थाना मूल उपन्यास ‘खिलेगा तो देखेंगे’ का अंश विनोद कुमार शुक्ल छत्तीसगढ़ी में अनुवाद- सौरभ शर्मा
25-Oct-2020 12:00 AM 4958

थाना! बर पेड़ अतेक बड़ रहिस हे
कि भूइयां भीतरी
ओखर जरी मन हा दूरिया तक फैले जरी सेती अउ
थाना के भी सेती गुप्त लगय।

गाँव म दू पक्का मकान रहिस, एक ठक ग्राम सेवक के क्वार्टर अउ दूसर पुलिस थाना। बल्ली-खपरा कुरिया मन ल देखतेस अउ एमन ला देखतेस तव गजब अन्तर लागतिस।
थाना हा डेढ़ दू साल ले खाली परे रहिस अउ सून्ना रहिस। तिर-तखार के गाँव मन ला घलो सुरता म राखके अऊ इही जगह ला बीचोंबीच मानके इहें थाना ला बनाये रहिन हे। फेर अब ये थाना हा थोड़ किन दूरिया बड़गांव चल दे हवे।
बड़गाँव के आबादी ठीकठाक रहिस। एक राइस मिल रहिस, बड़े लकड़ी टाल रहिस, आरा मशीन रहिस और आटा चक्की घलो रहिस। एक ठन माध्यमिक इस्कूल रहिस, एखर सेती थाना के बड़ जरूरत रहिस हे। ये छोट किन गांव म थाना बड़े-बड़े मेंछा वाला चैकीदार लगथे, अऊ जउन हा गरीब मनखे बीच रक्षा बर खड़े हे।
थाना अब्बड़ दिन से खाली रहिसे तभो ले गांव के मनके ओती बर जाय के हिम्मत नइ होत रहिस। छेरी मन हा तको भूले भटके घलो ओती नइ जातरहिन हे। जबकि गुरुजी मन हा पाठशाला म पढ़ात रहांय अउ छेरी मन हा कूद के बरांडा म चघ जाए। कभू गरूवा मन हा गरूवा होय के सामाजिक फायदा ला उठाके बिन डेर्राए थाना कोती चल देंय। पहाटिया गरुवा मन ला रोकय तभो ले ओमन ला कुछु नइ होवय। गऊ हा तव गऊ हे बपरी ह, तभो ले गऊ होय के सेती ओला जोखिम नइ रहिस हे। पाठशाला म गुरुजी हांका पारे असन चिल्लावय तब सब लइका मन हा ओला वइसने दोहरावय। एखर ले अतेक हल्ला होवय कि ओतके हल्ला के जंगल में हांका से बघवा हा निकलतिसअऊ शिकार हो जातिस। हल्ला होय तभ्भो छेरी मन हा कूदा-फांदी करत दिखजातिन।
थाना के अहाता म मीठ-पानी के कुँआ रहिस हे, केवल इही कुँआ होतिस अउ थाना नइ रहितिस तव कुँआ के चारो कोती गांव बस गे होतिस। कुँआ के तीर-तखार में बस्ती बसे के कोनों तुक नइ रहिसे। गांव सदा ले थाना के पीछू डहार रहे आये। अउ अतेक दिन ले सुन्ना रहे, ओती बर एको झोपड़ी नइ बाढि़स।
गांव के सियान कोटवार हा थाना के खाली होय के दिन ले नियम ले थाना ल रोजे बहारय अउ कुँआ ले पानी डोहार के मरकी म भर के रखय। मरकी फूट जतिस तव कुम्हार ला थाना के नाम फोकट म नवा मरकी मांग के ले आनय। ओला आस रहाय कि सरकारी आदमी दौरा म आहि तव थाना जैसन ठीकठाक जगा म रुकही। गांव वाला मन के बइठक लिहीं। बहारे बर ओला कोनो नइ तियारे रहिस हे, ओला खुदे लगय कि ये ह ओखरेच काम हे। जिवराखन के दुकान के आगू गांव के बइठक होवय। साहब मन हा परछी म देहाती टेबल कुर्सी म कागजपतरी लेके बैठंय। गांव वाले मन ला ओखर मन के सामने खाली जगा म ऊखरू बैठें ताकि साहब मन ये झन सोचंय कि एकदम पसर के बैठ गें हें। सावन के बेरा में जब कभू पानी बरसय तव बइठे-बइठे जम्मो झन भींग जावंत रहिन। दू मिनट रदरद रदरद बरसात होगे अउ जम्मो झन चूरचूर ले भीग जाए। ऐसन में साहब मन हा कहांय ‘बइठक बाद म होही’, ओखर मन के कागज-पतरी ला सकेलत दू मिनट तोहो जाथे। कभू-कभू तो पांच मिनट घलो लग जाय। टिपिर-टिपिर पानी गिरत रहाय तभो ले बइठक चलत रहाय।
