Every month is full of days and weeks to observe and celebrate.
सबा
आती हैसुबहमेरे गालो को छूनेफिर फेर लेती है आँखेंबिना पूछे उस कोजिसे हम भूल बैठे हैं
मुद्दत
मुद्दत हुई है, यार,लेकिन घर भी तो न था-न दहलीज़, न दरवाज़ान देश, न विदेश
इक दूजे को कहाँ पायें
नक्शे भी तो बदल गये...