ध्ान्ध्ाा अभी पूरी तरह शुरू नहीं किया था, नाकाम दलालों और प्रत्याशित ग्राहकों की अजीब भीड़ लगती। यहाँ गलियों की सुरंगों से गुज़रती हुई ठण्डी हवा आती। लोग दीवारों पर थूकते या पान की पिचकारियाँ मारते। अक्सर एक-आध राजनीतिक भाषण भी हो जाता। यानी यहाँ पर भी जि़न्दगी कुछ इसी ढंग से चल रही थी जिस ढंग से आम मसरूफ़ गुज़रगाह पर चला करती है। फ़कऱ् सिर्फ़ इतना था कि शरीफ़ महलों में लोग गुनाहों के ख़ौफ़ से सहमे दबे जि़न्दगी गुज़ारा करते हैं जबकि यहाँ इंसान का ज़मीर बिलकुल पाक-ओ-साफ़ था। सब कुछ खुला हुआ था और वेश्याएँ अपना ध्ान्ध्ाा किसी दिन मज़दूर के अंदाज़ से ही चलातीं। और दलालों के अपने घर संसार थे और ग्राहकों को एक सभ्य समाज में वापिस लौटना होता।
सिर्फ़ मुरली नस्कर इस पूरे मंज़र में कहीं फिट न होता।
तो उसने सुरेन्द्रनाथ काॅलेज की यूनीयन के दंगों में पनाह ली। उसने महात्मा गाँधी रोड पर सयासी झण्डा अपनाया और ट्राम की पटरियों के बीचों बीच खड़े हो कर छुरा चमकाये, बम बनाने के गुर सीखे और कांग्रेस पार्टी के एक हिमायती गुण्डे गोपाल के कान काट कर उसे कनकटा गोपाल की शौहरत अता की। और जब फाईनल इम्तिहान शुरू हुआ, उसने मेहंदी लक्ष्मी के कमरे में लम्बी नींद की आदत डाल ली। अक्सर मेहंदी जगह न पाकर इस से लिपट कर सो जाती। वह ख़ाब की हालत में मेहंदी लक्ष्मी को ढकेलता रहता। मगर ग्राहकों से बेरहमी के साथ पिसे जाने के बाद मेहंदी के अन्दर बेदारी की शक्ति कहाँ थी। वह उस वक़्त तक न जागती जब तक खिड़की से धूप उतर कर उस के चेहरे को तवे की तरह गर्म न कर डालती। जागने पर उसे मुरली नस्कर पर तरस आता। वह उस के लिए चाय बनाती, उसे टूथ ब्रश थमाती और उसे आड़े हाथों लेती।
तू पढ़ने आया है कि क्या! मैं समझी थी मैं पुण्य कमा रही हूँ। पुण्य मेरी जूती। तू आखि़र कार भड़वा ही निकलेगा। मुरली चल भाग। जल्दी से पढ़ लिख कर दूर हो। मुझे और भी बहुत से काम हैं।
जैसे?
तुझे इस से मतलब? जा पढ़ लिख कर सभ्य समाज में लौट जा। ढेर सारी लड़कियाँ सिन्दूर सजा कर तेरे बच्चे जनने के लिए उतावली बैठी हैं।
मुरली नस्कर खिलखिला कर हँसता। चलो ये भी सही, वह सोचता। जब ये तवाइफ़ें बच्चे जनने से नहीं चूकतीं तो सभ्य घराने की लड़कीयाँ क्यों पीछे रहीं। सभ्य घराने, वह दुबारा खिलखिला कर हँसता। तवाइफ़ें भी सिन्दूर पहनती हैं, तग़रे टांगती हैं, शौहर का ढोंग रचाती हैं। फ़कऱ् सिर्फ़ इतना है कि सभ्य समाज में जहाँ बीवियाँ कमाऊ होती हैं वहाँ लोग शौहर और बीवी में न जाने कैसे इम्तियाज़ करते होंगे?
मुरली नस्कर माक्र्स के बताये गये औरत मर्द के ताल्लुक़ात में शोषण के पहलू से बेचैन था। वह तवाइफ़ों को तो समझ सकता था, मगर बीवियाँ? उसे उन पर तरस आता। सुबह से आधी रात तक के कामों के लिए उन्हें तो उनका एक चैथाई परिश्रम भी नहीं मिलता, बल्कि अक्सर दो वक़्त की रोटी और तन ढाँकने के लिए कपड़े भी सही ढंग के नहीं होते। सोना गाछी की हराफ़ाएँ अक्सर मर्दों को, जो जिन्सी अमल ख़त्म करने का नाम न लेते, यूँ ताना देतींः
अपनी जोरू समझा है क्या, साला। चल हट। ध्ान्ध्ो का टेम है।
मगर अपनी फ़ुर्सत के लम्हों में, या उस वक़्त जब वह ज़हनी तौर पर इन ग़लीज़ लोगों के बीच न होता, वह सोचता, इन सबसे बाहर निकलने का कोई तो रास्ता होगा। रास्ते तो कई थे और उसे रोकने वाला भी कोई न था, मगर वहाँ से निकल जाने के बाद कौन सी दुनिया थी भला, सिवाए उस सभ्य दुनिया के जो उसे और भी ऊटपटाँग दिखायी देती। उसने एक दिन अपने अन्दर कोलम्बस को जागता महसूस किया। मगर उसने देखा कि इस सभ्य दुनिया की शुरूआत दरअसल ट्राम रास्ता पर खड़े पुलिस के लोगों से होती थी जो कोठों से अपने हिस्से का हफ़्ता वसूलते थे, दलालों की दी हुई खैनी फाँकते थे और तवाइफ़ों से गप्पें लड़ाते थे। और उनसे परे दुकानदार दुकानों में उकताये से बैठे थे, वह बिज़नस मैन थे जो अपने काले पैसों को सफ़ेद करने के लिए तरह तरह के हथकण्डे अपनाते या सरकारी आॅफि़स के बाबू थे जो रिश्वत के पैसों से पनपते, गाडि़यों में घूमते, घरों में एअर कण्डीश्नर लगाते और अपनी बीवियों की आँखों में अमिताभ बच्चन थे। या फिर स्कूल और काॅलेज थे जो उनके लिए अपने तात्पर्य खो चुके थे।
वह शहर वास्तविक रूप में कहीं तो होगा जिस पर हमें शर्मिन्दा न होना पड़े, वह दिल ही दिल में सोचता। न जाने उस के बाशिन्दे कैसे होंगे ? एक बात तय है, बड़ा ही दिलचस्प होगा वह नगर और वह इस ख़्वाब में जि़न्दा था। लेकिन आखिर में, सब कि़स्से कहानियों की बातें हैं, वह ख़ुद को समझाता। अच्छा फ़जऱ् कर लो हमने उसे पा लिया। थोड़े ही समय में क्या हम लोग उस के अन्दर सोना गाछी न उगा डालेंगे, क्या ठोस कारोबारी लेन-देन वहाँ न होगी जो अभी है, क्या उस के सियासत दाँ आज से कुछ मुख़्तलिफ़ होंगे? क्या इस शहर की तारीख़ इस से अलग होगी जो हम मोटी मोटी किताबों में बचा कर रखते हैं?
