रहस्यमय काव्यलोक में प्रवेश का सरस मार्ग
14-Jun-2020 12:00 AM 1557
रज़ा फाउंडेशन, दिल्ली के अंतर्गत रज़ा पुस्तकमाला ने साहित्य एवं कला से संबंधित अनेक क्षेत्रों की पुस्तकों का प्रकाशन किया है | यह सब रज़ा पुस्तकमाला के प्रधान संपादक एवं यशस्वी कवि अशोक वाजपेयी की रचनात्मक अंतर्दृष्टि का सुनियोजित परिणाम है | यहाँ अशोक वाजपेयी के संगठनात्मक साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यों पर बातचीत का मौक़ा नहीं है पर इतना तो अवश्य कहा जा सकता है कि वे संगठनात्मक रूप से बाबू श्यामसुन्दरदास एवं शिवपूजन सहाय की परंपरा का विकसित रूप हैं | जिस तरह से बाबू श्यामसुन्दरदास ने नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी से एक ज़माने में ‘मनोरंजन पुस्तक-माला’ का प्रकाशन किया था और शिवपूजन सहाय ने बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् , पटना से एक से एक श्रेष्ठ एवं महत्त्वपूर्ण किताबों का प्रकाशन किया था उसी तरह उस के विकसित रूप में रज़ा पुस्तकमाला के अंतर्गत पुस्तकों का प्रकाशन हो रहा है | इन में से एक किसी पुरानी एवं महत्त्वपूर्ण पुस्तक, जो अब किसी कारण से अलक्षित हो गई है, का दुबारा प्रकाशन भी है | रज़ा पुस्तकमाला ने संस्कृत के अमर ग्रंथ ‘अमरुकशतकम्’ का कमलेशदत्त त्रिपाठी के संपादन में प्रकाशन किया है | इसी तरह ब्रजभाषा के प्रसिद्ध विद्वान प्रभुदयाल मीतल द्वारा संपादित किताब ‘ब्रजभाषा साहित्य का ऋतु-सौन्दर्य’ जिस का प्रकाशन अग्रवाल प्रेस, मथुरा से 1950 ई. में  हुआ था, का भी  पुनर्प्रकाशन अत्यंत रचनात्मक नाम ‘ब्रज ऋतुसंहार’ से हुआ है | इसी कड़ी में महामहोपाध्याय गंगानाथ झा की पुस्तक ‘कवि-रहस्य’ का भी प्रकाशन हुआ है |
     गंगानाथ झा की पुस्तक ‘कवि-रहस्य’ का प्रकाशन 1929 ई. में हिंदुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद से हुआ था | दरअसल गंगानाथ झा ने हिंदुस्तानी एकेडेमी में ही इसी विषय पर तीन व्याख्यान दिए थे | गंगानाथ झा हिंदी क्षेत्र की अकादमिक दुनिया में अत्यंत आदरणीय नाम हैं | वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रथम निर्वाचित कुलपति भी थे और लोगों का कहना है कि उन का शानदार काम रहा था |
     ‘कवि-रहस्य’ किताब का उपशीर्षक है --- अर्थात् प्राचीन समय में कवि-शिक्षा-प्रणाली | संस्कृत साहित्य में कवि-शिक्षा की अनेक पुस्तकें हैं | कवि होने के लिए आवश्यक तैयारी (आजकल फेसबुक एवं सोशल मीडिया ने तुरंता-फुरंता प्रकाशन की जो उपलब्धता दी है, क्या ऐसे समय में कवि या लेखक होने की किसी तैयारी का मतलब बनता है ? )  का पूरा वर्णन उन पुस्तकों में मिलता है | उन में भी राजशेखर की ‘काव्यमीमांसा’ के ‘काव्यपुरुषो:त्पत्ति’ और ‘पदवाक्यविवेक:’ अध्याय एवं क्षेमेंद्र की ‘कविकंठाभरण’ पुस्तक की सहृदयों की बीच महिमा रही है | गंगानाथ झा ने इन्हीं दो किताबों को आधार बना कर अपनी उद्भावनात्मक बातें कही हैं | यह सही है कि आज इन किताबों में विवेचित बहुत-सी बातें हमारी संवेदना एवं रचना-क्षेत्र के बाहर हैं परंतु जो मुद्दे इन में उठाए गए हैं वे आज भी विचारणीय तथा हमारे काम के हैं |
