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मुझे एक मनुष्य की तरह पढ़ो - मिथलेश शरण चौबे
मिथलेश शरण चौबे
India
24-Jul-2020 12:00 AM
1422
समग्रता के विचार में एकाग्रता की अवहेलना को प्रश्रय मिलता है | गाँधी जी जैसी शख्सियत के बारे में इस बात की गुंजाइश बढ़ जाती है, जिनकी क्रियाशीलता के दायरे और दौर के व्यापकत्व की चकाचौंध में आसानी से उलझा जा सकता है | युवावस्था से शुरू होकर मृत्युपर्यन्त सार्वजनिक क्रियाशीलता के अनेक आयामों को उद्घाटित करता उनका जीवन, अनेक छोटे-बड़े महत्त्वपूर्ण प्रसंगों का समुच्चय है| दिखने में कोई बड़ा या छोटा भले ही प्रतीत हो किन्तु गाँधी जी की दृष्टि और बरतने के ढंग में किसी तरह की साधनों व लक्ष्यएकाग्र होने की विरलता या सघनता का फ़र्क नहीं रहता| उनके अनूठेपन की एक मिसाल यह भी है कि वहाँ छोटे-बड़े का हैसियतजन्य भेद नहीं है, न व्यक्ति के मामले में और न ही घटना या कवायद के मामले में| गाँधी जी की सक्रियता की अवधि लम्बी होने और उसमें घटनाओं की बहुलता के कारण तथा भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति, वैश्विक दृष्टि में चरम परिणिति की वजह से, गाँधी अध्येताओं-विश्लेषकों का सारा ध्यान स्वाधीनता आन्दोलन के अन्तर्गत की घटनाओं पर केन्द्रित रहा है तथा इसी के आलोक में उनको समूचा विश्लेषित किया जाता है| कह सकते हैं कि दक्षिण अफ़्रीका में संघर्ष के बीजारोपण की निर्णायक क्रियाशीलता के बावजूद वर्णन में उत्तर गाँधी, पूर्व गाँधी से ज़्यादा गाढ़े नज़र आते हैं और अफ़्रीकी मुद्रा को पूर्वाभ्यास का पर्याय होने के लिए अभिशप्त होना पड़ता है| पूर्व गाँधी को क्या दो-एक घटनाओं के फ्रेम में ही देखा जा सकता है ? गाँधी जी के बहुत सारे विश्लेषण में उनपर जीवनीपरक उपक्रम भी हैं | भारतीय और अभारतीय दोनों तरह के अनुसन्धाताओं ने उनके जीवन को अपनी-अपनी दृष्टि से अनावृत किया है | घनश्यामदास बिड़ला – बापू , सम्पूर्णानन्द – धर्मवीर गाँधी, राजेन्द्र प्रसाद – चम्पारण में महात्मा गाँधी, जैनेन्द्र कुमार – अकालपुरुष गाँधी, कृष्ण कृपलानी – गाँधी : एक जीवनी, प्यारेलाल व सुशीला नायर – महात्मा गाँधी, डी जी तेन्दुलकर – महात्मा, बनवारी – भारत का स्वराज्य और महात्मा गाँधी जैसे और भी भारतीय उपक्रमों के साथ ही रोमाँ रोलाँ – महात्मा गाँधी जैसे अभारतीय उपक्रम भी शामिल हैं | इस क्रम में रामचन्द्र गुहा जैसे अगाध अध्येता भी हैं जिन्होंने प्राथमिक स्रोतों के अध्ययन से गाँधी जी को विस्तार से व्याख्यायित किया है, ‘गाँधी : भारत से पहले’ उनकी उल्लेखनीय किताब है| जीवनी से इतर अन्य साहित्य रूपों में भी गाँधी विचारों व वृत्तान्तों की प्रचुर उपलब्धता है जिसे उदाहरण के रूप में हम हिन्दी में भवानी प्रसाद मिश्र रचित – ‘गाँधी पंचशती’ तथा हंगेरियन नाटककार नेमेथ लास्लो के नाटक – ‘गाँधी की मृत्यु’ के रूप में देख सकते हैं |
उत्तर गाँधी पूर्व गाँधी से निर्मित हैं इसलिए उस स्वरूप को भूलकर गाँधी जी के ‘बनने’ को समझना मुश्किल है | अड़तीस – चालीस बरस के ऐसे गाँधी जो सेठ अब्दुल्ला के आमन्त्रण पर सिर्फ़ वकालत के लिए दक्षिण अफ़्रीका गए थे, क्या इतना कुछ अल्प समय में कर लेते हैं कि एक ब्रिटिश पादरी उनका जीवनालेख्य लिखना चाहे | यह व्यक्ति
जोसेफ जे डोक
हैं जिन्होंने 1909 में गाँधी जी की पहली जीवनी
गाँधी : दक्षिण अफ़्रीका में भारतीय देशभक्त
लिखी | समय और व्यक्ति के बीतने पर तो उसकी विरुदावली गाई ही जाती है, समय रहते हुए अर्थात किसी की क्रियाशीलता के सम्मुख उसकी पड़ताल और अभिप्रायों को जानकर वास्तविक सन्दर्भों में प्रस्तुत करना, कम से कम हिन्दुस्तान के परिप्रेक्ष्य में एक अल्प घटित घटना है | मूलतः अंग्रेज़ी में लिखित इस जीवनी को हिन्दी में अनुदित किया है नन्दकिशोर आचार्य ने जो बतलाते हैं कि यह गाँधी जी के जीवन वृत्त,कार्यों, उपलब्धियों, विचारों पर पहली क़िताब है |