मुरली नस्कर तो हिन्दू है?
हाँ।
झूठ, तेरे पास क़ुरआन है।
बाइबल भी है, गीता भी है।
चल पतलून उतारकर दिखा, आज फ़ैसला हो जाना चाहीए, मुझे लगता है तू मुस्लमान है।
अगर मैं मुस्लमान निकला तो इस से न तेरी दुनिया बदल जाएगी न मेरी। मगर तेरा ध्यान इस बात की तरफ़ क्यों गया? टीवी में ख़बरें बहुत देखने लगी है लक्ष्मी। आजकल धरम के नाम पर लोग अपनी सियासत चमकाने में ख़ूब मसरूफ़ हैं।
तू डरता है?
हाँ।
किस से?
ये पता होता तो इस डर को न समझ लेता, उसे मार न डालता?
किसे मार डालता? मेहंदी लक्ष्मी का ज़हन गड्ड-मड्ड हो जाता। मुरली नस्कर मुस्कुराता।
मेहंदी, कितने सारे देवी देवताओं को तुमने दीवारों पर टांग रखा है। कोई तुम्हारे बारे में नहीं सोचता?
कैसे नहीं सोचता? इस उम्र में इतने सारे गाहक क्या आसमान से टपक कर आते हैं? ये तो उन्हें देवी देवताओं की कृपा है।
मेरा मतलब है...। फिर मुरली लाजवाब हों कर मन ही मन मुस्कुराता और हथियार डाल देता। हाँ, सो तो है।
फिर ? मेहंदी लक्ष्मी अपनी जीत से विभोर हों कर छत के धूप में बाल सुखाने बैठ जाती।
ये मेरे बचपन की बात है, वो जारी हो जाती। उन दिनों सिक्का मासी का दौर दौरा था। मैं लाल फ़ीता लगा कर स्कूल जाती। मेरे जोबन के उभार से पहले ही मेरे दो आशिक़ पैदा हो गये, बिल्ला और तारा।
बीच में ये बताने की ज़रूरत नहीं कि वो भी एक वेश्या की बेटी थी?
वो तो है ही। तो बिल्ला और तारा मेरे दो आशिक़ थे। बिल्ला को कुत्तों से बहुत लगाव था। वह गैलिफ स्ट्रीट से कुत्ते चुरा कर लाता और मुझे तोहफ़े में देता। बड़े प्यारे प्यारे कुत्ते होते, घने बालों वाले, बटनों जैसी आँखों वाले, कभी कभी बग़ैर पूँछ के, कभी बिलकुल ही छोटे छोटे पाँव वाले जैसे उनके घुटनों के नीचे का हिस्सा ज़मीन के अन्दर हो। तारा कम बोलता था। सिक्का मासी का छोड़ा हुआ जासूस था। पुलिस के लिए भी मुख़बिरी करता था। तो एक दिन बिल्ला और तारा के बीच उस्तरा चल गया। फिर दोनों जाने कहाँ ग़ाइब हो गये।
अजीब कहानी है तेरी भी मेहंदी। न सुनो तो दिल कुतूहल से बेचैन, सुनो तो इस में कोई दम नहीं।
क्या?