दुकान के आगे बड़े जान के पीपल रूख रहिसे। सावन के बेरा म पानी झन गिर जाए, बइठक म अवइया मनखे मन हा रूख के छइय्या म बइठे बर सुरू कर दंय। गांव के आबादी ह बहुते कमती रहिस हे। साहेब के कुर्सी टेबल म बइठतेच जम्मो झन देखय कि दुकान अउ ओखर बीच बहुत जगा छुटे हे, सब झन खुदे आगू आ जतिन, तफेर पीपल रुख के छैय्या हा आखिर के मनखे ले घलो छूट जावय। गरमी म तको एसने होतिस, सबो घाम में रहितिन अउ रुख के छांव रुख के तिर-तखार रहेआतिस। जैसे पत्ती मन हा झड़-झड़ के नीचे इकट्ठा होथे, वैसने छांव घलो झरके रूख के नीचे इकट्ठा होतिस तव पेड़ हा अतेक बड़ रहिस कि सबे मनखे थोड़ थोड़ छांव ला सकेल के अपन मुड़ी में रख लेतिन। भलूक सौ बरछ ऐसने जिवराखन के दुकान म अइसने बइठक होत रहे तव हो सकत हे रूख अतेक बड़ हो जातिस कि जिवराखन के दुकान तक पहुंच जाए। रुख अपन अक्ल ले नइ बढ़य, सुविध्ाा ले बाढ़थे, अपन सुभाव ले बढ़थे।अगर अपन अकल ले बाढ़तिस तव ओला दुकान तिर आ जाना रहिस हे। जिवराखन के दुकान ल खुले सात आठ बछर होय रहिस हे। वो ह चाहतिस तव पीपल तिर घलो सुघ्घर दुकान खोल सकत रहिस हे। जिवराखन के तिर तखार के गांव मन मे घलो अब्बड़ भुइयां रहिस हे। वो गौटिया रहिस हे। पीपल रुख के नीचे चार- पांच सियान मन ह सब्बो बेरा ठल्हा बइठय दिखय। सियान मन के सेती अउ बड़े जान होय के सेती पीपल के रुख ह जुन्ना लगय। उजाड़ ध्ाुर्रा भरे भाठा म निचट अकेल्ला सियान। हवा चलतिस तव ओखर पान मन बाजय। गांव के इलाका जमाना ले चलत दयनीय कार्यक्रम रहिस हे। पीरा अउ सनसों के कार्यक्रम सुघ्घर तरीका ले होतिस तव तड़ तड़ ताली बजतिस।
कोटवार के पहिली नाती मर गे रहिस, तेखरे सेती ओला दूसर नाती के घलो मर जाय के डर के सनसों ले सोस करत अउ मया करय। जभू भी कोटवार बहारे बर थाना जावय तव इहु नाती ह संग चले बर जोजियावय। थाना के चिक्कन फररस म खेलई ओला बढि़या लागय। गांव के जम्मो लइका मन नंगरा रहाय। उहू नंगरा थाना के परछी म दउड़त रहाय। ओखर कनिहा म करिया ध्ाागा बंध्ााय रहाय ओमा मुरचा खाये एक ठक कूची लगे रहाय। ये कूची ह कोटवार ल थाना के अहाता म मिले रहिस हे। मने गांव के जम्मो लइका मन नंगरा नई रहितिन तव ये लइका ह उजाड़ थाना के बरांडा म दउड़त जानवर असन लगतिस। लइका के ददा के नाम घासीराम रहिस हे।
पांच छह बछर पहिली के गोठ हवय। सियान कोटवार के लइका घासीराम ह दारू चढ़ाके जिवराखन ल बड़ बखानिस। जिवराखन ह थाना ले सिपाही बला लिस। जौन बेरा घासीराम ल ध्ारत रहिन हे तव कुछु सोच के वो हा अपन लइका ला अपन बाई के कोरा ले छीन लिस, पहिली लइका रहिस हे तीन-चार महीना के। लइका ल ध्ारे-ध्ारे वो ह थाना गिस। घासीराम के बाई ल कोटवार थाना आए बर मना कर दे रहिस हे। नसा करे के सेती घासीराम के दसा खराब रहिस हे, जिवराखन के दुकान ले जतका दूरिया वो रहितिस, उही हिसाब से ओतके गोहार पार के ओला बखानय।