     ‘कवि-रहस्य’ किताब को पढ़ने से लगता है कि यह किताब साहित्य में प्रवेश करने वालों के लिए एक आधारभूत किताब है | इस में साहित्य को ले कर जो आधारभूत संकल्पनाएँ हैं उन्हें संस्कृत और हिंदी कविता के उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट किया गया है | एकाध उदाहरण से ही बात स्पष्ट हो जाएगी | संस्कृत काव्यशास्त्र में ‘काव्य-हेतु’ यानी काव्य के कारण पर विस्तार से चर्चा है | आज जिसे हम ‘रचना-प्रक्रिया’ कहते हैं उसी से बुनियादी तौर पर ‘काव्य-हेतु’ का सवाल जुड़ा हुआ है | गंगानाथ झा लिखते हैं कि “काव्य की उत्पत्ति का प्रधान कारण है ‘समाधि’ --- अर्थात् मन की एकाग्रता | जब तक मन एकाग्र समाहित नहीं होता तब तक बातें नहीं सूझती | दूसरा कारण है ‘अभ्यास’ --- अर्थात् बारम्बार परिशीलन | इसका प्रभाव सर्वव्यापी है | इन दोनों में भेद यह है कि ‘समाधि’ आभ्यंतर(मानसिक) प्रयत्न और ‘अभ्यास’ है बाह्य प्रयत्न | समाधि और अभ्यास --- इन दोनों के द्वारा ‘शक्ति’ उद्भासित होती है |” सावधान पाठक लक्ष्य कर सकते हैं कि गंगानाथ झा ने कितनी सफाई से ‘काव्य-हेतु’ को समझा दिया है | इतना ही नहीं वे इस क्रम में कालिदास, भोजराज और बिहारी की रचनाओं को भी उद्धृत कर उन की व्याख्या करते हैं जो उन की विदग्ध दृष्टि का परिणाम है |
     ऊपर कवि की तैयारी का ज़िक्र किया गया है | दूसरे व्याख्यान का शीर्षक ही है --- कविचर्या-राजचर्या  कवि का कर्तव्य | राजशेखर ने ‘काव्यमीमांसा’ में इस पर विस्तार से लिखा है | उन्होंने कवि की दिनचर्या, उस के आवास की स्थिति और उस के रहन-सहन पर भी आवश्यक निर्देश दिए हैं | ये सारे निर्देश आज पढ़ने में बहुत दिलचस्प लगते हैं | गंगानाथ झा की ख़ूबी यह है कि वे इन सब पर विचार करते हुए पाठक को संस्कृत से ले कर मध्यकालीन हिंदी कविता की यात्रा कराते हैं | कहीं वे कोई वेद मंत्र उद्धृत करते हैं तो कहीं कालिदास के श्लोक को तो कहीं पद्माकर के छंद को  और कहीं बिहारी के दोहों को | और फिर इन पर वे अपनी ललित व्याख्या भी प्रस्तुत करते हैं | कहीं-कहीं वे रोचक एवं मनोरंजक प्रसंगों का भी उल्लेख करते हैं | एकाध यहाँ पाठकों के मनोरंजनार्थ दिया जा रहा है | शिष्यों की कोटियाँ बताने के बाद वे कहते हैं कि अल्पप्रयत्नसाध्य शिष्य ( थोड़े प्रयत्न से जो सीख जाए |)  के लिए साहित्यवेत्ताओं के मुख से विद्योपार्जन करना उपाय है | आगे कहते हैं कि शुष्क तार्किक या शुष्क वैयाकरण को गुरु नहीं बनाना | इसी क्रम में एक कहानी यह है ( वैयाकरण और तार्किक क्षमा करेंगे |) कि “किसी पण्डित के पास एक तार्किक और एक वैयाकरण पढ़ता था | दोनों की बुद्धि जाँचने के लिए एक दिन घर जाकर लेट गए, अपनी कन्या को कहा --- यदि विद्यार्थी आवें तो कह देना ‘भटस्य कट्यां शरट: प्रविष्ट:’ (भट्टजी की कमर में छिपकली पैठ गयी है |) व्याकरण का विद्यार्थी आया | कन्या की बात सुनकर वाक्य को व्याकरण से शुद्ध पाकर चला गया | न्यायशास्त्र का विद्यार्थी आया --- उससे भी कन्या ने वही बात कही | पर उस ने विचार कर के देखा तो समझ गया कि यह तो असंभव है कि मनुष्य की कमर में छिपकली घुस जाए | गुरुजी बाहर निकले और कहा कि न्यायशास्त्र ही बुद्धि को परिष्कृत करती है निरा व्याकरण नहीं |” यहाँ जो वाक्य गुरुजी ने कहा है उसे देख कर नॉम चौमस्की का वाक्य के प्रसंग में दिया महत्त्वपूर्ण उदाहरण याद आ जाता है कि “यह एक गोल त्रिभुज है |” व्याकरण से इस वाक्य में कोई ग़लती नहीं है फिर भी यह वाक्य ग़लत है | ऐसे अनेक प्रंसग ‘कवि-रहस्य’ में दिए गए हैं | इन प्रसंगों से रोचकता तो आती ही है इस के साथ-साथ पाठकों की रुचि भी बढ़ती है | गंगानाथ झा की पुस्तक ‘कवि-रहस्य’ का पुनर्प्रकाशन साहित्य-रसिकों के लिए उपहार है |       
योगेश प्रताप शेखर, सहायक प्राध्यापक, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय
© 2025 - All Rights Reserved - The Raza Foundation | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^