मेरा मतलब है कहानी अच्छी थी। बस तू इस में थोड़ा पहले आ गयी थी।
चल जा मुरली। मेरी जि़न्दगी कहानियों से भरी है। तेरी तरह नहीं कि बस पुस्तक ही पुस्तक। मैं बताऊँ। एक-बार एक गुजराती सेठ मुझे मुम्बई ले जाने के लिए बेचैन हो उठा। मैं इस वक़्त बहुत कमसिन थी। मैंने इस से पूछा मुम्बई में क्या है सेठ? उसने कहा समुद्र है। मैंने पूछा समुद्र के अलावा क्या है? बड़ी बड़ी बिलिं्डगें हैं। बड़ी बड़ी बिलिं्डगों के अलावा क्या है? फि़ल्म सिटी है। तो मैंने पूछा वहाँ सोना गाछी है ? उसने कहा इस से भी बड़ी बड़ी। मिसाल के तौर पर? मैं पूछ बैठी। मुहम्मद अली रोड! तो वहाँ से कोई मेहंदी लक्ष्मी क्यों नहीं उठा लेता भड़वे? इस पर उसने सिक्का मासी को मेरे खिलाफ इतना भड़काया, इतना भड़काया कि मुझे कोठी छोड़नी पड़ी। बाद में सिक्का मासी खुद मुझे वापिस लेने आयी। मगर तब तक मेरे दिन फिर चुके थे।
ज़्यादातर वक़्त मुरली नस्कर छत की कमज़ोर मुंडेर पर झुका माऊथ आर्गन पर कोई हिन्दी फि़ल्मी गीत का मश्क़ किया करता। उसे कोई ग्राहक मेहंदी लक्ष्मी के बिस्तर पर छोड़ गया था। जब वह उस के अभ्यास से उकता जाता तो दूर तक इन खण्डहरनुमा पुरानी इमारतों के सिलसिले को ताकता रहता जिनकी छतों में तवाइफ़ें नहाती धोतीं, खाना बनातीं, बच्चे खिलातीं और छत की धूप में बाल सुखाती नज़र आतीं। नीचे ख़ुदा की मख़लूक़ अपनी जि़न्दगी जी रही थी, ऊपर ख़ुदा का बनाया हुआ आसमान था जिसमें इंसानों ने जगह-जगह पतंग टाँग रखे थे जैसे उनकी डोरियों से ये ज़मीन और उसकी खण्डहरनुमा इमारतें लटक रही हों। वह सोचता, मेरे यहाँ होने का मक़सद ? और एक ठण्डी साँस लेकर दोबारा सोचता, यहाँ न हो कर भी मैं कौन-सा तीर मार लेता ? तो वह मुड़ कर मेहंदी लक्ष्मी से मुख़ातब होता।
अच्छा मेहंदी, मैं अगर चला गया बिल्ला और तारा की तरह तुम्हें याद रहूँगा?
न तू मेरा बिल्ला न तू मेरा तारा, तुझे याद करना क्या और न याद करना क्या।
तभी तो मैं कोई फ़ैसला नहीं कर पाता। किसी को तो मेरी फि़क्र हो!
और इस दिन मुरली नस्कर ने सोचा उसे एक नयी पहचान चाहिए और उसने मूँछें उगाना शुरू कर दिया। मगर इस मुआमले में उसे किसी की मदद चाहिए थी। गिरजा शंकर ? अब गिरजा शंकर से इस के ताल्लुक़ात पहले जैसे नहीं रहे थे। गिरजा शंकर चूना गली की एक तवाइफ़ से ब्याह रचा कर कान्वेंट रोड पर तीन नम्बर पुल के नीचे एक अवैध झोनपरी खड़ी कर चुका था और बच्चे उगाने में व्यस्त था। उसने चोर गारद में चाय की एक दुकान भी खोल ली थी जहाँ गप्पी लोग अड्डा देने जाते। बहुत दिनों बाद मुरली नस्कर को देखकर वह मुस्कुराया। उसे लकड़ी के बेंच पर बैठने का इशारा करके आँख मारी।
किस ने कहा तुझे मूँछ उगाने के लिए? वैसे इस में तू इतना बुरा नहीं लगता। मगर किस ने कहा?
दिल ने।
दिल की बात सुना कर। मैंने दिल की बात सुनी, अब देख मेरे तीन बच्चे हैं और ये मेरी चाय की दुकान कुछ बुरी नहीं चलती। और तेरी भाभी हर दूसरे महीने बीमार पड़ती रहती है।
कौन सी बीमारी ?
वही, औरत वाली बीमारी। इस से ज़्यादा नहीं पूछा करते। मैं सिर्फ़ इतना जानता हूँ अब हमारे हालात इतने तो बुरे नहीं मगर इतने अच्छे भी नहीं रहे।
तुम पछता रहे हो गिरजा?