रेंगत रेंगत कभू कभू घासीराम लइका ल मया करे बर रुक जावय तव ओखर संग सिपाही, कोटवार, दूर चार ठक गांव के मनखे, गांव के कुछु लइका मन घलो रुक जाएं। तव कोटवार ओला लइका ला लउटाय बर जोजियावय। घासीदास लइका ल दे बर नट दय। रद्दा म ठाड़े ठाड़े घासीराम के रेंगे के अगोरा करत अब्बड़ बेरा होय लागतिस तव सिपाही ओला ढपेलत रेंगाना सुरू कर देतीस। लड़बड़ात लड़बड़ात घासीराम हा जोर से चिचियावय तव कोरा में लइका खलखला के हांसय।
थानेदार ल लागत रहिस हे कि लाकअप म ध्ाांध्ो के पहिली लइका ल ओखर कोरा ले लेना जरूरी हावय। लइका सहित ओला लाक्अप म ध्ाांध्ाना सही नइ आय। थानेदार ह सिपाही ल बोलिस कि वो ह घासीराम ले लइका ल ले लय अउ घासीराम ल लाकअप में ध्ाांध्ा दय। घासीराम थानेदार ल बखाने लगिस। लइका ल लागय झन कइ के सिपाही ह घासीराम के मुड़ म हुदरिस। लइका के सेती सिपाही ल मुड़ म हुदरना ठीक लगिस होही। घासीराम गिरगे हे, अइसन बइठगे। लइका चिचिया के रोय लगिस।
घासीराम ला लगत रहिस हे कि लइका के सेती उहू बाच जाहि या कोरा म लइका होय के कारण ओला नई मारय पीटय। इहू हो सकत रहिसे कि अइसने वो ह लइका ल ध्ार ले होवय। सिपाही मूंठा तानके ओला डेरूआत ओखर कोती जब फेर बढ़े लगिस तव लइला ला ढाल जैसन बनाके बहुते डेर्रा के बांचे के मुदरा म पीछे घुचे लगिस अउ कहिस मारव झन, लइका ल लाग जाहि। सियान कोटवार रोवत बेरा अब्बड़ सोगसोगावन लगत रहिस हे। कोटवार के रोवय ले सिपाही कंझात रहिस हे। सिपाही कोटवार ल अपन आगू ले हटाके पाछू कर दय। कोटवार फरसी म मुड़ी ल टेका के कहात रहिस हे- ‘ओला माफी दे दे दरोगा जी, झन मार साहब जी’।
घासीराम लइका ल करेजा म चिपटाये सिपाही कोती पीठ करके खड़े होगे। चोट लागे के कारण नइ ते नसा के कारण वो हा ठाड़ नइ हो पात रहिस हे। सिपाही हा घासीराम के कनिहा म मूंठा मारिस, तड़प के घासीराम घूम गे। जम्मो झन देखिन लइका के नाक ले टप-टप लहू गिरत रहिस हे। सिपाही ल घलो समझ नइ आइस लइका के नाक ले खून काबर बोहाइस। लइका चुप हो गे, टुकुर टुकुर देखे लागिस। अतकाच में घासीराम हा बहुत दुख म रोय लगिस अउ रोवत-रोवत आस ल छोड़ के अपन लइका ल कोटवार के हाथ में ध्ारा दिस।
लइका ल लेके कोटवार ह थाना ले निकलिस। अहाता के बाहिर कोती थोड़ किन सूक्खा गोबर पड़े रहिस हे। गोबर ल उठाके वो हा लइका के नाक मे सूंघा दिस। लहू हा ध्ाीरे-ध्ाीरे गिरत रहिस हे लेकिन बंद नइ होय रहिस हे। गोबर ल फेंक के वो उत्ता-ध्ाुर्रा घर कोती गिस। घर पहुंचे ले पहिलीच ओखर लइका मर गे। घर में घासीराम के बाई नइ रहिस हे। जिवराखन के दुकान म नून ले बर गे रहिस हे फेर घासीराम के कारण जिवराखन ह जिनिस देबर मना करत रहिस हे। तभे ओला कहूं से पता चलिस कि घासीराम के लइका मर गे। वो बेरा भी घासीराम के बाई ह नमक बर जोजियात खड़े रहिस हे। पता चले के बाद जिवराखन ह नून दे दिस पर लइका के मरे के समाचार नइ बताइस। वो ह डेर्रात रहिस हे कि दुकान म नौटंकी हो जहि। दूसर दिन बिहनिया घासीराम ल छोड़ दिन।
