20-Jun-2021 12:00 AM
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हम पिछले क़रीब पन्द्रह महीनों से अभूतपूर्व मुश्किल दौर से गुज़र रहे हैं। दुनिया का शायद ही कोई देश बाक़ी हो जिसमें कोविड-19 का संक्रमण और उसके फलस्वरूप मृत्यु का सिलसिला न चला हो। हर देश में इस संक्रमण ने वहाँ के शासकों की लापरवाही के समतुल्य ही विकरालता प्राप्त की है। हमारे देश में यह विकरालता अभूतपूर्व ही रही और आज भी है। यह कह पाना किसी के भी वश में नहीं है कि हम इस संक्रमण की गिरफ़्त से कब और कैसे बाहर आ सकेंगे। यह पहली बार नहीं है जब कोई संक्रामक रोग इतने व्यापक स्तर पर दुनियाभर में फैला हो। लगभग सौ वर्षों पहले स्पहानी फ़्लू पूरी दुनिया में फैला था और उसके फलस्वरूप भी बहुत बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु हुई थी। कोविड-19 के पहले ही सार्स और मार्स जैसे संक्रामक रोग विश्व के कुछ इलाकों में फैले थे। लेकिन इन तमाम रोगों और कोविड-19 के बीच एक बुनियादी फ़र्क हैः कोविड-19 की उत्पत्ति कथा कोहरे ने ढकी हुई है। बहुत समय तक यह कहा जाता रहा कि यह रोग चीन के वुहान शहर के ऐसे बाज़ारों से फैली है जहाँ जंगली जानवरों का माँस बेचा जाता है। इन जानवरों ने जिस एक पर कोविड-19 के फैलने का दोष मढ़ा गया था, वह चमगादड़ थी। क़रीब नौ-दस महिनों तक यह कहानी हर जगह बतायी और दिखायी जाती रही कि कोविड-19 चमगादड़ों से मनुष्यों में संक्रमित हो गया है। उसी दौरान अमेरिका के एक बड़े जीव-वैज्ञानिक टाॅमस कोवन ने कोविड-19 के जन्म के लिए फ़ाइव-जी इंटरनेट सेवाओं को जि़म्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि जर्मन दार्शनिक रूपर्ट स्टाइनर का यह कहना था कि जब-जब भी विश्व का व्यापक स्तर पर बिजलीकरण (इलेक्ट्रीफि़केशन) होता है, कोई न कोई महामारी फैलती ही है क्योंकि इलेक्ट्रीफि़केशन के कारण मनुष्य की कोशिकाएँ कमज़ोर पड़ जाती हैं, इसी तरह फ़ाइव-जी इंटरनेट सेवाओं के शुरू होते ही कोविड-19 फैलना शुरू हो गया। इसके प्रमाणस्वरूप टाॅमस कोवन ने यह बताया कि चीन के वुहान शहर में ही सबसे पहले फ़ाइव-जी इंटरनेट सेवाएँ शुरू की गयी थी और उसके कुछ ही समय बाद वहाँ दुनिया के पहले लगभग दस हज़ार कोविड संक्रमित लोग मिले। इस तर्क का पर्याप्त अन्वेषण किये बगैर ही इसे कई हल्क़ों ने तिरस्कृत करना ठीक समझा। यहाँ यह बताते चलना शायद ठीक हो कि जिन दिनों भारत कोविड-19 संक्रमण की पहली लहर से पीडि़त था, भारत के तमाम शहरों में फ़ाइव-जी इंटरनेट सेवाओं की लाइनें डाली जा रही थीं। यह बता देना भी शायद ग़लत नहीं होगा कि फ़ाइव-जी इंटरनेट सेवाएँ बहुत तेज़ अवश्य होंगी लेकिन इस तेज़ी को लाने के लिए फ़ाइव-जी की इलेक्ट्रोमेग्नेटिक तरंगें बहुत कम ‘वेवलेंग्थ’ की होंगी। इस कारण इन्हें विकीरित करने वाले ‘सेल्स’ घरों की बहुत नज़दीक लगाये जाएँगे जिसके कारण उन घरों के वध्य सदस्यों को कैंसर जैसी बीमारियाँ होने के खतरे, कई वैज्ञानिकों के मत में, बहुत बढ़ जाएँगे।