मैं नहीं जानता। मैं इतना जानता हूँ आदमी हर बार बदल कर ख़ुद को ही पाता है।
वापसी में एक सुनसान गली में एक गिरजाघर, जिस में अब प्रार्थनाएँ बन्द हों चुकी थीं, के फाटक के सामने मुरली ने पेशाब करने के बाद जि़प ऊपर खींचा तो उसका उज़ू तनासुल अटक गया। दर्द से उसकी चीख़ निकल गयी, आँखों से आँसू निकल आये। एहतियात से जि़प लगा कर वह लोहे के फाटक के सहारे बैठ गया। उसका सीना काँप रहा था। उसने अपने आँसू पोंछे और टीस के मद्धम पड़ने का इन्तज़ार करता रहा। दर्द की निरन्तर टीस उभर रही थी जैसे उस की मुलाइम जिल्द को कोई चींटी रह-रह कर काट रही हो। थोड़ी देर बाद उस के हवास दुरुस्त हुए तो उसे ज़ख़्म की जगह देखने की हिम्मत हुई। कहीं ख़ून न बह गया हो। उसने फाटक की तरफ़ देखा। इस पर एक भारी भरकम ज़ंजीर लटक रही थी। मगर दोनों जंगलों के निचले हिस्सों को आगे पीछे हिला कर इतनी जगह निकाल ली गयी थी कि इंसान किसी क़दर मेहनत के बाद और कुत्ते आसानी से अन्दर जा सकते थे। वह अन्दर पहुँच कर दीवार की आड़ में खड़ा हो गया और उसने पतलून को नीचे सरकाया। एक जगह जिल्द इस तरह कट गयी थी कि ख़ून की नन्ही नन्ही बूँदें निकल कर रह गयी थी। जि़प लगा कर वह गिरजाघर के टूटे फूटे सेहन पर चलता हुआ चबूतरे के पास पहुँचा और एक पुराने पेड़ के नीचे बैठ कर उसने सिर को झुका लिया।
गिरजाघर की खिड़कियों के ज़्यादातर शीशे धुँध्ाले मगर महफ़ूज़ थे। दाखि़ले के मुख्य दरवाज़े का एक सिरा टूट कर पीछे लटक गया था। यक़ीनन कुछ लोगों ने इसका कोई न कोई प्रयोग ज़रूर ढूँढ़ निकाला होगा। इस जगह से गिरजाघर के अन्दर कुछ न दिखायी देता था। हाँ बाएँ तरफ़ एक चक्करदार सीढ़ी मीनार की तरफ़ ऊपर की तरफ चली गयी थी। इसके अन्दर से चमगादड़ों की बीट की महक इतनी दूर तक आ रही थी।
अगली बार उस की गिरजा शंकर से मुलाक़ात उस के ठिकाने पर हुई तो उस के चेहरे का रंग गिरा हुआ था। गिरिजा ने सिर मुँडवा लिया था। उसे सख्त बुख़ार भी था।
तुम्हें कम्बल अस्पताल जाना चाहिए। मुरली ने मशवरा दिया। ये अस्पताल सियालदाह के क़रीब था।
मैं जा चुका हूँ। उन्होंने मेरे ख़ून की जाँच की है। कल रिपोर्ट मिल जाएगी। उसने चाय के घूँट लेते हुए कहा जिसे सिया दुलारी बना कर लायी थी। सिया दुलारी को देखकर नहीं लगता था कि कभी वह चूना गली में जिस्म बेचा करती होगी। तीन लगातार बच्चों के बाद उसका जिस्म फैल गया था। सिन्दूर वह जम कर लगाती थी और नियमित रूप से पूजापाठ में लगी रहती। उनकी अबैध झोंपड़ी रेलवे की पटरी से बस हाथ भर के फ़ासले पर खड़ी थी। झोंपड़ी के खुले आँगन में एक पतली बाँस पर भगवा झण्डा लहरा रहा था जिसमें हनूमान जी एक हाथ में गदा और दूसरे हाथ में पहाड़ उठाये उड़ रहे थे। पटरी पर लोकल ट्रेन हर दस मिनट पर गुज़रते हुए झोंपड़ी को हिलाती रहती। तीनों बच्चे पटरी के आस-पास रेंगते हुए बड़े हो रहे थे।
मुझे तो तेरा पहले का ध्ान्ध्ाा ज़्यादा सार्थक दिखायी देता है। मुरली नस्कर ने कहा। और भाभी का तो तू ने सत्यानास ही कर दिया।
तो जा भड़वा गिरी कर, गिरजा शंकर ने ग़ुस्से से कहा। तू इन चीज़ों को नहीं समझ सकता। किसी रण्डी का रखैल बन जा मुरली। इस से ज़्यादा तेरा दूसरा उपयोग भगवान के पास भी न होगा।
चाय अच्छी थी भाभी, मुरली ने कहा। बस ऐसा है कि मैं ज़रा दिल की बात करता हूँ। मुझे वह अँग्रेज़ी में क्या कहते हैं टमतइंस क्पंततीवमं है।
क्या-क्या? दोनों पति पत्नी ने एक साथ कहा।
जाने दो, मुरली नस्कर ने उठते हुए कहा। अगली बार आऊँगा तो बच्चों के लिए चाॅकलेट लाऊँगा।
और इस के बाद बिना चाॅकलेट के आओगे तो बच्चे तुम्हारे बारे में कुछ अच्छा नहीं सोचेंगे, गिरिजा शंकर खाँसते हुए हँसा। इस चक्कर में मत पड़ना मुरली। बच्चे पालना कोई आसान काम नहीं। और बच्चे किसी काम के नहीं होते। ये बड़े हो कर अपनी दुनिया के हो लेते हैं, हमारी तरह।
दूसरे हफ़्ते मुरली नस्कर जब गिरजा शंकर के चाय के अड्डे पर पहुँचा तो वो अड्डा वहाँ से उठ चुका था। रेलवे की पटरी के किनारे झोंपड़ी भी तोड़ दी गयी थी। उसने आस-पास के लोगों से पता चलाने की कोशिश की मगर कोई गिरजा शंकर के बारे में नहीं जानता था। वैसे भी पटरी के किनारे कोई आबादी तो थी नहीं, सिर्फ़ झाडि़याँ थीं या एक बेकार पड़े रेलवे यार्ड के टूटे फूटे सायबान और खम्भे। मुरली चाॅकलेट खाता हुआ कोलकाता की सड़कों पर फि़जूल नज़रें डालता वापिस लौटा। उसने मेहंदी लक्ष्मी को ये अजीब-ओ-ग़रीब घटना सुनायी।
गिरिजा ने ठिकाना बदल लिया होगा, मेहंदी ने पान की पीक कोने में मारते हुए कहा। बड़ा चालाक है गिरजा। चूना गली की सबसे खूबसूरत रण्डी सिया दुलारी पर हाथ मार दिया।
वैसे गिरजा बहुत बीमार था, मेहंदी।
ये पहले क्यों न बताया। अस्पताल देखा?
