प्रतिबिम्ब
22-Feb-2021 12:00 AM 3572
भारतीय परम्परा में कलाओं की अन्तर्निभरता विख्यात तो है पर आधुनिकता की झोंक में वह अगर ग़ायब नहीं तो बहुत शिथिल ज़रूर हो गयी है: उनके लिए साझी रसिकता का भी ख़ासा अभाव है। चित्रकला के आधुनिक भारतीय मूर्धन्य सैयद हैदर रज़ा की रुचि और रसिकता के वितान में कविता, शास्त्रीय संगीत और शास्त्रीय नृत्य की बड़ी जगह थी। उनके नेतृत्व में रज़ा फ़ाउण्डेशन ने ललित कला के अलावा इन क्षेत्रों में सम्भावना, उपलब्धि और नवाचार को प्रोत्साहित और संवर्द्धित करने के लगातार प्रयत्न किये हैं। कोशिश यह भी रही है कि कलाओं के बीच अवरुद्ध संवाद का पुनर्वास हो।
 
कुछ युवा शास्त्रीय नृत्यकारों ने रज़ा से प्रेरित नृत्य संरचनाएँ तैयार की हैं जो रज़ा शती के शुभारम्भ के अवसर पर प्रस्तुत हैं।
 
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