पिछले कुछ हफ़्तों से कोविड-19 की उत्पत्ति की एक नयी कहानी कही जा रही है। यह पूरी तरह नयी तो नहीं है क्योंकि इसे कोविड-19 संक्रमण की शुरुआत से ही भले ही धीमे स्वर से पर कहा अवश्य जा रहा था और उसे मुस्तैदी से नकारा भी जा रहा था। इसे कहने वाले पहले प्रमाणिक वैज्ञानिक फ्ऱांस के मोन्तेनिये हैं। ये वही वैज्ञानिक हैं जिन्हें एड्स रोग के कारणभूत वायरस को खोजने के लिए नोबल पुरस्कार दिया गया था और संयोग से ये ही वह वैज्ञानिक हैं जिन्होंने अत्यन्त प्रमाणिक वैज्ञानिक प्रयोगों के आधार पर यह साबित किया था कि पानी स्मृति सम्पन्न होता है। पानी को स्मृतिविहीन (न्यूट्रल) मानकर जैविकी की समझ विकसित करने वाली परम्परा के वैज्ञानिकों ने मोन्तेनिये के इस शोध का पुरज़ोर विरोध भी किया था क्योंकि अगर यह सच है कि पानी की स्मृति होती है तब समूचे जीव-विज्ञान का पुनरीक्षण करने की आवश्यकता होगी और यही नहीं उस स्थिति में समूचे चिकित्सा-विज्ञान पर भी पुनर्विचार करना होगा। मोन्तेनिये ने कोविड-19 के वायरस की संरचना के अध्ययन के आधार पर यह अनुमान लगाया था कि इसे प्रयोगशाला में विकसित किया गया होगा। मोन्तेनिये के इस अनुमान को भी नकार दिया गया था। पर नकारे जाने के बावजूद वह अनुमान बना रहा था। इसके कुछ महीनों बाद, अभी कुछ हफ़्तों पहले कोविड-19 के वायरस के प्रयोगशाला में विकसित किये जाने के अनेक प्रमाण मिल चुके हैं। इस समय तक दुनिया के अनेक वैज्ञानिक इस अनुमान को मानने को बाध्य जान पड़ रहे हैं। यह सप्रमाण कहा जा रहा है कि यह वायरस वुहान की एक प्रयोगशाला में विकसित किया गया है जिसकी वित्तीय सहायता अमरीका भी कर रहा था। हमने कोविड-19 के कोरोना-2 वायरस के जन्म की यह लम्बी कहानी इसलिए कही क्योंकि अगर इसमें से आखिरी कहानी (अनुमान) सही है तो यह हम सबके लिए भयानक ख़बर है। जिस बीमारी के जन्म की सच्चाई को इतनी सफ़ाई से पन्द्रह महीनों तक छिपाया जा सकता है, उसके इलाज के परिणामों या दुष्परिणामों को भी छिपाया जा ही सकता है।
कोरोना-2 वायरस की उत्पत्ति इस बात का इशारा है कि अगर मनुष्य की कोई भी ज्ञान परम्परा अपनी सीमा के विषय में सजग नहीं होगी तो वह पूरी मनुष्यता या दुनिया को नष्ट करने की कगार पर ले आएगी। यह समय है जब विज्ञान को अपनी सीमा पहचानने और उसका आदर करने की कोशिश करनी होगी। विज्ञान के अलावा दुनिया में ऐसी कोई ज्ञान परम्परा नहीं है जिसमें अपनी सीमा का विवेक न हों। अपनी सीमा को पहचाने बगै़र किसी भी ज्ञान परम्परा में नैतिक मूल्यों का अभाव होता ही है। अगर विज्ञान इस विवेक को अपने अस्तित्व की प्रक्रिया में शामिल करने का उपक्रम करने में विफल हो जाता है, मनुष्य और प्रकृति के बचे रहने की सम्भावना कम हो जाएँगी। या कम-से-कम उसके स्वस्थ बने रहने की सम्भावना कम हो जाएँगी। विज्ञान का अन्य ज्ञान परम्पराओं की तरह ही अपनी सीमा बाँध लेना ही पहाड़ों और नदियों, पेड़ों और पक्षियों, जानवरों और मनुष्यों सबके लिए श्रेयष्कर है।
भोपाल,
20 जून, 2021
उदयन वाजपेयी