बस यही चूक हो गयी, मुरली ने उठते हुए कहा। कम्बल अस्पताल से ज़रूर कुछ पता चल जाएगा। मगर इतने बड़े अस्पताल में लोग हज़ारों की तादाद में आते, सैंकड़ों की तादाद में डिस्चार्ज होते। गिरजा शंकर के बारे में पता लगाना मुश्किल काम था। कई दिन तक मुरली दवाओं से महकते अस्पताल के गलियारों में घूमता फिरा। फिर एक अक़लमन्द दरबान ने उसे मुर्दा घर के बारे में बताया मगर वहाँ भी रजिस्टर में गिरजा शंकर का नाम न था।
मैं अब भी कहती हूँ गिरजा शंकर ने ठिकाना बदल लिया होगा, मेहंदी लक्ष्मी बोली। जिसकी इतनी खूबसूरत जोरू हो उसे ठिकाना बदलते रहना चाहिए। वह कहते हैं न कि गरीब की जोरू सारे मुहल्ले की भाभी होती है।
तू तो बस मेहंदी सठिया गयी है, मुरली ने कहा। जाने ग्राहक तेरे में क्या मज़ा लेते होंगे।
ग्राहक अपना मजा ख़ुद लेकर आते हैं। मेहंदी अपने पान से काले हों चुके दाँतों से मुस्कुरायी। हम लोग तो बहाने भर हैं।
सचमुच! मुरली मुस्कुराया। मैंने इस नज़र से इस बात को कभी नहीं देखा।
और इस दिन से उसने गली में आने वालों को ग़ौर से देखना शुरू कर दिया। वाक़ई ये एक हक़ीक़त थी, ये लोग अपना मज़ा ख़ुद लेकर आते थे, भूखी आँखें, लार टपकाते हुए होंठ, गली में दोनों तरफ खड़ी वेश्याओं के सरापे पर गिद्ध की नज़रें डालते हुए ये लोग कम-सिन, दराज़ उम्र, बूढ़े, जवान, विवाहित, ग़ैर शादीशुदा, रण्डवे। अगर वह इस महानगर की गलियों में आवारा घूमना शुरू कर दे तो इसमें हज़ारों को पहचान ले। मगर इससे क्या हासिल ? क्या इससे इसकी अपनी या उनकी दुनिया बदल जाएगी ? उसने धीरे-धीरे दलालों के साथ बैठना शुरू कर दिया। लाला, रहीम, बगीचा, गुलाब चन्द।
कंगन कोटा की छोरियाँ बस देखने लायक़ होती हैं। लाला छत्तीसगढ़ के एक गाँव का जि़क्र कर रहा था। इन शहरी लड़कियों की तरह पिलपिली नहीं। बदन अनार की तरह गद्दर, अँगुली से ठोका नहीं कि टन। मगर सालियाँ कोलकाता आना नहीं चाहतीं।
बंगला देश की लड़कियों ने साला यहाँ बजार खराब कर दिया है। बगीचा ने खैनी ठोंकते हुए कहा। और भईए, आजकल कितनी कमसिन लड़कीयाँ चली आ रही हैं। अबे गुलाब। उसे याद आया। अबे लोरेटो की जो लड़की आती थी, अब नज़र नहीं आती, क्या नाम था उसका?
उसका ब्याह हो गया रहेगा। रहीम खिलखिला कर हंसा। उसके दाँत पीले हो गये थे। वो लोग आपस में बातें भी कर रहे थे और गली में दाखि़ल होने वाले ग्राहकों पर नज़रें भी रखे हुए थे। एक दिन मेहंदी लक्ष्मी ने उसे वहाँ से बुलवा भेजा। एक अधेड़ उम्र का नाटा आदमी मुरली का इन्तज़ार कर रहा था।
सिया दुलारी, मेहंदी ने पान खाये हुए दाँतों को चमकाते हुए कहा, वह चूना गली में तेरी बाट जोह रही है।
मुआमला किया है? मुरली ने नाटे आदमी से पूछा जो मेहंदी लक्ष्मी की बनायी हुई चाय सड़प रहा था।
मुझे कुछ नहीं मालूम। वह भी कोई दलाल ही था। बस सिया दुलारी ने प्रार्थना की सो तुम तक सन्देस पहुँचा दिया। अच्छा भाभी, कभी कोनो ज़रूरत आन पड़े तो तो याद रखियेगा, मेरा नाम हरीनाथ है।
चूना गली नहीं जाएगा? हरीनाथ के जाने के बाद मेहंदी लक्ष्मी ने पूछा।
नहीं।
कारण?
अब किसे कारण देता फिरूँ भला। बस नहीं जाता।
मगर उसने झूठ कहा था। फ़ुर्सत मिलते ही वह सीधा चूना गली निकल गया।
उसने सिया दुलारी को अपने तीन बच्चों के साथ चैथे माले पर लकड़ी के एक खोखे के अन्दर बैठा पाया। वह अपने सबसे छोटे बच्चे को दूध पिला रही थी। उसने मुरली को देखकर अपना भारी स्तन साड़ी के आँचल से छिपा लिया।
गिरजा किधर को है, सिया? मुरली ने पेश किये हुए मूँढ़े पर बैठते हुए कहा। उसे चूना गली पसन्द नहीं आयी थी। यहाँ आस-पास की गलियों से चमड़े के गोदामों की कितनी तेज़ दुर्गन्ध बह कर आ रही थी, जैसे कीटाणु हवा में तैर रहे हों।
मेरे को क्या मालूम, सिया दुलारी बोली। बस एक दिन वह दिखायी नहीं दिया। साले सब मर्द एक जैसे होते हैं।
मुरली को पता था वह झूठ बोल रही थी। उसने पहली बार सिया दुलारी के सरापे का जायज़ा लिया। गरचे उस का जिस्म पहले जैसा नहीं रह गया था मगर चूना गली लौटने के बाद शायद उसकी खोई हुई सुन्दरता कुछ कुछ वापिस लौटने लगी थी। मुरली ने एक ठण्डी सांस ली।
गाहक लेने लगी हो?
