जीवन है, वह अब भी है । अज्ञेय के उद्धरण - ओम निश्‍चल
14-Jul-2020 12:00 AM 1652
अज्ञेय एक ऐसे कवि चिंतक आलोचक दार्शनिक तथा भारतीय जीवन मूल्‍यों के उदगाता थे जिनके यहां पाश्‍चात्‍य एवं अधुनातन वैचारिक परंपराएं एक संधिबिन्‍दु पर मिलती हैं । अज्ञेय के काव्‍यए आख्‍यानए निबंधए जर्नलए डायरी इत्‍यादि में उनके विराट व्‍यक्‍तित्‍व एवं चिंतन की खूबियां दृष्‍टिगत होती हैं। ऐसे विपुल अध्‍ययन.चितन के धनी अज्ञेय जैसे कवि की कृतियों को पढ़ना अपने आपमें भारतीय मनीषा की सदियों से आयत्‍त परंपरा से जुड़ना है। उनके विपुल कृतित्‍व में इतनी उद्धरणीयता हैए जीवन संसार की इतनी महनीय बातें हैंए संस्‍कृतिए स्‍वाधीनताए सामाजिक चेतनाए साहित्‍यए वैचारिकीए कलाओं के अंतरूसंबंध का एक ऐसा संसार सहयोजित है जिसे एक साथ समेट सकना बहुत मुश्‍किल है। बहुत पहले इला डालमिया कोइराला ने अपने रहते उनकी विचारवीथी से चुन बीन कर एक स्‍फुट चिंतन की पुस्‍तिका संपादित की थी..कवि मन .. जो आज भी किसी भी लेखक की डायरीए वैचारिकी से कहीं उच्‍चतर मूल्‍यों का वहन करने वाली कृति है।
 
इस दिशा में रज़ा फाउंडेशन ने कालजयी लेखकों के कृतिपरक विचारों का संग्रह शुरू किया है। इस दिशा में मुक्‍तिबोधए बिनोबा भावे आदि के विचारों के उद्धरणों के संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। इसी कड़ी में हाल ही में अज्ञेय के उद्धरणों को अज्ञेय साहित्‍य के सुधी अध्‍येता नंद किशोर आचार्य ने एक पुस्‍तक में सहेजा है। अज्ञेय अपने जमाने के क्रांतिकारी कवियों कथाकारों में रहे हैं। शेखर एक जीवनी उस वक्‍त की लेखकीय क्रांतिकारिता का एक अनन्‍य उदाहरण था जिनके विचारों के खुलेपन ने सदैव उन्‍हें आलोचकों के निशाने पर रखा। यह वही थे जो ठसक के साथ कह सकते थेए श्श् मैं मरूंगा सुखी। मैंने जीवन की धज्‍जियां उड़ाई हैं।
 
उनके जीवन काल में उन्‍हें बार बार प्रश्‍नांकित किया गया। प्रगतिशीलों के सवालों से वे सदैव मुखातिब रहे। उनके एक वक्‍त मुखर आलोचक रहे जाने माने कवि अशोक वाजपेयी ने भी बाद में अपने समय के बहुनिंदित इस लेखक के स्‍थायी महत्‍व को समझा और उन्‍हें पुनर्व्‍याख्‍यायित और विश्‍लेषित किया। उन्‍हें वागर्थ के वैभव के रूप में देखा। निराला के बाद अज्ञेय ही कह सकते थे कि छंद में मेरी समाई नहीं हैध् मैं सन्‍नाटे का छंद हूँ। निराला ने मुक्‍त छंद का समर्थक जिस प्रवाह को माना थाए अज्ञेय में आगे चल कर वह अधिक संपुष्‍ट और संवर्धित हुआ। अनेक विरोधी सवालों के साथ एक बार उनसे बातचीत के दौरान मैंने स्‍वयं महसूस किया कि अज्ञेय विपरीत परिस्‍थितियों में भी धैर्य खोने वाले इंसान न थे। उल्‍टे वे कवियों को श्श्कवि कंठाभरणश्श् की इस सीख का उदाहरण देते हुए कहते थेए ष्लोक में जाओए पैठो पर वैयाकरणों से बचो।ष् वे कवि की स्‍वायत्‍तता पर किसी आलोचक की शस्‍ति के अभिलाषी न थे।
 
आचार्य ने अज्ञेय साहित्‍य के विपुल संसार से तमाम विषयों पर अज्ञेय के मंतव्‍यों का संकलन किया है। साथ ही उनकी कविताओं से भी ऐसे अनेक उद्धरणीय अंशों का संकलन प्रस्‍तुत किया है जिन्‍हें पढ़ते हुए लगता है अज्ञेय काव्‍य में ऐसे मोती माणिक का खजाना भरा पड़ा है। उसकी चमक आज ही नहींए आने वाले समयों में फीकी पड़नेवाली नही है। आइये उनके कुछ रचनात्‍मक अंश देखते हैं ...
 
