मरीने पेत्रोशियन की कविताएँ अंग्रेज़ी से अनुवादः उदयन वाजपेयी
27-Oct-2020 12:00 AM 5338

मरीने पेत्रोशियन अर्रेमेनियायी भाषा की अद्वितीय कवयित्री हैं। वे पिछले वर्ष रज़ा फ़ाउण्डेशन, नयी दिल्ली द्वारा आयोजित एशिया कविता समारोह में भाग लेने दिल्ली आयी थीं। मेरी भेंट उनसे तभी हुई। उनकी कविताएँ सुनते हुए यह महसूस हुआ मानो कोई सीध्ाी-सादी सतह पर चलते हुए खतरनाक घाटी में गिरने का सा अनुभव हो रहा हो। उनकी कविताओं की, जैसा कि पाठक लक्ष्य करेंगे, ऊपरी सतह बिल्कुल सादी है और उसे पढ़ते हुए यह अनुभव नहीं होता कि आप किसी गहरे गहन अनुभव से गुज़र रहे हैं। पर जैसे ही आप उसे पढ़कर समाप्त करते हैं आपको यह अनुभव होता है मानो आप किसी विभीषिका से गुज़र रहे थे। यह कविता लिखने का शायद सबसे मुश्किल ढंग है क्योंकि मरीने पेत्रोशियन की कविताओं में कविता होने का ज़रा भी आडम्बर नहीं है। यहाँ कवि साध्ाारण शब्दों में अप्रत्याशित गहरी दृष्टि उद्घाटित करती है और इस तरह रोज़मर्रा इस्तेमाल होने वाले शब्दों को नयी अर्थवत्ता से स्पन्दित कर देती है। उनका जन्म येरेवान, अर्मेनिया में 16 अगस्त 1960 को हुआ था, वे कविताओं के अलावा निबन्ध्ा और अख़बार में स्तम्भ भी लिखती हैं। उनकी कविताओं की कई किताबें अर्मेनियायी भाषा में प्रकाशित हैं, जिनमें से कुछ के शीर्षक कुछ इस प्रकार हैं- कविताएँ, पहली पुस्तक; (1993); अर्मेनियायी समुद्र-तट पर (2006) वह बन्दूक जिससे गोली चली थी (2014)। उनकी पहली पुस्तक अर्मेनिया के भूतपूर्व सोवियत संघ से स्वतन्त्र होने के दो वर्ष बाद प्रकाशित हुई थी। मरीने केलिर्फोनिया, वियना, न्यूयार्क शहर आदि में प्रवासी लेखक रह चुकी हैं। इन दिनों अर्मेनिया में ही रहती हैं।
-अनुवादक

बारि’ा एक-सी हो रही है

बारि’ा सब पर
एक-सी हो रही है
छोटे पर, बड़े पर
खु’ाकिस्मत पर, बद्किस्मत पर
बारि’ा हर ओर हो रही है
हमे’ाा से हो रही है
मैं पैदा नहीं हुई थी, वह हुई थी
बिजली जैसी चीज़ नहीं थी, वह हुई थी
आदमी आदमी खाता था, वह हुई थी
बारि’ा होते मैं देख सकती हूँ,
बारि’ा मुझे नहीं देखती
मैं खु’ा हूँ या उदास
भेडि़ये मेरे माँस पर
उत्सव मनाएँ,
उसे फ़र्क नहीं पड़ता
बारि’ा मनुष्य के दूसरी तरफ़ है
हम सब उसके लिए कुछ नहीं हैं
वह सब पर एक-सी हो रही है
छोटे, बड़े पर
हो’िायार, बेवकूफ़ पर
नीच और उस पर जो
नीच नहीं है।


थम गयी बारि’ा, तुम यहाँ नहीं हो

तुमसे मैं बात करना चाहती हूँ,
तुम यहाँ नहीं हो
अम्मा

तुमसे मैं पूछना चाहती हूँ
हम बारि’ा में
क्यों खड़े रहे थे?
भीतर क्यों नहीं गये
मतलब, हम क्यों नहीं गये भीतर
अम्मा

मैंने तुम्हारा हाथ
कस कर पकड़ा था
पर वह गीला था
और तुम बोलती नहीं थीं
तुम कभी नहीं बोलती थी
अम्मा

अब
बारि’ा थम गयी है
और तुम यहाँ नहीं हो
और तुम कभी नहीं होगी
अम्मा


दो लोगों के बीच

दो लोगों के बीच
हमे’ाा एक सड़क होती है
जिस पर कारें भागती हैं

अगर तुम सड़क पार कर भी लो
तुम पाओगे
वह क्षणभर पहले वही कर चुका है
कि वह फिर से सड़क के
दूसरी ओर हो सके