अभी तो नहीं, सिया दुलारी बोली, फिर दरवाज़ा बन्द करने का इशारा किया। मुझे एक आदमी चाहिए।
वह हरीनाथ क्या बुरा है?
नहीं, सिया दुलारी बोली। अपन को नवा आदमी चाहिए।
आजकल ग्राहक अपनी पसन्द की रण्डियाँ ख़ुद ढूँढ़ निकालते हैं, बड़ी ताक़तवर ऐनकें लेकर आते हैं, मुरली ने माहौल की गम्भीरता को कम करने के लिए कहा।
मैं नीचे नहीं खड़ी हो सकती। सिया दुलारी बोली। मेरे तीन बच्चे हैं।
उन्हें अनाथ आश्रम में डाल दो।
तुम ही डाल आओ। मुरली ने देखा सिया की आँखें गीली हो रही थीं। मुरली खिलखिला कर हँस पड़ा।
ऐसी नरम पड़ेगी तो जी सकेगी सिया? मैं वादा नहीं करता, मगर गिरजा का लिहाज़ है मुझे। गिरजा ने एक बार मुझे भड़वा गिरी के ताने दिये थे, आज उस की जोरू मुझे इस रास्ते पर लगा रही है।
जीवन के सारे रास्ते एक ही जैसे हैं, सिया दुलारी अपनी साड़ी के पल्लू से आँख पूछते हुए बोली। कहीं पर कुछ अच्छा है तो कहीं पर कुछ बुरा। मगर कुल मिला कर सब एक ही जैसा हैं।
ये तो मैंने किसी किताब में भी नहीं पढ़ा।
सिया दुलारी से पढ़ ले, उसने बच्चे को चारपाई पर लिटाते हुए कहा और अपने बालों पर कंघी करने लगी। मुरली के सामने ही उसने अपनी साड़ी बदली, बाल बाँधे, मेक-अप किया, बिंदिया चिपकायी और इससे थोड़ा पीछे हट कर किसी माॅडल की तरह अपने दाहिने कूल्हे पर हाथ रखकर खड़ी हो गयी। मुरली का गला ख़ुश्क हो रहा था। वाक़ई सिया दुलारी बड़ी ख़ूबसूरत थी। उसने आँखें फेर लीं।
आँखें फेर लिया, सिया की आवाज़ आयी। मैं अच्छी नहीं लगती तोको?
अपने ग्राहकों से पूछना।
तुमसे पूछती हूँ।
नहीं पूछो मुझसे।
तो फिर ग्राहकों से पूछना पड़ेगा। सिया दुलारी मुस्कुरायी। मुरली, गिरजा से तेरे बारे में जितना सुना था इससे कम नहीं है तू। अरे तू तो भडुओं से भी गया गुज़रा है।
उसे सिया के लिए गाहक जुटाने में कठिनाईयाँ आ रही थीं। ज़्यादातर गाहक कमसिन लड़कियाँ माँगते थे। मगर उसने देखा एक-बार जो गाहक सिया के पास आता, वह बार-बार आता। मेहंदी लक्ष्मी को इसके इस काम का पता तब चला जब मुरली ने उसे ख़ुद बताया। मेहंदी लक्ष्मी की साँस ऊपर की ऊपर रह गयी।
मुरली, तू भी भड़वा ! हे भगवान, मैंने क्या-क्या सपने देख रखे थे तेरे लिए।
तू सपने बहुत देखती रे, मुरली हँसा, और ये बुरी आदत है मेहंदी।
छः माह के अन्दर-अन्दर सिया दुलारी पूरी तरह बिज़नस में वापिस आ गयी। उसके बहुत सारे पुराने गाहक भी उसके पास लौट आये। उनमें से बहुत से तो समाज में बड़े कामयाब ब्यौपारी बनकर उभरे थे। आधी रात को थका माँदा जब वह मेहंदी लक्ष्मी के पास लौटता तो वह उसे आड़े हाथों लेती।
कित्ता पी के आने लगा है मुरली! सिया ने तुझे खराब कर दिया, साली छिनाल।
गाली दे ले, पण याद रखना, मुरली नशे की हालत में बकता जाता। वह चूना गली की चन्द्रमुखी है।
और मैं, मैं कुछ नहीं ? मेहंदी लक्ष्मी गुर्रायी।
तुम एक पुरानी हाँडी हो। तेरे अन्दर अब राख रह गया है, मेहंदी।
और मेहंदी लक्ष्मी जूती लेकर इस पर पिल पड़ती। वह मार खाता जाता और सीढि़यों और दालानों में भागता रहता। बाक़ी रण्डियाँ खिलखिलाते हुए इस दौड़ धूप का मज़ा लेतीं और जब दोनों थक जाते मुरली मेहंदी लक्ष्मी की छाती पर सिर रखकर कहता।
मुझे ज़ोर की भूख लगी है मेहंदी। सब कुछ कितना ख़ाली ख़ाली-सा लगता है, शायद रोटी से भर सके।
और मेहंदी उस के लिए रोटी सेंकने बैठ जाती।
पिछले तीन दिन से सिया दुलारी ने कोई ग्राहक नहीं लिया था। अब वह अपना कमरा बदल चुकी थी। नये कमरे में टीवी और फ्रीज आ चुके थे, उसने बच्चों को सँभालने के लिए एक आया भी रख ली थी। इन दिनों वह सिलाई मशीन पर सिलाई सीख रही थी। उसे सिलाई सिखाने एक टोपी पहने दाढ़ी वाले मौलाना आते थे।
सिया?