गलत समझे जाने से अभिशापित गाँधी जी मृत्योपरान्त भी दुर्व्याख्याओं से आक्षेपित हैं | दरअसल उनके अवमूल्यन के षड्यन्त्रकारी प्रयास हर दौर में मुखर रहे हैं | इस किताब में गाँधी जी के अफ़्रीकी दौर के निष्क्रिय प्रतिरोध, उनकी धार्मिक अवधारणा के केन्द्रीय उद्घाटन के साथ ही उनकी तात्कालिक सक्रियता, सत्यनिष्ठा और भारतीय मनुष्यों के लिए समानभाव का प्रस्ताव मुख्यता से वर्णित है | जीवन के अन्तिम समय में उनकी सभी धर्मों का होने की स्पष्टता, अफ़्रीकी दौर से ही झलकती है | लन्दन के दौर में नास्तिकता के विचार ने तथा विकल्प रूप में ईसाइयत के प्रस्ताव ने उन्हें हिन्दू धर्म के गहन अध्ययन की ओर प्रवृत्त किया था | उन्होंने सभी धर्मों के मूल आधारों और कार्यपद्धतियों को सूक्ष्मता से समझा और निष्कर्ष रूप में अपने को सभी के निकट और किसी एक का ही होना नहीं पाया | सभी के उत्कृष्ट विचारों को आत्मसात कर, अपने व्यव्हार में अन्तर्निहित धर्मनिरपेक्ष भाव से अन्यों में इस विचार के उन्नयन की उम्मीद बनाए रखी | उनके लिए ‘सत्य’ मुख्य आकर्षण रहा |
यह क़िताब अफ़्रीका में भारतीय समुदाय के गर्हित जीवन को सम्मानजनक स्थिति तक पहुँचाने के गाँधी जी के संघर्ष का ऐतिहासिक ब्यौरा नहीं देती बल्कि उस स्थिति में अपने देशवासियों सहित समूचे एशियाई ब्रिटिश उपनिवेशी नागरिकों के अन्दर आत्मगौरव की ललक दीप्त करने और उसके लिए पूर्ण समर्पण के मृत्यु उन्मुख रास्ते के वरण की गाँधी पद्धति को प्रकट करती है | ट्रेन से उतारा जाना, भारत से लौटने पर जहाज उतरने नहीं देना, उतरने पर हमला होना, गलत समझे जाने पर प्राणघातक आक्रमण आदि घटनाएँ नेटाल इण्डियन काँग्रेस, नेटाल इण्डियन एजुकेशन एसोशिएसन के गठन तथा इण्डियन ओपिनियन के प्रकाशन और फीनिक्स आश्रम व तोलस्ताय फॉर्म के समक्ष अब बौनी ही नज़र आती हैं | ठीक इसी क्रम में भारतीयों पर हर बार के अत्याचार बोअर युद्ध, प्लेग और जुलू विद्रोह के दौरान गाँधी जी के नेतृत्त्व में स्वयंसेवकों की तरह की गयी तत्परता से सेवा के समक्ष उथले ही प्रतीत होते हैं | निष्क्रिय प्रतिरोध की कार्यावाही इसीलिये अफ़्रीका में भारतीयों का सबसे सुन्दर प्रतिवाद रहा |
इस किताब के लिखे जाने के बाद लगभग छह बरस और गाँधी जी अफ़्रीका में रहे और हम जानते हैं कि इस दौरान उनके संघर्षों के प्रतिफल : वहाँ रह रहे भारतीयों के अधिकारों में इज़ाफ़ा हुआ तथा कठोर कानूनी बन्धन एक हद तक शिथिल हुए | यहाँ वर्णित गाँधी छवि, सफलता के पूर्व संघर्ष की राह पर चलते एक ऐसे व्यक्तित्त्व को उद्भासित करती है जिसने योजनाबद्ध तरीके और मानवीयता की आस्था के साथ सत्य के लिए निर्णायक मुक़ाबला किया था |
जीवनीकार ने अड़तीस बरस की जिस युवा शख्सियत को सुना, उससे सम्वाद किया, उनके सरोकारों को सूक्ष्मता से समझा, क्रियाशीलता की एकाग्रता को अनुभव किया, साधनों के प्रति निष्ठा व क्रूरता बरतने वालों के प्रति क्षमाभाव के विस्मयकारी क्षणों से साक्षात किया तथा यह सब करते हुए शान्त, संयत तरह से अपने विचारों को व्यक्त करते व्यक्तित्त्व की ईमानदार ज़िद की अडिगता से सामना किया ; यह पूर्व गाँधी छवि, कार्यक्षेत्र के विस्तार और जटिलता की स्थिति में भारत में उत्तर गाँधी में बढ़त के साथ चरितार्थ होती है |
गाँधी जी के जीवन में मूलभूत प्रश्नों के शुरूआती स्वरूप को समझने के लिए तो यह जीवनी पढ़ी ही जा सकती है, अफ़्रीकी गाँधी को एक अभारतीय जीवनीकर्ता की दृष्टि से देखने व गाँधी को पहली बार शब्दों में अवतरित होता देखने के लिए भी यह किताब पढ़ी जाना चाहिए |
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गाँधी : दक्षिण अफ़्रीका में भारतीय देशभक्त
जोसेफ जे. डोक
अंग्रेज़ी से अनुवाद : नन्दकिशोर आचार्य
रज़ा पुस्तकमाला, नयी किताब प्रकाशन, नयी दिल्ली
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