दो लोगों के बीच
हमे’ाा एक सड़क होती है
कारें भागती हैं जिस पर


सूर्य और काला कुत्ता

उस शहर में
मेरा कोई दोस्त या परिचित नहीं था
लेकिन होमर के बारे में
उन्हें वह पता था
जो मुझे भी था
उन्हें पता था, होमर अन्ध्ाा था
और बहुत पहले मर गया था
बहुत बहुत पहले
लेकिन कभी
एक होमर था
जैसे मैं हूँ
जैसे तुम हो
जैसे एकीलिस था
हेलेन भी
और हेक्टर भी
हालाँकि मैं इस शहर में एक भी आदमी को नहीं जानता
हालाँकि मैं उनकी भाषा नहीं बोलती
न ही यूनानी मेरी भाषा बोलते थे
लेकिन मैं सूर्य को खूब जानती थी
जब वह हर सुबह उगता था
और मैं उदासी को भी खूब जानती थी
जो बिना आहट आ जाती थी
और मेरे हृदय को दबोच लेती थी
नियति की तरह
जो इडिपस के सामने आयी थी
काले कुत्ते की तरह !


हर चीज़ का अन्त

मैं चाहती हूँ कि इतनी ढेर-सी बर्फ़ गिरे
कि मैं चकित हो जाऊँ
इतनी चकित कि
बोल न पाऊँ
चल न पाऊँ

मैं चाहती हूँ इतनी ढेर-सी बर्फ़ गिरे
कि वह मुझे पूरी तरह ढँक ले
कि मैं भूल जाऊँ कि
मुझे अपनी डबलरोटी खरीदना है
कि मैं भूल जाऊँ
मुझे घर जाना है

कि मैं भूल जाऊँ
कि मैं ठण्ड में ठिठुर कर मर सकती हूँ
कि मैं भूल जाऊँ
कि मृत्यु सब कुछ का अन्त है
जब बर्फ़ खूब गिरेगी
सब कुछ को ढँक देगी
डबलरोटी की
ज़रूरत खत्म हो जाएगी
जब बर्फ़
आका’ा के
पक्षियों तक को ढँक देगी
घर की ज़रूरत
खत्म हो जाएगी

अगर यह अन्त है
तब तो अन्त
उससे कहीं अध्ािक खूबसूरत है
जितना मैं सोचती थी


अब यह शहर तुम्हारे सामने पे’ा है

दिन भागते हुए बीत गये, भागते हुए बीत गये
और अब यह शहर तुम्हारे सामने पेश है
यह शहर जिसकी ढेरों गलियाँ
तुम्हें सब देती हैं
वह सब जो तुम जाने कब से
खोजते रहे थे और आखिरकार पा गये थे
लेकिन उन्हें खोजने की प्रक्रिया में
तुमने अपनी दूसरी प्रिय ढेरों चीजे़ं खो दीं

और अब यह समझना मुश्किल है कि
अपने सामने पेश इस ऐश्वर्यशाली शहर को पाकर
जहाँ की सैकड़ों गलियाँ
तुम्हें सब दे रही हैं
वह सब दे रही हैं जो तुम
जाने कब से खोजते रहे थे और
आखिरकार पा गये थे,
तुम खुशी से रो रहे हो?
या खोजने और पाने की
लम्बी प्रक्रिया में
अपनी प्रिय चीज़ों के खो जाने के
दुःख से रो रहे हो?

चादर
(सोविक के लिए, उसके भाई की मृत्यु के बाद)

अपने से अनजाने व्यक्ति
की मृत्यु पर
तुम्हे अलग उदासी घेरती है

एक तरह की
अकथ उदासी

और तुम पहचान लेते हो
कि यह उदासी
हमेशा तुम्हारे
साथ थी

तुमने सिर्फ़ उसे
महीन लगती
चादरों से
ढँक रखा था

और अब
ऐसे व्यक्ति के शरीर को देखकर
जो जा चुका है
तुम्हें लगता है
कि तुम्हारे भीतर की
महीन चादरें
फट रही हैं
एक के बाद एक

शीर्षक विहीन

मेरा हृदय दुःखी है
मुझे अपनी माँ
और मेरी अपनी याद आती है
जब मैं इतनी छोटी थी कि
मेरा सिर हमारी खिड़की तक नहीं पहुँचता था
और मुझे याद है कि
जब मैं छोटी थी बिना किसी कारण
हमेशा उदास रहती थी
वह बिना कारण की उदासी थी
स्थायी और भारी
फिर मैं बड़ी हो गयी
अब मेरा दुःख स्थायी नहीं है
बीच बीच में
हर्ष के कुछ अन्तराल भी आते हैं
पर अब माँ कहीं भी
खोजे नहीं मिलती
वह स्थायी रूप से
जा चुकी


सोवियत संघ, बचपन की स्मृति

स्टेशन का हाॅल
शोर से भरा
अनेक आवाजे़ं
कोई मेरा हाथ पकड़ लेता है
शायद मेरी माँ
लेकिन हम अकेले नहीं हैं
पिता निश्चय ही कहीं क़रीब ही हैं
केवल बहन साथ नहीं है
शायद वह अब हर कहीं नहीं है
मुझे याद है हमारे आसपास के सभी लोग बतिया रहे हैं,
चल रहे हैं
भाग रहे हैं
शायद ट्रेन क़रीब है
लेकिन हम हिलते तक नहीं
एक जगह खड़े
हम बोलते नहीं
कोई जल्दी नहीं
बहुत समय बाकी है
अभी तो