हाँ।
एक बात पूछूँ ?
नहीं।
मुरली ने सिर खुजा कर किताब के अन्दर नाक डुबाने की कोशिश की।
क्या पूछना चाह रहा है तू ? थोड़ी देर बाद सिया ने सिलाई मशीन पर अपना काम रोके बग़ैर कहा।
गिरिजा का आखिर क्या हुआ?
मैंने बताया न मैं बताना नहीं चाहती।
तुम बताना नहीं चाहती।
क्या गिरजा के बग़ैर जि़न्दगी नहीं चल रही है ? मशीन की खट-खट-खट।
अजीब बात है। यकायक मुरली किताब रखकर उठ खड़ा हुआ और स्टूल पर बैठी सिया के पीछे रुक कर उसकी गोरी मुलायम गर्दन को सहलाने लगा।
क्या चाहिए तुझे? सिया ने गर्दन उसके हाथ से दूर ले जाते हुए उसकी तरफ़ ग़ुस्सैली आँखों से ताकते हुए कहा।
आज तू नहा भी चुकी। मुझे भी औरत की ज़रूरत हो सकती है।
दूर हट! सिया अपनी जगह से उछल कर खड़ी हो गयी थी। ख़बरदार जो मुझे हाथ लगाया।
मगर क्यों ? मुरली ने अचम्भे से उसकी और देखा। अगर तू समझती है कि मैं मुफ़्त में चाह रहा हूँ तो मैं पैसा देने के लिए तैयार हूँ।
मुरली, मैं कहती हूँ ख़बरदार जो क़रीब आया तो। उसने झुक कर स्टोव के ऊपर से ठण्डा तवा उठा लिया।
कमाल है, मुरली ने हार मानते हुए होते हुए कहा। आखि़र तुम हो क्या, एक वेश्या।
हाँ, मगर सबके लिए नहीं।
मैं काम छोड़कर जा रहा हूँ। अपने लिए कोई दूसरा भड़वा ढूँढ़ ले।
मुरली ! मुरली को अपने पीछे सिया की सिसकी सुनायी दी। तुझे पता भी है गिरजा को किया हुआ था। कितनी भयानक बीमारी हो गयी थी उसे।
मुरली मुड़ा। सिया की आँखों में काजल के स्याह क़तरे तैर रहे थे।
खून का रपट मिलते ही उसे पुलिस ने हिरासत में ले लिया था, वह बोली। पुलिस वाले हमें भी पकड़ने आये थे मगर मैं अपने बच्चों के साथ भाग निकली।
गिरिजा अब पुलिस की हिरासत में है?
वह अस्पताल से भाग निकला और उसने लोहा पुल के नीचे रेल से कट कर जान दे दी।
मुरली का सर चकराने लगा। उसके पाँव जवाब दे गये और वह सिया के पलंग पर बैठ गया। और तू सिया? तुझे भी ये बीमारी है।
मैं नहीं जानती। मैंने कभी जाँच नहीं करवायी।
मुझे पास फटकने नहीं देती। कुछ तो गड़बड़ है।
मेरे पास तेरे साथ जास्ती बात करने के लिए टेम नहीं है। सिया सिलाई मशीन पर बैठ गयी और खट, खट, खट। और अब शायद तू मेरे किसी काम का भी नहीं। जा मैं कोई नवा आदमी ढूँढ़ लेगी। मशीन के शोर के बीच उसकी आवाज़ उभरी।
मुरली को वापिस पाकर मेहंदी लक्ष्मी ख़ुश थी। वह मुरली की नयी किताबों पर प्यार से अँगुलियाँ फेर रही थी। मगर मुरली मितभाषी और चिड़चिड़ा हो गया था।
सिया ने तुझे निकाल दिया ? मेहंदी चहकते हुए बोली।
मेहंदी अब बस भी कर, मुरली ने कहा। फिर मेहंदी ने कभी सिया का जि़क्र नहीं छेड़ा।
टूटे-फूटे मकानों के सिलसिलों में एक क़रीबी मस्जिद की अज़ान बराबरी से हर कमरे में फैला करती। मुरली कमज़ोर मुंडेर पर झुका चील कव्वों से लैस आसमान को ताक रहा होता। बीच-बीच में वह माऊथ आर्गन को भी होंठ से लगा लेता मगर उसे बजाना भूल जाता। नीचे ग्राहकों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। उसने सामने की दीवार पर थूककर अपने घने बालों के अन्दर अपनी अँगुलियाँ डाल कर देखा। मुर्शिदाबाद से आयी हुई तवाइफ़ मोर बीबी अपने बच्चे को कालिख का टीका लगा रही थी।
मुरली तू शादी क्यों नहीं कर लेता? उसने पूछा।
किससे? मुझसे कौन शादी करेगा मोर बीबी।
कौन नहीं करेगा?