थानेदार थाना ले लगे जउन दू ठन खोली मन म रहाय वो हा एकदम टूटफूट गे रहिस हे। ओखरे मलबा थाना ल उजाड़ बनात रहिस। मलबा म भजकटिया घलो जागय अउ ध्ातूरा घलो फूलय। दूनो खोली थाना बने के बहुत बाद बनिस तभो गिर गे रहिन। थाना के चारो मूड़ा दीवार के घेरा घलो जगह-जगह टूट गे रहिस। घेरा के भीतरी अब्बड़ अकन रूख रहिस हे। घेरा के किनारे कोती कोनो कोनो जगह मेहंदी के रूख-राये रहिस हे। एक ठक बर पेड़ घलो रहिस हे। बर के डंगाल मन ले जरी मन हा नीचे तक झूलत रहांय। बरगद अतेक बड़ रहिस कि जमीन के भीतरी ओखर जरी के दुरिहा-दुरिहा फैलाव से थाना सेती गुप्त लगय।
थाना म दू ठक खोली रहिस हे। एक ठक बड़े जान लाकअप, एक ठक छोटकिन लाकअप। मुंशी जी परछी म टेबिल लगाके बैठत रहिस होही। थानेदार ह छोटे लाकअप म बइठत होही। बड़े लाकअप के टट्टी पेशाब निकासी, जउन छोटे लाकअप तरफ ले बाहिर कोती निकलत रहिस होही, तेन ला थानेदार बंद करा दे रहिस हे। निकासी बड़े लाकअप ले बाहर कोती कर दे गे रहिस हे। बड़े लाकअप में ऊपर म छोट किन रोशनदान रहिस हे, एमा चार ठक लोहा के मोट्ठ-मोट्ठ सलाख रहिस हे। रोशनदान ऐसन रहिस हे कि ओमा बिलई या ओखरे बराबर के हवा या उजेला खुसर सकत हो ही।
दिन म बराबर अइसन संका होवय कि हवा अउ अंजोर एक संग भीतरी जाए में नइ अमात होंही। कोनो पहिली आत होही, कोनो बाद में। मोट्ठ-मोट्ठ सींकचा वाले कपाट ले अब्बड़ हवा अउ अंजोर आवय। तभो ले अइसन लगय कि अंदर अमा गे अंजोर अउ हवा अब लाकअप ले बाहिर नइ जा सकय। अउ नइ तव दिन भर दिन के अंजोर हा लाकअप म बंद रहाय। घुटन होवय।
थाना के रोशनदान ले चिरई हा खुसरत होही तव ओखर पीछू-पीछू एक ठन बिलई ह घलो खुसरत होही। चिरई ह सींकचा के पोंडा ले बाहिर चल दय तव बिलई घलो ओखर पीछू पीछू निकल जात होही। चिरइ जतेक खुलके रहे ओतके बिलई घलो रहे। बिलई ह हमेशा चिरई ला दबोचे वाले ताकत होवय।
छोटे वाले लाकअप के रोशनदान ल थानेदार ह बड़े करा दे रहिस हे। ये लाकअप ल वो ह अपन दफ्तर बना ले रहिस हे। हवा अउ अंजोर ला उही बौर सकत रहिस हे जेखर खिरकी रहिस हे। खुला मैदान म घलो हवा अउ अंजोर ला बौर नइ सकत रहिन हे काबर कि मैदान म खिरकी अउ रोशनदान नइ रहाय। अंध्ाियार के आए बर कपाट अउ खिड़की के जरूरत नइ रहाय नइ तव रात में आत अंध्ाियार ल खिड़की दरवाजा बंद कर रोक देतेन। खोली म इकट्ठा होगे अंध्ाियार ल बहार देतेन।
रात म गांव के बाहिर खुल्ला मैदान के स्वतंत्रता म जतका अंध्ोरा होवय ओतके अंध्ोरा लाकअप म घलो हो जावय, ये ह अचरज के बात लागय। ऐसन लगय कि न्याय बर लाकअप के अंदर के अंध्ाियार अउ बाहिर मैदान के अंध्ाियार में थोड़किन फरक होना चाहिए रहिस।