सुकुमार प्राणी

मनुष्य
नाजु़क प्राणी है
आसानी से डर जाता है
उम्मीद खो देता है आसानी से
आसानी से मर जाता है।

मनुष्य हमेशा
कँटीली सेही जैसा है

भले ही वह ऊपर से
भालू जैसा हो
या मगरमच्छ जैसा ही,
उसका हृदय
बहुत तेज़ी से ध्ाड़कता है
सेही के नुकीले काँटों के नीचे
ध्ाड़कते हृदय की तरह

यह ज़रूर है
सेही
मार डाले जाने और
खा ली जाने से
डरती है

मनुष्य
प्रेम न किये जाने से।


बसन्त था ग्रीष्म था

बसन्त था ग्रीष्म था फिर से बसन्त था
बारिश हुई बर्फ़ पड़ी फिर पिघल गयी
बहुत-सी चीजे़ं होने को थीं, नहीं हुई
न कभी होंगी।

बर्फ़ की बून्दें केवल बसन्त भर जीवित रहती हैं
मैं अपने पीछे कई बसन्त छोड़ आयी
पर फिर से सूर्य चमकता है मानो कुछ हुआ ही न हो
मानो कोई हमेशा के लिए खोया न हो

सर्दियाँ हैं, ठण्ड है पर मेरे पास हीटर नहीं है
और मुझे पता है बसन्त आता ही होगा
तुम ठण्डी हो गयी थी और तुम्हें पता था कि तुम्हारे लिए बसन्त नहीं आने वाला
सुबह से मैं तुम्हें याद कर रही हूँ-
तुम्हारा शरीर किस तरह पीड़ा में डूब गया था
सुबह से मैं तुम्हें याद कर रही हूँ और रो रही हूँ।


सर्दियों में बर्फ़ गिरी

तुम दूर सरकते जा रहे हो
बर्फ़ की तरह-
वह गिरी थी एक रात
और उसने सब ढँक लिया था
सारी सड़कें बन्द कर दी थीं
हर आवाज़ चुप कर दी थी
हर दरवाजे़ पर इकट्ठा हो गयी थी

अब रास्ते खुल गये हैं
दरवाजे़ खुल गये हैं
और तुम दूर सरकते जा रहे हो
बर्फ़ की तरह
जो दूर सरकती जाती है
जब मैं उसे गर्म अंजुलि में
भरने की कोशिश
करती हूँ।


शरीर का हल्कापन

सुख
चीज़ों का हल्कापन है
शरीर का हल्कापन
चलन का हल्कापन
जब हम सुखी होते हैं- चीज़ें पीड़ा नहीं देतीं
शब्द पीड़ा नहीं देते
असुन्दरता पीड़ा नहीं देती
भद्दा व्यवहार पीड़ा नहीं देता
स्मृति पीड़ा नहीं देती
अतीत पीड़ा नहीं देता
भविष्य पीड़ा नहीं देता
क्योंकि जब हम सुखी होते हैं
अतीत नहीं होता
और न भविष्य ही
सब ‘अभी’ में बदल जाते हैं
हर, बिल्कुल हर कुछ आकर ‘अभी’ को भरते हैं
और हर्ष में बदल जाते हैं
गहरे हर्ष में
बिना सीमाओं के हर्ष में
बिना ब्लेक होल्स के

सुख
सारे आयामों के परे का आकाश है
जहाँ मैं और तुम
एक-दूसरे से भिन्न नहीं हैं
हम एक-से हैं
सुख में
हम एक-से हैं


हर कोई क्यों दौड़ा जा रहा है

हर कोई क्यों दौड़ा जा रहा है
बात करने को कोई बात नहीं है
हमने इतनी सारी नहरें खोदीं
इतने सारे पेड़ लगाये
इतने सारे शहर बसाये
लेकिन तब भी लोग भूखे हैं
वे पैसा कमाने दौड़ें जा रहे हैं
जितना रईस हो देश
उतना तेज़ दौड़ता है
दिन-ब-दिन
तेज़ और, और तेज़ दौड़ता है
बात करने को कोई नहीं है

वस्तुओं का स्वर्ग

कोई आसपास नहीं है
कहाँ हूँ मैं ?
मुझे यहाँ अच्छा लग रहा है
वह क्या आवाज़ है ?
मनुष्य की नहीं लगती
वस्तुओं से आ रही है
एक तरह की भुनभुन
वस्तुएँ भुनभुन कर रही हैं
लेकिन बिल्कुल हल्के-से
सिर्फ़ इतनी कि तुम्हे महसूस हो कि वे वहाँ हैं
कि वे अच्छा महसूस कर रही हैं
यह स्वर्ग हो सकता है
वस्तुओं का स्वर्ग
मैं मरी नहीं हूँ
वस्तु में बदल गयी हूँ
मुझे यहाँ अच्छा लग रहा है

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