ये भी कोई जवाब हुआ भला, मुरली ने गहरे आसमान में ताकते हुए कहा जहाँ बादलों के बीच सुर्ख़ धारियाँ तैर रही थीं। जाने इसमें कोई परलोक है भी कि नहीं, उसने ख़ुद से कहा और सीढि़याँ तै करते हुए नीचे गली में उतर आया जहाँ एक कुतिया ज़मीन पर अपने बड़े से पेट के साथ लेटी हुई दर्द से कराह रही थी। कुछ ख़ामोश बच्चे तमाशाई बने उसे घेरे हुए बच्चों के निकलने का इन्तज़ार कर रहे थे।
जाओ भागो घर। मुरली ने उन्हें भगा दिया। वह तेज़ी से चूना गली की तरफ़ जा रहा था। सिया ने उसे देखकर किसी हैरत का इज़हार नहीं किया।
सिया, तुझे ये ध्ान्ध्ाा बन्द करना होगा, मुरली ने कहा। मेरे को तुझसे शादी बनाने का है।
मैं तुझसे शादी करने के लिए मरी जा रही हूँ।
तुझे हर हाल में ध्ान्ध्ाा बन्द करना होगा। तू ये ख़तरनाक मजऱ् ग्राहकों में नहीं फैला सकती।
किसने तुझसे कह दिया कि मुझे कोई बीमारी है। और कौन भरेगा हमारा पेट। सिया मुस्कुरायी।
सिया दुलारी का भड़वा?
हाँ, मुरली ने कहा। मैं तेरे बच्चों की परवरिश करेगा, तेरी जाँच कराएगा।
पल-भर के लिए सिया ख़ामोश रही। फिर जैसे इस पर हिस्टेरिया का दौरा पड़ गया।
दूर हट मेरी नज़रों के सामने से, दूर हट, दूर हट, दूर हट, दूर हट, दूर हट।
अपने जुनून में उसने चाक़ू को नहीं देखा जो मुरली के बाएँ हाथ में चमक रहा था।
मुरली नस्कर के पागलपन की ख़बर पूरे सोना गाछी में आग की तरह फैल गयी। मेहंदी लक्ष्मी कुतिया के नये जन्मे बच्चों को उठा लायी थी और उनकी देख-भाल करने में मसरूफ़ थी जब उसे ये खबर मिली। वह दौड़ती हुई मुरली तक गयी मगर उसने उसे पहचानने से इंकार कर दिया। कुछ बावर्दी पुलिस वाले मुरली के पीछे लगे हुए थे क्योंकि उस पर चूना गली में सिया दुलारी के ख़ून का इल्ज़ाम था। पुलिस वाले दूसरे दलालों की मदद से उसे बाँधकर तो ले गये मगर कुछ दिनों के बाद वह वापिस आ गया। उसने मेहंदी लक्ष्मी की बालकनी के नीचे अपना ठिकाना बना लिया। बड़े बड़े बाल और दाढ़ी के अन्दर उस का चेहरा यूँ नज़र आने लगा था जैसे वो अपनी सलीब से कुछ ही फ़ासले पर जी रहा हो। वो ज़्यादातर दीवार से पीठ लगाये गली से गुज़रते लोगों पर हाँक लगाया करता।
उससे दूर रहो, उससे दूर रहो, उसके अन्दर बिच्छू कुलबुला रहे हैं, उससे दूर रहो।
मेहंदी ने उसकी याददाश्त वापिस लाने के लिए उसकी सारी किताबें उसके पास भिजवा दी थीं मगर वह किताबें उसके पास पड़ी की पड़ी रहीं। उसने उन्हें खोला तक नहीं था। फिर एक दिन वह उन्हें उठाकर एक नाले में फेंक आया।
उनसे दूर रहो। उसने नाले के किनारे बैठे दस्त करते भिखारी से कहा जो अपनी इकलौती आँख से उसे ताक रहा था। अच्छी चीज़ें नहीं हैं ये, इनके अन्दर बिच्छू कुलबुला रहे हैं।
गिरजाघर के अँधेरे कमरों से आत्माएँ गिरती पड़ती दाखि़ले की तरफ़ भागी जा रही थीं जब गिरजा शंकर की आत्मा ने हाथ फैला कर उन्हें रोका।
वो सिया है, उसने कहा। सब दूर रहो।
मगर आत्माएँ उस के अन्दर से निकलती चली गयीं। सिया दुलारी की आत्मा अपने लम्बे लम्बे बाल बिखेरे नुकीली दीवार पर चल रही थी।
देखो देखो। वह कह रही थी। अब मुझे क्या कुछ आ गया है।
वह नंगी थी और ख़ूबसूरत थी और उस की आँखें सब्ज़ थीं। उसके स्तनों से दूध बह रहा था। उसने गिरजा को पहचानने से इंकार कर दिया। गिरजा ने अपने लम्बे-लम्बे नाख़ूनों से उस की आँखें निकालने की कोशिश कीं।
आखिर क्यों? सिया की आत्मा ने विरोध किया। मगर उसकी एक आँख गिरजा निकाल चुका था, जिससे लापरवाह उस की दूसरी आँख मटक रही थी।
तुम मेरे बच्चों को क्यों छोड़ आयी ?
वह हमारे बिना ज़्यादा ख़ुश हैं, सिया की आत्मा ने कहा। और मुरली ने आत्महत्या कर ली है। वह छत पर होगा।
सारी आत्माएँ गिरते पड़ते छत की तरफ़ भागीं। आसमान तारों से ढँका हुआ था जिनकी रोशनी में मुरली मुंडेर पर झुका एक किताब का अध्ययन कर रहा था। उसने उन्हें देखकर अपनी नाक हिक़ारत से सिकोड़कर शहर की तरफ़ इशारा किया जो रोशनी में नहा रहा था। तुम्हें इस शहर से मतली नहीं आती?
और तुम्हें ? आत्माओं ने पूछा।
चुप रहो। मुरली ने जवाब दिया और जेब से माऊथ आर्गन निकाल कर बजाने लगा। ये आवाज़ किसी अनदेखी आत्मा की तरह रोशन शाहराहों पर फैल गयी। मगर अपने दैनिक जीवन में मसरूफ़ लोगों ने इस की तरफ़ ध्यान नहीं दिया। उन्हें इससे ज़्यादा ज़रूरी काम थे।