भाषा कल्‍पवृक्ष है। जो उससे आस्‍थापूर्वक मॉंगा जाता हैए भाषा वह देती है।

मुझे सब कुछ मिलाए पर सब बेपेंदी का। शिक्षा मिलीए पर उसकी नींव भाषा नहीं मिलीयआजादी मिलीए लेकिन उसकी नींव आत्‍मगौरव नहीं मिलाए राष्‍ट्रीयता मिलीए लेकिन उसकी नींव अपनी ऐतिहासिक पहचान नहीं मिली।

स्‍वाधीन होना अपनी चरम संभावनाओं की संपूर्ण उपलब्‍धि के शिखर तक विकसित होना है।

कोई भी बड़ा मूल्‍य ऐसा नहीं है जिसके नाम पर अत्‍याचार न हुआ होय और शायद यह भी कह सकते हैं कि कोई भी अतयाचार ऐसा नहीं है जिसके साथ कोई मानव.मूल्‍य नहीं जोड़ा गया।

सभ्‍यता जब अपनी अद्वितीयता का दावा करती है तब एक सीमा भी स्‍वीकार करती है। हर दूसरी सभ्‍यता उतनी ही अद्वितीय है।
 
कवितांश ....
अच्‍छी बात नहीं है
पिताओं के बारे में सोचना
अपनी कलई खुल जाती है।

जहां सुख है
वहीं हम चटक कर
टूट जाते हैं बारम्‍बार
जहां दुखता है
वहां पर एक सुलगन
पिघलाकर हमें
फिर जोड़ देती है
 
जियो उस प्‍यार में
जो मैंने तुम्‍हें दिया है
उस दुख में नहीं
जिसे बेझिझक मैंने पिया है।
 
अज्ञेय में भारतीय कवि के सांगोपांग लक्षण होने के साथ साथ वे अंतर्राष्‍ट्रीय क्षितिज पर समादृत कुछ कवियों के समकक्ष रखे जा सकते हैं। उनके यहां पश्‍चिम के चिंतन की हवा बयार वैसे ही बहती है जैसे हमारी एक दूसरे शहर प्रदेश आदि में नियमित आवाजाही। वे अपनी सोच में प्रगतिशील थे। संकीर्णताओं के धुर विरोधी पर अपनी वैचारिकता पर किसी विचारवाद का प्रभुत्‍व न सहने वाले। उन्‍होंने क्रातिकारी का जीवन जियाए एक फौजी का जीवन जिया तथा साहित्‍य में भी वे एक अनुशासित जीवन के हामी थे। अज्ञेय के उद्धरणों के जरिए उनके विचारों के आलोक को एक जिल्‍द में सहेजना बहुत सहज नहीं है क्‍योंकि उपन्‍यासों में आए उनके संवाद भी जीवन सत्‍व में कमतर नहीं है। जिस वृहत्‍तर आलोक ने उनके कवि मन को सींचा व पल्‍लवित विकसित किया है उस आलोक की कनी उनके काव्‍य में ही नहींए उनके भौतिक व्‍यक्‍तित्‍व के उजास में भी देखी व महसूस की जा सकती थी। अज्ञेय का काव्‍य अलक्षित का संधान है। नए का उन्‍मेष है। अज्ञात का निर्वचन है।
 
अज्ञेय के उद्धरण ...के चयन संपादन में प्रो नंद किशोर आचार्य ने जिस तल्‍लीनता का परिचय दिया है उसी कारण यह चयन अत्‍यंत संग्रहणीय बन पड़ा हैए इसमें संदेह नहीं।

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अज्ञेय के उद्धरण ..का प्रकाशन रजा पुस्‍तक माला एवं राजकमल प्रकाशन की ओर से संयुक्‍त रूप से किया गया है।
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