गांव में रात अउ दिन के सुन्ना में उन्नीस-बीस के बस फरक रहाय। रात म जिवराखन के दुकान के पेट्रोमेक्स ह शहर जइसन अंजोर देवय। गांव के जम्मो अंध्ोरा ले गैसबत्ती के अंजोर ल घटा दन तभो ले ओखर नीचे अंध्ाियार के बड़े जान संसार बाचे रहितिस। अइसे लगय कि दुनिया ह प्राण ल बचाये बांचे हे। कभू लागय कि एक मनखे असन डेराये बचे जीव हे।
रात के सुन्ना म घलो जिवराखन के दुकान म रेडियो के आवाज ओतके दूरिया जावय जतका दिन के बेरा म जावय। फरक होतिस तभो बीस पचीस फीट ले जादा नइ होवय। पाठशाला के बेरा जब ट्रांजिस्टर थोड़किन जोर ले बाजय लगय तब गुरुजी कोनो टूरा के पट्टी ला ले, ओमा लिखय, ‘कृपाकर रेडियो ल ध्ाीरे बजाहु। द. गुरूजी।’ फेर पट्टी वाला टूरा ले कहितिस ‘जा एला जिवराखन दुकानदार ल देखा के ले आन’।
रेडियो की आवाज ध्ाीरे हो जतिस तो वो ह समझ जाए कि ओखर बात ह जिवराखन तक पहुंच गे अउ वो हा खुश हो जाए। टूरा ह लहुट के पट्टी गुरुजी ल देखातिस, ओमा लिखे रहितिस, ‘गलती होगे गुरुजी, आपके आग्या ले आवाज कम कर दे हन। द. जिवराखन दाऊ।’ दुकानदार के आखर सुडौल रहिस पर आखर लिखे के तरीका म दुकानदारी अंदाज रहिस हे, गुरुजी के आखर सुघ्घर सुडौल रहिस फेर ओखर आखर लिखे के तरीका म मास्टरी अंदाज रहिस हे।
पाठशाला ले कोनो टूरा पट्टी ले ले गांव कोती जावय तो गांव वाले मन समझ जाएं कि गुरुजी ह संदेसा भेजे हे। जिवराखन एला गुरुजी के टेलीफोन कहाय। जिवराखन संदेश ले के जात टूरा ल देखय तो हांका पारय, ‘गुरु जी के टेलीफोन आ गे।’ टूरा ल जिवराखन अपन तिर बलातीस। टूरा घबड़ाये जिवराखन तिर पहुंचय। जिवराखन ओखर ले पट्टी ले लेवय। फेर पट्टी में लिखे गोहार पार के पढ़य ‘आज संझा के मोर चड्डी ल सिलके दे देबे। द.गुरु जी।’ दीना दर्जी के टेलीफोन हे? जिवराखन गोहार लगा के पूछतिस। ‘हौ’, टूरा जवाब देतीस। जा बता देबे। जब टूरा वापिस आवय तव जिवराखन फेर हांका पार के ओला अपन तिर बलावय अउ ओखर पट्टी लेके दीना दर्जी के जवाब पढ़तिस। ‘हौ गुरुजी। द.दीना दर्जी।’ दीना दर्जी दसवीं पास रहिस हे। वो चाहतिस तव अंग्रेजी म घलो दस्कत कर सकत रहिस हे। पट्टी म गुरुजी के दस्कत ल देखके जवाब म जम्मो झन दस्कत करना जरूरी समझय। जिवराखन के दुकान म दू तीन झन सबो बेरा दिख जावय।
पाठशाला के परछी म रांध्ात बेरा गुरुजी के घरवाली बोलतिस ‘नून सिरा गे।’ अतका सुनतेच जम्मो टूरा पढ़े बर बंद कर दंय। ‘मे लानत हंव गुरु जी’, चार-पांच झन टूरा मन बोलतिन। कई झन तुरंत टूटहा पट्टी गुरुजी कोती उठा देतीन। गुरु जी एक झन के पट्टी म लिखतिस। ‘एक किलो नून चाही। द. गुरु जी’ गुरु जी के संदेसा पा के जिवराखन जवाब देतीस। ‘अब दू रुपया चार आना उध्ाारी हो गे हे गुरु जी। द.जिवराखन।’

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